आधुनिक जीवन का एक भी दिन कंप्यूट्र्स और लैपटौप के बिना गुजारना असंभव है. ऐसा नहीं है कि हम इनके बिना मर जाएंगे. लेकिन इनके बिना आज 90 फीसदी से ज्यादा कामकाज किये ही नहीं जा सकते. चाहे आधुनिक ग्लोबल व्यापार हो, चाहे माॅडर्न कम्युनिकेशन हो, चाहे यातायात हो. गरज ये कि आज कोई भी काम बिना कंप्यूटर नहीं हो सकता सिवाय जिस्मानी श्रम के और इस जिस्मानी श्रम में भी जिस दिशानिर्देश की जरूरत होती है, वे भी कंप्यूटर और लैपटौप के जरिये ही हासिल होते हैं. खेतों में काम करना तो जिस्मानी श्रम है. लेकिन इसे कैसे किया जाना है, कितना करना है, इस सबके लिए भी तमाम गाइड लाइन इन्हीं कंप्यूटर और लैपटौप में मौजूद होती हैं.
यूरोप में 95 फीसदी खेती आधुनिक उपकरणों और मौडर्न डेमो व्यवस्था के जरिये होती है, जिसे किसान अपने कंप्यूटर या लैपटौप में देखकर ही खेतों में अंजाम देतर है. खेती किसानी के तमाम डाटा, बेहतर किसानी के तमाम टिप्स ये सब इन्हीं उपकरणों से संभव हैं. यूं तो लैपटौप कंप्यूटर का ही छोटा और पोर्टेबल संस्करण है. लेकिन जिस तरह से इस छोटी सी मशीन ने अपना महत्व विकसित किया है, उसके कारण, आज यह कंप्यूटर पर भारी है. लैपटौप आज की दुनिया में चलता-फिरता और हर आधुनिक कामगार की पीठ में लदा उसका दफ्तर है. जब तक लैपटौप का चलन इतना ज्यादा नहीं था, तब तक हमारे साथ हमारा दफ्तर बहुत थोड़ी मात्रा में ही घर आता था. जब से लैपटौप मुख्य कामकाजी मशीन मंे तब्दील हुआ है, तब से पूरा का पूरा दफ्तर हमारे साथ घर चला आता है.
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आज की तारीख में पूरी दुनिया में 50 करोड़ से ज्यादा लोग दफ्तर नहीं जाते हैं. उन्हें दफ्तर जाने से मुक्ति इसी लैपटौप ने दिलवायी है. ये लोग जो दफ्तर नहीं जाते, लैपटौप की बदौलत ही जहां होते हैं, वहीं अपने दफ्तर को क्रिएट कर लेते हैं. वर्क फाॅर्मे होम कामकाजी दुनिया में एक नयी और बहुत अर्थपूर्ण शब्दावली बन गई है. इस शब्दवाली को अभिव्यक्ति भले भाषा देती हो, लेकिन इसका अविष्कार इसी लैपटौप ने किया है. जब तक लैपटौप नहीं था, तब तक घर से काम करने की ऐसी सुविधा नहीं थी, जैसी आज है. आज इस लैपटौप की बदौलत ही टोक्यो में 20 लाख स्क्वायर फिट आॅफिस स्पेस की मांग कम हो गई है. दूसरे अर्थों में लैपटौप ने टोक्यो में आॅफिस स्पेस की बढ़ती मांग पर लगाम लगा दिया है.
सिर्फ टोक्यो की ही बात नहीं है. न्यूयार्क, मुंबई, बंग्लुरु. कहने का मतलब दुनिया का कोई भी तेजरफ्तार कामकाजी शहर ऐसा नहीं है, जहां इस लैपटौप की बदौलत लाखों कामगार आॅफिस से दूर रहकर अपने काम निपटा रहे हैं और इस तरह से आॅफिस स्पेस की बढ़ती मांग को कम करने में मदद कर रहे हैं. अगर आर्थिक नजरिये से देखें तो आज की तारीख में हर दिन दुनिया में जितना कामकाज होता है, उसमें 50 फीसदी से ज्यादा अकेले लैपटौप के जरिये सम्पन्न होता है. जिसे हम सेवा क्षेत्र का कामकाज कहते हैं, वह तो 95 फीसदी तक इसी कंप्यूटर और लैपटौप से होता है. इसलिए बैकिंग, इंश्यारेंस, आईटी जैसे क्षेत्रों के तो ज्यादातर काम इसी से हो रहे हैं. अगर इस सम्पन्न काम का आर्थिक मूल्य निकालें तो 5000 अरब डाॅलर की कीमत का कामकाज हर दिन लैपटौप निपटाते हैं. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि आज की अर्थव्यवस्था में लैपटौप की कितनी बड़ी भूमिका है.
माना जाता है कि सिलिकाॅन वैली ने पूरी दुनिया का चेहरा बदल दिया. लेकिन इस सिलिकाॅन वैली की दुनिया वास्तव में जिस कए डिवाइस पर सबसे ज्यादा निर्भर है, उसे लैपटौप कहते हैं. इस समय एक मोटे अनुमान के मुताबिक दुनिया में करीब 6 अरब लैपटौप मौजूद हैं और करीब 5.5 अरब लैपटौप हर दिन 10 से 12 घंटे तक सक्रिय रहते हैं. मोबाइल फोन के बाद दुनिया में जो डिवाइस सबसे ज्यादा मौजूद है, वह लैपटौप है. आज शायद ही कोई ऐसा काम हो, जो लैपटौप से संभव न होता हो. चाहे पढ़ना हो, चाहे लिखना हो, चाहे पढ़ाना हो, चाहे दिखाना हो या कोई भी काई काम करना हो, वह लैपटौप से ही संभव है. लैपटौप में सिर्फ आपका दफ्तर ही नहीं आज के जमाने की पूरी की पूरी आधुनिक दुनिया और जीवन मौजूद है.
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हर दिन 10 करोड़ से ज्यादा फिल्में लैपटौप के जरिये देखी जाती हैं. हर दिन करीब 36 करोड़ गाने लैपटौप के जरिये सुने जाते हैं. हर दिन 2000 अरब डाॅलर का लेनदेन इसी लैपटौप के जरिये होता है और हर दिन करीब 53 करोड़ ई-मेल लैपटौप द्वारा ही भेजे या पाये जाते हैं. लैपटौप में आज क्या नहीं है? यह आपको संगीत सुनाता है, ये आपको वर्कआउट में मदद करता है, ये आपको घर बैठे बाजार कराता है, ये आपको घर बैठे दुनिया की ही नहीं ब्रह्मांड की भी सैर कराता है. लैपटौप आज की दुनिया का ऐसा आधार है जिस पर ये दुनिया टिकी है. अगर ये आधार दुनिया के नीचे से निकल जाए तो पूरी दुनिया न सिर्फ भरभराकर ढह जाए बल्कि एक पल भी ऐसी न रह सके जैसे की वो है.