घरों को नए ढंग से जमाना होगा

जिन्होंने अच्छा वेतन मिलने पर अच्छे मकान किराए पर ले  लिए थे या ईएमआई पर अच्छे मकान खरीदे थे वे अब सकते में हैं. ‘सैंटर फौर मौनिटरिंग इकौनौमी’ ने कहा है कि 91% लोगों में, जिन्होंने अप्रैल में बेकारी का सामना किया है, 18% तो छोटे व्यापारी हैं और 18% ही नौकरीपेशा हैं. इस से पहले इस तरह का कहर नोटबंदी के समय झेलना पड़ा था.

अब इन लोगों में से जो ऊंचे किराए के मकान या ऊंची ईएमआई वाले मकान में रह रहे हैं, उन्हें मकान तो बदलना ही होगा.

जिस तरह से देश का आर्थिक ढांचा दिनबदिन बिगड़ रहा है उसे देखते हुए कोई उम्मीद नहीं कि 2-4 महीनों में सब ठीक हो जाएगा. सैकड़ों कारखानों और छोटा व्यापार करने वालों को सदा के लिए दरवाजे बंद कर देने पड़े हैं. उन के फिर से पटरी पर आने के आसार फिलहाल नहीं हैं, क्योंकि 5-6 महीनों में उन्होंने जो नुकसान सहा है उस से उन की पूरी जमा पूंजी खत्म हो गई.

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अब घरेलू बचत का एकमात्र आसरा सस्ता मकान ही है. कुछ देशों ने तो कानून बना कर किराया न देने वाले किराएदारों को प्रोटैक्शन दिया है पर वहां पहले कोई प्रोटैक्शन था ही नहीं. हमारे यहां किराएदार को निकालना हमेशा कठिन रहा है. अब और ज्यादा छूट देने का मतलब होगा मकान को किराए पर दिया ही न जाए.

घरों को अब नए ढंग से जमाना होगा, यह पक्का है. झूठी शान को छोड़ना होगा, क्योंकि गंगा के किनारे तो अब सभी नंगे हैं और गंगा का पानी सब जगह बराबर का गंदा है. मकान छोड़ने और बदलने में अब हिचकिचाहट नहीं होनी चाहिए. जो लोग पहले यह काम कर लेंगे वे मजे में रहेंगे और बेकारी का मुकाबला आसानी से कर सकेंगे.

घर बदलने का मतलब और छोटे व सस्ते मकान में जाना है ताकि आप के और बच्चों के दोस्त, स्कूल, किट्टी पार्टियां भी बदलें. यह होना है तो होना है. इस पर रोनाकल्पना गलत होगा. पूजापाठ तो होता ही बेकार है. इसलिए नए घर को मनमाफिक ढंग से जमाएं. बड़े मकान का सारा सामान फिट न करें कि कल फिर जरूरत होगी. यादों को जमा कर रखना एक गलत चीज है.

यह न भूलें कि न तो कोरोना कहीं जल्दी जाने वाला है और न ही यह सरकार जिसे मंदिरों, पूजापाठों, मूर्तियों के आगे लोटने, हिंदूमुसलिम करने की ज्यादा पड़ी रहती है. वजह जो भी हो, दोनों हमारे साथ रहेंगे. कुछ कंट्रोल हो जाए तो बात दूसरी.

हम वैसे भी रामायण और महाभारत के युग में जीने वाले लोग भी हैं और इन्हें पढ़ें तो लगता ही नहीं कि मुख्य पात्रों की जिंदगी में कभी ठहराव था. या तो वे युद्ध करते रहते या बचाव के लिए जंगलों में भटकते रहते या फिर एकदूसरे पर तलवार उठाते रहते. ऐसी सोच वाली सरकार को कोविड-19 और बेकारी की चिंता होगी, यह भूल जाइए. जब फरवरीमार्च में चीन अपने शहर बंद कर रहा था और भारत में उद्योग मंदी की वजह से बंद हो रहे थे, तब यह सरकार नागरिक संशोधन कानून ला रही थी, कश्मीर को दुरुस्त कर रही थी, सुप्रीम कोर्ट में राममंदिर केस फिट कर रही थी. मध्य प्रदेश की सरकार गिरा रही थी. अमेरिकी राष्ट्रपति का खयाल कर रही थी. एकदम पौराणिक तर्ज पर.

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आप को अपनी मंदी से खुद निबटना है और इस के लिए घर में हो रहे सब से मोटे खर्च पर सब से पहले नजर डालने में हरज नहीं है. अगर नौकरी है, व्यापार चल ही रहा है तो भी तैयारी करते रहें. लंबे दौर तक चलने वाले अंधकार के आसार हैं. न हो कुछ बुरा तो अच्छा घर हो जाए तो उस से हंस कर झूमो, रो कर नहीं.

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