जब सहेली हो सैक्सी

आजकल के युवाओं में सैक्सी दिखने का ट्रैंड हिट है. वे सोचते हैं कि जो शौर्ट कपड़े पहनते हैं, स्लिमट्रिम होते हैं वे ही सैक्सी हैं और जो सैक्सी हैं वे ही इंटैलिजैंट हैं. इस कारण सब उसी से दोस्ती करना पसंद करते हैं. यही नहीं कुछ युवा तो सैक्सी लुक के पीछे इस कदर पागल हो जाते हैं कि वे अपनी खुद की पर्सनैलिटी ही भूल जाते हैं और इस चक्कर में सामने वाले से नफरत भी करने लगते हैं. ऐसे में यह समझना जरूरी है कि जलन के बजाय आप को अपनी पर्सनैलिटी में स्मार्टनैस लाने की जरूरत है.

आइए, जानते हैं कि दोस्त के सैक्सी होने पर हम करते क्या हैं जबकि हमें करना क्या चाहिए:

हम क्या करते हैं

जलन की भावना: जब हमारी दोस्त हम से कही ज्यादा सैक्सी दिखती है, खुद को सेक्सी बनाए रखने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ती है, जिस कारण हर लड़का उस का दीवाना होने लगता है तो हमारे मन में उस के लिए जलन की भावना पैदा होने लगती है. इस कारण हमें उस की सही बात भी गलत लगती है, हम उस से अच्छा रिलेशन होने के बावजूद उस से दूरी बनाना शुरू कर देते हैं, उस के बारे में दूसरों से गलत बात कहने में भी नहीं कतराते हैं क्योंकि हमें लगता है कि उस के ज्यादा सैक्सी होने की वजह से लड़के हमें नजरअंदाज करने लगे हैं, जो जरा भी गवारा नहीं होता है.

धीरेधीरे यही जलन की भावना दोनों के रिश्ते में दरार डालने के साथसाथ एकदूसरे का दुश्मन तक बना डालती है.

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हर बात लगती है गलत: लड़कों ने रिया के सैक्सी लुक की तारीफ क्या करनी शुरू कर दी कि अब तो प्रिया की आंखों में रिया इस कदर खटकने लगी कि उस की सही बात भी गलत लगने लगी क्योंकि प्रिया से उस का सैक्सी लुक जो बरदाश्त नहीं हो रहा था.

एक बार जब रिया ने उस के ऐग्जाम्स के लिए उसे सलाह दी तो उस ने मन में ईर्ष्या के कारण उस की बात को गलत ठहरा कर नहीं माना, जिस का नतीजा उस के लिए गंभीर साबित हुआ क्योंकि जब हमारे मन में किसी के लिए ईर्ष्या का भाव आने लगता है खासकर के लड़कियों में एकदूसरे के लुक को लेकर तो वे उसे किसी भी कीमत पर बरदाश्त नहीं कर पाती हैं. उस की हर बात को सही जानते हुए भी गलत ठहरा कर खुद को सुकून पहुंचाने की कोशिश करती हैं, जो सही नहीं होता है.

करैक्टर को करते हैं जज: जब कोई लड़की खुद को सैक्सी दिखाने लगती है तो उस की फ्रैंड्स उस की तारीफ करने के बजाय उस के लुक से जलने लगती हैं. फिर इस जलन को व्यक्त करने के लिए वे दूसरे लोगों के सामने यह कहने से भी नहीं कतरातीं कि यार यह अपने सैक्सी लुक से लड़कों को अट्रैक्ट करने की कोशिश कर रही है, तभी तो आजकल इस का चालचलन इतना बदल सा गया है.

इस का करैक्टर ही खराब है, इसलिए हमें भी इस से दोस्ती नहीं रखनी चाहिए. ये लड़कों को अपना दीवाना बनाने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है. दोस्त की जबान पर ये शब्द अपनी फ्रैंड के सैक्सी लुक के कारण मन में पैदा हुई जलन के कारण ही आए हैं. उस के कारण फ्रैंड उसे करेक्टरलैस भी लगने लगी है.

पीठ पीछे बुराई

यार वह कैसे कपड़े पहनती है, बालों का स्टाइल तो देखो, चाल भी किसी हीरोइन से कम नहीं है, लड़कों को अपने आगेपीछे घुमाने के लिए चेहरे पर हमेशा मेकअप ही थोपे रखती है ताकि अपने सैक्सी लुक से सब की तारीफ बटोर कर बौयफ्रैंड की लाइन मार सके. चाहे इस का कितना ही सैक्सी लुक क्यों न हो, लेकिन बोलने की जरा भी अक्ल नहीं है. कुछ आताजाता है नहीं, तभी तो अपने सैक्सी लुक से ही फेम कमाने की कोशिश कर रही है.

अपने फ्रैंड के सैक्सी लुक को देख कर लड़कियां जलन के मारे पीठ पीछे उसे नीचा दिखाने के लिए उस की झठी बुराई करने में भी पीछे नहीं रहती हैं. इस से उन के मन की भड़ास जो दूर होती है, जबकि ऐसा कर के वे खुद की नजरों में ही गिरती हैं.

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मजाक बनाने में भी पीछे नहीं

स्नेहा बहुत ही सैक्सी व अट्रैक्टिव लग रही थी. जैसे ही उस ने फ्रैंड्स के बीच ऐंट्री मारी तो सब की नजरें उस पर ही टिकी रह गईं. लड़कों के मुंह से वाउ, वाट ए लुक, तुम जैसा सैक्सी कोई नहीं जैसे शब्दों को सुन कर प्रियांशा के दिल में मानो इतने कांटे चुभे कि इसे शब्दों में भी बयां नहीं किया जा सकता. उसे गवारा नहीं हो रहा था कि सब का ध्यान  स्नेहा ने अपने सैक्सी लुक से अपनी ओर खींच लिया.

इस कारण उस ने अपने इस गुब्बार को मन में नहीं रखा और कुछ ही देर में उस की किसी बात का इतना मजाक बनाना शुरू कि स्नेहा की आंखों से आंसू नहीं रुके. उस का मजाक बनाने में कर दिया स्नेहा ने अपने बाकी फ्रैंड्स को भी शामिल कर लिया जो बिलकुल ठीक नहीं था.

‘मैं’ फ्रैंड से कैसे निबटें

हम सब के फ्रैंडसर्कल में ऐसे फ्रैंड्स जरूर होते हैं जो हमेशा अपनी तारीफ करते रहते हैं जैसे ‘मेरा फोन सब से अच्छा है, इस में सैल्फी बहुत अच्छी आती है. मेरे पास भी एकदम ऐसी ही ड्रैस है, तुम्हारी थोड़ी सस्ती क्वालिटी की है, लेकिन मैं ने तो काफी महंगी खरीदी थी.

कोई उन की बात सुने चाहे न सुने, लेकिन वे अपनी बात जरूर कहते हैं. कई बार तो ऐसा भी होता है कि उन्हें आते देख सब इधरउधर हो जाते हैं कि कौन इस की बात सुन कर बोर हो?

क्या करते हैं ऐसे फ्रैंड्स

दरअसल, हम ऐसे फ्रैंड्स को ‘मैं’ फ्रैंड कह सकते हैं. सामने वाले की चीज कितनी भी अच्छी क्यों न हो ये उस की तारीफ करने के बजाय अपनी ही तारीफ करते हैं. इन्हें लगता है कि इन के पास जो है वही अच्छा है.

‘मैं’ फ्रैंड बनना नुकसानदायक

भले ही आप अपने फ्रैंडसर्कल में अपनी बात मनवा कर खुद को श्रेष्ठ साबित करते होंगे, लेकिन ‘मैं’ फ्रैंड बनने के नुकसान भी हैं. आप के फ्रैंड्स आप से बातें शेयर नहीं करते. उन्हें लगता है कि आप से शेयर कर के क्या फायदा. अगर इस से कुछ कहेंगे तो भी यह सौल्यूशन देने के बजाय अपनी ही तारीफ करेगा.

अगर आप के सर्कल में भी कोई ‘मैं’ फ्रैंड है तो क्या करें

कटें नहीं फेस करें : अकसर ‘मैं’ फ्रैंड को जानने के बाद हम उस से कटने लगते हैं, उस से अलग रहने की कोशिश करने लगते हैं, सोचते हैं क्यों अपना मूड खराब करें. ऐसा करना गलत है. ऐसा कर के आप अपने लिए एक सुरक्षित दायरा बनाने लगते हैं और आप को इस तरह की पर्सनैलिटी के साथ ऐडजस्ट करने में प्रौब्लम होने लगती है इसलिए कटने के बजाय सामना करना सीखें. अपने ‘मैं’ फ्रैंड के सामने अपनी बात रखिए. भले ही वे आप की बात को बारबार काट, लेकिन अपनी बात पूरी करें.

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पहली ‘मैं’ में सहमति जताएं लेकिन दूसरी में नहीं : अगर आप कहीं बाहर घूमने गए हैं और आप के साथ ‘मैं’ फ्रैंड भी है तो मुंह न बनाते रहें कि इसे क्यों साथ ले कर आए हो बल्कि धैर्य से काम लें. किसी बात पर रिऐक्ट न करें. अगर वह कहे कि मुझे यह नहीं खाना, मैं यह नहीं खाता तो उस से कहें कि पिछली बार हम ने तुम्हारी पसंद की डिश खाई थी, इस बार तुम हमारी पसंद की डिश खाओ.

कभी-कभी नजरअंदाज करना भी सही है : कभी-कभी आप अपने ‘मैं’ फ्रैंड की बातों को अनसुना भी करें. वह कुछ कहे तो ऐसे बिहेव करें जैसे कि आप ने कुछ सुना ही नहीं ताकि धीरेधीरे उसे समझ आए कि आप उस की बातों में रुचि नहीं दिखा रहे और वह खुद को बदलने का प्रयास करे.

ग्रुप में न समझाएं : आप अपने ‘मैं’ फ्रैंड से परेशान हैं इस का मतलब यह नहीं है कि आप ग्रुप बना कर समझाएं या ग्रुप में सब के सामने कहें, बल्कि अकेले में मौका देख कर कहें क्योंकि किसी को भी यह अच्छा नहीं लगेगा कि सब के सामने आप उस की कमियां गिनवाएं.

खुद से पहल कर के बताएं : हम अपने फ्रैंड को उस की कमियों व खराब आदतों के बारे में नहीं बताते, क्योंकि हमें लगता है कि अगर हम बताएंगे तो उसे बुरा लगेगा और हमारी दोस्ती में दरार आ जाएगी. लेकिन इन बातों को सोचने के बजाय पहल कर के अपने फ्रैंड की कमियों को बताएं ताकि वह इन आदतों को सुधार सके.

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Friendship Day Special: जानें कौन अच्छे और कौन हैं सच्चे दोस्त

सही कहा है अच्छा दोस्त वह नहीं होता जो मुसीबत के समय उपदेश देने लगे वरन अच्छा दोस्त वह होता है, जो अपने दोस्त के दर्द को खुद महसूस करे और बड़े हलके तरीके से दोस्त के गम को कम करने का प्रयास करे. यह एहसास दिलाए जैसे यह गम तो कुछ है ही नहीं. लोग तो इस से ज्यादा गम हंसतेहंसते सह लेते हैं.

वैसे भी सही रास्ता दिखाने के लिए किताबें हैं, उपदेश देने के लिए घर के बड़े लोग हैं और उलाहने दे कर दर्द बढ़ाने के लिए नातेरिश्तेदार हैं. ये सब आप को आप की गलतियां बताएंगे, उपदेश देंगे पर जो दोस्त होता है वह गलतियां नहीं बताता, बल्कि जो गलती हुई है उसे कुछ समय को भुला कर दिमाग शांत करने का रास्ता बताता है. आप के सारे तनाव को बड़ी सहजता से दूर करता है.

तभी तो कहा जाता है कि पुराना दोस्त वह नहीं होता जिस से आप तमीज से बात करते हैं वरन पुराना दोस्त तो वह होता है, जिस के साथ आप बदतमीज हो सकें. दोस्ती का यही उसूल होता है कि अपने दोस्त के गमों को आधा कर दे और खुशियों को दोगुना. केवल पुराने दोस्त ही ऐसे होते हैं, जो हमें और हमारे एहसासों को गहराई से सम झने और महसूस करने में सक्षम होते हैं.

सच है कि दोस्ती का रिश्ता बहुत ही प्यारा और खूबसूरत होता है. सच्चे दोस्त आप को भीड़ में अकेला नहीं छोड़ते, बल्कि आप की दुनिया बन जाते हैं. वे हमेशा आप के साथ होते हैं भले ही परिस्थितियां आप को दूर कर दें. वे आप से जुड़े रहने का कोई न कोई तरीका खोज निकालते हैं. वे आप का हौसला बनते हैं. एक समय आ सकता है जब आप के घर वाले आप को छोड़ दें, एक समय वह भी आ सकता है जब आप का बौयफ्रैंड/गर्लफ्रैंड या आप का जीवनसाथी भी आप की सोच को गलत ठहराने लगे, आप से दूरी बढ़ा ले? पर आप के सच्चे दोस्त ऐसा कभी नहीं करते. अगर दोस्तों को आप अपने मन की उल झन बताते हैं तो वे उन्हें सम झते हैं क्योंकि वे आप को गहराई से सम झते हैं, वे आप के अंदर  झांक सकते हैं.

किसी ने कितने पते की बात कही है: बैठ के जिन के साथ हम अपना दर्द भूल जाते हैं, ऐसे दोस्त सिर्फ खुश नसीबों को ही मिल पाते हैं…

आज वयस्कों को दोस्तों की और ज्यादा जरूरत है, क्योंकि रिश्तेदार तो कई शहरों में बिखरे रहते हैं. मौके पर वे कभी चाह कर भी काम नहीं आ पाते तो कभी मदद करने की उन की मंशा ही नहीं होती. वे बहाने बनाने में देर नहीं लगाते. मगर सच्चे दोस्त किसी भी तरह आप की मदद करने पहुंच ही जाते हैं. इसीलिए तो कहा जाता है कि दोस्ती का धन अमूल्य होता है. यही नहीं बातचीत करने और दिल का हाल बता कर मन हलका करने के लिए भी एक साथी यानी दोस्त की जरूरत सब को होती है.

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क्यों जरूरी हैं दोस्त

दोस्त कुछ नया सीखने का अवसर देते हैं. नई भाषा, नई सोच, नई कला और नई सम झ ले कर आते हैं. हमें कुछ नया करने और सीखने का मौका और हौसला देते हैं. हमारे डर को भगाते हैं और सोच का दायरा बढ़ाते हैं. मान लीजिए आप का दोस्त एक कलाकार या लेखक है तो उस के साथसाथ आप भी अपनी कला निखारने का प्रयास कर सकते हैं. कुछ आप उसे सिखाएंगे तो कुछ उस से सीखेंगे भी. दोस्त आप को कठिनाइयों का सामना करने में मदद करते हैं, सही सलाह देते हैं, आप की भावनाओं को सम झते हैं, अवसाद से बचाते हैं. दोस्तों के साथ आप घरपरिवार के साथसाथ कार्यालय की समस्याओं पर भी चर्चा कर सकते हैं.

दोस्त कहां और कैसे खोजें

आप उन स्थानों पर दोस्तों की तलाश करें जहां आप की रुचियां आप को ले जाती हैं. मसलन, प्रदर्शनी, फिटनैस क्लब, संग्रहालय, क्लब, साहित्यिक मंच या फिर कला से जुड़ी दूसरी संस्थाएं. आप डांस अकादमी या स्विमिंग सेंटर भी जा सकते हैं और वहां अच्छे दोस्त पा सकते हैं. ऐसी जगहों पर आप को अपने जैसी सोच वाले लोग मिलेंगे. आप सोशल नेटवर्किंग साइट्स और ब्लौग्स पर भी अपनी अभिरुचि से जुड़े दोस्तों की तलाश कर सकते हैं.

पड़ोसी हो सकते हैं अच्छे दोस्त

अकसर हम अपनी सोसाइटी या अपार्टमैंट के लोगों को भी नहीं पहचानते. आसपास रहने वाले लोगों के साथ भी हैलोहाय से ज्यादा संबंध नहीं रखेते. कभी गौर करें कि आप अपने पास रहने वाले लोगों के साथ कितनी बार संवाद करते हैं? क्या त्योहारों के मौकों पर उन्हें तोहफे देने, खुशियां बांटने या कुशलमंगल जानने जाते हैं? सच तो यह है कि हम उन्हें इग्नोर करते हैं पर वास्तव में एक पड़ोसी अच्छा दोस्त बन सकता है और आप इस दोस्त से रोजना मिल सकते हैं, साथ घूमने जा सकते हैं, बातें कर सकते हैं, कठिन समय में ये तुरंत आप की मदद को हाजिर हो सकते हैं.

औफिस में ढूंढें दोस्त

औफिस में हम अपनी जिंदगी का सब से लंबा वक्त बिताते हैं. यहां आप को समान सामाजिकमानसिक स्तर के लोगों की कमी नहीं होगी. बहुत से औप्शंस मिलेंगे. कई बार हम औफिस के लोगों से केवल काम से जुड़ी बातें ही करते हैं और औपचारिक रिश्ता ही रखते हैं पर जरा इस से आगे बढ़ कर देखें. कुछ ऐसे दोस्त ढूंढें जिन के साथ काम के सिलसिले में आप की प्रतिस्पर्धा नहीं या फिर जो आप के साथ चलना जानते हैं. ऐसे दोस्त न केवल आप के मनोबल को बढ़ाएंगे, बल्कि दिनभर के काम के बीच आप को थोड़ा रिलैक्स होने का मौका भी देंगे. यदि आप अपने औफिस के दोस्तों के प्रति ईमानदार रहते हैं और उन के सुखदुख में काम आते हैं, तो यकीन मानिए वे भी हमेशा आप का साथ देंगे.

इंटरनैट

इंटरनैट के माध्यम से आप अच्छे दोस्त ढूंढ़ सकते हैं. यह आप पर निर्भर करता है कि आप उन के साथ सालों की घनिष्ठ मित्रता के बंधन में बंधे रहना चाहते हैं या सिर्फ चैट कर मजे करना चाहते हैं खासकर विपरीतलिंगी व्यक्ति के साथ अकसर दोस्ती आकर्षणवश हो जाती है. लोग जिंदगी का मजा लेना चाहते हैं, पर इस सोच से अलग दोस्ती में घनिष्ठता और ईमानदारी रखना आप की जिम्मेदारी है.

अब सवाल उठता है कि औनलाइन दोस्त कैसे ढूंढें़? आज के समय में आप के पास इंटरनैट पर बहुत से औप्शंस हैं. आप स्काइप, फेसबुक, ट्विटर, डेटिंग साइट््स आदि पर दोस्त खोज सकते हैं. इस के लिए सोशल नैटवर्क पर अपने पेज को ठीक से डिजाइन करने की आवश्यकता है. इस के अलावा आप अपने कुछ विचार या मैसेज भी पोस्ट कर सकते हैं. सामाजिक और राष्ट्रीय विषयों पर अपनी बात रख सकते हैं. दूसरों के पोस्ट पर अपने कमैंट्स दे कर समान सोच वाले लोगों से संपर्क बढ़ा सकते हैं.

पुराने दोस्त हैं कीमती

यदि आप बचपन में कुछ ऐसे दोस्त बनाने में कामयाब रहे जो अब भी आप के साथ हैं तो इस से अच्छा आप के लिए और कुछ नहीं हो सकता. यदि आप के अपने पूर्व सहपाठियों के साथ संबंध नहीं हैं तो उन्हें खोजने का प्रयास करें. आज सोशल नैटवर्क का उपयोग कर यह काम बड़ी आसानी से किया जा सकता है. कौन जानता है शायद आप भी आपसी विश्वास और स्नेह पर बने अपने पिछले दोस्ती के रिश्तों को पुनर्जीवित करने में सक्षम हो जाएं.

सब से विश्वसनीय दोस्त बचपन के दोस्त ही होते हैं. इन के साथ आप बिना किसी हिचकिचाहट अपने दुखदर्द, अपनी तकलीफें और सीक्रेट शेयर कर सकते हैं. लंगोटिया यार साधारणतया कभी धोखा नहीं देते, क्योंकि वे आप को सम झते हैं. वे परिस्थितियों को देख कर नहीं, बल्कि आप के दिल की सुन कर सलाह देते हैं.

दोस्त बनाने के लिए क्या है जरूरी

आप को अजनबियों के साथ भी एक आम भाषा में अपनी भावनाएं व्यक्त करना और दूसरों का ध्यान आकर्षित करना आना चाहिए. कुछ लोग जन्म से ही इस कला में निपुण होते हैं. सब से जरूरी है कि दूसरों में रुचि लीजिए. दूसरों के हक के लिए आवाज उठाएं. अपनी भावनाएं शेयर कीजिए तभी सामने वाला आप के आगे खुलेगा और आप को दोस्त बनाने के लिए उत्सुक होगा.

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सलीकेदार कपड़े पहनें

अपने कपड़ों के प्रति सतर्क रहें. कपड़े ऐसे हों जो आप के आकर्षण को बढ़ाएं और व्यक्तित्व को उभारें. कपड़ों के साथ ही अपने अंदर से आ रही गंध के प्रति भी सचेत रहें. मुंह से बदबू या कपड़ों से पसीने की गंध न आ रही हो. हलकी खुशबू का इस्तेमाल करें. बालों को सही से संवारें. इंसान दोस्त उसे ही बनाना चाहता है जो साफसुथरा और सलीकेदार हो.

जानबू झ कर शेखी न बघारें

अकसर लोग शेखी बघारने के क्रम में  झूठ का ऐसा जाल बुनते हैं कि फिर खुद ही उस में उल झ कर रह जाते हैं. इसी तरह दूसरों की नजरों में आने के लिए कुछ ऐसा न बोल जाएं जो मूर्खतापूर्ण लगे.

झगड़ा जल्दी सुल झाएं

दोस्त के साथ आप का  झगड़ा हो गया है तो यह जानने की कोशिश में न उल झें कि आप में से कौन सही है और कौन दोषी है, बल्कि सुलह करने वाले पहले व्यक्ति बनें. दोस्ती को खत्म करना बहुत सरल है पर इसे बनाए रखना बहुत कठिन. लंबे और विश्वसनीय रिश्ते के लिए एक मजबूत नींव बनाना कठिन काम है, पर वह नींव आप को ही तैयार करनी है.

याद रखिए 2 लोग जिन के शौक और दृष्टिकोण विपरीत हैं कभी दोस्त नहीं बन सकते. इसलिए समान हित और सोच वालों को अपना दोस्त बनाएं और जीवन के एकाकीपन को दूर करें.

गहरी दोस्ती के राज

अपने दोस्त के लिए हमेशा खड़े रहें. यदि धन से उस की मदद नहीं कर सकते तो कोई बात नहीं, मन से उस का साथ दें. उस को मानसिक सपोर्ट दें. उस की परेशानियों को बांटें और समस्याओं को सुल झाने का प्रयास करें. जब भी उसे आप की सहायता की जरूरत पड़े तो तुरंत आगे आएं. हमेशा कोशिश करें कि सामने वाले ने आप के लिए जितना किया जरूरत पड़ने पर आप उस से बढ़ कर उस के लिए करें. इस से आप को भी संतुष्टि मिलेगी और उस के दिल में भी आप के लिए सम्मान और प्यार बढ़ेगा. तभी तो आप की दोस्ती ज्यादा गहरी और लंबी चल सकेगी.

पैसे के मामलों में थोड़ी तटस्थता रखें

पैसों के मामले में थोड़े तटस्थ रहें. जब भी आप साथ कहीं घूमने जाते हैं, कोई चीज खरीदते हैं या दोस्त आप के लिए कुछ ले कर आता है तो पैसों का हिसाबकिताब बराबर रखने का प्रयास करें. जब भी आप दोनों मिल कर कुछ खर्च कर रहे हों तो किसी एक पर अधिक भार न पड़ने दें. भले ही छोटेमोटे खर्च ही क्यों न हुए हों, कोशिश करें कि खर्च आधाआधा बांट लें. अगर आप 4-5 दोस्त हैं तो सब मिल कर रुपए खर्च करने की कोशिश करें.

जहां तक बात कुछ बड़ी परेशानियों के समय खर्च करने की आती है जैसे घर में बीमारीहारी हो जाए या आप का दोस्त किसी क्रिमिनल केस में फंस जाए और उसे आप की मदद की जरूरत हो जैसे बेल देनी हो या उस के लिए कोई काबिल वकील तलाश करना हो अथवा मैडिकल ट्रीटमैंट के लिए तुरंत पैसों की जरूरत हो तो इस तरह के मामलों में कभी भी रुपए खर्च करने में आनाकानी न करें. यानी जब बात जान पर आ जाए तो बिना कुछ सोचे दिल खोल कर खर्च करें, क्योंकि यह बात आप का दोस्त जिंदगीभर नहीं भूल सकेगा और समय आने पर आप के लिए वह भी जान की बाजी लगा देगा. इसलिए अपने दोस्त होने की जिम्मेदारी को ऐसे समय जरूर निभाएं.

घबराएं नहीं भरोसेमंद बनें

यदि आप दोनों की जीवनस्तर में काफी असमानताएं हैं यानी कोई अमीर है और दूसरा गरीब तो ऐसी स्थिति में भी आप की दोस्ती पर कोई फर्क न पड़े. दोस्ती के लिए सिर्फ एक भरोसा, एक विश्वास और एक अपनापन ही सब से अहम होता है. यदि आप सामने वाले के लिए भरोसेमंद साबित होते हैं, जरूरत के वक्त उस के साथ खड़े रहते हैं, उस के सीक्रेट्स किसी से शेयर नहीं करते और उसे भरपूर मानसिक सपोर्ट देते हैं तो यकीन मानिए आप दोनों की दोस्ती की नींव बहुत मजबूत और गहरी रहने वाली है. आर्थिक स्तर का कोई असर आप की दोस्ती पर नहीं पड़ेगा.

विवाहितों में दोस्ती

दोस्ती का एक खूबसूरत पहलू यह भी हो सकता है कि आप दोनों पतिपत्नी की दोस्ती किसी ऐसे कपल से हो जो बिलकुल आप के जैसे हों. ऐसी दोस्ती का अलग ही आनंद होता है. इस में ध्यान देने की बात यह है कि आप दोनों समान रूप से उस कपल के साथ जुड़े हों यानी आप की जीवनसाथी भी उस कपल के साथ दोस्ती ऐंजौय कर रही हो और किसी तरह की मिसअंडरस्टैंडिंग क्रिएट न हो रही हो. इस तरह 2 कपल्स की दोस्ती 2 परिवारों की दोस्ती जैसी हो जाती है. आप चारों मिल कर एक खूबसूरत परिवार जैसा रिश्ता बना लेते हैं. आप चारों मिलबैठ कर बातें करें. ऐसी दोस्ती महानगरों में बहुत उपयोगी है. इस से अकेलापन तो दूर होगा ही विश्वसनीय रिश्ते भी मिल जाते हैं.

इसी तरह पतिपत्नी आपस में भी एकदूसरे के दोस्त बने रहने चाहिए. जब तक जीवनसाथी को आप दोस्त नहीं मानते तब तक सही अर्थों में आप जीवन के सुखदुख में एकदूसरे का साथ नहीं दे पाएंगे. इसलिए हमेशा एकदूसरे को अपना दोस्त मानें. इस से रिश्ते में गहराई आती है.

रहस्य छिपा कर रखने की आदत डालें

दोस्ती का एक बहुत बड़ा उसूल होता है कि अपने दोस्त के राज कभी न खोलें. उन्हें किसी से शेयर न करें, क्योंकि सामने वाला आप को बहुत विश्वास के साथ अपना मान कर अपने सीक्रेट्स, फीलिंग्स या वीकनैस शेयर करता है. उन बातों को यदि आप किसी से कह देंगे तो फिर दोस्ती टूटने में एक पल का समय नहीं लगेगा. इसलिए सामने वाले को यह भरोसा दिलाएं कि आप किसी भी परिस्थिति में उस के राज किसी से नहीं कहेंगे. ऐसी दोस्ती में ही व्यक्ति दोस्त को अपना सबकुछ बता सकता है और अपना मन हलका कर सकता है.

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ऑफिस की दोस्ती जब मानसिक रूप से परेशान करने लगे तो क्या करें?

अगर आपका ऑफिस में कोई दोस्त है तो वह आपका ऑफिस में काम में हाथ बंटाने में और आपके हौसले को बुलंद करने में बहुत मदद करता होगा. लेकिन इस ऑफिस वाली दोस्ती के काफी ज्यादा नुकसान भी हो सकते हैं. अगर आप इस दोस्ती में इमोशनल रूप से शामिल हो जाते हैं तो क्या होगा और अगर आप का वह दोस्त आपको काम करने के दौरान परेशान करता है या आप उसकी वजह से काम नहीं कर पाती हैं तो क्या करें? क्या आप जानती हैं इस प्रकार की दोस्ती में भी आपको एक रेखा बनानी होती है और इस रेखा को अगर आप पार करेंगी तो उसमें आपका ही नुकसान होगा.

एक्सपर्ट्स का इस बारे में क्या कहना है?

अगर आप किसी जगह काम कर रही हैं तो वहां पर सभी लोगों के साथ दोस्ताना भाव रखना और उनके साथ इंटरेक्ट करना एक अच्छी बात होती है. लेकिन आप शायद यह नहीं चाहती होंगी कि आपके जज्बातों का कोई फायदा उठा ले या उन्हें फालतू में प्रयोग किया जाए. आपको काम करते हुए किसी से इतना इमोशनल रूप से अटैच भी नहीं होना चाहिए कि इससे आपका काम करने का मन ही न करे और आपकी प्रोडक्टिविटी पर फर्क पड़े. ऑफिस में दोस्त बनाना अच्छी बात होती है लेकिन अगर आप उनके काम में या वह आपके काम में ज्यादा हस्तक्षेप कर रहे हैं या आप पर या आप किसी अन्य पर एक बोझ की तरह ट्रीट हो रही हैं तो यह मानसिक रूप से थोड़ा परेशानी देने वाला हो सकता है.

अगर आपको भी यह लगता है कि आप एक साथ काम करने वाले व्यक्ति या स्त्री से बहुत अधिक अटैच हो गई हैं और अब इस अटैचमेंट का आपके वर्क पर गहरा प्रभाव पड़ रहा है तो आपको निम्न टिप्स का प्रयोग करना चाहिए.

 कुछ संकेतों की ओर ध्यान दें :

सबसे पहले आपको कुछ ऐसे संकेतों की ओर ध्यान देना चाहिए जिनसे आपको पता लगे कि आप सच में ही किसी व्यक्ति से अटैच हैं. इसके लिए आप देख सकते हैं कि आप उनके लिए अपने काम छोड़ रही हैं या आप इमोशनल रूप से स्थिर नहीं है. किसी के साथ अटैच होना बुरी बात नहीं है लेकिन खुद से यह बात जरूर पूछें कि क्या आप इस रिलेशन में होकर खुद को कैरियर के उस मुकाम पर पहुंचा पाएंगी जो आपने सोचा है?  क्या आप दोनों ही एक जैसे प्रयास कर रही हैं? अगर हां तो आप इस रिश्ते के लिए आगे बढ़ सकती हैं और न है तो आपको खुद ही समझ जाना चाहिए.

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 दूसरे व्यक्ति को सारा दोष न दें :

अगर आप सोच रही हैं कि अब इस रिश्ते से आप परेशान हो रही हैं तो गुस्सा होना कभी कभार बनता है लेकिन इसमें सामने वाले व्यक्ति का कोई दोष नहीं है. आपको जबरदस्ती पकड़ कर वह व्यक्ति नहीं लाए थे यह आपकी भी जिम्मेदारी बनती है.  आप अपनी दोनो की पर्सनालिटी, आदतें और कार्य और कैरियर के बारे में समानताएं और असमानताएं देख कर एक निर्णय ले सकती हैं कि क्या आप सच में ही उनके साथ रह कर खुद के साथ न्याय कर रहे हैं या नहीं.

 उनसे एकदम से पूरी तरह अलग मत हो जाएं :

अगर आप खुद के होने वाले नुकसान को बचाने के लिए उनसे अलग होना चाहती हैं तो एकदम से ही उन्हें बेस्ट फ्रेंड से अनजान व्यक्ति न बना दें. आपको ऐसा करने की कोई जरूरत नहीं है. आप उन्हें बुरा महसूस कराए बिना भी यह काम कर सकती हैं. केवल अपने और अपने करियर के ऊपर अधिक ध्यान देने लग जाएं और उनके साथ भी बातें जारी रखें.

 बातें करने के अंदाज को बदल दें :

अगर आप किसी से दूर होना चाहती हैं तो उन्हें साफ साफ यह बताना थोड़ा अच्छा नहीं लगेगा लेकिन अगर आप अपनी बात करने का अंदाज बदल देंगी तो वह खुद ही समझ जाएंगे. जैसे आप अगर साथ रह रही हैं तो अधिक बातें अब साथ रहने के साथ नहीं बल्कि फोन कॉल पर करें. उन्हें कभी कभी अपने काम के लिए नजर अंदाज भी करें ताकि वह खुद समझ जाएं.

 खुद को स्ट्रॉन्ग बना कर रखें :

आपके प्रिय मित्र की भी अब आपके साथ गहरी दोस्ती हो गई होगी और जब उन्हें पता चलेगा कि आप उनके साथ नहीं रहना चाहती तो हो सकत है उनके लिए विश्वास कर पाना थोड़ा मुश्किल हो गया हो इसलिए आपको थोड़ा स्ट्रॉन्ग बन कर रहना होगा. आपको उन्हें अपनी हालत समझानी होगी. और वह आप को इतनी आसानी से नहीं जाने देंगे इसलिए आपको उनके कहने पर खुद को उसी स्थान पर नहीं रोक देना है. खुद को मजबूत बनाएं रखें.

 इन बातों को ध्यान में रखें :

इन संकेतों पर ध्यान दें कि आप अपने करियर और काम में उनकी वजह से कम समय लगा पा रही हैं जिस कारण आपकी प्रोडक्टिविटी को नुकसान पहुंच रहा है.

अपने बात करने का अंदाज सभी के साथ बदल दें ताकि उन्हें भी अजीब न लगे.

उन्हें किसी और के साथ जुड़ने का मौका दें.

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 क्या न करें

उन पर सारा इल्जाम न लगाएं.

उनका साथ एकदम से न छोड़ दें.

अगर वह दुबारा आपके साथ आने की कोशिश करें तो वापिस न जाएं.

अगर आप धीरे धीरे इन टिप्स को अपनाएंगी तो थोड़े समय के बाद आपके मित्र को भी यह अहसास हो जायेगा कि अब आप उनके साथ समय बिताना पसंद नहीं करते हैं और वह खुद ही आपसे दूर रहने लग जायेंगे.

दोस्ती को चालाकियों और स्वार्थ से रखें दूर

रमा उत्तर भारत से  मुंबई में नयी नयी आयी थी, वह एक ब्यूटी पार्लर में गयी तो वहां उसे एक दूसरी महिला भी अपने नंबर का इंतज़ार करती मिली, रमा की साफ़ हिंदी सुनकर उस महिला ने बात शुरू की,” आप भी नार्थ  इंडियन हैं?”

रमा ने कहा,”जी,आप भी?”

”हाँ,मेरा नाम अंजू है,मैं दिल्ली से हूं,आप कहाँ से हैं?”

”मेरठ से.‘’

दोनों में बातें शुरू हो गयीं, अंजू ने बहुत सारी बातें शुरू कीं,बताया कि वह घर में ही सूट बेचने के लिए रखती है ,उसे कुछ काम करना पसंद है, ज्यादा पढ़ी लिखी नहीं है, नौकरी तो मिल नहीं सकती, तो इस काम को वह एन्जॉय करती है और उसका काम अच्छा चलता है.‘’

अंजू ने वहीँ बैठे बैठे रमा से उसका फोन नंबर और घर का पता लिया जो रमा ने ख़ुशी ख़ुशी दिया, वह भी खुश थी कि आते ही अपने एरिया की हिंदी बोलने वाली एक फ्रेंड बन गयी, दूसरे दिन ही अंजू को अपने घर आया देख रमा की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा,  रमा ने अपनी फॅमिली से भी अंजू को मिलवाया,  दोनों ने एक साथ बैठ कर खाना खाते हुए बहुत सी बातें की,  इतने कम समय में दोनों एक दूसरे से खूब मिक्स हो गए, कुछ दिनों बाद अंजू ने रमा के परिवार को भी घर बुलाया, सब एक दूसरे से मिलकर खुश ही हुए. कुछ महीने यूँ ही एक दूसरे से मिलते जुलते हुए बीत  गए, रमा ने अपनी सोसाइटी में ही एक किटी ग्रुप ज्वाइन कर लिया था, अंजू को पता चला तो कहने लगी,” जब तुम्हारी किटी पार्टी का नंबर आएगा, मैं अपने कुछ सूट, ड्रेसेस बेचने के लिए ले आउंगी, हो सकता है, कोई खरीद ही ले.‘’

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रमा ने ‘ठीक है,’कह दिया, जब रमा के घर पार्टी में सोसाइटी की दस और महिलाएं आयीं तो अंजू अपना बड़ा सा बैग खोलकर ड्रेसेस दिखाने लगी , कुछ महिलाओं को यह पसंद नहीं आया, एक ने साफ़ कहा,”भाई , पार्टी को बिज़नेस से दूर ही रखो, इतने में तो हम एक गेम और खेल लेते.‘’ किसी ने कुछ नहीं खरीदा, पसंद अलग अलग थी, किसी ने यह भी कहा,”इन दस कपड़ों में से क्यों लें, भाई, दूकान पर इतनी चॉइस रहती है, वहीँ खरीदेंगें न !” रमा  को जरुरत के समय ही खरीदने की आदत थी, अभी उसके पास बहुत  कपडे  थे, फैशन आता जाता रहता है, वह ले लेकर कपडे रखने के पक्ष में नहीं रहती थी, तो भी उसने जल्दी ही अंजू की ख़ुशी के लिए कुछ कपड़े उससे ले ही लिए , पर इसके बाद अंजू कभी भी अपने कपड़ों का बड़ा बैग लिए हर दूसरे तीसरे दिन असमय आ जाती, कभी रमा अपने बच्चों को पढ़ा रही होती, कभी आराम कर रही होती और अंजू हर बार उससे यही उम्मीद करती कि रमा उससे कुछ खरीद ले, पर कितना ख़रीदा जा सकता था. एक दिन अंजू ने कहा,” एक काम करो, मुझे अपना यह ड्राइंग रूम दिन भर  के लिए दे दो, मैं यहाँ अपना सामान सजा लेती हूं, और तुम्हारी सोसाइटी बड़ी है,  तुम्हारा ड्राइंग रूम भी काफी बड़ा है, लोगों से कहकर मेरे काम का यहाँ प्रचार कर देते हैं.‘’

रमा ने विनम्र स्वर में समझाया,”यह तो बहुत मुश्किल है, अंजू, बच्चों को मैं ही पढ़ाती हूं , लोग दिन भर  आते जाते रहेंगें कपड़े देखने तो बहुत डिस्टर्ब होगा. और कई बार कोई मेहमान भी तो आ ही जाते हैं, यह तो बहुत परेशानी हो जाएगी.‘’

अंजू को रमा की बात पर इतना  गुस्सा आया कि उसने तेज आवाज में कहा,”तुम तो मेरे किसी  काम की नहीं , सोचा था मेरा काम बढ़वाओगी, मैं नए लोगों से मिलूंगी,जुलुंगी तो कुछ काम आगे बढ़ेगा पर तुम तो किसी काम की नहीं.‘’

रमा को तेज झटका लगा,कहा,”तुमने मेरे साथ दोस्ती काम सोच कर की थी?”

”हाँ, और क्या, मुझे तो नए कॉन्टेक्ट्स बनाने होते हैं, मैं अपना कपड़े बेचने का काम बहुत आगे बढ़ाना चाहती हूं , खैर छोड़ो, तुम अपनी घर गृहस्थी सम्भालो,” कहकर अंजू जो गयी, उसी समय दोनों की दोस्ती ख़तम हो गयी, रमा को आज पंद्रह सालों के बाद  भी अपना यह दुःख ताजा लगता है,वह बताती हैं,” मैं कई दिन तक एक शॉक में रही, कहाँ मैं सोच रही थी मुझे मुंबई आते ही कितना अच्छी दोस्त  मिल गयी है,यह तो मुझे बाद में समझ आया कि पार्लर से ही मेरे साथ दोस्ती अपने स्वार्थ के लिए की गयी थी,पता नहीं कैसे लोग दोस्ती जैसे रिश्ते को स्वार्थ पर टिका देते हैं ! उसके बाद कई दिन तक मैं किसी से खुल कर मिल ही नहीं पायी, सबसे भरोसा सा उठ गया था.‘’

रमा और अंजू का यह  उदाहरण काल्पनिक नहीं है,यह एक सच्ची घटना है, आज यहाँ इस लेख में मैं जितने लोगों के उदाहरण दूंगी, वे सब सत्य है, हाँ, बस नाम ही काल्पनिक हैं, देख कर दुःख होता है कि दुनिया के सबसे प्यारे रिश्ते, दोस्ती को लोग कैसे अपने स्वार्थ और चालाकियों से यूज़ करते हैं और इसमें उन्हें कोई गिल्ट भी नहीं होता. दिल्ली में रहने वाली शमा और सुनीता एक ही कॉलोनी में रहते, दोनों की दोस्ती बस रोड पर मिलने तक ही थी, घर आना जाना नहीं था, क्योंकि सुनीता एक कट्टर ब्राह्मण परिवार की महिला थी,  शमा के घर जाकर कुछ खाना पीना न पड़े  इसलिए न कभी उसके घर गयी, न उसे कभी बुलाया. फिर शमा के पति का ट्रांसफर मुंबई हुआ, करीब पंद्रह साल बाद किसी से शमा का फोन नंबर लेकर सुनीता ने उसे फोन किया और कहा,” हम मुंबई आ रहे हैं, ननद की बेटी को एक कॉलेज का काम है, ननद , उसकी बेटी, मैं और मेरे पति मुंबई आकर होटल में क्यों ठहरेंगे , जब मेरी दोस्त वहां है !” शमा ने अपने घर आने के लिए इन्वाइट किया और अपना पता लिखवा दिया , शमा बताती हैं, ”जिस महिला ने मेरे साथ कोई ख़ास सम्बन्ध कभी नहीं रखे थे, इतना तो मैं भी समझती हूं कि उन लोगों के दिलों में जातपात का चक्कर रहता है पर अब जब लगा कि मुंबई में होटल में रुकने में खूब खरचा होगा , तब हमारी याद आयी, पूरा परिवार हमारे यहाँ छह दिन रह कर गया, हमने मेहमानवाजी में कोई कसर नहीं छोड़ी, और एक बार यहाँ के काम निपटा कर  गए तो न कभी एक फोन,न कभी एक मैसेज ! ऐसे ऐसे स्वार्थी लोग होते हैं कि इंसानियत से विश्वास उठने लगता है.‘’

ये तो थी आम घरेलू महिलाओं की बात जिनके बारे में अक्सर सोच लिया जाता है कि आम महिलाएं तो ये सब करती ही है, ऐसा नहीं है कि तथाकथित बुद्धिजीवी महिलाएं बहुत उदार और इन सब बातों से परे होती हैं, ऐसा बिलकुल नहीं है, आम महिलाओं के बारे में तो आप सुनते पढ़ते ही रहते होंगें, आज कुछ उदाहरण और देखिये जिन्हे  दोस्ती में सब सीमा रेखा पार करने में जरा हिचक नहीं होती. एक लेखिका हैं, अंजलि, पुणे में रहती हैं,सबकी हेल्प करने को हमेशा तैयार , काफी जगह उनकी रचनाएं प्रकाशित होती देख एक लेखिका भूमि ने अंजलि से दोस्ती की, फेसबुक पर उनकी दोस्त बनी, भूमि अंजलि को खूब फोन करती, उससे रचनाएं भेजने के सारे कॉन्टेक्ट्स पूछे, सारी ईमेल आई डी जानीं , लेखन के क्षेत्र में जितनी जानकारी जुटानी थी , जुटा लीं, जब लगा कि जितना पूछना था,पूछ लिया, उसके बाद अंजलि से बात करना बंद कर  दिया, उसे फेसबुक से अनफ्रेंड कर दिया और जब भी कोई अंजलि के बारे में बात करता, तो कहती, ‘कौन अंजलि, मैं को किसी अंजलि को जानती ही नहीं.‘ मतलब निकलते ही अंजलि को हर जगह से ब्लॉक कर दिया, अंजलि को जब पता चला कि भूमि तो उससे जान पहचान ही अस्वीकार कर रही है तो उसने कई लोगों को भूमि की कॉल हिस्ट्री , दिखाई, उसकी व्हाट्सएप्प चैट भी दिखाई, अंजलि कहती रह गयी कि भूमि उसकी दोस्त थी पर भूमि ने अपना मतलब निकाल कर पलट कर भी नहीं देखा, इसका प्रभाव अंजलि पर यह पड़ा कि हर बार सबकी हेल्प करने वाली अंजलि अब किसी की  भी हेल्प करने से पहले सौ बार सोचती, भूमि का ध्यान आता , हर शख्स झूठा,स्वार्थी लगता.स्वार्थी और चालाक लोग दोस्ती का मुखौटा पहने हुए आपके वह दुश्मन हैं जो दीमक की  तरह आपको अंदर ही अंदर खाते रहते हैं और आपको पता भी नहीं चलता. ऐसे लोगों से दूरी बनाये रखना बेहतर है जो दोस्ती के नाम पर स्वार्थी हों , सच्ची दोस्ती में कहीं भी स्वार्थ और चालाकियों की  जगह नहीं होती.

सच्चे दोस्त की पहचान करना बहुत जरुरी होता है और सच्चे दोस्त की पहचान करके उसके साथ दोस्ती का रिश्ता बनाना एक प्रकार की अनूठी कला है. ऐसा नहीं कि उम्र और शिक्षा स्वार्थी इंसान होने या न होने पर अपना प्रभाव छोड़ती हैं, पड़ोस में एक आंटी हैं, भरा पूरा घर है पर पड़ोस की  अन्य अपनी उम्र की लड़कियों को बेटा, बेटा कहकर काम निकालने में जैसे उन्होंने कोई डिग्री हासिल की है, जैसे ही किसी को सब्जी लेने जाते देखती हैं, फौरन आवाज लगाकर अपना थैला पकड़ा देती हैं, बेटा, जरा मेरे लिए भी सब्जी ला देना, किसी को कहीं आते जाते देखेंगी तो कहेंगीं, जरा मुझे भी ड्राप कर देना, उनके घर में सब हैं, पर बाद में बड़ी शान से यह भी कहती हैं, मुझे तो अपना काम निकालना आता है, मैं कुछ कहूं तो मेरी उम्र देख कर कोई मना  ही नहीं करता.बुढ़ापे को मजे से यूज़ करती हूं,” अब मूर्ख वही बनते रह जाते हैं जो इनकी उम्र का लिहाज करते हैं, कोई महिला बच्चे को गोद में लेकर सब्जी लेने जा रही होती है तो वह इनका भी थैला संभाल रही होती है, आसपड़ोस की युवा  महिलाएं जिन्हे ये अपना दोस्त कहती हैं, इनकी उम्र देख कर कोई जवाब नहीं देतीं तो यह आराम से बताती घूमती हैं कि इनके तो सब काम आराम से होते हैं. इनके परिवार वाले भी अक्सर यह कहते सुने गए हैं कि ”माँ, आपका तो काम कोई भी कर देगा, आपमें इतना टैलेंट है !”

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ऐसा भी नहीं कि सिर्फ लड़कियां, महिलाएं ही दोस्ती में स्वार्थ और चालाकी दिखाती हैं, पुरुष भी कम नहीं होते, एक मल्टी नेशनल कंपनी में काम करने वाले तीस वर्षीय अनुज अपना अनुभव बताते हैं,” मैं और मेरा कलीग सुनील एक ही सोसाइटी में रहते हैं, मैं कार से ऑफिस जाता हूं, वह  बस से जाता था, एक दिन वह ऑफिस जाने के समय मेरी कार के पास आकर खड़ा हो गया, और कहने लगा,” मैं भी साथ ही चला करूँगा, एक जगह ही तो जाना है.‘’ मुझे कोई आपत्ति नहीं थी, एक साल आना जाना रोज साथ ही होता रहा, कार उसके पास भी थी पर डीजल पेट्रोल पर ज्यादा खर्च करना उसे पसंद नहीं था,  यह उसने मुझे खुद ही बताया,  फिर मेरा एक ऑपरेशन  हुआ और डॉक्टर ने मुझे एक महीना कार चलाने को मना किया, मैंने उससे रिक्वेस्ट की कि थोड़े दिन अपनी कार निकाल ले क्यूंकि मुझे बस की भीड़  में हमेशा कुछ दिक्कत होती है, उसने कहा,” यार, तुम छुट्टी ही ले लो, आराम कर लो, मैं तो अपनी कार सिर्फ वीकेंड पर निकालता हूं, ” इतना रुखा सा जवाब सुनकर मैं उसका मुँह ही देखता रह गया, पूरा साल मैं उसे इतनी ख़ुशी से अपने साथ ले जा रहा था, और मेरी बीमारी में उसने मेरे प्रोजेक्ट में हेल्प करने से भी साफ़ साफ़ मना कर दिया, खुद बस से जाने लगा, जब मैं ठीक हो गया तो बड़ी बेशर्मी से, मेरा यार ठीक हो गया,कहकर मेरे साथ फिर मेरी कार में आने जाने लगा.‘’

दोस्ती बहुत ही प्यारा रिश्ता है, इसे स्वार्थ और चालाकियों की भेंट न चढ़ने दें, अच्छा दोस्त बनें,  इस रिश्ते को प्यार से , सच्चाई से निभाएं.  अच्छे दोस्त बन कर,  अच्छा दोस्त पाकर मन को असीम ख़ुशी मिलती है, अपने दोस्त की फीलिंग्स को कभी हर्ट न करें, इस रिश्ते में नफा नुकसान न सोचें, दोस्त के लिए दिल में करुणा और सम्मान रखें, उसके प्रति वफादार रहें, उसके साथ हंसे,बोलें, खिलखिलाएं, आपके मन को भी ख़ुशी होगी, उसकी पर्सनल बातों को अपने तक रखें, उसकी परेशानी में उसके साथ खड़े रहें,  उसकी बातों को ध्यान से सुनें,  अगर आपका दोस्त दूर भी रहता हो तो फोन,सोशल मीडिया या मेसेजस से उसे यकीन दिलाते रहें कि आप उसके साथ ही हैं. दोस्ती का रिश्ता विश्वास के आधार पर ही टिका होता है, एक सच्चा दोस्त कभी भी अपने दोस्त से न तो झूठ बोलेगा और न ही उसके साथ किसी प्रकार का छल कपट करेगा और यह सच्चे दोस्त की निशानी है.  सच्चा मित्र किसी बहुमूल्य रत्न से कम नहीं होता, स्वार्थ की भावना से दोस्ती न  करें , स्वार्थी मित्र संकट के समय साथ छोड़ देते हैं इसलिए ऐसे लोगों से दूरी बना कर रखें जो स्वार्थी हों , सच्ची दोस्ती में कहीं भी चालाकी और स्वार्थ की भावना नहीं होती. ईर्ष्या द्वेष रखने वालों से दूर  रहें,  ऐसे दोस्त या मित्र जो सामने तो मीठी मीठी बातें करते  हैं लेकिन पीठ पीछे बुराई करते हैं,  उनसे दोस्ती न करें, ऐसे लोग कभी भी आपका मन दुखा सकते हैं,  स्वार्थी और चालाक दोस्तों से जितनी जल्दी संभव हो, उतनी जल्दी दूरी बना लेनी चाहिए.

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जब दोस्ती में बढ़ जाए Jealousy

दोस्ती में प्यार है तो तकरार भी है. रूठना है तो मनाना भी है. यह सिलसिला तो दोस्तों के बीच चलता ही रहता है. लेकिन कई बार बेहद प्यार और परवा के बावजूद दोस्ती में जलन की भावना पैदा हो जाती है. क्या आप जानते हैं ऐसा क्यों होता है? वैसे तो इस के कई कारण हैं, जैसे दोस्तों के बीच किसी तीसरे का आ जाना, पढ़ाई में किसी एक का तेज होना वगैरह. लेकिन इन सब के अलावा एक ऐसा कारण भी है जो दोस्ती में तकरार, ईर्ष्या और जलन जैसी भावनाओं को उत्पन्न कर देता है.

दरअसल, जब 2 दोस्तों के बीच पहनावे या खानेपीने जैसी चीजों में अंतर हो तो यह जलन जैसी भावनाओं को पैदा कर देता है. ऐसा ही कुछ हुआ सुहानी और अनन्या के साथ.

अनन्या और सुहानी 11वीं कक्षा से ही दोस्त हैं. वे एकदूसरे के काफी क्लोज हैं. वैसे तो सुहानी कानपुर से है लेकिन 16 वर्ष की उम्र में वह अपने पूरे परिवार के साथ दिल्ली आ गई थी. सुहानी ने 10वीं कक्षा तक की पढ़ाई कानपुर से की थी और आगे की पढ़ाई उस ने दिल्ली आ कर पूरी की.

सुहानी और अनन्या की दोस्ती दिल्ली में हुई. दरअसल, जिस कंपनी में अनन्या के पापा काम करते थे उसी कंपनी में सुहानी के पापा की भी नौकरी लग गई थी. एक दिन सुहानी के पापा ने सुहानी के दाखिले के लिए अनन्या के पापा से किसी अच्छे स्कूल के बारे में पूछा, तो उन का कहना था, ‘‘अरे, मेरी बेटी जिस स्कूल में पढ़ती है वह स्कूल तो बहुत अच्छा है. तुम चाहो तो वहां दाखिला करवा सकते हो.’’

सुहानी के पापा और सुहानी जब स्कूल में दाखिले के लिए गए तो उन्हें स्कूल काफी पसंद आया. कुछ दिनों बाद सुहानी स्कूल जाने लगी. इधर सुहानी और अनन्या बहुत अच्छी दोस्त बन गई थीं और उधर दोनों

के पापा में भी अच्छी बौंडिंग हो गई थी. दोनों के परिवार में आनाजाना भी होने लगा था.

सोच में बदलाव रिश्तों में टकराव

सुहानी और अनन्या दोनों के ही परिवार बहुत अच्छे थे, बस अंतर था तो दोनों के परिवारों के रहनसहन में. अनन्या के परिवार वाले बहुत खुले विचारों के थे. वे कभी अनन्या पर किसी प्रकार की रोकटोक नहीं करते थे. अनन्या को अपनी तरह से जिंदगी जीने की आजादी थी. वहीं, दूसरी तरफ सुहानी का परिवार खुले विचारों वाला नहीं था. वे कुछ भी सुहानी के लिए करते तो पूरे परिवार का मशवरा ले कर. जहां एक तरफ अनन्या हर तरह के कपड़े पहना करती थी, वहीं सुहानी सिर्फ जींस, टौप और कुरती ही पहनती. उसे ज्यादा स्टाइलिश और छोटे कपड़े पहनने की आजादी नहीं थी.

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स्कूल में अनन्या और सुहानी साथ ही रहा करती थीं. दोनों की दोस्ती गहरी होती जा रही थी. परीक्षा में दोनों साथ में ही पढ़ाई करतीं. अनन्या पढ़ने में एवरेज थी, पर सुहानी क्लास में अव्वल आती थी. हम अकसर देखते हैं कि मांबाप पढ़ाई को ले कर अपने बच्चों की दूसरे बच्चे से तुलना करने लगते हैं लेकिन यहां कभी न अनन्या के मातापिता ने तुलना की न खुद अनन्या ने. बल्कि अनन्या को खुशी मिलती थी सुहानी के अव्वल आने पर. परंतु सुहानी के साथ ऐसा नहीं था. सुहानी के व्यवहार में धीरेधीरे बदलाव दिखने लगा था.

जब इच्छाएं दबा दी जाती हैं

दोनों की स्कूली पढ़ाई खत्म होने को थी. 12वीं की परीक्षा से पहले स्कूल में फेयरवैल पार्टी का आयोजन किया गया था, जिस के लिए सभी उत्सुक थे. अनन्या और सुहानी ने उस दिन साड़ी पहनी थी. वैसे तो दोनों ही अच्छी लग रही थीं लेकिन सब की नजर अनन्या पर ज्यादा थी. सुहानी के सामने सब अनन्या की ज्यादा तारीफ कर रहे थे.

अनन्या की साड़ी बेहद खूबसूरत थी और उस के ब्लाउज का डिजाइन सब से अलग और स्टाइलिश था. सुहानी की साड़ी बहुत सिंपल थी और उस के ब्लाउज का डिजाइन उस से भी ज्यादा सिंपल. वैसे सुहानी का बहुत मन था बैकलैस ब्लाउज पहनने का लेकिन घरवालों के कारण उस ने अपनी यह इच्छा भी दबा दी थी.

सुहानी उस दिन बहुत शांत हो गई थी. जब भी अन्नया उस के पास आती वह उसे नजरअंदाज करने लग जाती और उस से दूर जा कर खड़ी हो जाती. अनन्या भी समझ नहीं पा रही थी कि आखिर सुहानी को हुआ क्या है. फेयरवैल के बाद सभी घूमने जा रहे थे लेकिन सुहानी पहले ही घर निकल गई थी. सुहानी को न देख कर अनन्या भी घर चली गई.

अनन्या को सुहानी की इस हरकत पर बहुत गुस्सा आ रहा था, इसलिए उस ने सुहानी से पहले बात करने की कोशिश भी नहीं की. 2 दिन बाद सुहानी खुद अनन्या के पास आई. अनन्या ने जब गुस्से में पूछा, ‘‘तू उस दिन कहां चली गई थी?’’ तब सुहानी ने कहा, ‘‘उस दिन मेरी तबीयत खराब हो गई थी, इसलिए मैं तुझे बिना बताए चली गई. मैं नहीं चाहती थी कि तेरा फेयरवैल मेरी वजह से खराब हो.’’ यह सुन कर अनन्या ने उसे गले लगा लिया. लेकिन असलियत तो कुछ और ही थी. उस दिन सुहानी को अनन्या को देख कर जलन हो रही थी.

यह बात सुहानी ने उस वक्त अपने चेहरे पर जाहिर नहीं होने दी. दोनों ने 12वीं की परीक्षा दी. जब रिजल्ट आया तो अनन्या अच्छे नंबरों से पास हो गई लेकिन सुहानी ने पूरे स्कूल में टौप किया था. यह सुन कर सभी खुश हुए. अनन्या भी बहुत खुश हुई.

जब तारीफें चुभने लगें

स्कूल के बाद दोनों ने एक ही कालेज में दाखिला ले लिया. दाखिला लेने के कुछ महीने बाद ही दोनों की दोस्ती में दरार आने लगी. कालेज में अनन्या सारी एक्टिविटीज में हिस्सा लेती थी. इस कारण कालेज में उसे सब जानने लगे थे. उस के कपड़े सब से अलग और स्टाइलिश होते थे. क्लास में सभी उस को बहुत पसंद करते थे. वह कालेज की फैशन सोसाइटी का हिस्सा भी बन गई थी.

सुहानी को सिर्फ पढ़ाई में ध्यान देने को कहा गया था. हालांकि उस का भी बहुत मन होता था पढ़ाई के अलावा भी बाकी एक्टिविटीज में भाग लेने का, लेकिन घर वालों के कारण वह हमेशा अपने कदम पीछे कर लिया करती थी. यही वजह थी जो सुहानी धीरेधीरे अनन्या से दूर होने लगी थी. उस के मन में अनन्या के प्रति ईर्ष्या की भावना आने लगी थी.

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स्कूल के फेयरवेल के समय सुहानी को इतना फर्क नहीं पड़ा था. लेकिन, अब उसे अनन्या की यह आजादी चुभने लगी थी. सुहानी अपनी पसंद से न कपड़े पहन सकती थी न कहीं अपनी मरजी से जा सकती थी. वहीं अनन्या के घर वाले उसे पूरा सपोर्ट करते थे. अपने मनपसंद के कपड़े पहनना, घूमनाफिरना, वह सब करती थी. ऐसा नहीं था कि अनन्या की फैमिली सभी चीजों के लिए हां कर देती थी, हां, उसे उस के फैसले, वह क्या पहनना चाहती है, क्या करना चाहती है, यह डिसाइड करने का पूरा हक था.

जलन जब नफरत बन जाए

सुहानी और अनन्या की दोस्ती में काफी बदलाव नजर आने लगा था. अनन्या हमेशा उस के साथ रहती, लेकिन सुहानी उस से दूरियां बनाने में लगी हुई थी. यह बात अन्नया समझ रही थी लेकिन उसे लगा शायद सुहानी पढ़ाई को ले कर परेशान है. मगर आगे कुछ ऐसा हुआ कि दोनों सहेलियां हमेशा के लिए अलग हो गईं. दरअसल, अनन्या को फोटोग्राफी का कोर्स करना था जिस की स्टडी के लिए वह विदेश जाना चाहती थी. जब यह बात उस ने सुहानी को बताई तो सुहानी का कहना था, ‘‘अरे, इतनी दूर क्यों जाना है? यहीं से कर ले. और वैसे भी इस कोर्स का क्या होगा जो तू अभी कर रही है?’’ इस बात पर अनन्या का कहना था, ‘‘यह कोर्स तो मैं ने ऐसे ही जौइन कर लिया था. अच्छा, एक काम कर दे, अपने लैपटौप से इस कालेज का फौर्म भर दे. कल इस की लास्ट डेट है.’’

दोनों फौर्म भरने बैठ गईं. सभी डिटेल्स तो दोनों ने भर दीं लेकिन नैटवर्क प्रौब्लम की वजह से आगे का प्रौसेस नहीं हो पाया. यह देख कर अनन्या ने कहा, ‘‘कोई नहीं, तू आज शाम को दोबारा ट्राई कर लेना, बाकी सब तो हो ही गया है.’’

सुहानी ने भी हां कह दिया. दोनों घर चली गईं. शाम को अन्नया ने फोन पर फौर्म के लिए पूछा तो सुहानी का कहना था, ‘‘मैं ने कोशिश की लेकिन बारबार प्रौसेस फेल हो रहा है. तू चिंता मत कर, मैं कर दूंगी.’’

अगला दिन फौर्म का आखिरी दिन था. जब दोनों अगले दिन कालेज में मिले तो सुहानी ने अनन्या को देखते ही कहा, ‘‘फौर्म का प्रौसेस पूरा हो गया है.’’ यह सुनते ही अनन्या बहुत खुश हुई.

जब अनन्या ने सुहानी से ऐंट्रैंस परीक्षा की डेट पूछी तो वह थोड़ी घबरा गई. उस ने कहा, ‘‘मैं देख कर बताती हूं, ‘‘ ‘‘तभी अनन्या को याद आया उस के मेल आईडी पर सारी डिटेल्स आ गई होंगी. जब उस ने मेल चैक किया तो कुछ नहीं था. उस ने दोबारा सुहानी से पूछा, ‘‘तूने फौर्म फिल कर दिया था?’’ यह सवाल सुनते ही सुहानी शांत हो गई. दरअसल, सुहानी ने घर जाने के बाद लैपटौप चैक भी नहीं किया था. जब अनन्या ने लैपटौप में चैक किया तो कोई फौर्म फिल करने का प्रौसेस ही नहीं हुआ था.

यह देख कर अनन्या को बहुत अजीब लगा. अनन्या ने जब सुहानी के झूठ बोलने पर सवाल किया तो वह गुस्से में बोलने लगी, ‘‘मेरे पास इतना टाइम नहीं था. तेरी तरह मेरी लाइफ नहीं है. मुझे घर जा कर भी बहुत काम होता है. और वैसे भी तू विदेश जा कर क्या करेगी? तू सारी मौजमस्ती यहां कर ही लेती है. मेरा देख, सिर्फ किताबों में या घर के काम में ही पूरा दिन बीतता है.’’

अनन्या समझ गई कि जिस दोस्त पर वह इतना भरोसा करती थी वह सिर्फ उस से जलती थी. उस ने जानबूझ कर उस का फौर्म फिल नहीं किया.

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वैसे आज के समय में जलन की भावना बहुत आम हो गई है. लोग एकदूसरे का काम बिगाड़ने में लगे रहते हैं, चाहे उस से उन को फायदा हो या न हो. लड़कियों में सब से ज्यादा जलन की भावना कपड़ों या फिर खुली छूट की वजह से होती है.

जो हमें नहीं मिलता वह हम किसी दूसरे के पास भी देखना पसंद नहीं करते, जोकि सरासर गलत है. अगर आप को आप की इच्छा के अनुसार जिंदगी में कुछ करना है तो उस के लिए परिवार से बात करें. दूसरों से लड़ने के बजाय परिवार से लड़ना जरूरी है. दूसरों से ईर्ष्या कर उन को तकलीफ पहुंचा कर आप उन सभी से दूर होते चले जाएंगे. यह सब एक दिन आप को सब से अकेला कर देगा और तब पछताने के अलावा आप के पास कुछ नहीं रहेगा.

अगर दोस्ती नहीं खोना चाहते तो भूलकर भी अपने यहां दोस्त को न लगवाएं नौकरी

कई महीनों की अथक मेहनत के बाद रवि शंकर जिस वेब पोर्टल में काम कर रहे थे, वह चल निकला था. अब पोर्टल को ठीकठाक विज्ञापन मिलने लगे थे और ज्यादा से ज्यादा तथा अच्छे कंटेंट की मांग भी होने लगी थी. ऐसे में एक दिन रवि को उनके एडिटर ने अपने केबिन में बुलाया और बोले-

‘रवि तुम्हारी नजर में कोई ठीकठाक कंटेंट राइटर हो तो उसे बुलाओ. अपने को एक दो और कंटेंट राइटर चाहिए होंगे.’

रवि संपादक जी के कहने पर एक मिनट को कुछ सोचने लगा और फिर बोला-

‘सर, मेरे एक दोस्त हैं, एक अखबार में फीचर पेज देखते थे. अच्छा लिख लेते हैं. कई विषयों पर पकड़ है और अनुभवी भी हैं. लेकिन…’

‘लेकिन क्या?’

संपादक जी ने रवि के इस तरह चुप हो जाने पर पूछा. इस पर रवि ने कहा-

‘सर, वो तनख्वाह थोड़ी ज्यादा मांगेंगे.’

अगर तुम कह रहे हों कि वह योग्य हैं और कई विषयों पर लिख लेते हैं तो तनख्वाह थोड़ी ज्यादा दे देंगे. आखिर काम भी अच्छा होगा.

‘हां, सर ये तो है.’

‘तो फिर उन्हें बुला लो.’

‘ठीक है सर, कब बुला लूं.’

‘कल बुला लो.’

‘ओके’

यह कहकर रवि अपनी वर्किंग डेस्क पर आ गया और वहीं से ललित वत्स को फोन किया और बोला, ‘कल मेरे दफ्तर आ जाओ, हमें एक सीनियर कंटेंट राइटर की जरूरत है. मेरी बाॅस से बात हो चुकी है, शायद तुम्हारा काम हो जायेगा.’ ललित ने अपने पुराने दोस्त रवि का धन्यवाद किया और अगले दिन दोपहर में वह उसके दफ्तर मंे पहुंच गया. ललित का व्यक्तित्व प्रभावशाली था, विषयों की समझ ठीक थी और उन्हें व्यक्त करने का तरीका भी वह अच्छा जानता था. कुल मिलाकर पहली मुलाकात में ही रवि के संपादक जी उससे प्रभावित हुए और तीसरे दिन से रवि व ललित सहकर्मी हो चुके थे.

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जैसा कि रवि को आभास भी था, जल्द ही ललित के काम करने की प्रभावशाली शैली तथा अच्छी जानकारियों के चलते वह दफ्तर में ‘नेक्स्ट टू बाॅस’ हो गया. रवि को हालांकि इससे कोई खास दिक्कत नहीं थी, फिर भी थोड़ी ईष्र्या तो होती ही है. शायद वह इस ईष्र्या को भी दबा लेता, लेकिन दफ्तर में दूसरे नंबर की हैसियत में आते ही ललित ने अपने पुराने दोस्त को न सिर्फ यह जताने की कोशिश की कि दफ्तर में वह उसके मातहत है बल्कि उसके काम पर अकसर मीनमेख निकालने लगा. हद तो तब हो गई, जब वह उस छोटे से दफ्तर में सार्वजनिक रूप से रवि के लिखने के ढंग की ही आलोचना नहीं करने लगा बल्कि एक दो बार तो सबके सामने ही उसकी स्टोरी को इस तरह रिजेक्ट कर दिया, जैसे वह अभी ट्रेनी राइटर हो. जल्द ही रवि के लिए दफ्तर में स्थितियां इतनी बुरी हो गईं कि उसे नौकरी छोड़नी पड़ी. दरअसल अब बाॅस को भी लगने लगा था कि ललित न सिर्फ बेहतर लेखक है बल्कि वह अच्छी तरह से आॅफिस भी संभाल सकता है तो उन्होंने रवि के जाने की परवाह नहीं की.

एच आर विशेषज्ञ कहते हैं कि अपने किसी दोस्त को अपने यहां नौकरी देकर परेशानी मोल नहीं लेनी चाहिए. अगर आपके हाथ में हो तो किसी अजनबी को भले अपने दफ्तर में साथ काम करने का मौका दे दें, लेकिन दोस्त को न दें. क्योंकि अजनबी को संभालना भी आसान होता है और निकलना तो और भी ज्यादा आसान होता है. चाहे आप बाॅस हों या फिर एक साधारण कर्मचारी अपने कार्यस्थल में किसी पुराने दोस्त के साथ होना हमेशा नुकसानदेह होता है. खासकर तब, जब दोस्त ईष्र्यालु हो, कार्यस्थल के प्रोटोकाॅल का पालन न करता हो और महत्वाकांक्षी हो. वास्तव मंे दोस्त अगर कार्यस्थल साझा करते हों तो अकसर सिरदर्द बन जाते हैं.

मान लीजिए सब कुछ ठीक है लेकिन दोस्त महत्वाकांक्षी है, वह आपसे आगे जाना चाहता है. सवाल है क्या आप यह स्थिति स्वीकार कर लेंगे? शायद ऐसा नहीं होगा. क्योंकि उसके आगे जाने का रास्ता आपको पीछे धकेलकर जा सकता है. अगर ऐसा कुछ भी न हो और आपके दोस्त का परफोर्मेंस उम्मीद से कम हो तो कंपनी से इसके लिए आपको बातें सुननी पड़ सकती हैं और अगर बेहतर हो तो उसके साथ आपकी पसंद न आने वाली तुलना की जा सकती है, ताकि आपको डाउन किया जा सके. कई बार यदि दफ्तर मंे आपके द्वारा लाया गया आपका दोस्त कामचोर है तो प्रबंधन आपसे उम्मीद करता है कि आप उस पर दबाव बनाएं, उसे समझाएं. अगर आप ऐसा करते हैं तो संभव है आपका दोस्त आपको अपना सिरदर्द मानने लगे और ऐसा नहीं करते तो हो सकता है कंपनी प्रबंधन आप पर दोष मढ़ने लगे कि आपने कैसा कर्मचारी ला दिया है.

लब्बोलुआब यह कि अपने कार्यस्थल में दोस्त को प्रवेश दिलाकर आप परेशानियां ही परेशानियां मोल लेंगे. मान लीजिए आपके दोस्त में तमाम सारी खूबियां हैं, वह आपके कार्यस्थल में आते ही छा जाता है. हर कोई उसकी तारीफ करने लगता है और दफ्तर की महिला कर्मचारी तो मानो उस पर फिदा ही हो जाती हैं, तब क्या होगा? निश्चित ही उसका प्रभामंडल आपको अच्छा नहीं लगेगा. आप बेहद ईष्र्यालु हो जाएंगे, आपको खुद पर गुस्सा आयेगा और सोचेंगे पता नहीं वह कौन सी घड़ी थी, जब मेरी मति मारी गई और मैंने अपने ही दफ्तर में अपने आपका डिमोशन कर लिया. ऐसी सैकड़ों परेशानियों का एक ही हल है कि कभी भी अपने किसी दोस्त को अपनी कंपनी में नौकरी न लगवाइये अगर आपको उसके साथ दोस्ती हमेशा हमेशा के लिए रखनी है.

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जब शादीशुदा जिंदगी पर भारी हो दोस्ती

हफ्ते के 5 दिन का बेहद टाइट शेड्यूल, घर और आफिस के बीच की भागमभाग. लेकिन आने वाले वीकेंड को सेलीब्रेट करने का प्रोग्राम बनातेबनाते प्रिया अपनी सारी थकान भूल जाती है. उस के पिछले 2 वीकेंड तो उस के अपने और शिवम के रिश्तेदारों पर ही निछावर हो गए थे. 20 दिन की ऊब के बाद ये दोनों दिन उस ने सिर्फ शिवम के साथ भरपूर एेंजौय करने की प्लानिंग कर ली थी. लेकिन शुक्रवार की शाम जब उस ने अपने प्रोग्राम के बारे में पति को बताया तो उस ने बड़ी आसानी से उस के उत्साह पर घड़ों पानी फेर दिया.

‘‘अरे प्रिया, आज ही आफिस में गौरव का फोन आ गया था. सब दोस्तों ने इस वीकेंड अलीबाग जाने का प्रोग्राम बनाया है. अब इतने दिनों बाद दोस्तों के साथ प्रोग्राम बन रहा था तो मैं मना भी नहीं कर सका.’’ऐसा कोई पहली बार नहीं था. अपने 2 साल के वैवाहिक जीवन में न जाने कितनी बार शिवम ने अपने बचपन की दोस्ती का हवाला दे कर प्रिया की कीमती छुट्टियों का कबाड़ा किया है. जब प्रिया शिकायत करती तो उस का एक ही जवाब होता, ‘‘तुम्हारे साथ तो मैं हमेशा रहता हूं और रहूंगा भी. लेकिन दोस्तों का साथ तो कभीकभी ही मिलता होता है.’’

शिवम के ज्यादातर दोस्त अविवाहित थे, अत: उन का वीकेंड भी किसी बैचलर्स पार्टी की तरह ही सेलीब्रेट होता था. दोस्तों की धमाचौकड़ी में वह भूल ही जाता था कि उस की पत्नी को उस के साथ छुट्टियां बिताने की कितनी जरूरत है.

बहुत से दंपतियों के साथ अकसर ऐसा ही घटता है. कहीं जानबू कर तो कहीं अनजाने में. पतिपत्नी अकसर अपने कीमती समय का एक बड़ा सा हिस्सा अपने दोस्तों पर खर्च कर देते हैं, चाहे वे उन के स्कूल कालेज के दिनों के दोस्त हों अथवा नौकरीबिजनेस से जुड़े सहकर्मी. कुछ महिलाएं भी अपनी सहेलियों के चक्कर में अपने घरपरिवार को हाशिए पर रखती हैं.थोड़े समय के लिए तो यह सब चल सकता है, किंतु इस तरह के रिश्ते जब दांपत्य पर हावी होने लगते हैं तो समस्या बढ़ने लगती है.

यारी है ईमान मेरा…

दोस्त हमारी जिंदगी का अहम हिस्सा होते हैं, इस में कोई शक नहीं. वे जीवनसाथी से कहीं बहुत पहले हमारी जिंदगी में आ चुके होते हैं. इसलिए उन की एक निश्चित और प्रभावशाली भूमिका होती है. हम अपने बहुत सारे सुखदुख उन के साथ शेयर करते हैं. यहां तक कि कई ऐसे संवेदनशील मुद्दे, जो हम अपने जीवनसाथी को भी नहीं बताते, वे अपने दोस्तों के साथ शेयर कर सकते हैं, क्योंकि जीवनसाथी के साथ हमारा रिश्ता एक कमिटमेंट और बंधन के तहत होता है, जबकि दोस्ती में ऐसा कोई नियमकानून नहीं होता, जो हमारे दायरे को सीमित करे. दोस्ती का आकाश बहुत विस्तृत होता है, जहां हम बेलगाम आवारा बादलों की तरह मस्ती कर सकते हैं. फिर भला कौन चाहेगा ऐसी दोस्ती की दुनिया को अलविदा कहना या उन से दूर जाना.

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लेकिन हर रिश्ते की तरह दोस्ती की भी अपनी मर्यादा होती है. उसे अपनी सीमा में ही रहना ठीक होता है. कहीं ऐसा न हो कि आप के दोस्ताना रवैए से आप का जीवनसाथी आहत होने लगे और आप का दांपत्य चरमराने लगे. विशेषकर आज के व्यस्त और भागदौड़ की जीवनशैली में अपने वीकेंड अथवा छुट्टी के दिनों को अपने मित्रों के सुपुर्द कर देना अपने जीवनसाथी की जरूरतों और प्यार का अपमान करना है. अपनी व्यस्त दिनचर्या में यदि आप को अपना कीमती समय दोस्तों को सौंपना बहुत जरूरी है तो उस के लिए अपने जीवनसाथी से अनुमति लेना उस से भी अधिक जरूरी है.

ये दोस्ती…

कुछ पुरुष तथा महिलाएं अपने बचपन के दोस्तों के प्रति बहुत पजेसिव होते हैं तो कुछ अपने आफिस के सहकर्मियों के प्रति. श्वेता अपने स्कूल के दिनों की सहेलियों के प्रति इतनी ज्यादा संवेदनशील है कि अगर किसी सहेली का फोन आ जाए तो शायद पतिबच्चों को भूखा ही आफिस स्कूल जाना पड़े. और यदि कोई सहेली घर पर आ गई तो वह भूल जाएगी कि उस का कोई परिवार भी है.

दूसरी ओर कुछ लोग किसी गेटटूगेदर में अपने आफिस के सहकर्मियों के साथ बातों में ऐसा मशगूल हो जाएंगे कि उन की प्रोफेशनल बातें उन के जीवनसाथी के सिर के ऊपर से निकल रही हैं, इस की उन्हें परवाह नहीं होती.

इस के अलावा आफिस में काम के दौरान अकसर लोगों का विपरीत सेक्स के प्रति आकर्षण और दोस्ती एक अलग गुल खिलाती है. इस तरह का याराना बहुधा पतिपत्नी के बीच अच्छीखासी समस्या खड़ी कर देता है. कहीं देर रात की पार्टी में उन के साथ मौजमस्ती, कहीं आफिशियल टूर. कभी वक्तबेवक्त उन का फोन, एस.एम.एस., ईमेल अथवा रात तक चैटिंग. इस तरह की दोस्ती पर जब दूसरे पक्ष को आब्जेक्शन होता है तो उन का यही कहना होता है कि वे बस, एक अच्छे दोस्त हैं और कुछ नहीं. फिर भी दोनों में से किसी को भी इस ‘सिर्फ दोस्ती’ को पचा पाना आसान नहीं होता.

दोस्ती अपनी जगह है दांपत्य अपनी जगह

यह सच है कि दोस्ती के जज्बे को किसी तरह कम नहीं आंका जा सकता, फिर भी दोस्तों की किसी के दांपत्य में दखलअंदाजी करना अथवा दांपत्य पर उन का हावी होना काफी हद तक नुकसानदायक साबित हो सकता है. शादी से पहले हमारे अच्छेबुरे प्रत्येक क्रियाकलाप की जवाबदेही सिर्फ हमारी होती है. अत: हम अपनी मनमानी कर सकते हैं. किंतु शादी के बाद हमारी प्रत्येक गतिविधि का सीधा प्रभाव हमारे जीवनसाथी पर पड़ता है. अत: उन सारे रिश्तों को, जो हमारे दांपत्य को प्रभावित करते हैं, सीमित कर देना ही बेहतर होगा.

कुछ पति तो चाहते हुए भी अपने पुराने दोस्तों को मना नहीं कर पाते, क्योंकि उन्हें ‘जोरू का गुलाम’ अथवा ‘बीवी के आगे दोस्तों को भूल गए, बेटा’ जैसे कमेंट सुनना अच्छा नहीं लगता. ऐसे पतियों को इस प्रकार के दोस्तों को जवाब देना आना चाहिए, ध्यान रहे ऐसे कमेंट देने वाले अकसर खुद ही जोरू के सताए हुए होते हैं या फिर उन्होंने दांपत्य जीवन की आवश्यकताओं का प्रैक्टिकल अनुभव ही नहीं किया होता.

सांप भी मरे और लाठी भी न टूटे

जरूरत से ज्यादा यारीदोस्ती में बहुत सारी गलतफहमियां भी बढ़ती हैं. साथ ही यह जरूरी तो नहीं कि हमारे अपने दोस्तों को हमारा जीवनसाथी भी खुलेदिल से स्वीकार करे. इस के लिए उन पर अनावश्यक दबाव डालने का परिणाम भी बुरा हो सकता है. अत: इन समस्याओं से बचने के लिए कुछ कारगर उपाय अपनाए जा सकते हैं :

अपने बचपन की दोस्ती को जबरदस्ती अपने जीवनसाथी पर न थोपें.

अगर आप के दोस्त आप के लिए बहुत अहम हों तब भी उन से मिलने अथवा गेटटूगेदर का वह वक्त तय करें, जो आप के साथी को सूट करे.

बेहतर होगा कि जैसे आप ने एकदूसरे को अपनाया है वैसे एकदूसरे के दोस्तों को भी स्वीकार करें. इस से आप के साथी को खुशी होगी.

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जीवनसाथी के दोस्तों के प्रति कोई पूर्वाग्रह न पालें. बेवजह उन पर चिढ़ने के बजाय उन की इच्छाओं पर ध्यान दें.

‘तुम्हारे दोस्त’, ‘तुम्हारी सहेलिया’ के बदले कौमन दोस्ती पर अधिक जोर दें.

अपने बेस्ट फ्रेंड को भी अपनी सीमाएं न लांघने दें. उसे अपने दांपत्य में जरूरत से ज्यादा दखलअंदाजी की छूट न दें.

आफिस के सहकर्मियों की भी सीमाएं तय करें.

अपने दांपत्य की निजी बातें कभी अपने दोस्तों पर जाहिर न करें.

बदलती जीवनशैली में हर उम्र की महिलाओं को चाहिए पुरुष दोस्त

..तो क्या भारतीय पुरुष बदल गए हैं? या वक्त ने उन्हें बदलने पर मजबूर कर दिया है. आज जीवनषैली काफी कुछ बदल गई है जिसमें आपोजिट सेक्स के दोस्त जिंदगी का जरूरी हिस्सा बन गए हैं. फिर चाहे बात पुरुषों की हो या महिलाओं की. पर चूंकि पुरुष हमेषा से महिलाओं से दोस्ती की फिराक में रहते रहे हैं इसलिए उनके संबंध में यह कोई चैंकाने वाली बात नहीं है. लेकिन महिलाओं के नजरिये से देखें तो यह वाकई क्रांतिकारी दौर है. जब हर उम्र की महिलाओं को पुरुष दोस्तों की जरूरत महसूस हो रही है और सहज बात यह है कि उसके सगे संबंधी पुरुष चाहे वह पिता हो, भाई हो या पति सब इस जरूरत को जानते हैं और इसे महसूस करते हैं.

दरअसल आज की इस तेज रफ्तार जीवनषैली में समस्याओं का वैसा वर्गीकरण नहीं रहा है जैसा वर्गीकरण आधी सदी पहले तक हुआ करता था. मगर जमाना बदल गया है. कामकाज के तौरतरीके और ढंग बदल गए हैं, भूमिकाएं बदल गई हैं इसलिए अब समस्याओं का बंटवारा या कहें वर्गीकरण महिलाओं और पुरुषों के लिए अलग-अलग तरह का नहीं रह गया है बल्कि जो समस्याएं आज के कॅरिअर लाइफ में पुरुषों की हैं, वही समस्याएं महिलाओं की भी हैं. ऐसा होना आष्चर्य की बात भी नहीं हैै. जब महिलाएं हर जगह पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हों तो भला समस्याएं कैसे अलग-अलग किस्म की हो सकती हैं. तनाव और खुशियां दोनों ही मामलों में पुरुष और महिलाएं करीब आ गए हैं. नई कामकाज की शैली में देर रात तक पुरुष और महिलाएं विषेषकर आईटी और इंटरटेनमेंट इंडस्ट्री में साथ-साथ काम करते हैं. ..तो दोनों के बीच इंटीमेसी विकसित होना भी आम बात है.

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स्त्री और पुरुष एक दूसरे के पूरक होते हैं. मगर पहले चूंकि पुरुषों और महिलाओं के काम अलग-अलग थे इसलिए पूरक होने की उनकी परिस्थितियां भी अलग-अलग थीं. आज जो काम वर्षाें से सिर्फ पुरुष करते रहे हैं, महिलाएं भी उन कामों में हाथ आजमा रही हैं तो फिर महिलाओं को इन कामों में मास्टरी हासिल करने के लिए दिषा-निर्देष किससे मिलेगा? पुरुषों से ही न? ठीक यही बात पुरुषों पर भी लागू होती है. वेलनेस और सौंदर्य प्रसाधन क्षेत्र में पहले इस तरह पुरुष कभी नहीं थे जैसे आज हैं. तो फिर भला इन क्षेत्रों में वह महिलाओं से ज्यादा कैसे जान सकते हैं? ऐसे में कामकाज के लिहाज से उनकी स्वाभाविक दोस्त कौन होंगी? महिलाएं ही न! चूंकि दोनों ने एक दूसरे के क्षेत्र में हस्तक्षेप किया है, प्रवेष किया है इसलिए दोनों ही एक दूसरे के भावनात्मक और सहयोगात्मक स्तर पर भी नजदीक आ गए हैं. यह जरूरत भी है और चाहत भी. इसलिए पुरुषों और महिलाओं की दोस्ती आज शक के घेरों से बाहर निकलकर सहज स्वाभाविक पूरक होने के दायरे में आ गई है.

सिग्मंड फ्रायड ने 19वीं सदी में ही कहा था ‘आॅपोजिट सेक्स’ न सिर्फ एक दूसरे को आकर्षित करते हैं बल्कि प्रेरित भी करते हैं; क्योंकि दोनों कुदरती रूप से एक दूसरे के पूरक होते हैं. हालांकि इंसानों में यह भाव हमेषा से रहा है; लेकिन सामाजिक झिझक और मान्यताओं के दायरे में फंसे होने के कारण पहले स्त्री या पुरुष एक दूसरे की नजदीकी हासिल करने की स्वाभाविक इच्छा का खुलासा नहीं करते थे. मगर कामकाज के आधुनिक तौर-तरीकों ने जब एक दूसरे के बीच जेंडर भेद बेमतलब कर दिया तो इस मानसिक चाहत के खुलासे में भी न तो पुरुषों को ही, न ही महिलाओं को किसी तरह की दिक्कत नहीं रही.

पढ़ाई चाहे गांव में हो या शहरों में, अब आमतौर पर सहषिक्षा के रूप में ही हो रही है. पढ़ाई के बाद फिर साथ-साथ कामकाज और साथ-साथ कामकाज के बाद लगभग इसी तरह की जीवनषैली यानी ऐसे समाज में जीवन गुजारना, जहां स्त्री और पुरुष के बीच मध्यकालीन भेद नहीं होता. ऐसे में पुरुष स्त्री एक दूसरे के दोस्त सहज रूप से बनते हैं. मगर यह बात तो दोनों पर ही लागू होती है फिर पुरुषों के बजाय महिलाओं के मामले में ही यह क्यों चिन्हित हो रहा है या देखने में आ रहा है कि आज हर उम्र की महिलाओं को पुरुष दोस्तों की जरूरत है? इसके पीछे वजह यह है कि महिलाओं के संदर्भ में यह नई बात है. यह पहला ऐसा मौका है जब महिलाएं खुलकर अपनी इस जरूरत को रेखांकित करने लगी हैं. जबकि इसके पहले तक वह घर-परिवार, समाज और जमाने की नाखुषी से अपनी इस चाहत और जरूरत को रेखांकित करने में झिझकती रही हैं. लेकिन इंटरनेट, भूमंडलीकरण और तेजी से आर्थिक और कामकाजी दुनिया मंे परिवर्तन के चलते जो आध्ुनिकता आयी है उसने यह वातावरण बनाया है कि महिलाएं अपनी बात खुलकर कह सकें, अपनी जरूरत को सहजता से सबके सामने रख सकें.

समाजषास्त्रियों को यह सवाल परेषान कर सकता है कि महिलाएं तो हमेषा से पुरुषों के साथ ही रही हैं. पति, पिता, पुत्र और भाई के रूप में हमेषा महिलाओं के साथ पुरुषों की मौजूदगी रही है. फिर उन्हें अपनी मन की बात शेयर करने के लिए या तनाव से राहत पाने के लिए अथवा कामकाज सम्बंधी सहूलियतें व जानकारियां पाने के लिए पुरुष दोस्तों की इतनी जरूरत क्यों पड़ रही है? दरअसल पति, पिता, पुत्र और भाई जैसे रिष्ते महिलाओं के पास सदियों से मौजूद रहे हैं और सदियों की परम्परा ने इनके कुछ मूल्यबोध भी निष्चित कर दिये हैं. इसलिए रातोंरात उन मूल्यों या बोधों को उलटा नहीं जा सकता. कहने का मतलब यह है कि पुरुष होने के बावजूद भाई, पिता, पति और पुत्र अपने सम्बंधों की भूमिका में ज्यादा प्रभावी होते हंै. इसलिए कोई भी महिला इन तमाम पुरुषों से सब कुछ शेयर नहीं कर सकती या अपनी चाहत या जिंदगी, महत्वाकांक्षाओं और दुस्साहसों को साझा नहीं कर सकती जैसा कि वह किसी पुरुष दोस्तों से कर सकती है.

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इसलिए इन तमाम पुरुषों के बावजूद महिलाओं को आज की तनावभरी जीवनषैली में सफलता से आगे बढ़ने के लिए घर के पुरुषों से इतर पुरूष दोस्तों की षिद्दत से जरूरत महसूस होती है. 10 या 12 घंटे तक लगातार पुरूषों के साथ काम करने वाली महिलाएं उनके साथ वैसा ही बर्ताव नहीं कर सकतीं जैसा बर्ताव वह अपनी निजी सम्बधों वाले जीवन में करती हैं. 8 से 12 घंटे तक लगातार काम करने वाली कोई महिला सिर्फ सहकर्मी होती है और उतनी ही बराबर जितना कोई भी दूसरा पुरुष सहकर्मी यानी वह पूरी तरह से सहकर्मी के साथ स्त्री के रूप में भी होती है और पुरूष के रूप में भी. यही ईमानदारी दोनों को आकर्षित भी करती है और प्रेरित भी करती है. जिससे काम, बोझ की बजाय रोमांच का हिस्सा बन जाता है. इसलिए तमाम सगे संबंधी पुरुषों के बावजूद महिलाओं को आज की जिंदगी में सहजता से संतुष्ट जीवन जीने के लिए हर मोड़ पर, हर कदम पर पुरुषों के साथ और उनसे दोस्ती की दरकार होती है.

यह देखा गया है कि जहां पुरुष-पुरूष काम करते हैं या सिर्फ महिला-महिला काम करती हैं, वहां न तो काम का उत्साहवर्धक माहौल होता है और न ही काम की मात्रा और गुणवत्ता ही बेहतर होती है. इसके विपरीत जहां पुरूष और महिलाएं साथ-साथ काम करते हों, वहां का माहौल काम के लिए ज्यादा सहज, अनुकूल और उत्पादक होता है. इसलिए तमाम कारपोरेट संगठन न सिर्फ पुरुषों और महिलाओं को साथ-साथ काम में रखने के लिए प्रोत्साहित करते हैं बल्कि उनमें दोस्ती पैदा हो, गाढ़ी हो इसके लिए भी माहौल का सृजन करते हैं. यही कारण है कि आज चाहे वह स्कूल की किषोरी हो, काॅलेज की युवती हो, दफ्तर की आकर्षक सहकर्मी हो या कोई भी हो. हर महिला को अपनी दुनिया में पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने के लिए पुरुषों का साथ चाहिए. यह बुरा कतई नहीं है बल्कि बेहतर समाज का बुनियादी रुख ही दर्षाता है. अगर पुरुष और महिला एक दूसरे के दोस्त होंगे, एक दूसरे के ज्यादा नजदकी होंगे तो वह एक दूसरे को ज्यादा बेहतर समझेंगे और ज्यादा बेहतर समझेंगे तो दुनिया ज्यादा रंगीन होगी.

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क्या आप की दोस्ती खतरे में है

संभव है कि किन्हीं कारणों से आप की दोस्ती अब पहले जैसी नहीं रह गई हो. आप के दोस्त के बरताव में आप कुछ बदलाव महसूस कर सकते हैं या आप में उस की दिलचस्पी अब न रही हो या कम हो गई हो. कुछ संकेतों से आप पता लगा सकते हैं कि अब यह दोस्ती ज्यादा दिन निभने वाली नहीं है और बेहतर है कि इस दोस्ती को भूल जाएं.

1. दोस्ती एकतरफा रह गई है

दोस्ती नौर्मल हो, प्लुटोनिक या रोमांटिक, किसी तरह की भी दोस्ती एकतरफा नहीं निभ सकती है. अगर आप का पार्टनर आप की दोस्ती का उत्तर नहीं दे रहा है तो इस का मतलब है कि उस की दिलचस्पी आप में नहीं रही. इस दोस्त को गुड बाय कहें.

2. आप के राज को राज न रखता हो

आप अपने फ्रैंड पर पूरा भरोसा कर उस से सभी बातें शेयर करते हों और उस से यह अपेक्षा करते हों कि वह आप के राज को किसी और को नहीं बताए पर यदि वह आप के राज को राज न रहने दे तो ऐसी दोस्ती से तोबा करें.

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3. विश्वासघात

विश्वास मित्रता का स्तंभ है. कभी दोस्त की छोटीमोटी विश्वासघात की घटनाओं से आप आहत हो सकते हैं पर उसे विश्वास प्राप्त करने का एक और मौका दे सकते हैं. पर यदि वह जानबूझ कर चोरी करे, आप के निकटतम संबंधी या प्रेमी या प्रेमिका के मन में आप के विरुद्ध झूठी बातों से घृणा पैदा करे तो समझ लें अब और नहीं, बस, बहुत हुआ.

4. लंबी जुदाई

कभी आप घनिष्ठ मित्र रहे होंगे. ट्रांसफर या किसी अन्य कारण से आप का दोस्त बहुत दूर चला गया है और संभव है कि आप दोनों में पहले वाली समानता न रही हो. आप के प्रयास के बावजूद आप को समुचित उत्तर न मिले तो समझ लें अब वह आप में दिलचस्पी नहीं रखता है. उसे अलविदा कहने का समय आ गया है.

5. अगर वह आप के न कहने से आक्रामक हो

कभी ऐसा भी मौका आ सकता है जब आप उस की किसी बात या मांग से सहमत न हों और उसे ठुकरा दें. जैसे किसी झूठे मुकदमे में आप को अपने पक्ष से सहमत होने को कहे या झूठी गवाही देने को कहे और आप न कह दें. ऐसे में अगर वह प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से आक्रामक रुख अपनाता है तो समझ लें कि इस दोस्ती से ब्रेक का समय आ गया है.

6. आपसी भावनाओं का सम्मान

मित्रता बनी रहे. इस के लिए जरूरी है कि दोनों भावनाओं का सम्मान करें. अगर आप की भावनाओं का सम्मान दूसरा मित्र न करे या आप की भावनाओं का निरादर कर लोगों के बीच उस का मजाक बनाए या अवांछित सीन पैदा करे तो समझ लें कि अब यह दोस्ती निभने वाली नहीं है.

7. जब आप की चिंता की अनदेखी करे

दोस्ती में जरूरी है कि दोनों एकदूसरे की चिंताओं या समस्याओं के प्रति संवेदनशील हों और उन के समाधान में अपने पार्टनर की सहायता करें. अगर आप की मित्रता में ऐसी बात नहीं है तो फिर यह अच्छा संकेत नहीं है.

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8. आप को नीचा दिखाने की कोशिश न हो 

कभी अन्य लोगों के बीच अगर आप का दोस्त आप को नीचा दिखा कर आप में हीनभावना पैदा करे या करने की कोशिश करे तो यह दोस्त दोस्ती के लायक नहीं रहा.

9. दोस्त से मिल कर कहीं आप नाखुश तो नहीं हैं

अकसर आप दोस्तों से मिल कर खुश होते हैं. अगर किसी दोस्त से मिलने के बाद आप प्रसन्न न हों और बारबार दुखी हो कर लौटते हैं, तो कट इट आउट.

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