रेटिंग: तीन स्टार
निर्माताः जामिल फिल्मस
लेखक व निर्देशकः निखिल राव
कलाकारःअक्षय ओबेराय, रणवीर शोरी, प्रकाश बेलावड़े, श्वेता बसु प्रसाद.
अवधिः 5 घंटे 38 मिनट, एक एपीसोड 28 मिनट, बाकी 38 से 40 मिनट के कुल, नौ एपीसोड
ओटीटी प्लेटफार्मः एमएक्स प्लेअर
बौलीवुड में ड्ग्स को लेकर बवाल मचा हुआ है. जिसके चलते पूरे देश में ड्ग्स की ही चर्चा हो रही है. ऐसे ही वक्त में ओटीटी प्लेटफार्म ‘एम एक्स प्लेअर’ निखिल राव निर्देशित क्राइम थ्रिलर वेब सीरीज ‘‘हाई’’ लेकर आया है, जिसे सात अक्टूबर से ‘‘एम एक्स प्लेअर’’ पर देखा जा सकता है. वेब सीरीज की कहानी ड्ग्स के चलते खोखला हो रही युवा पीढ़ी की बात करते हुए ऐसी दवा की बात करती है, जो कि इन सबको ड्ग्स की लत से छुटकारा दिलाकर इनका जीवन संवार सकती है. मगर यह बात कुछ दवा निर्माण करने वाली कंपनियों को नही सुहाता है.
कहानीः
शिव माथुर(अक्षय ओबेराय)बुरी तरह से ड्ग्स की लत का शिकार है. वह वेश्या से लेकर डांस बार में भी जाता है, पर हर जगह सिर्फ ड्ग्स ही लेता रहता है. एक दिन जब अपने कालेज के कुछ दोस्तों के कहने पर एक डांस बार में जाता है, तो वहां पर उसके साथ हादसा हो जाता है. उसके दोस्त पुलिस तक बात पहुंचने नही देते हैं और उसे एक तड़ेगांव के जंगलो के बीच बने रिहायबिलेशन सेंटर/पुनर्वसन केंद्र में भिजवा देते हैं. इस गुप्त रिहायबिलेशन सेंटर /पुनर्वसन केंद्र में शिव माथुर का इलाज डॉ राय(प्रकाश बेलावड़े) अपनी टीम डॉ. नकुल(नकुल भल्ला) व डॉ. श्वेता देसाई (श्वेता बसु प्रसाद)की मदद से करते है. शिव माथुर हर किसी से पावडर /ड्ग्स की मांग करता रहता है, जिसके चलते एक दिन श्वेता अपनी ही लैब मंे बनी हरे रंग के ‘मैजिक’ कैपसूल का पावडर उसे देती है, जिसके बाद शिव माथुर की जिंदगी बदल जाती है. वह खुद को स्वस्थ महसूस करता है. अब वह जानना चाहता है कि उसे क्या दिया गया?पर कोई उसे कुछ बताना नही चाहता. अचानक डॉ. राय को नोटिस मिलती है कि जहां पर रिहायबिलेशन सेंटर है, उस पर बैंक का कर्ज बढ़कर 27 करोड़ हो गया है. तीन माह का वक्त है अन्यथा उनकी इस 65 करोड़ की जमीन पर बैंक का कब्जा हो जाएगा. ऐसे वक्त में शिव माथ्ुार उन्हे सलाह देता है कि वह ‘मैजिक’को मंुबई में बड़े स्तर पर बेंचकर 27 करोड़ रूपए इकट्ठा करेंगे और फिर यह फार्मुला वह वेब साइट पर डाल देंगे. इस तरह उनका रिहायबिलेशन सेंटर बंद नही होगा. पर समस्या यह है कि ‘मैजिक’ को कानूनी मान्यता नही मिली है. वास्तव में यह हरे रंग का पीला कैप्सुल नामक ड्ग ‘‘मरीथिमा नेफ्रूलिया’’ नामक पौधे से बनायी जाती है, जो कि हानिप्रद नही है. इससे हर इंसान स्वस्थ हो जाता है. ऐसे में कुछ दवा कंपनियों ने साजिश रचकर सरकार से इस पौध व इससे बनने वाली दवा को ही गैर कानूनी घोषित करवा रखा है. ऐसे में शिव माथुर अपने दोस्त डीजे(मंत्र मुग्धा) व हाई सोसायटी में ड्ग पहुंचाने वाले की मदद लेते हैं. देखते ही देखते सभी ड्ग पैडलर ‘मैजिक’ बेचने लगते हैं. जिसके चलते गुलाम रसूल और मुन्ना भाई(मधुर मित्तल) का ड्ग्स बिकना बंद हो जाता है, तो यह सभी ‘मैजिक’ बनाने वाले की तलाश में जुट जाते हैं. जिसके चलते कई हत्याएं होती हैं. गैंगवार छिड़ जाता है.
दूसरी तरफ दवा निर्माण कंपनी ‘‘डयानोफार्मा’’ की सीईओ अपने महत्वाकांक्षी प्रतिनिधि व जासूस लाकड़ा(रणवीर शौरी) को भी ‘मैजिक’ वालों की तलाष कर उनकी हत्या करने की सुपारी दे देती है.
तो वहीं एक महत्वाकांक्षी टीवी चैनल पत्रकार आषिमा(मृणमयी गोड़बोले) हैं, जो कि सिगरेट व शराब का सेवन करने के साथ साथ चैनल के अपने बौस राणा का बिस्तर भी गर्म करती रहती है. पर अचानक उसे भी बहुत बडा बनने का भूत सवार होता है. राणा कहता है कि वह कोई बहुत बड़ी खबर लेकर आए, तो चैनल के मालिक तेजपाल उसे संपादक बना देंगे. तभी आशिमा को ‘मैजिक’ के बारे में रक्षित से पता चलता है कि यह ड्ग तो हर नशेड़ी की लत छुड़ा रही है. वह कइयों के इंटरव्यू करने के बाद मैजिक की सच्चाई जानने के लिए नक्सलवादी करार दिए गए अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त वैज्ञानिक डॉ. राव (वीरेंद्र सक्सेना) से मिलकर उनका इंटरव्यू लेती है, जो कि ‘मैजिक’को पौधे से बनायी गयी स्वास्थ्य के हित वाली ड्गवा बताते हैं. मगर राण इसे चैनल पर प्रसारित करने से इंकार कर देता है कि चैनल तो सरकार के साथ है, ऐसे में वह नक्सली करार दिए गए वैज्ञानिक का इंटरव्यू नही प्रसारित कर सकते. तब आशिमा इसे अपने ब्लाॅग पर डाल देती है, उसके बाद पुलिस, आषिमा पर ही ड्ग बेचने का आरोप लगा देती है.
लेखन व निर्देशनः
जब मसला ड्ग्स का हो तों ड्ग्स की वजह से नषेड़ी युवा पीढ़ी और उनके परिवारों को जिन मुसीबतों का त्वरित रूप से सामना करना पड़ता है, उसका जिक्र होना स्वाभाविक है. गंदी गालियों की बौछार भी है. पत्रकार आशिमा भी गाली गलौज करती है. इसमें बहुत कुछ फिल्मी है. ड्ग्स की लत के शिकार लोगों के हालात पर ज्यादा रोशनी नही डाली गयी है. इस पर एक बेहतरीन कसी हुई वेब सीरीज बन सकती थी, मगर फिल्मकार ने बेवजह तमाम किरदारों के साथ कैनवास बढ़ाकर लंबा खींचा है. निर्देशन कसा हुआ है, मगर पटकथा लेखन में कमियंा है. इसकी गति काफी धीमी है. दर्शक के लिए चालिस चालिस मिनट के लंबे एपीसोड देखना आसान नही होगा. शुरूआती तीन एपीसोड बहुत सुस्त है. डॉन व उसके द्वारा दी जाने वाली यातनाएं हजारों फिल्मों में लोग देख चुके हैं. वेब सीरीज नेक मकसद से बनायी गयी है, मगर इसमें कई खामियां हैं. फिल्मकार इस बात के लिए बधाई के पात्र हैं कि उन्होने इस वेब सीरीज में इस मुद्दे को बेहतर तरीके से उठाया है कि बड़ी बड़ी दवा निर्माण करने वाली फार्मा कंपनियां अपने फायदे के लिए किस तरह आम इंसान के जीवन के साथ खिलवाड़ करती रहती हैं और इसमंे राजनेताआंे की भी मिली भगत रहती है. यह वेब सीरीज इस बात को भी रेखांकित करती है कि देश में उपलब्ध प्राकृतिक जड़ी बूटी, पेड़ पौधों को अपनी दुकान चलाने वाले आधुनिक विज्ञान के नाम पर किस तरह से खारिज करने के षडयंत्र रचते रहते हैं. फिल्मकार ने समाचार चैनलों के अंदर की गंदगी पर भी रोशनी डाली है.
अभिनयः
शिव माथुर के किरदार में अक्षय ओबेराय ने शानदार परफार्मेंस देकर साबित किया है कि उनकी प्रतिभा को अब तक बौलीवुड में अनदेखा किया जाता रहा है. रणवीर शोरी को पहली बार पूरी फूर्ति के साथ परदे पर खेलने वाला किरदार मिला है. प्रकाश बेलावड़े, नकुल भल्ला, श्वेता बसु प्रसाद, मृणमयी गोड़बोले ने भी अपने अपने किरदारों को ठीक से निभाया है. डॉ. राव के छोटे से किरदार में भी वीरेंद्र सक्सेना अपनी छाप छोड़ जाते हैं.