फिट रहने के लिए क्या मंत्र है एक्ट्रेस सुस्मिता मुखर्जी का, जानिए यहां

छोटे-बड़े पर्दे पर पिछले 40 सालों से अभिनय करने वाली अभिनेत्री सुष्मिता मुखर्जी से कोई अपरिचित नहीं. सुष्मिता ना सिर्फ एक अभिनेत्री है, बल्कि डायरेक्टर और लेखक भी हैं.उन्होंने हर तरह की भूमिका की है, फिर चाहे वह निगेटिव हो या पोजिटिव, हर भूमिका को जीवंत किया है. उनको छोटे परदे पर प्रसिद्धि क्राइम शो करमचंद से मिली, जिसमे उन्होंने किट्टी की भूमिका निभाई थी. काम के दौरान उन्होंने पहले निर्देशक सुधीर मिश्रासे शादी की, लेकिन वह टिक नहीं पाई, डिवोर्स लेने के बाद उन्होंने एक्टर, प्रोडूसर, एक्टिविस्ट राजा बुंदेला से शादी की और दो बेटों की माँ बनी.

भाषा को लेकर लिए संघर्ष

कैरियर के दौरानसुस्मिता नेबहुत संघर्ष किये है. एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा है कि उनके शुरुआत दिन काफी संघर्षपूर्ण थे, क्योंकि जब वह नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा से आई थी,तब उन्हें हिंदी नहीं आती थी.रत्ना पाठक शाह, दीपा शाही आदि ने उनकी खराब हिंदी का बहुत मजाक उड़ाया था, उसके बाद उन्होंने एक मास्टर से अच्छी हिंदी और उर्दू सीखी. दरअसल उन्हें हिंदी इसलिए भी नहीं आती थी, क्योंकि उनके घर पर  बंगला बोली जाती थी और बाहर वह अंग्रेजी बोलती थी.तब उन्हें हिंदी समझ में ही नहीं आती थी, लेकिन एनएसडी में आ कर हिंदी सीखी और अब वह बहुत ही अच्छे से हिंदी बोल लेती है.

सुस्मिता मुखर्जी ने नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा से अभिनय की शिक्षा ली है. स्टार भारत पर उनकी शो ‘मेरी सास भूत है’ में उन्होंने एक अलग और मजेदार भूमिका निभाई है, जिसे सभी पसंद कर रहे है. उन्होंने गृहशोभा के लिए खास बात कीऔर गृहशोभा मैगज़ीन को डिजिटल वर्ल्ड में भी अपनी छवि बनाये रखने के लिए पूरी टीम को बधाई दी. आइये जानें उनकी कहानी उनकी जुबानी.

किये सास की भूमिका

शो के बारे में बात करते हुऐ सुष्मिता कहती हैं कि मैंने हर तरह के सास की भूमिका निभाई है, ये उन सबसे अलग है. ये एक मजेदार शो है. इस शो का बेस अपर्णा सेन की मशहूर बांग्ला फिल्म ‘गोयनार बाक्शो’ से प्रेरित है. फिल्म गोयनार बक्शो में मौसमी चटर्जी का जो किरदार है उसी का बेस बना कर मैंने इस शो में भूमिका की है. शो बड़ा इंटरेस्टिंग है, क्योंकि इसमें सास भूत बन जाती है, तो उसके जो रिश्ते होते हैं,जो उनके जिन्दा रहते ठीक नहीं थे, अब उनको ठीक करती है और परिवार में वर्चस्व की लड़ाई को दिखाया गया है. ये ड्रामा और कॉमेडी वाली शो है, जिसे दर्शक काफी पसंद कर रहे है.

कितने तरीके की सास की भूमिका आप कर चुकी है? पूछने पर वह कहती है कि मैंने 40 साल इंडस्ट्री में काम किया है, इसमें देश, समाज, जिंदगी बदली है और सास भी बदल चुकी है. सास की भूमिका कोई भी हो ये एक परफोर्मेंस है, जिसमे स्क्रिप्ट और संवाद लिखे जाते है, फिर जाकर अभिनय किया जाता है. बहुत मुश्किल नहीं होता है. इस शो में कहानी बनारस की है, जबकि मैं बंगाल की अंग्रेजी माध्यम में पढ़ी-लिखी महिला हूँ, इसलिए बातचीत के टच को थोडा बदला गया है. इसमें सास की सास ने उनके साथ बदसलूकी की है, इसलिए वह भी अपनी बहू के साथ ऐसा करती है, पर धीरे-धीरे वह बदल कर अच्छी सास भी बन जाती है.

बदले खुद को

इसके आगे सुस्मिता कहती है कि असल जिंदगी में बड़े शहरों मेंसास की भूमिका पहले से बहुत बदल चुकी है. लोग आज सास और बहूँ में अंतर नहीं कर पाते, क्योंकि आज की सास बहु को अपना बेटी मानती है, लेकिन कुछ छोटे शहरों के पारंपरिक परिवारों में अभी भी बाउंड्री है, सबके सामने बहु को घूँघट डालना या साड़ी पहनना पड़ता है. ये सब कुछ खास परिवारों में अभी भी है. वे पुराने ट्रेडिशन को जबरदस्ती पकडे रहते है. धीरे-धीरे इसमें बदलाव आ रहा है. आज मेरी मेड की लड़की ब्यूटिशियन है, उसके पहनावे और मेकअप को देखकर कोई ये कह नहीं सकता कि उसकी माँ मेड है. आज ऑनलाइन सब सामान सस्ते मिलते है, कोई भी खरीद सकता है, हर कोई आगे बढ़ना चाहता है, ऐसे में समाज और परिवार में बदलाव अवश्य होगा.

ख़ुशी से निभाएं रिश्ते

आज की अधिकतर लड़कियां शादी नहीं करना चाहती और करती भी है तो ससुराल पक्ष के साथ रहना नहीं चाहती, इस बारें में सुस्मिता की सोच है कि आज संयुक्त परिवार प्रथा ख़त्म हो चुकी है, सभी एकाकी परिवार में रहते है, ऐसे में बेटे की माँ की भूमिका बड़ी होती है, क्योंकि उन्हें बेटे को समझाना पड़ेगा कि उन्हें अपना काम खुद करना है, इसके लिए वह माँ, बहन की राह नहीं देखेगा. केवल बहन आपको चाय न पिलाएं, बल्कि भाई भी उसे चाय बनाकर पिलाएं. जेंडर के आधार पर बेटे की परवरिश माँ कभी न करें. इसकी सीख माँ को देनी है, क्योंकि सास-बहु के बीच में मनमुटाव हमेशा दिखाया जाता है, लेकिन मानसिक रूप से मजबूत, दयालू, और इंटेलिजेंट बेटा ही इसे आसानी से दूर कर सकता है. उसे अपनी पत्नी और माँ दोनों को सम्मान और प्यार के साथ व्यवहार करना है और माँ को भी अपने व्यवहार में बहू आने पर सुधार करने की आवशयकता है. इसकी नींव माँ को शुरू से रखनी है. मेरे दोनों बेटे 27 और 29 साल के है. प्रायोरिटी पेरेंट्स है, लेकिन उन्हें मैं जीवन को सवारने और अपनी गृहस्थी बसाने की सलाह देती हूँ. मुझे अभी बैक सीट पर बैठना पसंद है. आज जमाना बदला है. दुनिया डिजिटल हो चुकी है, ऐसे में किसी को रोकना या टोकना उचित नहीं. मेरा बड़ा बेटा रुद्रांश बुंदेला 29 वर्ष का राइटर, डायरेक्टर और एक्टर है,उसने छोटी-छोटी फिल्में बनाई है. छोटा बेटा न्यूजीलैंड में साइंटिस्ट है, उसका मेरे फील्ड से कोई लेना-देना नहीं है. मैंने काम के साथ-साथ बहुत मेहनत से बच्चों की परवरिश की है.

कोई काम छोटा नहीं

इंडस्ट्री में टिकने के लिए सुस्मिता के संघर्ष के बारें में पूछने पर वह कहती है कि मैं कभी हिरोइन बनने आई ही नहीं थी. मैं थिएटर करती थी और फिर मुंबई आ गई, क्योंकि काम चाहिए था. मेरा कभी कोई ऐसा संघर्ष नहीं रहा क्योंकि मैंने कभी अपनी जिंदगी और चीजों से समझौता नहीं किया. मैं एक बहुत ही आम परिवार से थी और कला दिल के करीब थी. मुझे मेरा घर चलाना होता था और घर चलाने के लिए जैसे काम मिलते थे, कर लिए, क्योंकि हमारे पास ऑप्शन नहीं था. कई बार ऐसा हुआ कि पैसों के लिए छोटे-छोटे अभिनय किए, लेकिन कभी समझौता नहीं किया. इंडस्ट्री में टिके रहने की वजह भी यही रही, क्योंकि मुझे अभिनय के अलावा कुछ भी करना नहीं था.

आज के बच्चे है होनहार

नए लोगों के साथ काम करने के अपने अनुभव पर सुष्मिता कहती हैं कि लोगों का ये कहना गलत है कि आज कल के बच्चे सिर्फ मोबाइल में रहते हैं.मेरे हिसाब से आज कल के बच्चे एकदम अपने काम पर फोकस्ड हैं और अपनी लाइन अच्छे से याद करके आते हैं, किरदार में रहते हैं, समय से आते हैं, कोई नखरे नहीं है ना ही कोई घमंड है. एक कलाकार को कला के लिए प्रेम होना चाहिए और आजकल के बच्चों में वो प्रेम नजर आता है. मैं हर दिन उनसे काफी कुछ सीखती हूँ.

सुस्मिता को हर भूमिका से लगाव और प्रेम है, वे किसी एक किरदार को सबसे अधिक अच्छा नहीं बता सकती. उनका कहना है कि हर भूमिका में रस होता है, हर भूमिका अलग होती है और हर किरदार को मैं शिद्दत से करती हूँ. अपने काम से अगर प्यार करते हैं, तो जिस दिन आप काम नहीं करते हैं, उस दिन खुद को बहुत कमजोर महसूस करते हैं. अमिताभ बच्चन ने 80 साल की उम्र में भी पूरी मेहनत से काम करते हैं, मैं तो उनसे काफी छोटी हूँ.

खुश रहना है मंत्र

वह आगे कहती है कि मेरी फिटनेस का राज है बाहर की परिस्थितियों से अधिक प्रभावित न होना, मसलन मैं ओल्ड हो चुकी हूँ, या अच्छी नहीं दिखती आदि के बारें में नहीं सोचती. अंदर से हमेशा खुश रहती हूँ.इसका मोटिवेशन करोड़ों की संख्या में हमें देखने वाले दर्शक ही होते है, जो हर दिन हमारे शो को प्यार से देखते है और उसकी आलोचना या प्रसंशा करते है.इसके अलावा कही भी जाने पर वे हमें आसानी से पहचान लेते है. इससे ख़ुशी मिलती है.

एक्टिंग, डायरेक्शन, और प्रोडक्शन में सबसे ज्यादा मेहनत सुस्मिता को प्रोड्यूसर बनने पर करनी पर पड़ती है, क्योंकि वह उनके खून में नहीं है. उनके हिसाब से कलाकार केवल काम देखते हैं, पैसा अधिक नहीं देखते, जबकि प्रोड्यूसर सबसे पहले पैसा देखता है. मैं एक प्रोड्यूसर के तौर पर फ्लॉप हो गई, क्योंकि मैं प्रोडक्शन कर नहीं पाई और बाद में बहुत सारा काम करके लोगों के पैसे लौटाने पड़े.वह कहती है कि उस जमाने में हमारी कंपनी का 1 करोड़ का नुकसान हुआ था, क्योंकि मुझे प्रोडक्शन की सही जानकारी नहीं थी. अब मैंने उस काम को छोड़ दिया है.

योजनायें आगे की

सुस्मिता कहती है कि अभी मैं 5 वीं किताब निकालने वाली हूँ. उसपर काम चल रहा है. इसके अलावा मैंने एक सोलो कहानी ‘नारी बाई’ लिखी है, उसकी परफोर्मेंस करती हूँ. तीन फिल्में आने वाली है, इसके अलावा मैं मध्यप्रदेश के ओरछा में एक एनजीओ चलाती हूँ. उस क्षेत्र की उन्नति के लिए मैं और मेरे पति काम करते है. मेरे पति ने हमेशा मुझे हर क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया है. रात में कभी-कभी साथ में मिलकर खा लिया करते है. मेरे लाइफ में मैंने जितना माँगा सब मिला. मानसिक और शारीरिक सुख मेरे लिए बहुत जरुरी है.

महिलाओं के लिए सुस्मिता का मेसेज है कि वे खुद को किसी से कम न समझे और अपनी इच्छाओं को खुद पूरा करें, किसी को इसका जिम्मेदार न समझे.

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