जब विजय ने किसी की बात नहीं मानी, तो दोस्त रमेश को उसे सम झाने की जिम्मेदारी दी गई. रमेश ने उसे बहुत सम झाया, पर वह टस से मस न हुआ.
दरअसल, विजय ने राज्य लोक सेवा आयोग की प्रारंभिक परीक्षा दी थी. उस का नतीजा अभी एक दिन पहले आया था. इस परीक्षा में वह कामयाब रहा था. इस के बाद मुख्य परीक्षा थी.
विजय का मानना था कि उसे परीक्षा के लिए जीजान से तैयारी करनी होगी. अगर वह उस में कामयाब रहा, तो इंटरव्यू में उसे कामयाबी पाने का पूरा यकीन था.
इस तरह विजय डिप्टी कलक्टर बन सकता था. इतने बड़े पद पर पहुंचने का यह मौका वह खोना नहीं चाहता था.
दोस्त रमेश ने सम झाया कि शादी के बाद भी मुख्य परीक्षा की तैयारी आसानी से की जा सकती है. उस की पत्नी के होने से तैयारी में मदद मिलेगी, नुकसान नहीं होगा. पर विजय ने कहा, ‘‘शादी के बाद न चाहते हुए भी मेरा ध्यान बंट जाएगा. हां, मैं तुम्हारी बात मानते हुए इतना कर सकता हूं कि परीक्षा के बाद तक के लिए इस शादी को टाल देता हूं. 3 महीने बाद परीक्षा होगी. परीक्षा के बाद मैं शादी कर लूंगा. तब तक के लिए लड़की वालों को रुकने के लिए कहो.’’
वैसे, उन की जाति में लड़केलड़कियों की शादी जल्दी ही हो जाती थी. विजय और जो लड़की पसंद की गई थी, दोनों की जाति के मुखिया देर होने पर खुसुरफुसुर करने लगे थे.
आखिरकार थक कर लड़की वालों को यह संदेश भिजवाया गया कि शादी को कुछ दिनों के लिए टाल दिया जाए.
लड़की वालों को यह बात बहुत बुरी लगी. उन्होंने शादी की पूरी तैयारी कर ली थी. अब तक बहुत सारे रुपए खर्च हो चुके थे.
लड़की के पिता ने कहा, ‘‘ठीक है, पर जो नुकसान हुआ है, उस की भरपाई लड़के वालों को करनी होगी.’’
लड़की ने जब यह सुना, तो उस ने कहा, ‘‘मु झे ऐसे लोगों से रिश्ता नहीं जोड़ना है, इसलिए लड़के वालों से नुकसान की भरपाई कराइए और मु झे भी कुछ दिनों के लिए यों ही छोड़ दीजिए.’’
विजय के परिवार वालों को लड़की वालों के खर्च में हुए नुकसान की भरपाई करनी पड़ी.
इस शादी से छुटकारा पा कर विजय ने जीजान से परीक्षा की तैयारी की, पर उसे कामयाबी नहीं मिली.
उसी समय प्राथमिक विद्यालय के शिक्षकों की भरती शुरू हुई. हालांकि यह नियमित नौकरी नहीं थी और तनख्वाह बहुत ही कम थी, पर खर्च चलाने के लिए विजय ने इस नौकरी के लिए आवेदन दिया. उस का चयन पास के ही प्रखंड के एक प्राथमिक विद्यालय में हो गया.
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विजय को विद्यालय की वह नौकरी करते हुए तकरीबन डेढ़ साल बीत गए. इस बीच उस ने फिर से राज्य लोक सेवा आयोग की परीक्षा का इश्तिहार देखा. ओबीसी का आरक्षण भी था. उस ने भी इस के लिए आवेदन कर दिया.
पिछली बार विजय परीक्षा में नाकाम रहा था, इसलिए इस बार वह अच्छी तरह तैयारी करना चाहता था.
तभी विजय को उस के साथी शिक्षकों ने बताया कि उसी प्रखंड की बीडीओ यानी प्रखंड विकास पदाधिकारी, जो एक औरत हैं, का चयन पिछली बार के राज्य लोक सेवा आयोग की परीक्षा में हुआ था. अगर वह चाहे तो उन से परीक्षा से संबंधित टिप्स ले सकता है. वे ऐसी पदाधिकारी हैं, जो सब की मदद करती हैं. वे परीक्षा की तैयारी से संबंधित उचित सलाह भी देती हैं.
राज्य लोक सेवा आयोग के नियमों के मुताबिक विजय इस बार की परीक्षा के बाद कभी बैठ नहीं सकता था, क्योंकि अगली बार से उस की उम्र इस परीक्षा के लिए ज्यादा हो जाएगी, इसलिए वह परीक्षा की तैयारी में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहता था. अपने साथी शिक्षकों की सलाह मान कर वह बीडीओ से मिलने पहुंचा.
बीडीओ के चैंबर के बाहर नेमप्लेट को देख कर उसे विश्वास नहीं हुआ, ‘विनिता कुमारी’.
‘कहीं यह वही तो नहीं, जिस से मेरी शादी होने वाली थी? यह भी राज्य लोक सेवा आयोग की परीक्षा में बैठने वाली थी. इस के रिजल्ट के बारे में तो मु झे पता भी नहीं चला था. हो सकता है कि यह कोई और हो,’ इसी तरह सोचते हुए वह चैंबर में दाखिल होने लगा और बोला, ‘‘क्या मैं अंदर आ सकता हूं मैडम?’’
‘‘हां, आइए,’’ अंदर से आवाज आई.
विजय ने देखा, वह विनिता ही थी. दोनों एकदूसरे को देख कर थोड़ी देर के लिए ठिठके, फिर विनिता ने ही हालात को संभालते हुए पूछा, ‘‘बैठिए, यहां कैसे आना हुआ?’’
विनिता को यहां देख कर विजय की हालत काटो तो खून नहीं जैसी हो गई थी. उसे कुछ बोलते नहीं बन रहा था.
उस ने हड़बड़ाते हुए कहा, ‘‘मैं प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी से मिलने आया था, तो सोचा कि नए प्रखंड विकास पदाधिकारी से भी मिल लूं. यहां पर देखा कि आप हैं…’’
‘‘क्या मु झे देख कर आप को अच्छा नहीं लगा?’’ विनिता ने जानबू झ कर पूछा.
‘‘नहीं, ऐसा नहीं है,’’ विजय ने जवाब दिया.
‘‘वैसे, आप का शुक्रिया. अगर आप ने शादी के लिए मना नहीं किया होता, तो मैं भी शायद अपनी शादीशुदा जिंदगी में रम जाती और इस मुकाम को हासिल नहीं कर पाती.
‘‘आप के मना करने के बाद मैं ने अपना ध्यान और समय लोक सेवा आयोग की मुख्य परीक्षा में लगाया और मु झे उस में कामयाबी मिली. इस कामयाबी के बाद मेरा आत्मविश्वास बढ़ा और इंटरव्यू में भी कामयाबी के बाद मेरा चयन इस पद के लिए हो गया,’’ विनिता ने कहा.
‘‘मु झ से गलती हो गई थी,’’ विजय ने शर्मिंदा होते हुए कहा.
‘‘आप भी मुख्य परीक्षा की तैयारी कर रहे थे. क्या हुआ आप का?’’ विनिता ने पूछा.
‘‘मु झे कामयाबी नहीं मिली. उस के बाद मैं ने प्राथमिक शिक्षक भरती के लिए आवेदन किया, जिस में मेरा चयन हो गया और अब मैं इसी प्रखंड के प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक हूं,’’ विजय ने कहा.
‘‘अच्छी बात है. कोई भी पद या काम छोटा या बड़ा नहीं होता. वैसे, मेरे लायक कोई सेवा हो तो बताइएगा. हाल ही में फिर से लोक सेवा आयोग की सिविल सेवा परीक्षा के लिए इश्तिहार निकला था. क्या आप ने फार्म भरा है?’’?विनिता ने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा.
‘‘हां, पर शिक्षक के रूप में नियमित रूप से काम करते हुए इस की तैयारी करना बड़ा मुश्किल होगा. अगले महीने प्रारंभिक परीक्षा है. इस परीक्षा में तो आसानी से कामयाबी मिल जाएगी, पर उस के तकरीबन 2 महीने बाद मुख्य परीक्षा होगी.
‘‘उस के लिए कम से कम 2 महीने की छुट्टी चाहिए. इस के लिए मैं ने आवेदन भी दे दिया है, पर इतनी छुट्टी मिल पाएंगी, इस की उम्मीद कम ही है.’’
‘‘मुझे आप की मदद कर के बहुत खुशी मिलेगी. मैं आप की छुट्टी के लिए प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी से अनुरोध करूंगी. मु झे पूरा भरोसा है कि वे मेरी बात मान लेंगे और आप को 2 महीने की छुट्टी मिल जाएगी,’’ विनिता ने कहा.
विजय को कुछ बोलते नहीं बन रहा था, इसलिए उस ने कहा, ‘‘अगर तैयारी के लिए 2 महीने की छुट्टी मिल गई, तो आप की बड़ी मेहरबानी होगी.’’
‘‘क्यों नहीं, मैं आप के लिए इतना तो कर ही सकती हूं. वैसे भी बहुत एहसान है आप का मु झ पर. मेरा भी तो फर्ज बनता है कि मैं आप के लिए कुछ करूं,’’ विनिता ने कहा.
विजय पहले से ही शर्मिंदगी महसूस कर रहा था. विनिता की इस बात पर उस ने चुप रहना ही बेहतर सम झा. थोड़ी देर चुप रहने के बाद उस ने जाने की इजाजत मांगी.
घर लौटते हुए विजय बहुत पछता रहा था. वह मन ही मन सोच रहा था, ‘काश, मैं ने इस से शादी की होती तो हो सकता है कि मु झे भी कामयाबी मिल जाती. इस लड़की से तो मु झे परीक्षा की तैयारी में मदद ही मिलती. नुकसान तो होता नहीं?’
अब विजय को पिछली कोशिश में कामयाबी न मिलने का उतना अफसोस नहीं था, जितना कि विनिता से शादी नहीं करने के उस के गलत फैसले का था. पर, अब बहुत देर हो चुकी थी. अब आखिरी कोशिश में उसे किसी भी कीमत पर कामयाबी हासिल करनी है.
विनिता ने तैयारी के लिए 2 महीने की छुट्टी दिलाने की सिफारिश करने का भरोसा दिलाया ही है, इसलिए अब उसे पूरे मन से तैयारी में जुट जाना चाहिए.
अगले दिन विद्यालय पहुंचाने पर प्रिंसिपल ने बताया कि बीडीओ साहिबा की सिफारिश पर उस की छुट्टी मंजूर कर ली गई है.
प्रिंसिपल ने फिर कहा, ‘‘सुना है कि आप ने बीडीओ साहिबा पर कभी बहुत एहसान किया था, इसलिए उन्होंने आप की मदद की है. आखिर क्या एहसान किया था आप ने, जरा हमें भी बताइए?’’
विजय ने झेंपते हुए कहा, ‘‘मु झे खुद नहीं पता कि मैं ने कब उन के लिए क्या किया था. अच्छे अफसर ऐसे ही लोगों की मदद किया करते हैं. वैसे, सच पूछा जाए तो एहसान तो उन्होंने मु झ पर अब किया है, जिस का कर्ज चुकाना भी मेरे लिए आसान नहीं होगा.’’
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उसी समय बीडीओ साहिबा का काफिला स्कूल में आया. प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी के साथ स्कूल के निरीक्षण के लिए विनिता वहां पहुंची थीं.
कार से उतरते ही उन्होंने विजय से कहा, ‘‘विजय बाबू, पिछली बार पता नहीं आप ने कैसी कोशिश की थी, पर इस बार आप की कोशिश में कमी नहीं होनी चाहिए. मेरी शुभकामना है कि इस बार आप को कामयाबी जरूर मिले.’’
अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए विनिता बोली, ‘‘जिसे खुद पर भरोसा नहीं होता, वही दूसरों पर भरोसा नहीं कर पाता. जिसे खुद पर भरोसा होता है, उसे अपने साथियों पर भी भरोसा होता है. ऐसे लोग नए साथियों को पा कर जोश से भर जाते हैं. उन के लिए कामयाबी की राह और आसान हो जाती है, इसलिए सब से पहले खुद पर भरोसा करना ज्यादा जरूरी है. इस से कोई भी राह आसान हो जाती है.
‘‘पिछली बार शायद आप को अपनेआप पर भरोसा नहीं था, इसलिए आप को कामयाबी नहीं मिली. अगर आप को कामयाबी मिल जाएगी, तो आप ने जो मु झ पर एहसान किया है, उस का भी कर्ज चुक जाएगा, इसलिए मैं ने आप पर भरोसा कर के आप को छुट्टी दिलवाने में मदद की है. इस बार यह भरोसा मत तोड़ दीजिएगा.’’
विजय ने कहा, ‘‘सम झदार लोग एक बार गलती करते हैं, बारबार नहीं.’’
विजय ने अगले 2 महीने की छुट्टी का फायदा उठा कर खूब तैयारी की. इस तैयारी का उसे फल भी मिला. उस ने मुख्य परीक्षा व इंटरव्यू में भी कामयाबी हासिल की और उस का चयन प्रशासनिक सेवा के लिए हो गया.
विजय इस खबर को सुनाने के लिए सब से पहले विनिता के पास पहुंचा. उस के चैंबर में पहुंच कर विजय ने कहा, ‘‘मेरा चयन प्रशासनिक सेवा के लिए हो गया है. इस में आप की मदद का भी अच्छा योगदान है. अगर आप ने छुट्टी दिलाने में मदद नहीं की होती तो मु झे यह कामयाबी नहीं मिलती.’’
‘‘बहुतबहुत बधाई. वैसे, मैं ने आप की कोई मदद नहीं की. मैं ने पहले भी आप से कहा है कि आप के एहसान का कर्ज चुकाया है.
‘‘जरा सोचिए, अगर आप ने शादी के लिए मना नहीं किया होता और मेरी शादी आप के साथ हो गई होती, तो क्या होता. शादीशुदा लड़की के लिए अभी भी किसी प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी करना बड़ा मुश्किल होता है. परिवार की जिम्मेदारियों के बाद उस के पास खुद के लिए भी समय नहीं बचता है.
‘‘लेकिन, ऐसा मर्दों के साथ नहीं होता. वे सारी जिम्मेदारियों से मुक्त हो कर केवल परीक्षा पर अपना ध्यान दे कर तैयारी कर सकते हैं. घर में किसी ने खाना खाया है या नहीं, घर की सफाई हुई है या नहीं, इन सब बातों से उन्हें कोई लेनादेना नहीं होता.
‘‘इस तरह की जिम्मेदारियां औरतों को उठानी पड़ती हैं और मेरी शादी हो गई होती, तो शायद मु झे भी तैयारी के लिए कम समय मिलता. और मैं आज इस पद पर नहीं पहुंच पाती, इसलिए मु झे लगा था कि जो हुआ अच्छा ही हुआ और आप के द्वारा शादी के लिए मना करने को मैं ने आप का मु झ पर एक एहसान ही माना. अब आप को कामयाबी मिल चुकी है. अब मु झे भी सुकून मिला.’’
विजय ने कहा, ‘‘इस तरह मत कहिए. मैं ने जो गलती की थी, उसे अब मैं सुधारना चाहता हूं. अगर आप को बुरा न लगे तो मु झ से शादी कर मेरी पिछली गलती को सुधारने का मौका देने की कृपा करें.’’
‘‘नहीं, कभी नहीं…’’ विनिता ने रूखे लहजे में जवाब दिया, ‘‘आप ने कैसे सोच लिया कि मैं आप से शादी करने के लिए तैयार हो जाऊंगी.
‘‘आप को याद होगा कि सगाई के बाद आप ने शादी के लिए मना किया था. एक बार जिस ने मना किया था, उसी से शादी कर के मैं अपने स्वाभिमान के साथ खिलवाड़ नहीं कर सकती. आप के एहसान का कर्ज चुका दिया. अब आप जा सकते हैं.’’
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विजय चुपचाप नजरें झुकाए विनिता के चैंबर से बाहर निकल गया. उसे यह उम्मीद नहीं थी कि कामयाबी हासिल करने के बाद भी इस तरह से उसे दुत्कार दिया जाएगा. उस के लिए यह किसी सजा से कम नहीं थी. पर उसे यह भी एहसास हो गया कि उस ने जो गलती की थी, उस के बदले यह सजा कम ही थी.