‘‘उस दिन हौस्पिटल से निकलते वक्त मैं बेतहाशा रो रही थी. संयोग से उस दिन विपुल भी अपनी नियमित जांच के लिए अस्पताल आए हुए थे. मैं उस दिन पक्का जहर खा चुकी होती. मगर विपुल ने आप का वास्ता दे कर मुझ से सारी बात जान ली. मैं बहुत भयभीत थी कि मेरी वजह से पापा और आप की इज्जत धूल में मिल जाएगी. हार्टपेशैंट पापा को कुछ हो गया तो मैं स्वयं को कभी माफ नहीं कर सकूंगी.
‘‘मगर विपुल ने दिलासा दिया कि वे मुझ से शादी कर बच्चे को अपना नाम देंगे. इसीलिए उन्होंने दूसरे शहर में अपना स्थानांतरण करा लिया ताकि मेरे शादी से पहले गर्भवती होने की बात कोई न जान सके.
‘‘मैं ने सोचा था कि सब ठीक हो जाने पर आप के पास लौट आऊंगी और सब सचसच बता दूंगी. मगर विपुल ने यह कह कर मुझे रोक दिया कि फिर आप शादी नहीं करोगी और विपुल की खातिर अकेली रह जाओगी. आप की शादी का समाचार मिला था हमें और हम आना भी चाहते थे, मगर मेरी तबीयत खराब रहने लगी थी. फिर आप का सामना करने की भी हिम्मत नहीं थी.
‘‘प्लीज दीदी, अब अपनी बहन को माफ कर देना. मैं ने आप की जिंदगी से उसे
दूर कर दिया, जो आप की जिंदगी का सब कुछ था. पर यकीन मानिए विपुल ने आज तक मुझे छुआ भी नहीं. वे आज भी केवल आप के हैं.’’
‘‘आप की बहन.’’
पत्र पढ़तेपढ़ते श्रेया की आंखों से आंसुओं की बरसात होने लगी. अब तक दग्ध पड़ा
उस का मन विपुल के प्रेम की छांव महसूस कर शीतल हो गया था. पर बहन का दर्द आंखों से आंसुओं के सैलाब के रूप में उमड़ पड़ा था.
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श्रेया बदहवास सी गेट की तरफ भागी कि शायद विपुल बाहर रुका हो. पर विपुल जा चुका था. श्रेया अचानक फूटफूट कर रोने लगी. उस का पता भी तो नहीं था. कहां गया होगा वह? आ कर बिस्तर पर औंधे मुंह लेट गई. पुरानी बातें सोचतीसोचती नींद के आगोश में चली गई. फिर जब होश आया तो देखा, ज्ञान औफिस से आ चुका था और स्वयं चाय बना रहा था. श्रेया को खुद में ग्लानि महसूस हुई कि उसे कैसे ज्ञान के आने का आभास भी नहीं हुआ. वह हड़बड़ा कर उठने लगी कि चक्कर आने लगा. फिर बिस्तर पर लेट गई.
तभी चाय ले कर ज्ञान आ गया. श्रेया के लिए भी चाय बनाई थी. चाय देते हुए बोला, ‘‘जल्दी तैयार हो जाओ श्रेया, हमें चलना है.’’
श्रेया ने उदास नजरों से देखते हुए कहा, ‘‘नहीं, मैं कहीं नहीं जा सकती, प्लीज, आप
चले जाओ.’’
‘‘नहीं श्रेया, तुम्हें चलना होगा,’’ ज्ञान के स्वर में दबाव था.
श्रेया सोच रही थी कैसे मना करूं ज्ञान को और क्या कह कर? पता नहीं, वह क्या सोचेगा. फिर बिना मन के भी श्रेया को ज्ञान से साथ जाने को तैयार होना पड़ा. बड़े बेमन से कार में बैठ गई. कार सीधी एक अस्पताल के आगे जा कर रुकी. प्रश्नवाचक नजरों से श्रेया ने पति की ओर देखा.
‘‘जाओ श्रेया, अपनी बहन से मिल लो.’’
ज्ञान का गंभीर स्वर गूंजा, तो श्रेया चौंक उठी, ‘‘क्या सचमुच ज्ञान?’’ और फिर फूटफूट कर रो पड़ी.
ज्ञान ने सहारा देते हुए कहा, ‘‘कुछ सोचो या बोलो मत, बस जल्दी चलो. समय कम है, नेहा के पास.’’
श्रेया और ज्ञान लगभग दौड़ते हुए अंदर पहुंचे. नेहा बैड पर पड़ी जिंदगी और मौत के बीच जूझ रही थी. दरअसल, सालों जिस अपराधबोध का बोझ लिए वह जीती रही थी, वह दर्द आज कैंसर बन कर उस की जिंदगी पर हावी हो गया था.
श्रेया का स्वर गले में ही रह गया. पर उस के हाथों का स्पर्श पाते ही नेहा ने आंखें खोलीं. श्रेया को देखते ही, ‘‘दीदी’’, कह उस की आंखें बरस पड़ीं, ‘‘मुझे माफ कर दो दीदी… मैं आप की कुसूरवार हूं.’’
‘‘नहीं नेहा, तू कुछ न बोल. तेरा कोई दोष नहीं. जो होना था, वही हुआ. इस के लिए स्वयं को दोष क्यों दे रही है?
‘‘अब मैं अच्छी नहीं हो सकती दीदी, तुम्हारे लिए ही सांसें अटकी थीं. बस एकबार विपुल को माफ कर दो, ‘‘कहते उस ने विपुल का हाथ पकड़ उस के हाथों में दे दिया.
विपुल की आंखों से आंसू बहने लगे. श्रेया रुंधे गले से बोली, ‘‘नेहा, विपुल ने तो कोई गलती की ही नहीं. उस ने तो कुरबानी दी है. मैं माफी देने वाली कौन होती हूं?’’
श्रेया की बात सुन कर नेहा का चेहरा खिल उठा जैसे वह एक गहरे अपराधबोध से मुक्त हो गई हो. बहुत देर तक श्रेया नेहा का हाथ पकड़े सुबकती रही.
डाक्टरों ने जवाब दे दिया था. उस रात श्रेया नेहा के पास ही रुकना चाहती थी पर ज्ञान के कहने पर घर चलने को तैयार हो गई. रास्ते भर श्रेया सोचती रही. वर्षों बाद अपनी प्यारी बहन को गले लगा कर कितना सुकून मिला था उसे. फिर विपुल का निश्छल प्रेम महसूस कर उस का दिल फिर से विपुल की ओर झुकने लगा था. आज उसे किसी से कोई शिकवाशिकायत नहीं थी. सिर्फ प्यार था विपुल के लिए, नेहा के लिए.
तभी सहसा उस के मन से आवाज आई, ‘कहीं वह ज्ञान के साथ नाइनसाफी तो नहीं करने जा रही?’
‘‘ज्ञान तुम्हें कैसे पता चला कि नेहा यहां है?’’ श्रेया ने पूछा.
ज्ञान ने गंभीर स्वर में कहा, ‘‘तुम रोतीरोती सो गई थीं, तो मैं घर में दाखिल हुआ था. मैं ने पत्र पढ़ा और सारी हकीकत समझ गया. मैं सोच रहा था कि नेहा से तुम्हें कैसे मिलाऊं? तभी
मुझे विपुल की मां का खयाल आया. जब पार्टी में वे तुम से मिली थीं, तो मैं ने वहां उन से फोन नंबर ले लिया था. आज आंटी को फोन कर के ही मुझे जानकारी मिली कि नेहा यहां ऐडमिट है. तभी मैं ने…’’
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श्रेया विपुल के कंधे पर सिर रखती हुई बोली, ‘‘आप का शुक्रिया कैसे अदा करूं?’’
‘‘मेरा नहीं, विपुल का शुक्रिया अदा करो श्रेया. यदि नेहा को कुछ हो जाता है तो मुझे लगता है तुम्हें विपुल को अपने घर या हमारे बगल के घर में रहने के लिए मना लेना चाहिए. ताकि तुम विपुल को बिलकुल अकेला होने से बचा सको. फिर नेहा के बच्चे को भी तुम्हारा साथ मिल जाएगा.’’
अपने पति के सुलझे विचार जान कर श्रेया का मन और भी हलका हो गया. वह निश्चिंत हो कर ज्ञान के कंधे पर सिर रख कर सो गई, क्योंकि अब वह विपुल के प्रति अपने कर्तव्य बिना किसी हिचकिचाहट निभा सकेगी. उस का पति उस के रिश्तों को पूरी अहमियत जो दे रहा था. शायद वह विपुल के साथ अपने रिश्ते को जितने बेहतर ढंग से नहीं समझ सकी, उस से कहीं अधिक ज्ञान ने उन दोनों को समझा.
श्रेया को आज भी अच्छी तरह याद है वह शाम जब नेहा थकीहारी और परेशान सी कालेज से घर लौटी थी और फिर सहसा श्रेया के गले लग कर रोने लगी थी. पीछेपीछे विपुल भी आया था. उस ने नेहा को बैठने का इशारा किया और फिर श्रेया से मुखातिब होते हुए बोला, ‘‘श्रेया, मैं तुम से एक बात कहना चाहता हूं.’’
‘‘वह तो ठीक है विपुल, मगर पहले नेहा को तो देख लूं… यह रो क्यों रही है?’’
‘‘मैं ही हूं, इस की वजह,’’ विपुल श्रेया के सामने आ कर खड़ा हो गया.
‘‘मतलब?’’
श्रेया चौंक उठी.
‘‘मतलब यह कि नेहा मेरी वजह से रो रही है.’’
‘‘यह क्या कह रहे हो तुम?’’ श्रेया कुछ समझ नहीं पाई.
‘‘मैं जानता हूं श्रेया, तुम्हारे लिए समझना कठिन होगा. मगर मैं मजबूर हूं. मैं चुप नहीं रह सकता. मैं नेहा से प्रेम करने लगा हूं और इसी से शादी करूंगा.’’
‘‘क्या? तुम नेहा से प्रेम करते हो? और मैं? मैं क्या थी? तुम्हारे मन बहलाव का जरीया? टाइमपास? नहीं विपुल मैं तुम्हारी इस बात पर कभी यकीन नहीं करूंगी.’’
फिर श्रेया ने तुरंत नेहा के पास जा कर पूछा, ‘‘विपुल क्या कह रहे हैं नेहा? यह सब क्या है? यह सब झूठ है न नेहा? तू सच बता नेहा…’’
‘‘दीदी, मैं स्वयं नहीं जानती कि मेरी जिंदगी में क्या लिखा है. फिर मैं आप को क्या बताऊं?’’
‘‘सिर्फ इतना बता कि क्या तू और विपुल एकदूसरे के साथ जिंदगी बिताना चाहते हैं? क्या विपुल ने जो कहा वह सच है?’’
झुकी नजरों से नेहा ने हां में सिर हिलाया तो श्रेया के पास कुछ कहने या सुनने को
नहीं रह गया. एक धक्का सा लगा उस के दिल को. वह बिलकुल अलग जा कर खड़ी हो गई, दिल की सारी हसरतें आंसुओं में बहने लगीं.
इस घटना के बाद विपुल में श्रेया से नजरें मिलाने का भी हौसला नहीं रहा. दबी जबान में जब उस ने श्रेया के पापा से नेहा के साथ शादी की इच्छा जताई तो पूरे घर में कुहराम मच गया. कहां तो श्रेया और विपुल की शादी की तैयारी थी और कहां मामला ही उलट गया. तूफान के बाद जैसे पूरे माहौल में शांति छा जाती वैसे ही घर में नीरवता पसर गई.
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उधर श्रेया का मन अभी भी इस हकीकत को स्वीकार नहीं कर पा रहा था. घर वालों के तैयार न होने पर विपुल नेहा को ले कर बहुत दूर निकल गया. उस ने जानबूझ कर ऐसी जगह अपनी पोस्टिंग करा ली जहां जानपहचान वाले आसपास न हों. उस ने अपना नया पता भी बहुत कम लोगों को दिया.
विपुल और नेहा से श्रेया और उस के घर वालों ने हर तरह के संबंध तोड़ लिए थे. विपुल ने भी लौट कर बात करने की कोशिश नहीं की और इस तरह श्रेया की यह प्रेम कहानी उस की बरबादी का सबब बन कर रह गई.
उसी दौरान श्रेया की जिंदगी में प्रेम का सागर बन कर ज्ञान आया. उस के साथ शादी घर वालों ने ही तय की. पर इस के लिए स्वयं को तैयार करना श्रेया के लिए बहुत कठिन था. खुद को काफी समझाना पड़ा उसे. ज्ञान को अपना तो लिया था उस ने, मगर प्यार के प्रति उस के मन में विपुल की वजह से एक तरह की उदासी व दर्द का साम्राज्य कायम था. वह लाख कोशिश करती, मगर दिल का सूनापन जाता नहीं. वर्षों बीत गए थे. अब तो नन्हा सौरभ ही श्रेया के जीवन का आधार बन गया था.
श्रेया सुबह उठी तो मन भारी था. पूरी रात पुरानी बातें याद करते जो गुजरी थी.
सोचा, ज्ञान औफिस और सौरभ स्कूल चला जाएगा, तो थोड़ी देर सो लेगी. काम करतेकरते 12 बज गए थे. वह थक कर लेटने गई ही थी कि दरवाजे की घंटी बज उठी. अनमने से दरवाजा खोला तो दंग रह गई.
सामने विपुल खड़ा था. परेशान, थका हुआ, बीमार सा. एकबारगी तो श्रेया उसे पहचान ही नहीं पाई. काले बालों पर अब सफेदी चढ़ चुकी थी. आंखों के नीचे गहरी कालिमा और चेहरे का रंग भी फक्क पड़ा चुका था.
श्रेया असहज होती हुई बोली, ‘‘तुम यहां? तुम वापस क्यों आए हो विपुल? मुझे तुम से कोई बात नहीं करनी.’’
‘‘ठीक है श्रेया, मैं दोबारा लौट कर नहीं आऊंगा. बस यह पत्र देने आया था,’’ कहतेकहते विपुल की आंखें डबडबा आईं. पत्र थमा कर वह तेज कदमों से लौट गया.
श्रेया काफी देर तक विक्षिप्त सी खड़ी रही. जिस शख्स को वह एक पल को भी याद करना पसंद नहीं करती थी, आज वही शख्स उस के सामने खड़ा था. यों तो वह अनजाने ही चाहती रही थी कि उस के जीवन में आंसू भरने वाला शख्स कभी खुश न रहे, मगर आज अपनी नजरों के आगे उस की आंखों में आंसू देख कर एक बार फिर वह तड़प क्यों रही है? 1-2 घंटे वह यों ही परेशान सी रही. फिर न चाहते हुए भी हिम्मत कर के उस ने वह पत्र खोला. उस के हाथ कांप रहे थे. बहन की हैंडराइटिंग देख मन किया कि पत्र को चूम ले. मगर फिर पुरानी कड़वाहट जेहन में ताजा हो गई. अनमने से उस ने पत्र पढ़ना शुरू किया. लिखा था:
‘‘दीदी, मैं आप की क्षमा की हकदार तो नहीं हूं, फिर भी क्षमा मांग रही हूं. शायद जब तक यह पत्र आप के हाथों में पहुंचे तब तक मैं इस दुनिया से जा चुकी होऊं . इतने दिनों तक आप से बहुत राज छिपाए है हम ने, पर अब और नहीं. हकीकत बता कर चैन से अलविदा कह सकूंगी.’’
‘‘दीदी, मैं आप के विपुल से प्यार नहीं करती थी. वह तो सदा से आप के ही रहे. आप से बेहद प्यार करते हैं. तभी आप की प्रिय बहन की जिंदगी बचाने के लिए उन्होंने यह कुरबानी दी, यानी मुझ से शादी की.
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‘‘दीदी, किसी लड़के ने धोखे से मेरा इस्तेमाल किया. उस से धोखा खा कर मैं पूरी तरह टूट गई थी. फिर भी हौसला रखा और सोचा कि प्रयास करूंगी, वह शादी के लिए मान जाए. इस से पहले ही वह इस दुनिया से रुखसत हो गया. 2-3 माह बाद जब मुझे अपने अंदर हलचल महसूस हुईर् तो मैं सकते में आ गई. मेरे पेट में उस धोखेबाज का अंश था. डाक्टर ने जांच कर बताया कि अब गर्भपात कराना जिंदगी पर भारी पड़ सकता है.
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सफाई करते सहसा ही श्रेया के हाथ विपुल की दी वही चमचमाती रिंग आ गई जिसे उस ने वर्षों पूर्व किसी डब्बे में बंद कर एक कोने में पटक दिया था. वह विपुल को बुरे सपने की तरह भुला देना चाहती थी. मगर ऐसा कहां हो पाया. मन के किसी कोने में आज भी उस की यादों का कारवां ठहरा सा था. आज भी एक कसक रहरह कर उसे तड़पाती कि जिसे सब से ज्यादा चाहा था वही उस के सब से बड़े दुख की वजह बन गया.
कैसे भूल सकती है श्रेया अपने 27वें जन्मदिन से एक दिन पहले की उस शाम को जब विपुल के साथसाथ उस ने अपनी बहन को भी सदा के लिए खो दिया था.
वह बहन, जिस के लिए श्रेया हर मोड़ पर खड़ी रही थी, उसी ने विपुल को छीन लिया उस से. मां के गुजरने के बाद अपनी बच्ची की तरह खयाल रखा था उस ने छोटी बहन नेहा का. विपुल से भी तो अकसर जिक्र करती थी वह कि नेहा उस की बहन से कहीं ज्यादा उस की संतान है. बहुत प्यार करती है उस से. तकलीफ में नहीं देख सकती उसे. पर कब सोचा था उस ने कि उसी बहन को जरीया बना कर विपुल उसे ऐसी तकलीफ देगा कि जिंदगी में संभलना तक मुश्किल हो जाएगा.
एक अजीब से कड़वाहट श्रेया के मन में भर गई. हमेशा ऐसा ही होता है. विपुल और नेहा को याद करते ही उस के जेहन में पुरानी यादें ताजा हो उठती हैं.
‘‘श्रेया… श्रेया… कहां हो तुम?’’
पीछे से आती ज्ञान की आवाज ने उस की तंद्रा तोड़ दी. वह वर्तमान में लौट आई. वर्तमान जहां उस का पति ज्ञान और बेटा सौरभ बेसब्री से उस का इंतजार कर रहे थे.
‘‘तुम भूल गईं श्रेया कि आज हमें नमन के यहां जाना है,’’ ज्ञान ने कहा.
‘‘अरे हां, मुझे याद नहीं रहा. ठीक है मैं अभी तैयार हो कर आती हूं,’’ कह श्रेया कमरे में तैयार होने चली आई. फिर तैयार होते हुए खुद को कोसने लगी कि आज फिर क्यों उस ने पुरानी यादों के साए को खुद पर हावी होने दिया? क्यों नहीं वह विपुल को पूरी तरह भूल पाती है? वह विपुल, जिस ने उस के जज्बातों की परवाह नहीं की. उस की बहन को शिकार बना कर चलता बना. फिर दोबारा देखा भी नहीं. वह तो ज्ञान था, जिस की वजह से वह स्वयं को संभाल सकी.
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श्रेया जब भी विपुल की बेवफाई याद करती बरबस ही उस के दिल में ज्ञान के लिए प्रेम उमड़ पड़ता. आज भी वही हुआ. उस ने ज्ञान की पसंद की हलकी नीली साड़ी पहनी. फिर उसी रंग की चूडि़यां, फुटवियर वगैरह पहन कर जल्दी से तैयार हो गई.
ज्ञान ने देखा तो उस के चेहरे पर एक मीठी सी मुसकान खेल गई. तीनों बहुत दिनों बाद एकसाथ बाहर जा रहे थे. रास्ते भर सौरभ की शैतानियां और ज्ञान की मजेदार बातों ने श्रेया के मन से पुरानी यादों की कड़वाहट दूर कर दी. नमनजी के बेटे की सगाई थी. उस जश्न के माहौल में श्रेया पूरी तरह रंग गई. उस ने ज्ञान के साथ जम कर डांस भी किया.
तभी पीछे से किसी महिला ने श्रेया के कंधे पर हाथ रखा. वह पलटी तो सामने खड़ी उम्रदराज महिला पर नजर पड़ते ही श्रेया के चेहरे का रंग बदल गया. वह हैरान नजरों से उस महिला की तरफ देखती रह गई.
वह महिला कोई और नहीं, विपुल की मां थीं. पहले की ही तरह उन की आंखों से वात्सल्य फूट रहा था. उन्हें सामने पा कर सहसा श्रेया से कुछ कहते न बना. फिर अचानक वर्षों पुराना दबा गुस्सा लावा बन कर आंखों से फूट पड़ा. श्रेया की बड़ीबड़ी आंखें आंसुओं से भर गईं. वह स्वयं को रोक नहीं सकी और विपुल की मां के सीने से लग कर फफकफफक कर रोने लगी.
पहली दफा किसी के आगे खुल कर रो रही थी. मां के स्नेह से भरे हाथ हौलेहौले उस के कंधों को सहलाने लगे थे मानो वे उस का सारा दर्द समझ रही हों. आखिर श्रेया ने ही तो उन से दूरी बनाई थी. सिर्फ उन से ही नहीं, विपुल से जुड़े हर शख्स, हर वस्तु और हर याद से. वह नहीं चाहती थी कि कोई उसे विपुल की याद भी दिलाए. मगर आज जैसे वह उस याद में पूरी तरह डूबी जा रही थी.
सहसा जैसे श्रेया को होश आया. यह क्या कर रही है वह? नहीं. वह किसी के आगे कमजोर नहीं पड़ सकती… पुरानी यादों से दोबारा नहीं जुड़ सकती.
फिर एक झटके से वह अलग खड़ी हो गई. सामने ज्ञान खड़ा उसे ही देख रहा था. आंसू छिपाती श्रेया तेजी से बाथरूम की ओर बढ़ गई. ज्ञान विपुल की मां से बातें करने लगा.
वापस घर लौटते वक्त श्रेया रास्ते भर न चाहते हुए भी विपुल के बारे में ही सोचती रही. उस का दिल अंदर ही अंदर तड़प रहा था. जिस इनसान के लिए वह दुनिया छोड़ने को तैयार थी, उसी को जिंदगी से निकाल कर जी रही थी वह. जब दिल में जज्बा ही न रहे तो फिर क्या फर्क पड़ता है कि कोई इनसान जिंदगी में है या नहीं.
रात भर श्रेया चाह कर भी उन पुरानी यादों से स्वयं को आजाद नहीं कर पाई. पुराने लमहे उस की आंखों के आगे से गुजरते रहे. कैसे विपुल और वह एकदूसरे का हाथ थामे पूरी दुनिया की सैर करते, भविष्य के सुनहरे सपने. देखते, विपुल मितभाषी और संकोची प्रवृत्ति का इनसान था.
आजतक श्रेया समझ नहीं पाई कि उस ने नेहा के साथ कब इतनी नजदीकियां बढ़ा लीं कि वह उस की जिंदगी बन गई और श्रेया को दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकाल फेंका.
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श्रेया को तो विपुल पर पूरापूरा भरोसा था. उस ने तो कभी सोचा ही नहीं था कि कभी वह उस के साथ कुछ गलत करेगा या फिर उस की दुलारी बहन नेहा ही ऐसा दिल तोड़ने वाला कदम उठाएगी. तब नेहा की ग्रैजुएशन की परीक्षा थी और श्रेया ने ही विपुल से कहा था कि नेहा को पढ़ा दिया करें. पर उसे कहां पता था कि वह अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार रही है.
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