कहानी- वंदना बाजपेयी
रात के 12 बजे थे. मैं रोज की तरह अपने कमरे में पढ़ रही थी. तभी डैड मेरे कमरे में आए. मु झे देख कर बोले, ‘‘पढ़ रही हो क्या, प्रिया?’’
मैं ने उन की तरफ बिना देखे कहा, ‘‘आप को जो कहना है कहिए और जाइए.’’
मैं जानती थी कि डैड इस समय मेरे कमरे में सिर्फ तुम पढ़ रही हो क्या, पूछने तो नहीं आए होंगे. जरूर कुछ और कहने आए होंगे और भूमिका बांध रहे हैं. भूमिकाओं से मु झे खासी नफरत है. यह वजह काफी थी मु झे क्रोध दिलाने के लिए.
डैड ने सिर झुका कर कहा, ‘‘अब उसे माफ कर दो प्रिया… वैसे भी वह हमें छोड़ कर जाने वाली है.’’
‘‘माफ… माई फुट, मैं उसे कभी माफ नहीं कर सकती,’’ मैं ने गुस्से को रोकते हुए कहा.
‘‘आखिर वह तुहारी मौम है.’’
डैड के ये शब्द मु झे अंदर तक तोड़ गए. मैं गुस्से में चीख पड़ी, ‘‘डैड, वह आप की वाइफ हो सकती है. मेरी मौम नहीं है और न ही वह कभी मेरी मौम की जगह ले सकती है. दुनिया की कोई भी ताकत ऐसा नहीं करवा सकती है.’’
‘‘पर प्रिया…’’
डैड का वाक्य पूरा होने से पहले ही मैं ने अपनी किताब जमीन पर फेंक दी, ‘‘जाइए… जाइए यहां से… जस्ट लीव मी अलोन.’’
डैड मेरा गुस्सा देख कर चले गए और मैं देर तक सुबकती रही. मैं भले ही सिर्फ 15 साल की थी पर परिस्थितियों ने मु झे अपनी उम्र से काफी बड़ा कर दिया था. रोतेरोते अचानक मु झे डैड के शब्द ध्यान आए कि वह हमें छोड़ कर जाने वाली है… और मेरे दिमाग ने इस का सीधासादा मतलब निकाल लिया कि डैड और मोनिका का तलाक होने वाला है. क्या सच? क्या इसीलिए डैड दुखी थे? मेरे चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई. मैं अपने दोनों कानों पर हाथ रख कर चिल्लाई, ‘‘ओह, ग्रेट.’’
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दूसरे दिन मैं खुशीखुशी स्कूल गई. मैं ने अपनी सहेलियों को कैंटीन में ले जा कर ट्रीट दी. हालांकि सब खानेपीने में मस्त थीं पर नैन्सी ने पूछ ही लिया, ‘‘प्रिया, आखिर यह ट्रीट किस खुशी में दी जा रही है?’’
मैं ने चहकते हुए कहा, ‘‘फाइनली… फाइनली ऐंड फाइनली मोनिका और मेरे डैड में तलाक होने वाला है और वह हमें छोड़ कर जाने वाली है.’’
अपनी स्टैप मौम मोनिका के लिए मेरे मन में इतनी नफरत थी कि मैं ने उसे कभी मौम नहीं कहा. मैं हमेशा उसे मोनिका ही कहती रही, डैड के लाख सम झाने के बावजूद. वैसे भी खुली संस्कृति वाले अमेरिका में यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है.
तभी रीता ने कोक का घूंट गटकते हुए पूछा, ‘‘प्रिया, क्या तुम्हारे डैड और स्टैप मौम में काफी झगड़े होते हैं?’’
‘‘नहीं तो?’’
इस बात का उत्तर देने के साथ ही मैं अतीत में पहुंच गई…
जब मैं छोटी थी तब मेरी मौम और डैड में बहुत झगड़े होते थे. उन को झगड़ता देख कर मैं रोने लगती. थोड़ी देर के लिए दोनों चुप हो जाते पर फिर झगड़ना शुरू कर देते. उन के झगड़े में बारबार मेरा नाम भी शामिल होता. दोनों कहते कि अगले की वजह से मेरा जीवन खराब हो
रहा है. मैं बहुत सहम जाती थी. मैं मौम या डैड में से किसी एक को चुनना नहीं चाहती थी. इसी कारण कई बार नींद खुल जाने के कारण भी मैं आंखें बंद किए पड़ी रहती कि कहीं मु झे रोता देख कर दोनों एकदूसरे पर मु झे रुलाने का कारण न थोपने लगें.
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कई बार भय से मेरा टौयलेट बिस्तर पर ही छूट जाता और मौम मु झे बाथरूम में ले जा कर शावर के नीचे बैठा देतीं. रात में ही बैडशीट बदली जाती. मु झे थोड़ा पुचकार कर फिर दोनों झगड़ने लगते. पर बात संभलते न देख कर दोनों की सहमति से मु झे दूसरे कमरे में सुलाया जाने लगा. अफसोस, झगड़े की आवाजों ने यहां भी मेरा पीछा नहीं छोड़ा. मैं कानों पर तकिया रख कर जोर से दबाती पर आवाजें मेरा पीछा न छोड़तीं. मैं रोज कामना करती कि मेरे मौमडैड
के बीच सब ठीक हो जाए. हम भी ‘हैपी फैमिली’ की तरह रहें. मगर मेरी कामना कभी पूरी नहीं हुई.
मु झे आज भी वे दिन अच्छी तरह याद हैं. मैं 6 साल की थी. मौम ने मु झे गुलाबी रंग का फ्रौक पहनाया और खूब प्यार किया. मौम बहुत रोती जा रही थीं. रोतेरोते ही उन्होंने मु झ से कहा, ‘‘प्रिया, मैं केस हार गई हूं, तुम्हारी कस्टडी पापा को मिली है. मैं वापस इंडिया जा रही हूं. तुम्हें यहां अमेरिका में रहना है, अपने पापा के साथ. हो सकता है आगे तुम्हारी कोई स्टैप मौम आए, पर तुम संयत रहना. बड़ा होने पर मैं कैसे भी तुम्हें ले जाऊंगी.’’
मौम चली गईं और मैं रह गई डैड के साथ अकेली. पहले 2 सालों में डैड मु झे इंडिया ले कर गए. मौम से भी मिलाया, पर उस के बाद यह संपर्क टूट गया. हां, कभीकभी मौम से फोन पर बात होती. उन के आंसू मु झे अंदर तक चीर देते थे. मैं इमोशनल सपोर्ट के लिए डैड पर निर्भर होती जा रही थी.
मेरा 8वां बर्थडे था जब मोनिका डैड की जिंदगी में आई. वह पार्टी में इनवाइटेड
गैस्ट्स में थी. डैड उस से बहुत हंसहंस कर बातें कर रहे थे. मु झे उस का डैड के साथ इस तरह घुलमिल कर बातें करना बिलकुल अच्छा नहीं लगा. अलबत्ता उस के बेटे जौन के साथ मेरी अच्छी जमी. हम ने कई खेल साथ खेले. उस के बाद मोनिका अकसर हमारे घर आने लगी. डैड का टाइम जो मेरे लिए था उस पर वह कब्जा जमाने लगी. उसे डैड के साथ देख कर मेरे मन में न जाने कैसे आग सी लग जाती. मु झे लगता डैड के इतने पास कोई नहीं बैठ सकता. वह जगह मेरी मौम की थी, जिसे कोई नहीं ले सकता. मैं तरकीबें सोचती कि कैसे डैड को उस से दूर रखूं. पर डैड और मोनिका के प्रेम के बहाव के आगे मेरी छोटी नादान सारी तरकीबें बह गईं. प्रेम अंधा होता है और स्वार्थी भी. डैड को मोनिका को अपनी प्राथमिकताओं की लिस्ट में पहला स्थान देते समय मेरी बिलकुल याद नहीं आई. कुछ ही महीनों में दोनों ने शादी कर ली.
मोनिका के साथ उस का बेटा जौन भी हमारे घर आ गया. जौन के रूप में मु झे सौतेला ही सही पर छोटा भाई तो मिल ही गया. मगर मोनिका को मैं कभी माफ नहीं कर सकी. न ही कभी अपनी मौम की जगह दे सकी.
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वैडिंग गाउन में जब मोनिका ने हमारे घर में प्रवेश किया था तो मेरा गुस्से से भरा चेहरा देख कर उस के पहले शब्द यही निकले थे, ‘‘प्रिया, जिंदगी एक बहाव है. जीवननदी कैसे बहती है कोई नहीं जानता. यह नदी कभी पत्थरों को साथ बहा ले जाती है, तो कभीकभी बड़े पर्वत को काट देती है, तो कभी मन बना लेती है कि उसे पर्वत से नहीं टकराना और फिर चुपचाप अपना रास्ता बदल लेती है. अब यह पता नहीं कि नदी ये सब अपनी इच्छा से करती है या सबकुछ पूर्वनियोजित होता है. फिर भी हम किसी सूरत से नदी को दोष नहीं दे सकते. तुम्हारे जीवन में मैं आ गई हूं. मैं जानती हूं तुम मु झे पसंद नहीं करती हो. सबकुछ अचानक हुआ, यह पूर्व नियोजित नहीं था. फिर भी अगर तुम मु झे गलत सम झती हो तो प्लीज फौरगिव मी. अब हम एक फैमिली हैं और मैं कोशिश करूंगी कि हम एक अच्छी फैमिली के रूप में आगे बढ़ें.’’
मु झे उस की बात में दम लगा था. मैं भी एक अच्छी जिंदगी जीना चाहती थी. शायद मैं उसे माफ कर देती पर मेरी मां के आंसू मु झे ऐसा करने से रोक रहे थे. मैं ने अपनेआप को संयत किया. ‘ओह, कितनी चालाक है, अपना ज्ञान बघार रही है, पर मु झे इंप्रैस नहीं कर सकती,’ सोचते हुए मैं ने उस का हाथ झटक दिया और अपने कमरे में चली गई.
आगे पढ़ें मोनिका की पर्सनैलिटी बहुत चार्मिंग थी…