कहानी- वंदना बाजपेयी
रात के 12 बजे थे. मैं रोज की तरह अपने कमरे में पढ़ रही थी. तभी डैड मेरे कमरे में आए. मु झे देख कर बोले, ‘‘पढ़ रही हो क्या, प्रिया?’’
मैं ने उन की तरफ बिना देखे कहा, ‘‘आप को जो कहना है कहिए और जाइए.’’
मैं जानती थी कि डैड इस समय मेरे कमरे में सिर्फ तुम पढ़ रही हो क्या, पूछने तो नहीं आए होंगे. जरूर कुछ और कहने आए होंगे और भूमिका बांध रहे हैं. भूमिकाओं से मु झे खासी नफरत है. यह वजह काफी थी मु झे क्रोध दिलाने के लिए.
डैड ने सिर झुका कर कहा, ‘‘अब उसे माफ कर दो प्रिया… वैसे भी वह हमें छोड़ कर जाने वाली है.’’
‘‘माफ… माई फुट, मैं उसे कभी माफ नहीं कर सकती,’’ मैं ने गुस्से को रोकते हुए कहा.
‘‘आखिर वह तुहारी मौम है.’’
डैड के ये शब्द मु झे अंदर तक तोड़ गए. मैं गुस्से में चीख पड़ी, ‘‘डैड, वह आप की वाइफ हो सकती है. मेरी मौम नहीं है और न ही वह कभी मेरी मौम की जगह ले सकती है. दुनिया की कोई भी ताकत ऐसा नहीं करवा सकती है.’’
‘‘पर प्रिया…’’
डैड का वाक्य पूरा होने से पहले ही मैं ने अपनी किताब जमीन पर फेंक दी, ‘‘जाइए… जाइए यहां से… जस्ट लीव मी अलोन.’’
डैड मेरा गुस्सा देख कर चले गए और मैं देर तक सुबकती रही. मैं भले ही सिर्फ 15 साल की थी पर परिस्थितियों ने मु झे अपनी उम्र से काफी बड़ा कर दिया था. रोतेरोते अचानक मु झे डैड के शब्द ध्यान आए कि वह हमें छोड़ कर जाने वाली है… और मेरे दिमाग ने इस का सीधासादा मतलब निकाल लिया कि डैड और मोनिका का तलाक होने वाला है. क्या सच? क्या इसीलिए डैड दुखी थे? मेरे चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई. मैं अपने दोनों कानों पर हाथ रख कर चिल्लाई, ‘‘ओह, ग्रेट.’’
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दूसरे दिन मैं खुशीखुशी स्कूल गई. मैं ने अपनी सहेलियों को कैंटीन में ले जा कर ट्रीट दी. हालांकि सब खानेपीने में मस्त थीं पर नैन्सी ने पूछ ही लिया, ‘‘प्रिया, आखिर यह ट्रीट किस खुशी में दी जा रही है?’’
मैं ने चहकते हुए कहा, ‘‘फाइनली… फाइनली ऐंड फाइनली मोनिका और मेरे डैड में तलाक होने वाला है और वह हमें छोड़ कर जाने वाली है.’’
अपनी स्टैप मौम मोनिका के लिए मेरे मन में इतनी नफरत थी कि मैं ने उसे कभी मौम नहीं कहा. मैं हमेशा उसे मोनिका ही कहती रही, डैड के लाख सम झाने के बावजूद. वैसे भी खुली संस्कृति वाले अमेरिका में यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है.
तभी रीता ने कोक का घूंट गटकते हुए पूछा, ‘‘प्रिया, क्या तुम्हारे डैड और स्टैप मौम में काफी झगड़े होते हैं?’’
‘‘नहीं तो?’’
इस बात का उत्तर देने के साथ ही मैं अतीत में पहुंच गई…
जब मैं छोटी थी तब मेरी मौम और डैड में बहुत झगड़े होते थे. उन को झगड़ता देख कर मैं रोने लगती. थोड़ी देर के लिए दोनों चुप हो जाते पर फिर झगड़ना शुरू कर देते. उन के झगड़े में बारबार मेरा नाम भी शामिल होता. दोनों कहते कि अगले की वजह से मेरा जीवन खराब हो
रहा है. मैं बहुत सहम जाती थी. मैं मौम या डैड में से किसी एक को चुनना नहीं चाहती थी. इसी कारण कई बार नींद खुल जाने के कारण भी मैं आंखें बंद किए पड़ी रहती कि कहीं मु झे रोता देख कर दोनों एकदूसरे पर मु झे रुलाने का कारण न थोपने लगें.
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कई बार भय से मेरा टौयलेट बिस्तर पर ही छूट जाता और मौम मु झे बाथरूम में ले जा कर शावर के नीचे बैठा देतीं. रात में ही बैडशीट बदली जाती. मु झे थोड़ा पुचकार कर फिर दोनों झगड़ने लगते. पर बात संभलते न देख कर दोनों की सहमति से मु झे दूसरे कमरे में सुलाया जाने लगा. अफसोस, झगड़े की आवाजों ने यहां भी मेरा पीछा नहीं छोड़ा. मैं कानों पर तकिया रख कर जोर से दबाती पर आवाजें मेरा पीछा न छोड़तीं. मैं रोज कामना करती कि मेरे मौमडैड
के बीच सब ठीक हो जाए. हम भी ‘हैपी फैमिली’ की तरह रहें. मगर मेरी कामना कभी पूरी नहीं हुई.
मु झे आज भी वे दिन अच्छी तरह याद हैं. मैं 6 साल की थी. मौम ने मु झे गुलाबी रंग का फ्रौक पहनाया और खूब प्यार किया. मौम बहुत रोती जा रही थीं. रोतेरोते ही उन्होंने मु झ से कहा, ‘‘प्रिया, मैं केस हार गई हूं, तुम्हारी कस्टडी पापा को मिली है. मैं वापस इंडिया जा रही हूं. तुम्हें यहां अमेरिका में रहना है, अपने पापा के साथ. हो सकता है आगे तुम्हारी कोई स्टैप मौम आए, पर तुम संयत रहना. बड़ा होने पर मैं कैसे भी तुम्हें ले जाऊंगी.’’
मौम चली गईं और मैं रह गई डैड के साथ अकेली. पहले 2 सालों में डैड मु झे इंडिया ले कर गए. मौम से भी मिलाया, पर उस के बाद यह संपर्क टूट गया. हां, कभीकभी मौम से फोन पर बात होती. उन के आंसू मु झे अंदर तक चीर देते थे. मैं इमोशनल सपोर्ट के लिए डैड पर निर्भर होती जा रही थी.
मेरा 8वां बर्थडे था जब मोनिका डैड की जिंदगी में आई. वह पार्टी में इनवाइटेड
गैस्ट्स में थी. डैड उस से बहुत हंसहंस कर बातें कर रहे थे. मु झे उस का डैड के साथ इस तरह घुलमिल कर बातें करना बिलकुल अच्छा नहीं लगा. अलबत्ता उस के बेटे जौन के साथ मेरी अच्छी जमी. हम ने कई खेल साथ खेले. उस के बाद मोनिका अकसर हमारे घर आने लगी. डैड का टाइम जो मेरे लिए था उस पर वह कब्जा जमाने लगी. उसे डैड के साथ देख कर मेरे मन में न जाने कैसे आग सी लग जाती. मु झे लगता डैड के इतने पास कोई नहीं बैठ सकता. वह जगह मेरी मौम की थी, जिसे कोई नहीं ले सकता. मैं तरकीबें सोचती कि कैसे डैड को उस से दूर रखूं. पर डैड और मोनिका के प्रेम के बहाव के आगे मेरी छोटी नादान सारी तरकीबें बह गईं. प्रेम अंधा होता है और स्वार्थी भी. डैड को मोनिका को अपनी प्राथमिकताओं की लिस्ट में पहला स्थान देते समय मेरी बिलकुल याद नहीं आई. कुछ ही महीनों में दोनों ने शादी कर ली.
मोनिका के साथ उस का बेटा जौन भी हमारे घर आ गया. जौन के रूप में मु झे सौतेला ही सही पर छोटा भाई तो मिल ही गया. मगर मोनिका को मैं कभी माफ नहीं कर सकी. न ही कभी अपनी मौम की जगह दे सकी.
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वैडिंग गाउन में जब मोनिका ने हमारे घर में प्रवेश किया था तो मेरा गुस्से से भरा चेहरा देख कर उस के पहले शब्द यही निकले थे, ‘‘प्रिया, जिंदगी एक बहाव है. जीवननदी कैसे बहती है कोई नहीं जानता. यह नदी कभी पत्थरों को साथ बहा ले जाती है, तो कभीकभी बड़े पर्वत को काट देती है, तो कभी मन बना लेती है कि उसे पर्वत से नहीं टकराना और फिर चुपचाप अपना रास्ता बदल लेती है. अब यह पता नहीं कि नदी ये सब अपनी इच्छा से करती है या सबकुछ पूर्वनियोजित होता है. फिर भी हम किसी सूरत से नदी को दोष नहीं दे सकते. तुम्हारे जीवन में मैं आ गई हूं. मैं जानती हूं तुम मु झे पसंद नहीं करती हो. सबकुछ अचानक हुआ, यह पूर्व नियोजित नहीं था. फिर भी अगर तुम मु झे गलत सम झती हो तो प्लीज फौरगिव मी. अब हम एक फैमिली हैं और मैं कोशिश करूंगी कि हम एक अच्छी फैमिली के रूप में आगे बढ़ें.’’
मु झे उस की बात में दम लगा था. मैं भी एक अच्छी जिंदगी जीना चाहती थी. शायद मैं उसे माफ कर देती पर मेरी मां के आंसू मु झे ऐसा करने से रोक रहे थे. मैं ने अपनेआप को संयत किया. ‘ओह, कितनी चालाक है, अपना ज्ञान बघार रही है, पर मु झे इंप्रैस नहीं कर सकती,’ सोचते हुए मैं ने उस का हाथ झटक दिया और अपने कमरे में चली गई.
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कहानी- वंदना बाजपेयी
वैसे मोनिका की पर्सनैलिटी बहुत चार्मिंग थी. वह एमएनसी में सौफ्टवेयर इंजीनियर होने के साथसाथ चुस्तदुरुस्त महिला भी थी. वह इतनी हैल्थ कौंशस थी कि सुबह 5 बजे उठ कर मौर्निंग वाक और ऐक्सरसाइज करती और बैलेंस डाइट पर बहुत जोर देती. हैल्दी फूड, हैल्दी ड्रिंक, हैल्दी लाइफस्टाइल… बस हैल्दी, हैल्दी, हैल्दी. उस के सिर पर अच्छी हैल्थ का भूत सवार रहता. उस के इतने गुणों के बावजूद मेरे मन में उस के लिए सिर्फ और सिर्फ नफरत थी. मु झे लगता था मोनिका मेरी मौम के आंसुओं का कारण है. हालांकि जहां तक मु झे याद है मैं ने कभी अपनी खुद की मौम और डैड के झगड़े के बीच कभी मोनिका का नाम नहीं सुना था.
‘‘अरे, कहां खो गई?’’ रीता की आवाज से मेरी तंद्रा टूटी और मैं फिर से कोक और चिप्स में मगन हो गई.
अगले 4 5 दिन मेरी जिंदगी के सब से अच्छे बीते. मैं खुद में खुश थी. इयर प्लग लगा कर गाने सुनती और अपने में मस्त रहती. घर
में क्या चल रहा है, इस का मु झे अंदाजा भी नहीं था. करीब हफ्ताभर बीत जाने के बाद जौन ने बताया कि मौम हौस्पिटल में हैं. अरे हां, कुछ दिनों से मु झे मोनिका घर में दिखी भी नहीं थी. पर मेरी नफरत इतनी ज्यादा थी कि मैं उसे होते हुए भी नहीं देखती थी तो उस के न होने पर
क्या खाक ध्यान देती? खैर, हौस्पिटल में है तो भी मु झे क्या?
फिर भी औपचारिकता के नाते मैं ने जौन से पूछ ही लिया, ‘‘क्या हुआ है उन्हें?’’
जौन सुबक पड़ा, ‘‘मौम को लंग कैंसर है… टर्मिनल स्टेज.’’
‘‘व्हाट,’’ मैं चीखी, ‘‘अभी पता चला और इतनी जल्दी टर्मिनल स्टेज कैसे?’’
दरअसल, कैंसर शुरू में लंग्स में ही था पर अब ब्रेन तक फैल गया है,’’ जौन ने आंसू पोंछते हुए कहा.
मुझे झटका सा लगा. फिर बोली, ‘‘तुम चिंता मत करो जौन, एवरीथिंग विल बी फाइन,
कह कर मैं अपने कमरे में चली गई.
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अब मु झे डैड की बात का मतलब सम झ में आया कि वे मु झे क्यों कह रहे थे कि उसे माफ कर दो. वह हमें छोड़ कर जाने वाली है. तो क्या छोड़ कर जाने का मतलब यह था? ओह नो. मैं मोनिका से मिलने के लिए अधीर हो उठी. शाम को मैं डैड के साथ हौस्पिटल गई पर उस से मिल न सकी. उसे शीशे के कैबिन में सब से दूर रखा गया था.
‘‘पर क्यों डैड?’’ मैं ने डैड से पूछा.
‘‘बेटा, मोनिका को कीमो के बाद शरीर कमजोर होने के कारण सीवियर चैस्ट इन्फैक्शन ने घेर लिया है. उसे सब से अलग इसलिए रखा गया है कि आगे उसे कोई इन्फैक्शन न लगे.’’
मैं शीशे के पार मोनिका के शरीर में लगी तमाम ट्यूब्स को देख रही थी. यह सच है कि मैं मोनिका को डैड से दूर देखना चाहती थी पर ऐसे नहीं. मैं उस से नफरत करती थी पर इतनी भी नहीं कि उसे इस हालत में देखूं. उस समय मैं बस कहना चाहती थी कि मैं ने उसे माफ किया. पर शीशे के उस पार वह क्या सुन पाती? मेरी आखें छलक पड़ीं.
उस रात मैं सो नहीं पाई और उस दिन को याद करने लगी जिस दिन मोनिका मेरे डैड की पत्नी बन कर मेरे घर आई थी और मैं ने उस
के बारे में एक बुरी औरत होने का विचार बना लिया था. मैं उस की सुंदरता, उस की काबिलीयत, उस के हैल्दी लाइफस्टाइल को
वह अवगुण मानने लगी जिस के कारण मेरी मौम मु झ से दूर हो गईं. ऐसा नहीं है कि मोनिका ने मु झ से प्यार जताने की कभी कोशिश नहीं की. पिछले 6 सालों में उस ने मेरा दिल जीतने के लाखों प्रयास किए. कितनी बार उस ने आंखों में आंसू भर कर मु झ से प्लीज, फौरगिव मी कहा पर मैं ने उस के हर प्रयास को एक साजिश सम झा, जिस के द्वारा वह मेरे मन से मेरी मौम की जगह छीन सके.
मु झे याद है कि अकसर ब्रेकफास्ट मोनिका ही बनाती थी. ज्यादातर वही बनता जो जौन को पसंद था. उस के लाख पूछने के बावजूद मैं ने उसे अपनी पसंद नहीं बताई. पर शायद उस ने डैड से पूछा लिया और अगली सुबह ब्रेकफास्ट के समय चहकते हुए यह कह कर परोसा कि आज मैं ने अपनी बेटी प्रिया की पसंद का ब्रेकफास्ट बनाया है. बस इतना सुनना था कि मेरे तनबदन में आग लग गई. मैं ने उस के सामने ही ब्रेकफास्ट डस्टबिन में फेंक दिया और फ्रिज से ब्रैडबटर निकाल कर खा लिया. मोनिका मु झे देखती रही, पर मैं ने पलट कर नहीं देखा.
उस के बाद उस ने मु झे तोहफे देने शुरू किए. मेरी पसंद के
कपड़े, मेरी पसंद के जूते, खिलौने या कुछ और महंगे से महंगा. इतने महंगे उस ने कभी जौन के लिए भी नहीं लिए थे. पर मैं ने हर बार यह कहते हुए कि मेरा प्यार बिकाऊ नहीं है. तुम मु झे सारी दुनिया की दौलत से भी खरीद नहीं सकती उस के तोहफे लौटा दिए.
हर बार वह दुखी होते हुए कहती, ‘‘प्लीज, फौरगिव मी.’’
हर बार उस की आंखें डबडबातीं. कभीकभी एक पल के लिए मेरा दिल पिघलता भी, पर मैं तुरंत संयत हो जाती. वह मेरी मां के आंसुओं का कारण थी, इसलिए मैं बिना परवाह किए सिर झटक कर चल देती.
वह हमारे रिश्तों को सुधारने के लिए कभी मौल, कभी पार्क, कभी मूवी चलने का प्रोग्राम बनाती, पर मैं सिर या पेट दर्द का बहाना बना कर अपने बिस्तर पर पड़ी रहती.
सचाई तो यह थी कि मैं उसे एक मौका नहीं देना चाहती थी कि वह मु झे खरीद सके. मु झे लगता था इसी में उस की हार है. हां, एक वक्त था, जब मैं काफी कमजोर पड़ गई थी. मु झे कई दिनों से बुखार था. मोनिका मेरा ध्यान रखने में कोई कमी नहीं रखना चाहती थी. वह मु झे अपने हाथ से दवा देती, जबकि मैं चाहती कि डैड
मु झे दवा दें. मैं दवा खाती नहीं थी. अगर उस ने मुंह में डाल दी तो निगलनी बिलकुल नहीं थी. गाल के बीच में फंसा लेती. उस के जाने के बाद थूक देती. इसी कारण बुखार बहुत बढ़ गया. मैं शायद अर्धबेहोशी की अवस्था में ‘मौममौम’ बड़बड़ा रही थी, जब मोनिका मेरे कमरे में आई. वह मेरे बिस्तर पर बैठ गई और मेरे तपते सिर पर ठंडे पानी की पट्टियां रखने लगी. मु झे बहुत अच्छा लगा. मौम के होने का एहसास हुआ और मैं धीरे से उठ कर उस से लिपट गई. मोनिका ने भी मु झे गले से लगा लिया. दिल को बहुत सुकून मिला.
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अचानक मु झे एहसास हुआ कि वह मेरी मौम नहीं है. मैं ने जल्दी से अपने को उस की बांहों से छुड़ाया. माथे से ठंडे पानी की पट्टी
हटा कर पानी का जग फेंक दिया. पानी फर्श पर फैल गया. उस पानी के बीच मु झे मोनिका की आंखों का पानी दिखाई नहीं दिया. बस शब्द सुनाई पड़े, ‘‘आर यू ओ के? प्लीज फौरगिव मी, प्लीज’’
उस के बाद डैड ने ही मु झे दवा दी. तन से मैं ठीक हो गई पर मन पहले से अधिक बीमार हो गया. मु झे लगा यह मेरी बहुत बड़ी हार थी और उस की बहुत बड़ी जीत. मैं कई दिनों तक उस से आंखें चुराती रही. मु झे लगता वह मुसकरा रही होगी, जश्न मना रही होगी. नहीं मैं उसे माफ नहीं कर सकती. मु झे और कठोर होना पड़ेगा.
शायद वह मोनिका की मु झे मनाने की आखिरी कोशिश थी. मेरे स्कूल में फैंसी ड्रैस कंपीटिशन था और मु झे परी बनना था. वह जानती थी कि महंगे गिफ्ट मु झे नहीं रि झा सकते, इसलिए उस ने अपनी व्यस्तताओं से समय निकाल कर खुद मेरा गाउन डिजाइन किया. सुनहरी पाइपिंग व लेस से सजा मेरा रैड गाउन और साथ में हैट पर लगे रैड रोज. मैं देखती ही रह गई.
मेरी सहमति देखते ही वह चहक कर बोली, ‘‘प्रिया, प्लीज मु झे अभी पहन कर दिखाओ. जिस दिन तुम्हारा फंक्शन है मेरा टूर है. तब मैं देख नहीं पाऊंगी.’’
आगे पढ़ें मेरा दिल उसे माफ करना चाहता था. मैं गाउन पहनने…
पिछला भाग पढ़ने के लिए- फौरगिव मी: भाग-2
कहानी- वंदना बाजपेयी
मैं गाउन ले कर बाथरूम में गई. मेरा दिल उसे माफ करना चाहता था. मैं गाउन पहनने लगी. अचानक मु झे लगा यह उस की जीत होगी. उस की ही नहीं यह उन सारी दूसरी औरतों की जीत होगी जो बच्चों को मौम या डैड किसी एक के पास रहने को मजबूर कर देती हैं. मेरा मुंह का स्वाद कसैला हो गया. मैं ने गाउन पर कैंची चलानी शुरू कर दी. पाइपिंग लेस और गुलाब के फूल सब बिखर गए. पर शायद गाउन ही नहीं कटा उस दिन से बहुत कुछ कट गया. बहुत से फूल बिखर गए. मैं ने तमतमाते हुए उसे वह गाउन वापस करते हुए कहा, ‘‘लो अपना गाउन. तुम इस से मु झे नहीं खरीद सकती. मैं बिकाऊ नहीं हूं.’’
इस बार मोनिका की आंखें डबडबाई नहीं. वह फूटफूट कर रोने लगी. उस ने मेरा हाथ पकड़ कर पूछा, ‘‘आखिर मेरी गलती क्या है? आखिर तुम मु झे किस अपराध की सजा दे रही हो? अगर तुम्हें कुछ गलत लगता भी है तो क्या तुम उस बात को भूल कर मु झे माफ कर फिर से आगे नहीं बढ़ सकती?’’
‘‘तुम मेरी मां के आंसुओं का कारण हो. तुम ने मेरी हैपी फैमिली को तहसनहस किया. मौमडैड को अलग किया, फिर डैड को मु झ से अलग किया. अब ओछी हरकतों से मु झे खरीदने की कोशिश कर रही हो,’’ मैं चिल्लाती जा रही थी. अपनी सारी नफरत एक बार में निकाल देना चाहती थी.
मैं ने आरोपों की झड़ी लगा दी. मैं उसे रोता छोड़ कर अपने कमरे में चली गई. उस के बाद से हमारे बीच बातचीत बहुत कम हो गई. मोनिका ने मु झे मनाने की सारी कोशिशें बंद कर दीं. मैं खुश थी. मु झे लगा मैं ने अपनेआप को बिकने नहीं दिया. यह मेरी जीत थी.
समय आगे बढ़ता गया और मैं अपने कमरे में और कैद होती गई. कमरा जहां
लैपटौप था, जो मु झे सोशल मीडिया के हजारों लोगों से जोड़े रखता… काल्पनिक ही सही पर मैं ने भी अपनी एक फैमिली बना ली थी. एक बड़ी फैमिली जहां दर्द और खुशियां भले ही न बंटती हों पर इस से पहले कि मु झे काटने को दौड़े वह बेदर्द समय जरूर कट जाता था.
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तभी अलार्म बजा और मैं अतीत से निकल कर वर्तमान में लौट आई. वर्तमान, जहां मैं जीत के बाद हार का सामना कर रही थी. मैं बारबार उसे हर्ट करने के लिए, उस का दिल दुखाने के लिए अपराधबोध महसूस कर रही थी. मैं ने सोच लिया था कि अब मैं जब भी उस से मिलने जाऊंगी उसे बांहों में भर कर कहूंगी, ‘‘मैं ने उसे माफ किया.’’
अब मैं अमेरिका में पलीबढ़ी 15 साल की किशोर लड़की थी या यों कह सकते हैं कि मैं एक होने वाली नवयुवती थी. नई जैनरेशन और आजाद खयाल होने के नाते अब मैं जानती थी कि किसी भी खत्म हो चुके रिश्ते के टूटने की वजह हमेशा दूसरी औरत ही नहीं होती. उस रिश्ते को तो टूटना ही होता है. मैं ने मोनिका को हमेशा दोषी माना क्यों? इस का उत्तर खुद मेरे पास नहीं था.
़वह भी जानती थी कि वह मेरी मां नहीं है और न ही कभी हो सकती है पर ‘हैपी फैमिली’ के अपने सपने को पूरा करने की उस ने बहुत कोशिश की. परंतु उस के सारे प्रयास मु झे उस की चाल लगते और उसे विफल करने में अपनी जीत. मैं हर साल उम्र में तो बड़ी हो रही थी, पर पता नहीं क्यों इस बात को सम झने में बड़ी नहीं हो पाई. काश, वक्त मु झे थोड़ा और वक्त दे और मैं अतीत को भूल कर आगे जी सकूं. क्या ऐसा होगा? मैं अधीर हो उठी.
1 हफ्ते तक कीमो व रैडीऐशन के चलते उसे उसी शीशे के कैबिन में रहना था. मैं उस से मिल नहीं सकती थी. पर मैं यह वक्त बरबाद नहीं करना चाहती थी. मैं ने बाजार जा कर वैसे ही गाउन का और्डर दे दिया, जो 1 हफ्ते बाद मिलना था. मैं मोनिका के सामने उसी गाउन में जाना चाहती थी. मोनिका की हालत बिगड़ने लगी थी. उस पर ट्रीटमैंट का कोई असर नहीं हो रहा था. रैडीऐशन की हीट से उस का सारा शरीर जल रहा था. मैं चिंतित थी पर उस के वार्ड में जाने और ठीक होने का इंतजार करने के अलावा मेरे पास कोई दूसरा रास्ता नहीं था.
मेरी आशा के विपरीत शीशे के कैबिन से निकाल कर उसे वार्ड में शिफ्ट नहीं
किया गया, बल्कि उसे होस्पिक केयर के लिए हौस्पिटल में ही बने एक विशेष कक्ष में भेज दिया गया. डैड ने ही मु झे बताया कि होस्पिक केयर उन मरीजों को दी जाती है जो अपने जीवन की अंतिम अवस्था में होते हैं. यहां कोई ट्रीटमैंट नहीं होता. केवल मरीज का दर्द कम करने और उसे शांतिपूर्वक मृत्यु के आगोश में जाने देने की कोशिश भर होती है. मरीज के साथ यहां उन का परिवार भी रह सकता है. जो स्प्रिचुअल हीलिंग के वातावरण में अपने प्रियजन को फाइनल गुडबाय कह सके. डैड और जौन मोनिका के साथ रहने के लिए हौस्पिटल शिफ्ट हो गए. पर मैं मोनिका का सामना करने की हिम्मत नहीं जुटा पाई. मैं घर पर ही रह गई. यह हिम्मत जुटाने में मु झे 2 दिन लग गए. पर उस रैड गाउन को मैं नहीं पहन पाई. साधारण सा स्कर्टटौप पहन कर मैं हौस्पिटल गई.
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मोनिका को इतनी कमजोर अवस्था में बैड पर
लेटे देख कर मैं भीतर तक कांप गई. मेरी आंखों में आंसू भर आए. मोनिका ने मु झे अपने करीब बुलाया. हम दोनों को कमरे में छोड़ कर डैड और जौन बाहर चले गए. मोनिका ने मु झे उठाने का इशारा किया.
मैं ने उसे सहारा दे कर उठाया. उस ने दूसरी बार मु झे प्यार से गले लगा लिया. मैं आंसुओं का वेग नहीं रोक पाई. झर झर आंसू बहते ही जा रहे थे. मैं अपने दिल की बात कहना ही चाहती थी कि मु झे महसूस हुआ कि मोनिका ने मु झे कुछ ज्यादा ही कस के पकड़ा है. मैं ने सप्रयास उसे अपने से अलग किया. उस की आंखें मुझे ही घूर रही थीं. मु झे उस समय तक पता नहीं था कि मरना क्या होता है. पर किसी अनिष्ट की आशंका से मैं डाक्टरडाक्टर चिल्लाई. मोनिका हमें छोड़ कर सदा के लिए जा चुकी थी.
मोनिका के जाने के बाद हमारे जीवन में एक खालीपन सा भर गया. अब मैं ने महसूस किया कि उस ने न सिर्फ इस घर में, बल्कि
मेरे मन में भी एक जगह बना ली थी. जबजब उस पल को सोचती हूं एक टीस से उठती है. काश, मैं वह कह पाती जो मैं कहना चाहती थी. पर क्या वह उस समय सुन पाती? क्या कोई इंसान जब वह मृत्युशैया पर होता है, तो उस के लिए उन शब्दों का कोई महत्त्व होता है, जिन्हें वह जीवनभर सुनना चाहता है? क्यों हम जीवन को हमेशा चलने वाला मानते हैं. क्यों हमसमय रहते अपनी बात नहीं कह देते?
हम अपने क्रोध, नफरत, गुस्से को सहेजने के चक्कर में यह भूल जाते हैं कि जिस थाली को हम बड़ी शान से अगले पल को सौंप देना चाहते वह अगला पल 2 लोगों के जीवन में रहता भी है या नहीं. मु झे अपनी ही बातों से घबराहट होने लगी. मैं बालकनी में चली आई.
नीले आकाश में सफेद बादल तेजतेज घूम रहे हैं. मु झे चक्कर सा आ रहा है. मेरे मन में कोई चिल्ला रहा है मोनिका… मोनिका… मैं फिर ऊपर देखती हूं. घूमते बादलों को देख कर मैं जोर से चीखने लगती हूं, ‘‘मोनिका, प्लीज… प्लीज फौरगिव मी.’’
मगर मैं जानती हूं, इस बार अनसुना करने की बारी मोनिका की है.
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