रेटिंग : 3 स्टार
लेखक व निर्देशक: निखिल मेहरोत्रा
कलाकार : श्वेता त्रिपाठी, योगेंद्र विक्रम सिंह , कनुप्रिया पंडित, नरोत्तम वैद.
अवधि : 15 मिनट
ओ टीटी प्लेटफार्म : सोनी लिव
हर इंसान मैं छोटी मोटी बीमारियां ऐसी होती हैं , जिसकी वजह से इंसान सदैव हीन ग्रंथि का शिकार रहता है और तमाम काल्पनिक विपत्तियों को सोच कर परेशान होता रहता है. इसी मुद्दे पर फिल्मकार निखिल मेहरोत्रा एक सोचने पर मजबूर करने वाली लघु फिल्म “लघु शंका ” लेकर आए हैं जो कि 16 अक्टूबर से ओटीटी प्लेटफॉर्म सोनी लिव पर देखी जा सकती है.
कहानी:
फिल्म लघुशंका की कहानी शादी के योग्य लड़की श्रुति(श्वेता त्रिपाठी) की कहानी है , जिसे रात में बिस्तर गीला करने की आदत है. उसकी इस आदत से स्वयं श्रुति और उसके माता(कनुप्रिया पंडित)-पिता(नरोत्तम वैद) भी हमेशा शर्मिंदगी महसूस करते हैं. श्रुति की शादी तय हो गई है और 2 दिन पहले श्रुति को लगता है कि उसके होने वाले पति (योगेंद्र विक्रम सिंह)और ससुराल पक्ष को इस बात की जानकारी दे दी जानी चाहिए. इसी बात पर घर के अंदर बहस छिड़ जाती है, जिसमें श्रुति का में मेरा भाई अपने शब्दों के बाण से श्रुति वा पूरे परिवार को शर्मिंदा करने की कोशिश करता है. श्रुति के पिता चाहते हैं कि शादी रद्द कर दी जाए. पूरे परिवार में जबरदस्त हंगामा होता है अंततः श्रुति एक निर्णय लेती है और उनकी शादी हो जाती है. अब शादी के बाद क्या होता है इसके लिए तो “लघुशंका” देखनी पड़ेगी.
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कहानी व निर्देशन:
फिल्मकार निखिल मेहरोत्रा बधाई के पात्र हैं कि उन्होंने महज 15 मिनट की बेहतरीन पटकथा वाली लघु फिल्म के माध्यम से एक बहुत बड़े मुद्दे पर बहुत बड़ा संदेश देने की कोशिश की है. निर्देशक निखिल मेहरोत्रा ने नींद में बिस्तर गीला करने की समस्या के मुद्दे को बेहतरीन तरीके से उकेरा है. एक भावनात्मक दृश्य में श्रुति व उसकी विनम्र मां (कनुप्रिया पंडित) अब तक इस बात को छिपाती रही हैं, जो उन दोनों के मन में ‘लघुशंका’ के रूप में है. इसमें एक अहम सवाल उठाया गया है कि दांपत्य जीवन की नींव झूठ पर रखी जानी चाहिए या नहीं. निर्देषक ने अति संवेदनषील विषय पर बिना फिजूल की कहानी गढ़े एक सरल फिल्म बनायी है. वह ख्ुाद भी लेखक हैं. इससे पहले सह लेखक के रूप में वह ‘दंगल’व‘पंगा’में अपनी प्रतिभा दिखा चुके हैं. लेकिन क्लायमेक्स में पहुंचते पहुंचते लेखक व निर्देशक चूक गए. इस नाजुक मुद्दे पर गंभीर चर्चा आगे होनी चाहिए थी, पर अचानक इसे जिस तरह से अचानक खत्म किया गया, वह खलता है. यह फिल्म रूढ़िवादी मानवीय चिंताओं पर कटाक्ष भी करती है. यह लघु फिल्म लोगों को सोचने पर विवश करती है.
मन्नान शाह का बैकग्राउंड म्यूजिक नाटकीय पहलू के साथ-साथ इसके मजेदार बिट्स दोनों को अच्छी तरह से मिला देता है.
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अभिनय:
श्वेता त्रिपाठी बेहतरीन अभिनेत्री हैं, इस बात को वह लगातार वेब सीरीज वह कुछ फिल्मों में साबित करती चली जा रही हैं. श्रुति के किरदार में श्रुति की शर्मिंदगी और फिर एक अटल निर्णय लेकर एक सशक्त नारी के रूप में जिस तरह वह उभरती है, उसे श्वेता त्रिपाठी ने बखूबी अपने अभिनय से संवारा है. कनुप्रिया पंडित नरोत्तम वैद्य योगेंद्र विक्रम सिंह ने भी अपने किरदारों के साथ न्याय किया है.