एक समय था जब काजल, लिपस्टिक लगा कर महिलाएं अपने हारशृंगार को पूर्ण समझती थीं. लेकिन वक्त के साथसाथ मेकअप के तौरतरीकों में बहुत सारे बदलाव हुए हैं.
रिफ्लैक्शन ब्यूटी क्लीनिक की ओनर एवं ब्यूटीशियन संगीता गुप्ता कहती हैं, ‘‘पहले के समय में मेकअप में वैराइटी की कमी थी, जिस के चलते महिलाएं हर अवसर में एक सी दिखती थीं, लेकिन अब ऐसा नहीं है. इस की एक बड़ी वजह है फैशन इंडस्ट्री में निरंतर हो रहा बदलाव.
अब महिलाओं के परिधानों में जितनी वैराइटीज उपलब्ध हैं, उतनी पहले नहीं थी. पारंपरिक परिधानों के साथ ही अब वैस्टर्न कल्चर से प्रभावित या यों कहिए फ्यूजन ड्रैस का ट्रैंड महिलाओं को लुभा रहा है. यही फ्यूजन फैशन अपने साथ फ्यूजन मेकअप को भी ट्रैंड में लाया है.’’
ब्यूटीशियंस की जबान में इसे इंडोवैस्टर्न मेकअप कहा जाता है. इस मेकअप की खास ट्रिक्स बताने के लिए हाल ही में गृहशोभा की फेब मीटिंग में ब्यूटीशियन संगीता गुप्ता ने शिरकत की और मीटिंग में हिस्सा लेने आईं ब्यूटीशियंस को इंडियन वैस्टर्न फ्यूजन मेकअप की खास बारीकियों के बारे में बताया.
कंसीलर क्यों है जरूरी
क्लीनिंग, टोनिंग और मौइश्चराइजिंग के बाद चेहरे पर प्राइमर लगा कर कई महिलाएं उसी पर बेस लगा लेती हैं. लेकिन संगीता कहती हैं, ‘‘प्राइमर के बाद मेकअप का तीसरा महत्त्वपूर्ण स्टैप होता है कंसीलिंग और जब बात इंडोवैस्टर्न मेकअप की हो, तो कंसीलर लगाना अनिवार्य हो जाता है, क्योंकि कंसीलर 90% चेहरे को कवर कर लेता है. इस की सब से बड़ी खासीयत होती है कि यह चेहरे पर मुंहासों के दाग और गड्ढों को छिपा देता है. साथ ही आंखों के आसपास काले घेरों को भी कवर कर लेता है. कंसीलर लगाने के बाद चेहरे पर इस्तेमाल किए जाने वाले रंग उभरे दिखते हैं. खासतौर पर आईशेड्स का रंग बहुत अच्छा दिखता है.’’
बेस होना चाहिए परफैक्ट
कंसीलर के बाद चौथा स्टैप होता है मेकअप बेस बनाना. यह बेस पर ही निर्भर करता है कि मेकअप कैसा हुआ है और कब तक टिकेगा. कई बार लड़कियां कंसीलर पर ही सीधे कौंपेक्ट पाउडर लगा लेती हैं, लेकिन इस से उन का मेकअप ज्यादा देर नहीं टिक पाता.
संगीता कहती हैं, ‘‘जिस तरह किसी चीज को टिकाने के लिए आधार का होना जरूरी है उसी तरह मेकअप को अधिक समय तक टिकाने के लिए बेस का होना जरूरी है.’’
‘‘कई बार गोरा दिखने के चक्कर में लड़कियां अपनी स्किन टोन से फेयर दिखने वाला बेस लगा लेती हैं. मगर वह नैचुरल नहीं दिखता जबकि इंडोवैस्टर्न मेकअप का पहला नियम है, मेकअप हो भी और दिखे भी नहीं. इसलिए बेज कलर का बेस चुनें. यह इंडियन स्किन टोन के लिए ही होता है. इस के अलावा इस बात का भी ध्यान रखें कि कम से कम बेस चेहरे पर लगाएं और उसे कंसीलर के साथ अच्छी तरह मर्ज करें.
‘‘इस बात को ऐसे समझा जा सकता है कि यदि आप 90% चेहरे को पहले ही कंसीलर से कवर कर चुकी हैं तो केवल 10% हिस्सा ही बेस का होगा. इस के अतिरिक्त चेहरे पर बेस लगाते वक्त देख लें कि कहीं दाना तो नहीं है. यदि है तो उस पर बेस का इस्तेमाल न करें.
‘‘स्किन में 3 रंग होते हैं. लाल, नीला और पीला. इसलिए दाना हो तो उस पर हरे रंग का आईशैडो लगाएं, इस से लाल रंग का दाना छिप जाता है.’’
आई मेकअप का फंडा
आई मेकअप को ले कर लड़कियों, महिलाओं में अलगअलग भ्रांतियां होती हैं. कुछ लड़कियां हर ड्रैस के साथ एक जैसा आई मेकअप कर लेती हैं, जबकि आंखों पर सही मेकअप महिला को आकर्षक लुक दे सकता है.
संगीता के अनुसार, जब बात इंडोवैस्टर्न मेकअप की हो तो आंखों का सही मेकअप बहुत जरूरी हो जाता है. इंडोवैस्टर्न आई मेकअप को कोशिश कर के मैट लुक देना चाहिए और केवल आईबौल्स पर ही मेकअप होना चाहिए.
दरअसल, आजकल की लड़कियों की डिमांड होती है कि मेकअप दिखे भी नहीं और फोटो भी अच्छा आए. इस के लिए आई मेकअप अच्छा होना जरूरी है.
इंडोवैस्टर्न आई मेकअप में काजल का रोल बिलकुल नहीं होता लेकिन आईलाइनर की सही शेप बहुत माने रखती है. इस के साथ ही आईब्रोज डिफाइन करने के बाद ही आई मेकअप पूरा होता है.
लेकिन ध्यान रखने वाली बात यह है कि आईब्रोज नैचुरल लगें. उन्हें हमेशा ब्लैक के साथ ब्राउन कलर मिक्स कर के डिफाइन करना चाहिए. यह उन्हें नैचुरल लुक देता है. इस बात का भी ध्यान रखना जरूरी है कि आईलाइनर हमेशा आईज के आउट कौर्नर से लगाएं, क्योंकि इंडोवैस्टर्न लुक में आउटर पतला और इनर मोटा होता है.
सावधानी से करें लिप मेकअप
आजकल बाजार में लिप मेकअप के ढेरों विकल्प मौजूद हैं. लेकिन किस मकअप के साथ कैसा लिप मेकअप होना चाहिए, यह पता होना बहुत जरूरी है. संगीता के अनुसार जब इंडोवैस्टर्न मेकअप किया जाता है, तो न बहुत हलके रंग की और न बहुत डार्क शेड की लिपस्टिक लगानी चाहिए, बल्कि उस का चुनाव ऐसा होना चाहिए जो ड्रैस को कौंप्लिमैंट करे. लिपस्टिक हमेशा लिप कौर्नर से लगाई जानी चाहिए.
कौंपैक्ट लगाने का सही तरीका
बेस के ऊपर कौंपैक्ट पाउडर लगा कर चेहरे को भी बेहतर लुक दिया जाता है. संगीता कहती हैं, ‘‘बेस के बाद कौंपैक्ट लगाना मेकअप का एक अहम नियम है और इसे सभी जानती हैं. लेकिन इस नियम का सही से पालन कम महिलाएं करती हैं. बेस कितना भी अच्छा क्यों न हो, कौंपैक्ट सही तरीके से न लगाया जाए, तो सारा मेकअप बिगड़ जाता है. कई लड़कियां और महिलाएं कौंपैक्ट को ब्रश में ले कर डायरैक्ट चेहरे पर लगा लेती हैं, जिस से चेहरे पर कहीं कम तो कहीं ज्यादा पाउडर लग जाता है. यदि कौंपैक्ट को हाथ में ले कर ब्रश को उस पर घुमाएं और फिर लगाएं तो इस से पाउडर बेस के साथ अच्छी तरह मर्ज हो जाता है.’’
कंटूरिंग के बिना मेकअप अधूरा
कंटूरिंग यानी काटछांट. दरअसल, पहले के समय में फोटो खींचने के बाद कंप्यूटर पर उसे ऐडिट कर के सही किया जाता था, लेकिन जब से मेकअप में कंटूरिंग तकनीक जुड़ी है तब से मेकअप ऐसा किया जाता है कि चेहरा फोटोजेनिक लगे.
कंटूरिंग के बारे में जानकारी देते हुए संगीता कहती हैं, ‘‘मेकअप में कंटूरिंग का काम चेहरे की बोनस्ट्रक्चर को उभारना होता है. इंडियन ट्रैडिशनल मेकअप में इस बात पर अधिक ध्यान नहीं दिया जाता था, लेकिन अब जब से इंडोवैस्टर्न मेकअप का चलन शुरू हुआ तब से बिना कंटूरिंग के मेकअप अधूरा लगता है.’’
संगीता के मुताबिक कंटूरिंग करते वक्त इन बातों का ध्यान रखें:
– कंटूरिंग चेहरे को 3डी लुक देता है. इसे 2 तरह से किया जाता है. पहली चीकबोन कंटूरिंग होती है और दूसरी डाउनचिक कंटूरिंग. चीकबोन कंटूरिंग गालों पर चढ़े फैट को कम करने के लिए की जाती है और डाउन चिन कंटूरिंग डबल चिन वाली महिलाओं के चेहरे पर की जाती है.
– चीकबोन कंटूरिंग में इयर टु चीक लाइन ड्रा की जाती है और जिन महिलाओं के गाल भारी होते हैं, उन के ऊपर की ओर ब्लैंडिंग होती है और जिन के चिन भारी होते हैं उन की कंटूरिंग अंदर की तरफ की जाती है.
– कंटूरिंग की लाइंस को छिपाने और कट्स को उभारने के लिए बेस का इस्तेमाल एक बार फिर किया जा सकता है.
– जिन की नाक की शेप अच्छी नहीं होती है उन के नोज कंटूरिंग की जाती है. नोज कंटूरिंग में इस बात का खयाल रखना जरूरी है कि यदि सही कंटूरिंग नहीं की गई तो चेहरा मैच्योर लगने लगेगा.