दिल्ली में अगर पारा 40 डिग्री सेल्सियस से ऊपर चला जाए हर तरफ गर्मी पर ही चर्चा होने लगती है. मुंबई में यही बात पारे के 38-39 डिग्री के पार पहुंच जाने पर शुरु हो जाती है. जबकि राजस्थान मंे चुरु, टोंक, जैसलमेर, महाराष्ट्र में औरंगाबाद, नागपुर, उत्तर प्रदेश में महोबा, बांदा, इलाहाबाद आदि में गर्मी पर हर तरफ चिंता और चर्चा पारे के 41-42 डिग्री ऊपर जाने पर होती है. लेकिन क्या आपको लगता है इन अलग अलग जगहों पर लोगों की गर्मी बर्दाश्त करने की क्षमताएं बस इतनी ही होंगी? जी नहीं, इस मामले में इंसान किसी पहेली से कम नहीं है.
मानव शरीर का सामान्य तापमान 37.5 से 38.3 डिग्री सेल्सियस या 98.4 डिग्री फाॅरेनहाइट होता है. ऐसे में इससे ज्यादा तापमान होने पर हमें बेचैनी महसूस होना स्वभाविक है. लेकिन हम इंसानों में ही नहीं बल्कि गर्म रक्त वाले सभी स्तनधारियों में थर्मोरेग्युलेट की खूबी होती है. कहने का मतलब यह कि गर्म रक्त वाले स्तनधारी जिसमें इंसान भी है, अपने शरीर का तापमान खुद ही नियंत्रित कर सकते हैं. शायद यही वजह है कि कम से कम इंसान को गर्मी सहन करने के मामले में किसी पहेली से कम नहीं है. जी हां, भले हम 40 डिग्री सेल्सियस तापमान पर बेचैनी महसूस करने लगें, लेकिन अगर जिंदा रहने की शर्त पर गर्मी बर्दाश्त करने की बात हो तो हम 55-60 डिग्री सेल्सियस तापमान तक में भी जिंदा रहेंगे. सवाल है आखिर हमारा शरीर यह सब करता कैसे है?
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यह चमत्कार हमारे शरीर की एक प्रक्रिया में छिपा है. वास्तव में हमारा शरीर बाहर के तापमान को ग्रहण ही नहीं करता. इसके लिए यह कई तरह की तरकीबों का इस्तेमाल करता है. इनमें सबसे कारगर है- शरीर से निकलने वाला पसीना. जैसे ही हम अपने शरीर के तापमान से ज्यादा तापमान के संपर्क मंे आते हंै, वैसे ही हमारे शरीर की पसीना पैदा करने वाली श्वेद ग्रंथियां सक्रिय हो जाती हैं और शरीर से ढेर सारा पसीना बहा देती हैं. पसीने के रूप मंे हमारे शरीर से निकला यही पानी हमारी त्वचा में कब्जा जमाने की कोशिश कर रही गर्मी को हजम कर जाता है. इससे हमारे शरीर का तापमान घटकर उतना ही हो जाता है, जितना कि वह हमारे लिए सहजता से सहनीय होता है. यह इसलिए संभव हो पाता है, क्योंकि हमारे शरीर की संरचना में 70 फीसदी तक पानी होता है. इसीलिए पानी को जीवन का आधार कहते हैं. शरीर का यह पानी हमें सिर्फ गर्मी से ही नहीं बल्कि कई तरह की आपातकालीन परेशानियों से भी बचाता है.
लेकिन इस बचाव की एक सीमा है. अचानक गर्मी पैदा होने पर शरीर से निकला पसीना हमारे शरीर का तापमान अनुकूल स्तर पर ला तो देता है, लेकिन अगर लगातार गर्मी बनी रही और पसीने के रूप मंे शरीर का पानी बहुत तेजी से बहता रहा तो जल्द ही हमें पानी की कमी की समस्या का सामना करना पड़ सकता है. शरीर से निकलने वाला यह पानी इसलिए परेशान करता है, क्योंकि इसके साथ शरीर का नमक भी बाहर चला जाता है. मतलब यह कि गर्मी के आपातकालीन हमले से तो पसीना बचा लेता है, लेकिन अगर लगातार गर्मी बनी रही तो हमें शरीर में जरूरी पानी बनाये रखना जरूरी हो जाता है. लेकिन इस पसीने के मैकेनिज्म की भी दो शर्ते हैं. यह पसीना हमारे शरीर को बहुत ज्यादा गर्म होने से तभी बचा सकता है, जब शरीर सीधे गर्मी के स्रोत की जद में न आए और दूसरा यह कि वातावरण की हवा पूरी तरह से खुश्क हो यानी हवा में नमी न हो.
अगर हवा में नमी होगी तो हमें पसीना भी देर तक गर्मी से नहीं बचा पाता. यह अकारण नहीं है कि मई-जून के मुकाबले हमें बारिश के दिनों यानी जुलाई-अगस्त में कहीं ज्यादा गर्मी लगती है. उसका कारण यही है कि तब हवा में नमी मौजूद होती है. गर्मी में जब हम बढ़ते तापमान से बेचैन होते हैं, तो हमारा शरीर पसीना बहाकर हमें तत्काल राहत तो प्रदान कर देता है, लेकिन अगर हम काफी देर तक इसी के भरोसे रहे और शरीर का पानी कम हो गया तो कई तरह की परेशानियां पैदा हो जाती हैं. मसलन- सिरदर्द हो जाता है, चक्कर आने लगते हैं, कई बार आदमी बेहोश हो जाता है और यह सब इसलिए होता है क्योंकि शरीर से ज्यादा पानी निकल चुका होता है. शरीर में पानी की कमी अगर काफी देर तक बनी रही तो इससे सांस लेने की पूरी प्रक्रिया प्रभावित होती है. खून के बहाव में भी इससे फर्क आता है. खून के फ्लो में कमी आ जाती है. जिस कारण दिल और फेफड़ों पर ज्यादा दबाव बनता है.
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इसलिए हमारा शरीर अचानक पैदा हुई गर्मी का मुकाबला तो कर लेता है, लेकिन स्थायी रूप से गर्मी से बचने के लिए हमंे कई उपाय आजमाने पड़ते हैं, वरना मौत तक हो जाती है. साल 2019 में केरल एक्सप्रेस में बैठे हुए 4 वरिष्ठ यात्रियों की झांसी के पास उस समय मौत हो गई थी, जब वातावरण में तापमान शरीर की सहने की क्षमता से कहीं ज्यादा था. इसलिए हमें गर्मी से बचाव की एक पूरी व्यवस्था बनानी पड़ती है. चाहे वह आधुनिक विद्युतीय व्यवस्था हो यानी एसी और कूलर या फिर खानपान और शरीर को ढके रखकर किसी भी तरीके से बाहरी उपायों से तापमान कम करने की प्रक्रिया. मतलब इंसान के शरीर के पास यह जादू तो है कि वह भयानक गर्मी से भी मुकाबला कर ले, लेकिन लगातार ऐसी स्थिति से पार नहीं पाया जा सकता.