लंबी कहानी: कुंजवन (भाग-6)

पिछला भाग- लंबी कहानी: कुंजवन (भाग-5)

‘‘हैपी बर्थ डे मौसी’’

गिफ्ट ले पुलकित मुख से गुस्सा दिखाया दुर्गा ने, ‘‘कहा था न गिफ्ट मत लाना.’’

वो हंसी. आज बहुत ही सुंदर लग रही है वो एकदम ओस धूली अभीअभी खिली फूल जैसी. कल ही घमासान हुई है बंटी के साथ पर बंटी के चेहरे पर उस की कोई झलक तक नहीं. हंस कर बोला,

‘‘हाई बेबी.’’

‘‘हाई आंटी, नमस्ते. कैसी हैं आप?’’

‘‘ठीक हूं बेटी. पर मंजरी के बिना मेरी शौपिंग, पार्टी, मूवी सब सूनी हो गई. लोग कितनी उमर तक बैठे रहते हैं और उसे ही जल्दी पड़ी थी मुझे छोड़ जाने की. उन्होंने सुगंधित रूमाल सूखे आंखों पर रगड़ा, दुर्गा ने परिवेश भारी होते देख प्रसंग बदला, ‘‘तुझे लंच पर बुलाया था और तू मेहमान की तरह अब आ रही है.’’

बैठ गई शिखा, एक माजा उठाया.

‘‘क्या करूं काम इतना बढ़ गया है कि…’’

कहते ही मन ही मन उस ने सिर पीटा, यह क्या कह गई दुश्मनों के सामने.

‘‘हां सुना है तू ने बड़ी कुशलता से बिजनैस को बढ़ाया है मंजरी जो छोड़ गई थी उस से दो गुना हो गया है…’’

‘‘मुझे भला क्या आता है मांजी? सब दादू की मेहनत है.’’

‘‘हां सुना है अब विदेश में भी खूब काम चल पड़ा है.’’

‘‘खूब तो नहीं बस पैर रखा ही है. बेचारे दादू ही दोतीन बार विदेश दौड़े इस उम्र में अकेले तब जा कर…’’

‘‘तू भी तो सब छोड़ लगी पड़ी है.’’

‘‘लगना पड़ता है. ईमानदारी और सिनसियर ना हो तो बिजनैस मजधार में डूबता है.’’

एकपल के लिए उस ने मांबेटे पर नजर डाली. देखा दोनों का मुंह फूल गया है. नंदा ने बड़ी चालाकी से बात संभालने का प्रयास किया, ‘‘बेबी, हमें सब से ज्यादा खुशी है, तुम्हारी कामयाबी से, पर तुम्हारी मां की जगह मैं हूं इसलिए तुम्हारे लिए चिंता और डर मन में लगा ही रहता है.’’

‘‘क्यों आंटी?’’

‘‘समय अच्छा नहीं है लोग जलते हैं दूसरों को फलताफूलता देख. इसलिए जो है उसे छिपा उल्टी बात प्रचार करना चाहिए.’’

‘‘मतलब बिजनैस डूब रहा है, दीवाला निकल रहा है यही सच…’’

‘‘एकदम ठीक.’’

शिखा खुल कर हंसी,

‘‘अब समझी आंटी बंटी यही बात क्यों कहता है, लोग भी मान चुके हैं कि मेहता संस के बुरे दिन आ गए.’’ नंदा का मुख तमतमा उठा, बंटी के जबड़े कस गए. नथूने फूल उठे. दुर्गा ने बात संभाली,

‘‘बेबी, नमकीन ले चाय पीएगी? बनवा दूं?’’

शाम को ही लौटने का मन बना कर गई थी शिखा पर नहीं लौट पाई. मौसी ने रात के खाने तक रोक ही लिया. इस बीच दुर्गा मौसी ने टूटे तार को जोड़ने की बहुत कोशिश की, धीरेधीरे माहौल सामान्य भी हो गया. खाना खातेखाते 9 बज गए. मौसी ने चिंता जताई,

‘‘बेबी, इतनी रात हो गई तू अकेली जाएगी.’’

‘‘9 ही तो बजे हैं मौसी. मैं चली जाऊंगी. शंकर दादा हैं तो साथ में.’’

शंकर ‘‘कुंजवन’’ के पुराने ड्राईवर हैं. मंजरी नौकरों को नौकर ही समझती थी पर पापा ने ही सिखाया था कि बड़ों का सम्मान करो भले ही वो नौकर ही क्यों ना हो.

ये भी पढ़ें- ज़िंदगी-एक पहेली: भाग-3

‘‘बंटी तुझे पहुंचा आता.’’

‘‘अरे नहीं रात कहां है?’’

‘‘दिल्ली का माहौल क्या है देख तो रही है. बेबी मुझे तेरी बड़ी चिंता रहती है. अकेली लड़की?’’

‘‘अकेली कैसे? पूरा घर साथ में है.’’

‘‘फिर भी…समय का काम समय पर ही होना चाहिए.’’

अब तेरी एक नहीं सुनूंगी. कल ही पंडितजी को बुला महुरत निकलवाती हूं.

‘‘महुरत?’’

‘‘हां… बंटी भी कब तक बैठा रहेगा?’’ नंदा बोल पड़ी,

‘‘हमारी तो आफत हो गई है. रोज दोचार लड़की वाले आ बैठते हैं.’’

नरम स्वर में शिखा ने कहा

‘‘वो तो होगा ही आंटी, आप का बंटी हीरा जो है.’’

‘‘तू ही बता कब तक मना करूं?’’

‘‘मना कर ही क्यों रही हैं. कर दीजिए न शादी.’’

‘‘कैसे कर दूं. मंजरी को वचन दिया था उस का पालन ना करने का पाप कैसे सिर पर लूं?’’

दुर्गा ने समर्थन किया

‘‘बात सच है. मंजरी तेरी शादी बंटी से ही तय कर गई है.’’

‘‘शादी तो मुझे करनी है, और मैं बालिग भी कब की हो चुकी तो मैं ही तय करूंगी कि किस से शादी करूंगी.’’

‘‘पर बेटा बंटी तेरा बचपन का दोस्त है. वो तुझे चाहता है.’’

‘‘मौसी मुझे छोड़ उस के दर्जनभर दोस्त और भी हैं जिन को वो चाहता है तो क्या उन सब से शादी करेगा?’’

बंटी चीखा.

‘‘शिखा, जबान संभाल के बात करो,’’

‘‘मैं भी चाहती हूं तुम से बात ना करूं. मजबूर किया गया बोलने को. मौसी मैं चली. याद रखना इन के साथ मुझे अपने घर कभी मत बुलाना.’’

उस के निकलते ही नंदा बेटे पर झिड़की.

‘‘बापबेटे कटोरा ले चौराहे पर खड़े होना.’’

बचने की आखरी उम्मीद है शिखा. उसे नाराज कर दिया नालायक अब डूबो मझधार में. तेवर दिखाने चला तो शिखा को.

‘‘बात सही है. बचना चाहो तो बेबी को मनाओ.’’

घर लौटते हुए शिखा ने मन ही मन निर्णय लिया कि आज की घटना के विषय में दादू को कुछ नहीं बताएगी. उस की गाड़ी की आवाज सुनते ही जानकीदास ड्राईंगरूम में आ गए. शिखा हंसी.

‘‘मुझे पता था मेरे लौटने तक तुम बैठे रहोगे. रात की दवाई ली?’’

‘‘बस अब ले कर सीधे सोने जाता हूं.’’

‘‘साड़े दस बज गए.’’

‘‘हां तू भी जा कर सो जा टीवी या किताब ले मत बैठना. अपने कमरे में आ कर फ्रैश हो ली शिखा. नरम फूल सा नाईट सूट पहन बिस्तर पर बैठ क्रीम लगाते हुए आज उस ने हलका महसूस किया. मेहता परिवार में आज मातम छा गया होगा. एक बड़ा सा सपनों का महल था उन के सामने उस के दम पर उछलते फिर रहे थे. जल्दी से शादी कर उस के दम पर अपने को सड़क पर आने से बचाना चाहते थे. उधेड़बुन में ना रख कर शिखा उन की सारी आशाओं की जड़ ही काट आई. उस का अपना सिर दर्द समाप्त हुआ. बत्ती बंद कर वो लेट गई. मां उस की शुभचिंतक कभी नहीं रही. सदा ही उस की इच्छा, पसंद, शौक का गला दबा अपनी दिशा में हांकती रही. उस की छोटीछोटी खुशियों की हत्या कर मन ही मन अपनी जीत पर गर्व करती रही. उस के प्यार को भी उस से छीन पता नहीं कहां कितनी दूर फेंक दिया जिसे वो इस जीवन में नहीं खोज पाएगी. सुकुमार वचन का पक्का है वचन दे कर गया है कि अब कभी उस को अपना मुख नहीं दिखाएगा.’’

उस दिन तो शिखा ने मां को ही समर्थन किया था उसे अपने से बहुत नीचे स्तर का कह धिक्कारा था. व्यंग किया था, पैसों का लालची कहा था और गेट से बाहर निकाल दिया था. उस दिन के बाद वो कभी नहीं दिखाई दिया ‘कुंजवन’ के बाहर आते ही तो शिखा की प्यासी व्यथित दोनों आंखें उसी को खोजती हैं पर कहां है वो, कहां चले गए तुम? मेरे मुंह के बोल सुन मुझे छोड़ गए एक बार मेरी आंखों में भी तो झांकते मन को पढ़ते कि मैं ने ऐसा क्यों किया? मुझे समझने की कोशिश करते. तुम मेरे बचपन के प्यार हो, तुम मुझे कैसे छोड़ गए बस मेरे दो मुंह के बोल सुन कर. लौट आओ प्लीज, मेरे पास लौट आओ. मैं बहुत अकेली हूं. उस ने आंसू पोंछे. मां जातेजाते उस के साथ एक और शत्रुता कर गई. बंटी से उस के विवाह की बात कह कर उसे सिर चढ़ा गई. मेहता परिवार तो आसमान पर छलांगे लगाने लगा खास कर बंटी. सब के सामने ऐसा दिखाने लगा मानो उस का विवाह ही हो चुका है शिखा के साथ, जबकि शिखा ने एक दिन भी घास नहीं डाली उसे. राजकन्या के साथ पूरा साम्राज्य मुट्ठी में आ रहा है. बंटी ने अय्याशी बढ़ा दी, चमचे भी जुट गए. व्यापार डूबने लगा तो क्या, शिखा तो अपने व्यापार को चौगुना बढ़ा रही है ब्याह होते ही सब कुछ मुट्ठी में, तब तक जरा हिचकोले खा ही लेंगे. आज शिखा रोजरोज की फजिहत की जड़ ही काट आई है. इतनी देर में उसे नींद आई.

ये भी पढ़ें- गंदी…गंदी…गंदी बात

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें