यह कैसी मानसिकता

हिंदू मानसिकता एक तरह से इसलामी मानसिकता की तरह  है और जो ट्रीटमैंट हिंदू कट्टरपंथी ट्रोल अंतर्राष्ट्रीय गायिका रिहाना और टीनएजर क्लाईमेट ऐक्टीविस्ट ग्रेटा गनबर्ग को दे रहे हैं कि वह औरत है, चुप रहे. वैसे ही इसलामी देश तुर्की के राष्ट्रपति रेचप तैयप एरडोगान कर रहे हैं.

एक ऐक्टीविस्ट आयसे बुगरा के एरडोगान का नाम न ले कर पति के नाम से जोड़ कर संबोधित करते हैं और खिंचाई करते हैं ताकि अपने मोदीनुमा कट्टरनुमा समर्थकों को समझा सकें कि औरतों की जगह पिता या पति के कारण ही होती है. आयसे बुगरा तुर्की में प्रोफैसर हैं और विद्वान हैं पर ऐक्टीविस्ट एरडोगान के लिए वैसे ही सिर्फ पति की संपत्ति है जैसे भगवा गैंग के अनुसार सोनिया गांधी बार डांसर हैं.

औरतों के प्रति अपमानजनक सोच घरघर में मौजूद है और यह उन के व्यक्तित्व का कचूमर निकाल देती है. थोड़े दिनों में शादी हो जाती है, जहां पति के चरण धो कर गंदा पानी पीने को अमृत पीना कहा जाए वह याद नहीं होगा तो क्या होगा.

ये भी पढ़ें- Women’s Day पर क्या कहना चाह रही हैं शेफ मधुरा मंगेश बाचल

3 तलाक पर होहल्ला मचाने वाली भारतीय जनता पार्टी ने 2014 के बाद हिंदू औरतों के सुधारों के लिए एक कदम नहीं उठाया है. उन्हें नौकरियां नहीं दी हैं. उन्हें पिता या पति की संपत्ति पर अधिक हक नहीं दिलाया है. वे कम आय कर या संपत्ति कर दें, ऐसा कोई सुधार नहीं पेश किया है. वे पढ़लिख कर खुली सोच वाली बनें ऐसा कोई प्रयास नहीं किया है.

किसान आंदोलन में भाग लेने वाली औरतों को बारबार हट जाने को कहा जा रहा है, क्योंकि आज की कट्टर संस्कृति के रखवाले नहीं चाहते कि वे पुरुषों के बराबर कंधे से कंधा मिला कर चलें. नागरिक संशोधन कानून का विरोध करने के लिए दिल्ली के शाहीनबाग में बैठी दादियों के बारे में सरकार को चिंता यही थी कि कहीं यही औरतें राजनीतिक सत्ता में हिस्सा न मांगने लग जाएं.

औरतों को गुलाम रखने का प्रयास काफी सुनियोजित है. सैकड़ों कथाएं लिखी गई हैं और बारबार दोहराई गई हैं, जिन में औरतें का चरित्र एक से ज्यादा नहीं होता. मशहूर फिल्म ‘शोले’ के 2 महत्त्वपूर्ण पात्र जया भादुड़ी और हेमामालिनी दोनों को बेचारी दिखाया गया है. एक विधवा है, जो एक पुरुष पर मोहित है पर प्रेम प्रकट नहीं कर पाती, दूसरी तांगे वाली है पर उसे बातूनी दिखा कर व उस का चरित्र नाचने वाली का दिखा कर पुरुष सेविका तक सीमित कर दिया गया.

कमला हैरिस ने अपने बलबूते पर बिना किसी पिता या पति के अमेरिका के उपराष्ट्रपति पद को पाया है पर भारत जैसे देशों में कहीं ढोलनगाड़े नहीं बजाए गए, उलटे उन की भतीजी मीना हैरिस द्वारा किसान आंदोलन का समर्थन करने पर बुराभला कहा जाने लगा है और चरित्र हनन की कोशिश हो रही है.

ये भी पढ़ें- औरतों को क्या मिलेगा

चरित्र हनन करने वाले ऊंची जातियों के ट्रोल कंपनी के मुलाजिम जैसी भाषा का इस्तेमाल करते हैं वह न ट्विटर को अटपटी लगती है न तुर्की के एरडोगान को और न भारत के मोदीशाह को. वे औरतों को क्या समझते हैं, यह हम सब जानते हैं. अमित शाह की पत्नी कभी दिखती नहीं हैं और सोशल मीडिया के अनुसार उन का शौक शौपिंग में ही है या धार्मिक बातें सुनने में.

इसलामी और कट्टर हिंदू असल में औरतों को किसी तरह का प्रतिष्ठित पद नहीं देना चाहते. जब तक कट्टर नेताओं के हाथों में शक्ति है औरतें 10वीं सदी में रहेंगी, सिर्फ सजावटी गुडि़याएं. हमारे यहां तो वे त्याग व बलिदान की मूर्तियां हैं सिर्फ पति के लिए.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें