लेखक- वीरेंद्र बहादुर सिंह
आज के युग में एक ओर जहां मातृत्व की जिम्मेदारी बढ़ती जा रही है, वहीं दूसरी ओर मम्मियों में भी अनेक प्रकार देखने को मिलने लगे हैं. हर मम्मी अपने काम, स्वभाव, अगलबगल के वातावरण, बच्चों के व्यक्तित्व और अपनी क्षमता तथा रुचि के अनुसार अपने बच्चे को पालती है. हर मम्मी की अलग स्टाइल होती है, अलग विशेषता और अलग पर्सनैलिटी होती है.
मम्मियों के व्यक्तित्व के आधार पर बनीं मम्मियों की कैटेगरियों को आप भी जानिए.
हैलिकौप्टर मौम
हमेशा बच्चों के अगलबगल घूमने वाली मम्मी यानी हैलिकौप्टर मौम. बच्चे खेल रहे हों, होमवर्क कर रहे हों, सो रहे हों या टीवी देख रहे हों, इस तरह की मम्मियां उन के अगलबगल हैलिकौप्टर की तरह मंडराती रहती हैं. इस तरह की मम्मियों को न बच्चों पर भरोसा होता है और न अगलबगल के लोगों पर. ये अधिक से अधिक चिंता और निगरानी का बोझ लिए बच्चों को अपनी नजरों दूर नहीं होने देना चाहतीं. किचन से ये बच्चों के कमरे में चार बार चक्कर मारेंगी.
खास उम्र तक बच्चों के आगेपीछे रहने से बच्चा कुछ गलत करने या असुरक्षा से बच सकता है, पर बड़े होने पर हैलिकौप्टर मौम के बच्चे डरपोक हो सकते हैं. उन की निर्णय लेने की क्षमता विकसित नहीं हो सकती. उन्हें हमेशा मम्मी के अटेंशन की आदत पड़ जाती है. लंबे समय तक मम्मी का व्यक्तित्व भी तनावग्रस्त बन सकता है. ऐसी मम्मियों के बैलेंस्ड व्यवहार के लिए बच्चों को रास्ता खोजना चाहिए.
ये भी पढ़ें- बच्चों का खेल नहीं पेरैंटिंग
फ्रीस्टाइल मौम
कुछ मम्मियां स्वतंत्र और आधुनिक विचारों वाली होती हैं. ऐसी मम्मियों को ही फ्रीस्टाइल मौम कहते हैं. ये अपने बच्चे को भूल करने, सीखने और मनपसंद काम करने आदि सब तरह की स्वतंत्रता देती हैं. बच्चों को अधिक रोकटोक करने में ये विश्वास नहीं करतीं. बेशक, इस तरह की मम्मियां सभी को पसंद आएंगी. फ्रीस्टाइल मौम के बच्चे कौन्फिडैंट और डिसीजन पावर की क्षमता रखते हैं, परंतु अगर इन में सहीगलत का विवेक न हो तो ये गलत रास्ते पर जा भी सकते हैं. जब तक बच्चे में समझ न आ जाए, तब तक मम्मी का मार्गदर्शन आवश्यक है. कभीकभी बच्चे मिलने वाली छूट का दुरुपयोग करते हैं. इसलिए, बच्चे की मैच्योरिटी, मिजाज और समझ के आधार पर कितनी छूट देनी है, यह तय करना चाहिए.
कौम्पिटेटिव मौम
ऐसी मम्मियों को हर मामले में प्रतियोगिता दिखाई देती है. दुख की बात यह है कि ये बच्चों को प्रतियोगिता का घोड़ा बना देती हैं. अगर किसी मौम ने कह दिया कि ‘मेरा बेटा तो 4 घंटे पढ़ता है’ तो कौम्पिटेटिव मौम अपने बच्चे को 6 घंटे पढ़ने के लिए कहेंगी. फ्रैंड का बच्चा म्यूजिक में जाता है तो अगर उन के बच्चे को खेल में रुचि होगी, तब भी वे उसे म्यूजिक क्लास में ही भेजेंगी. यही नहीं, ये बच्चे के फ्रैंड की मम्मी के साथ भी कौम्पिटीशन में उतर आती हैं. इन्हें दूसरों की अपेक्षा अधिक चाहिए. ऐसी मम्मियां 80 प्रतिशत मामलों में बच्चे का नुकसान करती हैं और खुद दुखी होती हैं.
टायर्ड मौम
ऐसी मम्मियां चौबीसों घंटे थकी दिखाई देती हैं. इन्हें बोलनेचालने और बच्चों को खेलाने में भी थकान लगती है. इन्हें कभी पूरी नींद नहीं मिलती, पूरा समय नहीं मिलता, सिर या पेट दर्द की हमेशा शिकायत रहती है. ऐसी मम्मियों के बच्चे भी हमेशा निस्तेज दिखाई देते हैं, क्योंकि हमेशा थकानऊब की शिकायत से वातावरण की ताजगी गायब हो जाती है. आज की महिलाओं के एकसाथ अनेक मोरचों पर लड़ने की वजह से कभीकभी यह शिकायत सच हो सकती है, पर इस का हल निकालने के बजाय रोते रहने से कोई फायदा नहीं है. टायर्ड मौम बच्चों को भी मानसिक रूप से थका देती हैं.
हौट मेस मौम
हौट मेस मौम यानी बच्चों के पास आने वाला मानवरूपी तूफान. ये हमेशा लेट होती हैं. कहीं जाना होगा तो बच्चों और खुद की ड्रैसिंग के बारे में तय नहीं कर पातीं. जहां जाना होगा वहां के पूरे पते की जानकारी नहीं होगी. इन के बच्चे खुद ही बड़े हो जाते हैं. दुनिया भले ऊंचीनीची हो जाए पर इन के पेट का पानी नहीं हिलता. ऐसी मम्मियों के बच्चे समय के महत्त्व, शिष्टता और जिम्मेदारी सीखने में असफल साबित होते हैं.
परफैक्ट मौम
मम्मी का यह रूप आदर्शवादी माना जाता है. जबकि, ऐसी मम्मियों की मात्रा मात्र 10 प्रतिशत है. ये मम्मियां सौ प्रतिशत अपने मातृत्व के प्रति समर्पित होती हैं. इतना ही नहीं, ये अपनी पत्नी या कैरियर वुमन के रूप में भी अपनी भूमिका बखूबी निभाती हैं. ये अपने और अपने बच्चे के शारीरिक तथा मानसिक विकास के लिए हर जरूरी बात का ध्यान रखती हैं. ऐसी मम्मियों से ज्यादातर बच्चे खुश रहते हैं. ये कभीकभी अधिक सख्त हो कर बच्चों को परिणाम तक ले जाती हैं. परंतु हर समय सख्ती जरूरी है, यह कहना जरा मुश्किल है.
सुपीरियर मौम
ऐसी मम्मियों का सोचना होता है कि वे अपने बच्चे के लिए सबकुछ अच्छा करें. बच्चे का रत्तीभर नुकसान न हो, इस के लिए बच्चे की अधिक से अधिक देखभाल कर के खुद सुपीरियर होना चाहती हैं. जैसे, बच्चों को उबला पानी ही पिलाना, और्गेनिक फूड की व्यवस्था करना, बाहर का बिलकुल न खाने देना, दिन में कई बार हाथ धुलवाना, स्कूलबैग अपनी जगह पर रखवाना और कपड़े में एक भी दाग न लगने देना आदि. ये सभी बातें वैसे तो बच्चे के लिए अच्छी हैं, परंतु ये बच्चे को अन्य बच्चों से दूर ले जाती हैं. बच्चा हर जगह एडजस्ट नहीं हो सकता. अगर कभी उसे बंधन तोड़ने का मन हुआ तो वह झूठ बोल कर चिप्स खाएगा. कपड़े पर दाग न लग जाए, इसलिए डरडर कर खाएगा. बच्चों में अच्छी आदतें दूसरों को देख कर और समझ से आती हैं, लादने से नहीं. ऐसे में बच्चे को बच्चा बन कर जीने देने में ही मजा है.
किडी मौम
इस तरह की मम्मियां एकदम बच्चों जैसा व्यवहार करती हैं. बच्चों के साथ बच्चा बन कर रहती हैं. वे मां हैं, यह बात वे भूल जाती हैं. अगर किडी मौम और बच्चा, दोनों पार्क में झूला झूल रहे हैं तो ये बच्चे से अधिक तेज झूलेंगी. बच्चों की तरह शोर भी करेंगी. बच्चों के साथ उसी की भाषा में बात करेंगी और बच्चों के दोस्त की तरह उस की बातें भी शेयर करेंगी. देखा जाए तो इस में कुछ गलत भी नहीं है. पर मां और बच्चे के बीच जो मानसम्मान या छोटीबड़ी मर्यादा होती है, वह नहीं रह जाती. बच्चे को सिखाने जैसा लाइफ का लेसन नहीं सिखाया जा सकता.
ये भी पढ़ें- पति जब मां मां करे, तो क्या करें पत्नियां
टैक्नो मौम
ये मम्मियां अनुभव या परिवार में लोगों की सलाह के बदले बच्चे की देखभाल के लिए इंटरनैट को गुरु मानती हैं. बच्चे को सर्दी होगी, तो ये नैट से सर्दी का इतिहासभूगोल दोनों जान लेंगी. बच्चे के रोजरोज के फोटो ये सोशल मीडिया पर अपडेट करती रहेंगी. खिलौनेकपड़े आदि की पसंद भी नैट द्वारा ही करेंगी. बाहर जाएंगी, तब भी बच्चे से कनैक्ट रहेंगी. यूट्यूब से स्टोरी और पोएम सुनाएंगी. ठीक है, टैक्नोलौजी का उपयोग गलत नहीं है, परंतु ऐसा न हो कि बच्चे के साथ बिताने वाला समय मोबाइल और इंटरनैट सर्फिंग में चला जाए. मां की इस आदत से बच्चे भी टैक्नोलौजी पर डिपैंड हो जाएंगे. वास्तव में बचपन में मां कहानी कहे, लोरी गाए और शाम को घुमाने ले जाए, यह ज्यादा अच्छा लगता है.
करियर ओरिऐंटेड मौम
ऐसी मम्मियों को बच्चों से ज्यादा अपने कैरियर की चिंता रहती है. ये बच्चों को आया या किसी अन्य केयरटेकर के भरोसे छोड़ कर आराम से अपना समय, नौकरी या बिजनैस में बिता सकती हैं. ये बच्चों को अच्छा स्कूल, सुखसुविधा या व्यवस्था दे सकती हैं, मात्र समय नहीं दे सकतीं. ये बच्चे की खुशी के साथ समझौता कर सकती हैं, पर अपने काम के साथ नहीं.
बौसी मौम
ऐसी मम्मियों को पूरा दिन हुक्म चलाना अच्छा लगता है. वे कहें नहीं कि बच्चे उन की बात सुन कर उस पर अमल करें, इस तरह की इन की मानसिकता होती है. ये कोई दलील या न सुनना पसंद नहीं करतीं. ऐसी मम्मियों से बच्चे दूर भागते हैं और इन की बौन्डिंग कच्ची रहती है. बच्चों को हमेशा डर रहता है कि मम्मी अभी कुछ कहेंगी, खेलने के लिए या पढ़ने के लिए उठाएंगी वगैरहवगैरह.
मनुष्य के स्वभाव के अनुसार मम्मियों का वर्गीक्रण किया गया है. सोचिए, इन में आप किस तरह की हैं.