विश्व को पर्यावरण प्रदूषण से मुक्त करने के लिए क्या कहते है,‘फारेस्ट मैन ऑफ़ इंडिया’ जादव मोलई पायेंग

व्यक्ति अगर ठान ले तो क्या नहीं कर सकता, मन में इच्छा और काम करने की मेहनत ही उसे आगे ले जाने में सामर्थ्य होती है, ऐसा ही कुछ कर दिखाया है आसाम के जोरहाट जिले की कोकिलामुख गांव की रहने वाले पर्यावरणविद और फॉरेस्ट्री वर्कर जादव ‘मोलई’ पायेंगने, जिन्हें देश ने ‘फारेस्ट मैन ऑफ़ इंडिया’का ख़िताब दिया और साल 2015 को पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी से उन्होंने पद्मश्री भी प्राप्त किया.उन्होंने ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे की बंजर और रेतीले जमीन को जंगल में परिवर्तित कर दिया, जहाँ बाघ, हाथी, हिरण, खरगोश आदि वन्य जीव और माइग्रेंटेड हजारों पक्षी शरण लिया करते है. 58 साल के जादव चाहते है कि विश्व में हर स्कूल और कॉलेजों में पर्यावरण के बारें में अच्छी शिक्षा दी जाय, ताकि विश्व नेचुरल डिजास्टर से बच सकें, नहीं तो वो दिन दूर नहीं, जब धरती पूरी पृथ्वीवासी से इसका बदला लेने में जरा सी भी नहीं चुकेगी.जादव के इस काम में उनकी पत्नी बिनीता पायेंग और बेटी मुन्नी पायेंग, बड़ा बेटा संजीब पायेंग और छोटा बेटा संजय पायेंगसभी सहयोग देते है. उन्होंने केवल भारत में ही नहीं, बल्कि विश्व में भी कई बंजर जमीन को जंगल में परिवर्तित किया है, जिसमें फ्रांस, ताइवान और मेक्सिको मुख्य है. इसके अलावा जादव के इस काम को भारत भले ही न समझे, पर अमेरिकी स्कूल ब्रिस्टल कनेक्टिकटके ग्रीन स्कूल की कक्षा 6 की पाठ्यक्रम में जादव के काम को शामिल किया गया है. मोलई फारेस्ट के अंदर काम कर रहे जादव से बात की, जहाँ नेटवर्क की समस्या है, लेकिन उन्होंने उसे दरकिनार करते हुए खास गृहशोभा के लिए बात की, आइये जाने उनकी कहानी उनकी जुबानी.

मिली प्रेरणा

पेड़ लगाने का काम जादव बचपन से कर रहे है. यह स्थान भारत के सूदूर इलाका असम में है, जो जोरहाट जिले की कोकिलामुख गांव कहलाता है. वहां रहने वाले जादव पायेंग कहते है कि वहां मैंने कक्षा तीन में पढने के दौरान एक एग्रीकल्चर साइंटिस्ट से मिला था, उन्होंने बताया था कि पेड़ को लगाना ही नहीं, बल्कि उसकी देखभाल कर बड़ा करना सबसे बड़ी बात होती है. ये बात मेरे मन में बैठ गयी. साल 1979 में 16 वर्ष की उम्र में एक दिन जब मैं 10वीं की परीक्षा देकर घर लौट रहा था, उस दिन गर्मी की वजह से बहुत तेज बारिश हुई और बाढ़ आ गयी थी, पानी नीचे जाते ही 100 से भी अधिक सांपों को ब्रहमपुत्र नदी के किनारे मृत अवस्था में देखा, क्योंकि पानी की तेज बहाव और बालू के घर्षण से सारे सांप मर चुके थे, मुझे लगा कि अगर मैं इन जीव जंतुओं को सम्हाल नहीं सकता, तो मेरी मृत्यु भी इसी तरह होगी, क्योंकि पहले यहाँ 2,500एकड़ जमीन में जंगल था, लेकिन हर साल मानसून और नदी की बाढ़ से जंगल की मिट्टी का कटाव होने की वजह से कई गांव-घर डूब चुके है. करीब 50 प्रतिशत जमीन से वन गायब है और पूरा स्थान बंजर हो चुका है. ऐसा अगर कुछ और सालों तक चलता रहा, तो अगले कुछ सालों में जंगल ख़त्म हो जाएगा और जंगली जानवर, पक्षी और मनुष्य के लिए रहने की जमीन नहीं मिलेगी, ऐसे में मुझे पता चला कि बाँस झाड़ विकसित करने से सांपों को पानी की तेज धार में भी अच्छा संरक्षण मिलेगा. मिट्टी का कटाव भी रुकेगा. 25 बाँस के छोटे-छोटे पौधे मैंने ब्रह्मपुत्र नदी की बलुई तट पर 55 हेक्टेअर जमीन पर लगाया और पता चला कि इन्हें अच्छी तरह ग्रो करने के लिए लाल चींटियाँ(red ants) जरुरी है. मैंने उन चींटियों को बोरे में भरकर वहां छोड़ा और थोड़े दिनों बाद-बाद पानी डालकर उन्हें ग्रो किया. इस तरह 30 साल में 1,390 एकड़ भूमि को जंगल में बदल दिया, जिसमें रॉयल बंगाल टाइगर, चीता, राइनो, हाथी, आदि के अलावा विभिन्न प्रकार की पक्षियाँ सब आने लगे. इस फ़ॉरेस्ट का नाम मेरे निक नेम के आधार पर ‘मोलई फारेस्ट’ दिया गया.

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आसान नहीं थी मंजिल

वहां रहने वाले नजदीक की ग्रामवासियों ने जादव पर इल्जाम लगाया कि उनकी वजह से मकान के आसपास जानवर आने लगे है, जो उनके घरों को तोड़ रहे है. म़ोलई कहते है कि उन लोगों ने साथ मिलकर पेड़ काटने की योजना बनायीं. तक़रीबन हज़ार की संख्या में लोग मेरे सामने आये. मैंने कहा कि पहले मुझे काटों, फिर पेड़ को काट सकते हो. इससे सब चले गयें. इसमें लोकल मीडिया ने अच्छा कवरेज दिया, जिससे पूरे देश को पता चला और एक-एक कर सभी बड़ी मीडिया ग्रुप मुझसे जुड़ गयी. इससे मेरा प्रचार हुआ और जेएनयू के कई वैज्ञानिक यहाँ आकर पेड़, जानवर, पक्षी आदि पर 3 दिन 3 रात रहकर पूरा रिसर्च किया और मुझे पहली बार ‘फ़ॉरेस्ट मैन ऑफ़ इंडिया’ का ख़िताब मिला. भारत के अलावा जर्मनी, श्री लंका, ताइवान, फ्रांस, अमेरिका आदि सभी स्थानों से छात्र जोरहाट में रिसर्च के लिए आते है.

मिला सम्मान

इसके बाद जादव पायेंग को मुंबई स्थित पूर्व राष्ट्रपति डॉ. अब्दुल कलाम की एक एनजीओ ने स्कूल, कॉलेज और इंडस्ट्री में लोगों को पर्यावरण संरक्षण के बारें में जागरूकता बढ़ाने के लिए बुलाया और मेहनताना देकर पूर्व राष्ट्रपति डॉ. अब्दुल कलाम ने उन्हें सम्मानित भी किया. जादव आगे कहते है कि उस दौरान मेरा नाम फ़ैल गया और मुझे फ्रांस जाने का मौका मिला. वहां मैंने स्कूल, कॉलेज और इंडस्ट्री के लोगों को पेड़ पौधे लगाने के बारें में जानकारी दी और बताया कि इसके बिना पूरी पृथ्वी ध्वंस हो जायेगी. मैने वहां भी प्लांट लगाया और उसकी देखभाल करना सिखाया.जंगल लगाने की काम के लिए सबसे अधिक सहायता महाराष्ट्र सरकार और वहां की एनजीओ ने किया है. आजतक भी कोई पैसा, तो खाने का सामान भेजते रहते है. इसके अलावा राजस्थान की एक एनजीओ को मैंने 75 हज़ार छोटे प्लांट मैंने भिजवाएं है. वहाँ की सरकार सारे एनजीओ को बुलाकर इसकी जिम्मेदारी दी है. अब तक करीब एक लाख पेड़ वहां लगाये जा चुके है.

पर्यावरण को बचाकर करें विकास

असम में हाथियों का झुण्ड अधिकतर भोजन की तलाश में रेलवे लाइन तक आ जाते है, इससे कई हाथियों की मृत्यु ट्रेन के नीचे काटकर या लोगों द्वारा मार देने से हुआ है. जादव कहते है कि हाथियों का संरक्षण बहुत जरुरी है, क्योंकि भारत सरकार स्टेट गवर्नमेंट ने हाथियों के जंगल का एक बड़ा भाग आयल रिफायनरी के लिए खरीद लिया है, ऐसे में ये जानवर कहाँ जायेंगे? ये धरती जितना मनुष्य के लिए है, उतना ही जानवरों के लिए भी है. अगर उन्हें अपनी जमीन न मिले, तो वे बाहर भोजन की तलाश में आते है और आम जनजीवन को भी क्षति पहुंचाते है. मुझे मुंबई में मेट्रो कार शेड बनाने के लिए आरे रोड का जंगल कांटना भी ठीक नहीं लगा था, पर इसका विकल्प मिला, ये अच्छी बात है.

जंगल में मिला परिवार

जादव हँसते हुए कहते है कि मैंने फारेस्ट के अंदर ही शादी की है. तब मेरी उम्र 42 साल थी,  एक जान-पहचान की बहन के साथ मेरी शादी हुई. मेरे दो बच्चे यही पैदा हुए. मैं पहलेयहाँ गाय और भैस पालता था, मेरी कमाई दूध बेचकर बहुत कम हुआ करती थी, लेकिन सबके सहयोग से मैं आगे बढ़ पाया. इसके अलावा मैंने बहुत सारे पौधे विदेश से भी लाये थे. उसे लगाने के लिए पत्नी, बेटा और बेटी सभी ने बहुत सहयोग दिया है. मेरे जंगल में बेर, बांस झाड, सेमल कॉटन ट्री बहुत अधिक है, सेमल कॉटन की मांग अधिक होने की वजह से व्यवसायियों ने लाखो रुपयें कमाए भी है.

नहीं सहयोग किसी सरकार का

जादव का आगे कहना है कि भारत सरकार की तरफ से मुझे सम्मानित किया जाता है, लेकिन कुछ राशि नहीं मिलती, जिससे मैं जंगल को और आगे बढ़ा सकूँ. मुंबई की एनजीओ समय-समय पर मुझे कुछ सहायता राशि देती है, जिससे मैंने 6 लोगों को जंगल की देखभाल करने के लिए रखा है, जो मेरी अनुपस्थिति में जंगल की देखभाल करते है. आगे ब्रह्मपुत्र नदी बहुत बड़ी है, उसके किनारों और द्वीपों को ग्रीन करना जरुरी है. इसलिए मैंने छोटे-छोटे एनजीओ को इसका भार सौपा है, उन्हें मैं बीज और पौधे देता हूँ और वे उन्हें लगाकर बड़ा करते है. बच्चों को प्रैक्टिकल शिक्षा पर्यावरण संरक्षण के लिए देना जरुरी है, जिससे उन्हें एक पेड़ की कीमत का पता लग सके. जो लोग पैसा कमाने के लिए विदेश जा रहे है, उन्हें अपने देश के लिए कुछ अच्छा काम करने की आवश्यकता है. पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन के लिए हर राज्य में हर किसी को पेड़ लगाना और उसका प्रतिपालन करना जरुरी है. कक्षा 10 तक उनके पाठ्यक्रम में प्लान्टेशन की पूरी जानकारी होनी चाहिए, ताकि वे बाद में कही भी जाकर पेड़ लगायें और देश को पर्यावरण प्रदूशण से बचा सकें.जादव पायेंग ने मेक्सिको की एक एनजीओ FundaciÓn Azteca के लिए एग्रीमेंट साइन किया है, जिसमें वे उत्तरी अमेरिका की बंजर भूमि को जंगल में परिवर्तित करेंगे, जिसके लिए वे नारियल के बीज को वहां लगायेंगे.

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अंत में जादव पायेंग का कहना है कि पूरे देश में खाली और बंजर जमीन पर अधिक से अधिक पेड़ लगायें, इससे धरती काफी हरी-भरी हो जायेगी और नैचुरल डिजास्टर्स में भी कमी आएगी.

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