जैसे ही बड़े साहब के कमरे में छोटे साहब दाखिल हुए, बड़े साहब हत्थे से उखड़ पड़े, ‘‘इस दीवाली पर प्रदेश में 2 अरब की मिठाई बिक गई, आप लोगों ने व्यापार कर वसूलने की कोई व्यवस्था ही नहीं की. करोड़ों रुपए का राजस्व मारा गया और आप सोते ही रह गए. यह देखिए अखबार में क्या निकला है? नुकसान हुआ सो हुआ ही, महकमे की बदनामी कितनी हुई? पता नहीं आप जैसे अफीमची अफसरों से इस मुल्क को कब छुटकारा मिलेगा?’’
बड़े साहब की दहाड़ सुन कर स्टेनो भी सहम गई. उस के हाथ टाइप करते-करते एकाएक रुक गए. उस ने अपनी लटें संभालते हुए कनखियों से छोटे साहब के चेहरे की ओर देखा, वह पसीनेपसीने हुए जा रहे थे. बड़े साहब द्वारा फेंके गए अखबार को उठा कर बड़े सलीके से सहेजते हुए बोले, ‘‘वह…क्या है सर? हम लोग उस से बड़ी कमाई के चक्कर में पड़े हुए?थे…’’
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उनकी बात अभी आधी ही हुई थी कि बड़े साहब ने फिर जोरदार डांट पिलाई, ‘‘मुल्क चाहे अमेरिका की तरह पाताल में चला जाए. आप से कोई मतलब नहीं. आप को सिर्फ अपनी जेबें और अपने घर भरने से मतलब है. अरे, मैं पूछता हूं यह घूसखोरी आप को कहां तक ले जाएगी? जिस सरकार का नमक खाते हैं उस के प्रति आप का, कोई फर्ज बनता है कि नहीं?’’
यह कहते-कहते वह स्टेनो की तरफ मुखातिब हो गए, ‘‘अरे, मैडम, आप इधर क्या सुनने लगीं, आप रिपोर्ट टाइप कीजिए, आज वह शासन को जानी है.’’
वह सहमी हुई फिर टाइप शुरू करना ही चाहती थी कि बिजली गुल हो गई. छोटे साहब और स्टेनो दोनों ने ही अंधेरे का फायदा उठाते हुए राहत की कुछ सांसें ले डालीं. पर यह आराम बहुत छोटा सा ही निकला. बिजली वालों की गलती से इस बार बिजली तुरंत ही आ गई.
‘‘सर, बात ऐसी नहीं थी, जैसी आप सोच बैठे. बात यह थी…’’ छोटे साहब ने हकलाते हुए अपनी बात पूरी की.
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‘‘फिर कैसी बात थी? बोलिए… बोलिए…’’ बड़े साहब ने गुस्से में आंखें मटकाईं. स्टेनो ने अपनी हंसी को रोकने के लिए दांतों से होंठ काट लिए, तब जा कर हंसी पर कंट्रोल कर पाई.
‘‘सर, हम लोग यह सोच रहे थे कि मिठाई की बिक्री तो 1-2 दिन की थी, जबकि फल और सब्जियों की बिक्री रोज होती है, पापी पेट भरने के लिए सब्जियां खरीदा जाना आम जनता की विवशता है. तो क्यों न उस पर…’’
इतना सुनना था कि बड़े साहब की आंखों में चमक आ गई, वह खुशी से उछल पडे़, ‘‘अरे, वाह, मेरे सोने के शेर. यह बात पहले क्यों नहीं बताई? अब आप बैठ जाइए, मेरी एक चाय पी कर ही यहां से जाएंगे,’’ कहतेकहते फिर स्टेनो की तरफ मुड़े, ‘‘मैडम, जो रिपोर्ट आप टाइप कर रही? थीं, उसे फाड़ दीजिए. अब नया डिक्टेशन देना पड़ेगा. ऐसा कीजिए, चाय का आर्डर दीजिए और आप भी हमारे साथ चाय पीएंगी.’’
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अगले दिन से शहर में सब्जियों पर कर लगाने की सूचना घोषित कर दी गई और उस के अगले दिन से धड़ाधड़ छापे पड़ने लगे. अमुक के फ्रिज से 9 किलो टमाटर निकले, अमुक के यहां 5 किलो भिंडियां बरामद हुईं. एक महिला 7 किलो शिमलामिर्च के साथ पकड़ी गई?थी, पर 2 किलो के बदले में उसे छोड़ दिया. जब आईजी से इस बाबत बात की गई तो पता चला कि वह सब्जी बेचने वाली थी, उस ने लाइसेंस के लिए केंद्रीय कार्यालय में अरजी दी हुई है. शहर में सब्जी वालों के कोहराम के बावजूद अच्छा राजस्व आने लगा. बड़े साहब फूले नहीं समा रहे थे.
एक दिन बड़े साहब सपरिवार आउटिंग पर थे. औफिस में सूचना भेज दी थी कि कोई पूछे तो मीटिंग में जाने की बात कह दी जाए. छोटे साहब और स्टेनो, दोनों की तो जैसे लाटरी लग गई. उस दिन सिवा चायनाश्ते के कोई काम ही नहीं करना पड़ा. अभी हंसीमजाक शुरू ही हुआ था कि चपरासी ने उन्हें यह कह कर डिस्टर्ब कर दिया कि कोई मिलने आया है.
छोटे साहब ने कहा, ‘‘मैं देख कर आता हूं,’’ बाहर देखा तो एक नौजवान अच्छे सूट और टाई में सलाम मारता मिला. उसे कोई अधिकारी जान छोटे साहब ने अंदर आने का निमंत्रण दे डाला. उस ने हिचकिचाते हुए अपना परिचय दिया, ‘‘मैं छोटा-मोटा सब्जी का आढ़ती हूं. इधर से गुजर रहा था तो सोचा क्यों न सलाम करता चलूं,’’ यह कहते हुए वह स्टेनो की ओर मुखातिब हुआ, ‘‘मैडम, यह 1 किलो सोयामेथी आप के लिए?है और ये 6 गोभी के फूल और 2 गड्डी धनिया, छोटे साहब आप के लिए.’’
छोटे साहब ने इधरउधर देखा और पूछा, ‘‘बड़े साहब के लिए?’’
उस ने दबी जबान से बताया, ‘‘एक पेटी टमाटर उन के घर पहुंचा आया हूं.’’
बड़े साहब की रिपोर्ट शासन से होती हुई जब अमेरिका पहुंची तो वहां के नए राष्ट्रपति ने ऐलान किया कि अगर लोग हिंदुस्तान की सब्जी मार्किट में इनवेस्ट करना शुरू कर दें तो वहां के स्टाक मार्किट में आए भूचाल को समाप्त किया जा सकता है.
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एक अखबार ने हिंदुस्तान की फुजूलखर्ची पर अफसोस जताते हुए खबर छापी, ‘‘अगर चंद्रयान के प्रक्षेपण पर खर्च किए धन को सब्जी मार्किट में लगा दिया जाता तो उस के फायदे से लेहमैन जैसी 100 कंपनियां खरीदी जा सकती थीं.’’
जैसे आयकर के छापे पड़ने से बड़े लोगों के सम्मान में चार चांद लगते हैं, बड़ेबड़े घोटालों के संदर्भ में छापे पड़ने से राजनीतिबाज गर्व का अनुभव करते हैं, आपराधिक मुकदमों की संख्या देख कर चुनावी टिकट मिलने की संभावना बढ़ती है वैसे ही सब्जी के संदर्भ में छापे पड़ने से सदियों से त्रस्त हम अल्पआय वालों को भी सम्मान मिल सकता है, यह सोच कर मैं ने भी अपने महल्ले में अफवाह उड़ा दी कि मेरे घर में 5 किलो कद्दू है.
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छापे के इंतजार में कई दिन तक कहीं बाहर नहीं निकला. अपनी गली से निकलने वाले हर पुलिस वाले को देख कर ललचाता रहा कि शायद कोई आए. मेरा नाम भी अखबारों में छपे. 15 दिन की प्रतीक्षा के बाद जब मैं यह सोचने को विवश हो चुका था कि कहीं कद्दू को बीपीएल (गरीबी रेखा के नीचे) में तो नहीं रख दिया गया? तभी एक पुलिस वाला आ धमका. मेरी आंखों में चमक आ गई. मैं ने बीवी को बुलाया, ‘‘सुनती हो, इन को कद्दू ला के दिखा दो.’’
बीवी मेरे द्वारा बताए गए दिशा- निर्देशों के अनुसार पूरे तौर पर सजसंवर कर…बड़े ही सलीके से 250 ग्राम कद्दू सामने रखती हुई बोली, ‘‘बाकी 15 दिन में खर्च हो गयाजी.’’
पुलिस वाले ने गौर से देखा कि न तो चायपानी की कोई व्यवस्था थी और न ही मेरी कोई मुट्ठी बंद थी. उस की मुद्रा बता रही थी कि वह मेरी बीवी के साजशृंगार और मेरे व्यवहार, दोनों ही से असंतुष्ट था. वह मेरी तरफ मुखातिब हो कर बोला, ‘‘आप को अफवाह फैलाने के अपराध में दरोगाजी ने थाने पर बुलवाया है.’’
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