लंबी कहानी: कुंजवन (भाग-11)

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शुक्रवार आफिस से जल्दी उठ गई. सीधे पी सी ज्वैलर्स के शोरूम में आई. एक सुंदर सी चेन के साथ कुछ साफ्ट टायस खरीद घर आई. नहाधो तैयार हो जब चंदन के घर पहुंची तब लगा कि उस का बचपन लौट आया है. दोचार जनों को छोड़ सारे पुराने साथी वहां मौजूद थे. उसे देखते ही सब ने हाथोंहाथ लिया. सब की एक ही राय थी कि सारी सहेलियों में बस वो ही सब से सफल है इतने बड़े बिजनैस को चलाने वाली इतनी सी लड़की. पोलैंड से विकास, आस्ट्रेलिया से मृदुला भी आई हैं. मृदुला शिखा की सब से अच्छी सहेली है. अब एक तीन वर्ष के बेटे की मां है. सुकुमार को ले कर वो कई दिनों तक उस से नाराज रही. असल में अपने मृदुल स्वभाव के कारण सुकुमार सब को प्यारा था और अपने स्वभाव के कारण ही बंटी को कोई पसंद नहीं करता था. दोचार उस के चमचों को छोड़.

सब ने हाथोंहाथ लिया उसे. मन भर आया शिखा का. एकसाथ सब ने ग्रैजुएशन किया था फिर तो सब अपनेअपने जीवन के चुने हुए पथ पर चल पड़े, बिखर गए देशविदेशों में, पर आज समझ आया कि मन के सारे तार अभी भी एकदूसरे से जुड़े हुए हैं कहीं भी कोई तार नहीं टूटा.

हर्ष उल्लास, हंसीमजाक, छेड़छाड़ में खानापीना निबटा सब ने मिल कर निर्णय लिया कि रविवार के दिन चंदन के गुड़गांव वाले फार्म हाऊस में सब 10 बजे तक पहुंच जाएंगे. पूरा दिन एकसाथ बिता रात डिनर ले घर लौटेंगे. अभिनव के केटरिंग का व्यवसाय है और एक थ्री स्टार होटल भी है उस ने नाश्ते से ले कर डिनर तक की पूरी जिम्मेदारी ली. शिखा बहुत दिनों बाद बहुत खुश हुई. मन भी हलका हो गया. पर जानकीदास यह सुनते ही गंभीर हो गए.

‘‘रविवार शंकर के पिता की बरसी है उस ने पहले से ही छुट्टी ले रखी है और कारण भी ऐसा कि मना नहीं किया जा सकता. इतनी दूर तू अकेली?’’

‘‘अरे दादू दिल्ली अनजाना शहर है क्या मेरे लिए या मैं ड्राइव नहीं जानती.’’

‘‘फिर भी डर लगता है. मेहता परिवार बेघर हो बस्ती के एक कोठरी में सिर छिपाए हैं. बौखलाए घूम रहे हैं पर ऐंठ नहीं गई. तू ने हाथ ना उठाया होता तो उन का घर बच जाता अब तो सड़क पर हैं. गुस्सा तो आएगा ही.’’

‘‘दुर्गा मौसी तो उन की हितैषी थी. बारबार उन की वकालत करती थी तो अब अपने घर में जगह क्यों नहीं दी?’’

‘‘बुरे समय में साथ कोई नहीं देता?’’

‘‘बुरे समय को तो उन्होंने ही बुलाया है.’’

‘‘जाने दे मुझे तो बस तेरी चिंता है.’’

अचानक ही याद आया शिखा को.

‘‘दादू. पिछले कुछ दिनों से कुछ अजीब सी बात हो रही थी. कई बार सोचा बताऊंगी पर भूल भी जाती हूं.’’

चौंके वो.

‘‘क्या बात?’’

‘‘कुछ दिनों से मेरी गाड़ी के आसपास एक बाइक सवार को देख रही थी. उस का नंबर भी नोट कर लिया था. सोच रही थी बंटी ने ही उसे लगाया होगा मेरे पीछे कोई किराए का गुंडा होगा. उस का चेहरा नहीं देखा क्योंकि हमेशा हेलमेट में रहता है. सुगम लंबा शरीर है देख कर लगता है कि शरीर को तैयार किया है जिम जा कर. हमेशा ब्लू जींस और दो फोल्ड आस्तीन चढ़ी सफेद फुलशर्ट ही पहनता है. मैं  उस के बाइक का नंबर ले पुलिस में रिपोर्ट करने ही वाली थी कि पिछले हफ्ते की एक घटना ने मेरी धारणा ही बदल दी. मैं जिस को दुश्मन समझ रही थी वो तो मेरा दोस्त निकला. मेरी जान बचाई.’’

‘‘ऐसा क्या हुआ?’’

‘‘उस दिन बारह बजे के आसपास मैं अकेली ही गाड़ी ले कर स्टेट बैंक गई थी. काम था अंदर जगह नहीं थी तो कई गाडि़यां गेट के बाहर खड़ी थीं मैं ने भी किनारे पर खड़ी कर दी. काम निबटा बाहर आई तो देखा कि मेरी गाड़ी के पास हंगामा हो रहा है. दौड़ कर आई तो देखा वही बाईक वाला लड़का अकेले दो सड़कछाप वालों की धुनाई कर रहा है हेलमेट तक नहीं उतारा पता चला दोनों गाड़ी के साथ छेड़छाड़ कर रहे थे तो उस बाईक सवार ने दोनों को दबोच पिटाई शुरू की तो उन्होंने कबूला कि किसी ने पैसे दे कर गाड़ी में बम फिट करवाने को कहा था. समय पर उस ने ना पकड़ा होता तो…’’

बात मामूली नहीं भयानक थी पर शिखा ने अवाक हो कर देखा कि दादू विचलित नहीं हुए सामान्य भाव से बोले,

‘‘मारने वाले से बचाने वाला बड़ा होता है.’’

‘‘तभी तो कह रही हूं कि मैं आराम से गुड़गांव चली जाऊंगी.’’

‘‘ठीक है. इधर से मोहिता और संदीप जाएंगे.’’

‘‘हां दादू. उन के साथ ही लौटूंगी. उन के घर से तो अपना इलाका शुरू होता है. बस

10 मिनट में अपना घर.’’

पर उसी 10 मिनट में जो होना था हो गया. शिखा का अपहरण हो गया. उस समय 10 बज रहे थे जब शिखा ने संदीप का साथ छोड़ अपने घर के रास्ते मुड़ी पर घर नहीं पहुंची. ‘कुंजवन’ में हाहाकार मच गया. लच्छो सिर पीटपीट रो रही थी बाकी नौकरचाकर भी परेशान, जाग कर बैठे थे. जानकीदास संभवअसंभव जगह फोन कर परेशान हो रहे थे. पुलिस में अपहरण की रिपोर्ट लिखवाई गई पर अभी तक कुछ पता नहीं. जानकीदास टूटने लगे. तभी फिरौती का फोन आया 1 करोड़ दो तो पोती मिलेगी, उन्होंने कांपते स्वर में कहा, ‘‘बच्ची को लौटा दो. पैसे मिल जाएंगे.’’

‘‘लौटने के बाद पैसा कोईर् नहीं देता. पहले पैसा.’’

‘‘पर बिना उस के पैसा कहां से आएगा? मैं तो कर्मचारी हूं. सारा एकाउंट उसी के नाम है उस के बिना पैसा आएगा कहां से?’’

‘‘सोनी कंपनी’’ का नाम कौन नहीं जानता. एक करोड़ आटे में नमक बराबर है. जिस से मांगोगे वही दे देगा.

‘‘तुम कौन हो?’’

‘‘बेवकूफ समझ रखा है जो पताठिकाना दे दूं.’’

‘‘देखो तुम समझदार हो. बिना शिखा के कहीं से पैसा नहीं मिलेगा. मैं कंपनी का नौकर भर हूं. मेरे कहने पर कोई सौ रुपए भी उधार नहीं देगा.’’

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‘‘समस्या तुम्हारी है. जुगाड़ करो पोती को सही सलामत ले जाओ नहीं तो…’’

‘‘ना…ना… उसे कुछ मत करना.’’

फोन काट दिया… जानकीदास सिर पकड़ बैठ गए. पूरा विश्वास है कि काम बंटी का है पर फोन पर आवाज उस की नहीं थी कोई सड़कछाप की आवाज थी.

धीरेधीरे चेतना लौटी शिखा की. एक गंदी कोठरी में नंगी चारपाई पर अपने को पड़े पाया. वो उठ बैठी. सिर को झटका धीरेधीरे दिमाग पर छाई धुंध साफ होने लगी. क्या हुआ था उस के साथ. उस के सिर में एक झनझनाहट थी. धीरेधीरे याद आया अपने दोस्त के घर के सामने विदा लेने वो कुछ मिनटों के लिए गाड़ी से उतरी थी मोहिता से बात कर रही थी जब गाड़ी में आ कर बैठी तब एक हलकी मीठी सी सुगंध उस के नाकों में आई थी. वो सुगंध उस की चेतना पर छा रही थी. गाड़ी स्टार्ट करने से पहले ही उसे नींद आने लगी थी फिर कुछ याद नहीं. उस ने सिर झटका तो धुंधलापन साफ हुआ. चारों ओर देखा उस ने. नंगी चारपाई पर लेटने से उस के शरीर में जलन हो रही थी और शरीर के खुले भागों में दाग पड़ गए थे. सिरहाने ऊंचाई पर खुली खिड़की से नरम धूप का कतरा नीचे उतर कर आ रहा था पता नहीं यह धूप डूबते सूरज की है या चढ़ते सूरज की. पर उस से अंदर सब कुछ साफ दिखाई दे रहा था. छोटा सा कमरा कबाड़ से भरा बस एक यही चारपाई जरा साफ है. सामने दरवाजा बंद है पर बाहर लोगों के बातचीत से लग रहा था कि किसी बस्ती के बीच में है यह कमरा. पल में शिखा समझ गई कि उस का अपहरण हुआ है. वो सुगंध जो गाड़ी में मिली थी वो कोई बेहोशी की दवा थी. जब मोहिता से बात कर रही थी तभी ड्राइविंग सीट की खुली खिड़की से किसी ने स्प्रे किया होगा. वो समझ गई यह बंटी का काम है. उसे डर नहीं लगा गुस्सा आया. कितना गिरा हुआ इंसान है. पर अब प्रश्न है कि वो कुछ पैसे ले कर उसे छोड़ेगा या पूरा का पूरा ग्रौस वीडियो कैमरा चला इसी कोठरी में जबरदस्ती उस से ब्याह करने का नाटक करेगा. अगर ऐसा किया तो बड़ी भयानक बात होगी. पता नहीं कितना समय बीत गया, दादू को हार्ट अटैक न हो जाए. यहां से मुक्ति पाने का कोई उपाय तो इस समय दिखाई नहीं दे रहा.

थोड़ी देर वो बैठ कर सोचती रही. बाहर की चहलपहल कम हो गई. अवश्य ही मेहनती मजदूरों की बस्ती है. लोग काम पर जाने लगे होंगे. अचानक दरवाजा खुला और खुलते ही शिखा समझ गई यह डूबते सूरज की किरण नहीं सुबह की कच्ची धूप है. वो रात भर यहां कैद थी पर एक रात या दो रात? कौन जाने? बंटी के हाथ में एक गंदा शीशे का गिलास, उस में दो घूंट काली काढ़ा जैसी चाय. उस ने गिलास बढ़ाया, ‘‘चाय पी लो.’’

सिर तक जल उठा शिखा का.

‘‘हां मैं ने सही सोचा ऐसा घिनौना काम और कौन करेगा.’’

‘‘चुप हरामजादी. तू इसी लायक है. यही भाषा समझती है. शराफत से ही पैसे मांगे थे वो बात समझ में नहीं आई अब सड़ इस कोठरी में.’’

अब शिखा का मनोबल लौट आया था.

‘‘यहां सड़ाने तो लाया नहीं है तू मुझे, लाया तो है पैसों के लिए.’’

‘‘जल्दी समझ गई. ज्यादा नहीं 2 करोड़ चाहिए.’’

‘‘उस में कितने दिन की अय्याशी चलेगी?’’

‘‘ए चुप. बोल कैसे देगी?’’

‘‘मैं यहां रही तो एक पैसा भी नहीं मिलेगा.’’

‘‘मैं बेवकूफ नहीं. तेरे दोस्त बड़ेबड़े लोग हैं तू उन से मांग कर 2 करोड़ देगी.’’

‘‘मानो दे दिया. उस के बाद भी मुझे नहीं छोड़ा तो.’’

‘‘कुछ भी हो सकता है. मेरी मुट्ठी में बंद है तू. तेरा मरनाजीना मेरे हाथ में है. मेरा जो अपमान हुआ है उस का हिसाब भी बाकी है.’’

‘‘देख बेवकूफ मैं भी नहीं. तू मुझे मार नहीं सकता. पैसों की खान को कोई मारता है क्या?’’

‘‘पहले तू दो करोड़ का इंतजाम कर.’’

‘‘एक पैसा भी नहीं मिलेगा.’’

‘‘तो फिर देख, पिटाई से क्या नहीं होता.’’

हाथ उठा वो शिखा की ओर बढ़ता कि जबड़े पर एक भरापूरा झापड़ खा दीवार से जा टकराया. वहां से कालर पकड़ खींच कर उस की पिटाई शुरू हो गई. शिखा ने अवाक हो देखा  वही नीली जींस आस्तीन चढ़ी सफेद शर्ट और हेलमैट से ढका चेहरा पुलिस की पूरी टीम अंदर आ गई. आफिसर ने बंटी को बालों से पकड़ा.

‘‘आप छोड़ दीजिए सर. इस की खबर अब हम लेंगे. इसे हवालात ले चलो.’’

‘‘आफिसर आप इसे ले जाओ. मैं इन को घर पहुंचा देता हूं.’’

‘‘जी सर. एक बार थाने जरूर आइए. क्रिमिनल को रंगे हाथ पकड़ने का श्रेय आप को जाता है. शिखा लड़खड़ा कर गिरने को थी उस ने दोनों हाथों से संभाला. गाड़ी में बैठा ड्राइविंग सीट पर हेलमेट उतारा. शिखा लिपट कर रो पड़ी.’’

‘‘कहां चले गए थे तुम मुझे छोड़.’’

‘‘कहीं नहीं पासपास ही था. दादू ही तो हैं मेरे फरिश्ता.’’

‘‘दादू.’’

शिखा ने अवाक हो देखा.

‘‘हां उन के लिए ही मैं प्रतिष्ठित हूं आज.’’

‘‘सुकुमार तुम को पता नहीं उस दिन मैं ने तुम को…’’

उस ने रोका.

‘‘मुझे पता है. उस दिन पता नहीं था पीछे दादू ने ही बताया था.’’

‘‘दादू ने कब?’’

‘‘तभी दोतीन दिन बाद.’’

‘‘हे भगवान. दादू को सब पता था फिर भी अनजान बन कर उस से पूछते रहे.’’

घर आते ही दादू से लिपट गई वो. चैन की सांस ली जानकीदास ने.

‘‘अब देखता हूं वो दुष्ट बाहर कैसे आता है. कई केस एक साथ लगाता हूं. सुकुमार बोला,’’

‘‘दादू. आप की पोती की रक्षा का भार आप ने मुझे सौंपा था आज सही सलामत आप की अमानत आप को सौंप कर जा रहा हूं. अब मैं चलूं?’’

शिखा व्याकुलता से बोली.

‘‘दादू. रोको इसे.’’

वो बढ़ आए.

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‘‘कहां चले.’’

‘‘उस को बाहों में ले लिया.’’

‘‘यह ‘कुंजवन’ है राधाकृष्ण की लीला भूमि यहां कब से अकेली राधा बैठी तड़प रही है. उस के साथ ‘कुंजवन’ भी उदास था. सूना था कृष्ण के पैर पड़ते ही दोनों खिल उठे. चहक उठे. अब यहां से कहीं नहीं जा सकते. अंदर चलो.’’

लच्छो मौसी आरती की थाल ले आई.

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