खुशियां फैलाएं प्रदूषण नहीं

देश की राजधानी दिल्ली ही नहीं बाकी तमाम शहर भी प्रदूषण से परेशान हैं. दिल्ली के आसपास पराली जलाने से भी प्रदूषण बढ़ जाता है. दीवाली पर पटाखे चलाने से दिल्ली व उस के आसपास सब से अधिक प्रदूषण होता है. दुनिया के सब से अधिक प्रदूषित 10 शहरों में भारत के सब से अधिक शहर शामिल हैं, जो एक खतरनाक संकेत है.

किसी भी त्योहार का मतलब भी तभी हल होता है जब वह समाज में खुशियां फैलाए. प्रदूषण पूरी दुनिया का सब से बड़ा मुद्दा बन गया है. यह आने वाले समय में और भी अधिक खराब हालत में होगा. अपने आने वाली पीढि़यों को साफस्वच्छ हवा और पानी देने के लिए हमें प्रदूषण खत्म करने पर काम करना ही होगा.

खुशी कम प्रदूषण ज्यादा देते हैं पटाखे

दीवाली खुशियों का त्योहार है. इस की सब से बड़ी बुराई यह है कि खुशियां मनाने के लिए लोग पटाखों और फुलझडि़यों का सहारा लेते हैं, जिन से धुंआ निकलता है और वह वातावरण में फैल लोगों को ज्यादा नुकसान पहुंचाता है जो सांस की बीमारी के मरीज होते हैं. इन में बच्चे, बूढ़े और जवान सभी होते हैं.

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सांस की बीमारी के अलावा पटाखों की तेज आवाज कानों को भी नुकसान पहुंचाती है, जिसे ध्वनि प्रदूषण कहा जाता है. ध्वनि प्रदूषण को कम करने के लिए ही अस्पतालों और स्कूलों के क्षेत्रों को साइलैंस जोन बनाया जाता है. यहां पर तेज आवाज में हार्न बजाना मना होता है.

जब लोग तेज आवाज के पटाखे, बम और दूसरी चीजें फोड़ते हैं, तो अपना मुंह दूसरी ओर कर के कान पर हाथ रख लेते हैं. इस का मतलब यह होता है कि यह आवाज उन्हें भी अच्छी नहीं लगती है, जो साबित करता है कि जरूरत से ज्यादा तेज आवाज कानों के लिए ठीक नहीं.

सोचने की बात यह है कि जब हमारे कानों को कोई चीज अच्छी नहीं लगती है तो वह दूसरों को कैसे अच्छी लगेगी? इसलिए तेज आवाज के पटाखे नहीं चलाने चाहिए. पटाखे चलाने वालों को ही नुकसान नहीं पहुंचाते, बल्कि उन्हें भी पहुंचाते हैं जो इन्हें बनाते हैं. पटाखों के बनाने में बारूद का इस्तेमाल होता है, बनाने वालों के हाथों को नुकसान पहुंचाता है. इस के अलावा जब यह बारूद नाक के रास्ते फेफड़ों तक पहुंचता है, तो गंभीर बीमारी का शिकार बना देता है.

दीवाली में खुशियां मनाने का दूसरा तरीका बिजली की रोशनी करने का है. इस के लिए लोग भारी संख्या में बिजली की झालरें, बल्व और दूसरे सजावटी सामान का प्रयोग करते हैं. इस में सब से बड़ी बात यह है कि लोग एकदूसरे की देखादेखी अपने घर पर ज्यादा से ज्यादा रोशनी करना चाहते हैं. इस के लिए बिजली जलाते हैं. इस से बिजली का खर्च बढ़ जाता है. इस का प्रभाव यह होता है कि बिजली सप्लाई में तो परेशानी आती ही है, बिजली उन जगहों पर भी नहीं जा पाती है, जहां उस की सख्त जरूरत होती है. बहुत सारे अस्पतालों, औफिसों, रेलवे स्टेशनों और बाजारों को भी बिजली नहीं मिल पाती है.

रंगोली में करें प्राकृतिक रंगों का प्रयोग

रंगोली बनाने के लिए प्राकृतिक चीजों का ही प्रयोग किया जाए. इस के लिए फूलों और पत्तियों का प्रयोग कर सकती हैं. चावल को रंगने के लिए भी हलदी का प्रयोग करें. हरे रंग के लिए पत्ती का प्रयोग करें. पत्तियों को महीन काट लें. इन का इस्तेमाल रंगोली को आकर्षक रूप देने के लिए कर सकती हैं. इसी तरह अलगअलग रंगों के फूलों को भी महीनमहीन काट कर रंग की जगह इस्तेमाल किया जा सकता है.

ईको फ्रैंडली दीवाली मनाने के लिए बनाए गए रंगों का बहिष्कार करें. इन रंगों को बनाने में कैमिकल का प्रयोग किया जाता है, जो सेहत के लिए नुकसानदायक होता है.

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लखनऊ में रहने वाली रंगोली कलाकार ज्योति रतन कहती हैं कि प्राकृतिक रंगों से आकर्षक और हानिरहित रंगोली बनाई जा सकती है. रंगोली में उस की डिजाइन और रंगों का प्रयोग ही महत्त्वपूर्ण होता है. आज तरहतरह के फूल मिलने लगे हैं, जिन से रंगबिरंगी रंगोली बनाई जा सकती है.

इस तरह की बातों का खयाल रख कर ईको फ्रैंडली दीवाली मनाई जा सकती है. इस के साथसाथ खाने के सामान को बनाते समय भी इस बात का खयाल रखें कि इस में सेहत को नुकसान पहुंचाने वाली चीजों का प्रयोग न हो.

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