लौट आओ मौली: एक गलतफहमी के कारण जब आई तलाक की नौबत

लौट आओ मौली: भाग 4- एक गलतफहमी के कारण जब आई तलाक की नौबत

लेखक- नीरजा श्रीवास्तव

स्वरा का नंबर तो मिला, पर वह अब प्रयाग में नहीं दिल्ली में थी. उस ने सीधे कहा, ‘‘अब क्या फायदा उन का डिवोर्स भी हो गया. उस समय तो कोई आया भी नहीं. मलय ने तो उस की जिंदगी ही तबाह कर दी थी. उस की मम्मी भी उस के गम से चल बसीं. अब तो अपने पति शशांक के साथ कनाडा में बहुत खुश है. आप लोग उस की फिक्र न करें तो बेहतर होगा.’’

‘‘ऐसा नहीं हो सकता स्वरा.’’

‘‘डिवोर्स हो गया और क्या नहीं हो सकता?’’

‘‘वही तो, मैं हैरान हूं. मुझे मालूम है कि वह बहुत प्यार करती थी मलय से,

इस घर से, हम सब से. मेरी भाभी ही नहीं, वह मेरी सहेली भी थी. यकीन नहीं होता कि उस ने बिना कुछ बताए डिवोर्स भी ले लिया और दूसरी

शादी भी कर ली. दिल नहीं मानता. कह दो स्वरा यह झूठ है. मैं पति के साथ सालभर के लिए न्यूजीलैंड क्या गई इतना कुछ हो गया.तुम उस का नंबर तो दो, मैं उस से पूछूंगी

तभी विश्वास होगा. प्लीज स्वरा,’’ हिमानी ने रिक्वैस्ट की.

‘‘नहीं, उस ने किसी को भी नंबर देने के लिए मना किया है.

‘‘क्या करेंगी दी, मौली बस हड्डियों का ढांचा बन कर रह गई है. उस की हालत देखी नहीं जाती. उसी ने… कोई उस के बारे में पूछे तो यही सब कहने के लिए कहा था,’’ स्वरा फूटफूट कर रो पड़ी. हार कर दे ही दिया मौली का नया नंबर स्वरा ने.

‘‘यह तो इंडिया का ही है,’’ हिमानी आश्चर्यचकित थी.

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‘‘दी, न वह कनाडा गई न ही शशांक से शादी हुई है उस की. शशांक तो मेरी बुआजी का ही लड़का है. 4 महीने कोमा में पड़ा था, भयानक दुर्घटना की चपेट में आ गया था, कुछ दिनों बाद पता चला था. बच ही गया. होश आने पर भी बहुत सारी प्रौब्लम थी उसे. दिल्ली ले कर आई थीं बुआ जी. एम्स में इलाज के बाद एक महीने पहले ही तो प्रयाग लौटा है. वही मौली का हालचाल देता रहता है.’’

हिमानी ने फटाफट नंबर डायल किया.

‘‘हैलो…’’ वही प्यारी पर आज बेजान सी आवाज मौली की ही थी.

‘‘मौली, मैं तुम्हारी हिमानी दी. एक पलमें पराया बना दिया… किसी को कुछ बताया क्यों नहीं? यह क्या कर डाला तुम दोनों ने, दोनों पागल हो?’’

‘‘उधर से बस सिसकी की आवाज आती रही.’’

‘‘मैं जानती हूं तुम दोनों को… जो हाल तुम्हारा है वही मलय का है. दोनों ने ही खाट पकड़ ली है. इतना प्यार पर इतना ईगो… उस ने गलत तो बहुत किया, सारे अपनों के चले जाने से वह बावला हो गया था. उसी बावलेपन में तुम्हें भी खो बैठा. अपने किए पर बहुत शर्मिंदगी महसूस कर रहा है. पश्चाताप में बस घुला ही जा रहा है. आज भी बहुत प्यार करता है तुम से. तुम्हें खोने के बाद उसे अपनी जिंदगी में तुम्हारे दर्जे का एहसास हुआ.’’

मौली की सिसकी फिर उभरी थी

‘‘ऐसे तो दोनों ही जीवित नहीं बचोगे.ऐसे डिवोर्स का क्या फायदा? तुम ने तो पूरी कोशिश की छिपाने की, पर स्वरा ने सब सच बता दिया.

‘‘लौट आओ मौली. मैं आ रही हूं. कान उमेठ कर लाऊंगी इसे. पहले माफी मांगेगा तुम से. अब कभी जो इस ने तुम्हारा दिल दुखाया, तुम्हें रुलाया तो मेरा मरा… पलंग से उठ कर जाने कैसे मलय ने हाथ से हिमानी को आगे बोलने से रोक लिया.

‘‘दी, ऐसा फिर कभी मत बोलना.’’

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‘‘दोनों कान पकड़ अपने फिर,’’ हिमानी ने प्यार भरी फटकार लगाई.

‘‘एक लड़की जो सारे घर से सामंजस्य बैठा लेती है, सब को अपना बना लेती है

तू उस के साथ ऐडजस्ट नहीं कर पा रहा था. कुछ तेरी पसंद, आदतें हैं, संस्कार हैं माना, तो कुछ उस के भी होंगे… नहीं क्या? क्या ऐडजस्ट करने का सारा ठेका उसी ने ले रखा है? मैं ऐसी ही थी क्या पहले… कुछ बदली न खुद पति देवेन के लिए? देवेन ने भी मेरे लिए अपने को काफी चेंज किया, तभी हम आज अच्छे कपल हैं. तुझे भी तो कुछ त्याग करना पड़ेगा, बदलना पड़ेगा उस के लिए. अब करेगा? बदल सकेगा खुद को उस के लिए?’’

‘‘हां दी, आप जैसा कहोगी वैसा करूंगा,’’ हिमानी उस के चेहरे पर उभर आई आशा की किरण स्पष्ट देख पा रही थी.

‘‘ले बात कर, माफी मांग पहले उस से…’’ हिमानी जानबूझ कर दूसरे कमरे में चली गई.

‘‘किस मुंह से कहूं मौली मैं तुम्हारा गुनहगार हूं, मुझे माफ कर दो. मैं ने तुम्हारे साथ बहुत गलत किया. शादी के बाद से ही तुम घर की जिम्मेदारियां

ही संभालती रहीं. हनीमून क्या कहीं और भी तो ले नहीं गया कभी घुमाने. अपनी ही इच्छाएं थोपता रहा तुम पर. अपने पिता का शोक तुम

ने कितने दिन मनाया था. हंसने ही तो लगी थी हमारे लिए और मैं अपने गम, अपने खुद के उसूलों में ही डूबा रहा. तुम्हारे साथ 2 कदम भी न चल सका.

‘‘बच्चा गोद लेना चाहती थी तुम, पर मैं ने सिरे से बात खारिज कर दी. तुम ने ट्यूशन पढ़ाना चाहा पर वह भी मुझे सख्त नागवार गुजरा. सख्ती से मना कर दिया. तुम्हारे दोस्त के लिए बुराभला कहा, तुम पर कीचड़ उछाला… कितना गिर गया था मैं. सब गलत किया, बहुत गलत किया मैं ने… तुम क्या कोई भी नहीं सहन करता… कुछ बोलोगी नहीं तुम, मैं जानता हूं मुझे माफ करना आसान न होगा…

‘‘बहुत ज्यादती की है तुम्हारे साथ. मुझे कस के झिड़को, डांटो न… कुछ बोलोगी नहीं, तो मैं आ जाऊंगा मौली.’’

पहले सिसकी उभरी फिर फूटफूट कर मौली के रुदन का स्वर मलय को अंदर तक झिंझोड़ गया.

‘‘मैं आ रहा हूं तुम्हारे पास. मुझे जी भर के मार लेना पर मेरी जिंदगी तुम हो, उसे लौटा दो मौली. मैं दी को देता हूं फोन.’’

‘‘चुप हो जा मौली अब. बस बहुत रो चुके तुम दोनों. मैं दोनों की हालत समझ रही हूं. तुम आने की तैयारी करना, कुछ दिनों में तुम्हारे मलय को फिट कर के लाती हूं.’’

सिसकियां आनी बंद हो गई थीं. वह मुसकरा उठी.

‘‘कुछ बोलोगी नहीं मौली…?’’

‘‘जी…’’ महीन स्वर उभरा था.

‘‘जल्दी सेहत सुधार लो अपनी, हम आ रहे हैं. फिर से ब्याह कर के तुम्हें वापस लाने के लिए… तैयार रहना… इस बार दीवाली साथ में मनाएंगे… तुम्हारे देवेन जीजू पहले जैसे तैयार मिलेंगे… तुम लोगों का बचकाना कांड सुन कर बहुत मायूस थे. मैं अभी उन्हें खुशखबरी सुनाती हूं. एक बार अपनी इस हिमानी दी का विश्वास करो. तुम्हारा घर तुम्हारी ही प्रतिक्षा कर रहा है. बस अपने घर लौट जाओ मौली…’’

‘‘ठीक है दी, जैसी आप सब की मरजी…’’ मौली की आवाज में जैसे जान आ गई थी. हिमानी ने सही ही महसूस किया था.

‘‘जल्दी तबियत ठीक कर ले, फिर चलते हैं प्रयाग. एक नए संगम के लिए,’’ हिमानी ने मुसकरा कर मलय के गाल थपथपाए और उस के माथे की गीली पट्टी बदल दी.

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मौली का फोन कटते ही हिमानी ने खुशीखुशी पति देवेन को सूचना देने के लिए नंबर डायल कर दिया.

‘‘मौली को अच्छी तरह समझाबुझा कर शशांक निकला ही था कि रास्ते में तेज आती ट्रक से इतनी जबरदस्त टक्कर हुई कि वह उड़ता हुआ दूर जा गिरा…’’

लौट आओ मौली: भाग 3- एक गलतफहमी के कारण जब आई तलाक की नौबत

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लेखक- नीरजा श्रीवास्तव

एक दिन काम से लौटा तो मौली बच्चों के साथ हैप्पी बर्थडे गीत गा कर क्लैपिंग करवा रही थी. किसी बच्चे का जन्मदिन था. चौकलेट ले कर बच्चे बस घर जा ही रहे थे. उन को गेट तक छोड़ कर वह अंदर आ गई.

मलय बरस पड़ा, ‘‘मालूम है न मुझे काम से लौट कर आने पर शांति चाहिए.

ये सब ड्रामे पसंद नहीं. कल से बच्चे मेरे घर में पढ़ने नहीं आएंगे. ज्यादा शौक है तो कहीं और किराए पर रूम ले कर पढ़ाओ, मेरी खुशियों से तो तुम्हें कोई मतलब नहीं, बस अपने में ही लगी रहो…’’ वह बच्चों के सामने झल्लाता हुए अपने रूम में चला गया. मौली के दिल में खंजर की तरह बात घुस गई, मोटेमोटे आंसू गाल पर ढुलकने लगे. सब्र का बांध जैसे टूट चला था.

‘‘मेरा घर… मेरी खुशी… मैं तो अपना घर समझ ब्याह कर आई थी. मुफ्त की ड्यूटी बजाने के लिए नहीं. न ही नौकर की तरह बस तुम्हारे हुक्म की तामील करने. अपनी खुशी की बात करते हो, कभी पत्नी की खुशी सोची तुम ने?

‘‘नाजों से पली बेटी, अपना ऐशोआराम सब कुछ छोड़ पराए घर को अपना लेती है, सब की सेवा में जीजान से लगी रहती है, अपनी आदतों को दूसरों की आदतों में खुशीखुशी ढालने में हर पल प्रयासरत रहती है, खानपान, पहनावा, व्यवहार, खुशी, गम, मजबूरी सब को ही अपना लेती है और एक सैकंड में तुम ने बाहर का रास्ता दिखा दिया. ऐसी ही पत्नी चाहिए थी तो किसी गरीब, बेसहारा, अनपढ़ को ब्याह लाने की हिम्मत करते, जो तुम्हारी खैरात का एहसान मान कर हाथ जोड़े बैठी रहती. लेकिन नहीं. खानदानी और संस्कारी भी चाहिए और पढ़ीलिखी, रूपसी, इज्जतदार व अच्छे घर की भी…’’ गुस्से में कांपती मौली पहली बार एक सांस में इतना कुछ बोल गई, मलय भौंचक्का सा देखता रह गया.

मगर उस की मर्दानगी ललकार उठी, पलटवार से न चूका था.

‘‘तो तुम ने क्यों नहीं किसी भिखारी से शादी कर ली? इतनी काबिल थी तो किसी अमीर से शादी करती उस पर आराम से रोब झाड़ती और उस की मुफ्त में परवरिश भी कर देती. तुम्हें भी तो…

‘‘अपने टटपूंजिए दोस्त शशांक से क्यों नहीं कर ली थी शादी, जिस का सानिध्य पाने को आज तक लालायित फिरती हो. उस के पास पहले अच्छी जौब नहीं थी इसीलिए न?’’

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‘‘अब एक लफ्ज भी मत बोलना मलय, तुम्हारी घटिया सोच पहले ही जाहिर हो चुकी है. ठीक है, मैं उसी के पास चली जाती हूं. तुम्हारे जैसी छोटी सोच का आदमी नहीं है वह. बहुत खुश रहूंगी,’’ उस ने गुस्से में शशांक को कौल मिला दी थी.

काम से लौटा तो शशांक मौली से किए प्रौमिस के अनुसार सीधा वहीं आया था. मौली को लाख समझाने की कोशिश की पर उस ने एक न सुनी. मलय से अनुनयविनय की पर वह भी टस से मस न हुआ.

‘‘अच्छा रुको, आंटी का नंबर दो उन से बात करता हूं, फिर उन के पास पहुंच जाना. प्रयाग की टिकट बुक करवा देता हूं. धीरज रखो,’’ शशांक ने समझाया.

‘‘नहीं, कुछ हो जाएगा उन्हें. सह नहीं पाएंगी,’’ मौली की आंखों से लगातार आंसू बहे जा रहे थे.

‘‘कुछ नहीं होगा. मैं बोलूंगा कुछ दिन के लिए मन बदलने जा रही हो. धीरेधीरे सब ठीक हो जाएगा. दोनों का गुस्सा भी शांत हो जाएगा,’’ उस ने त्योरियां चढ़ाए बैठे मलय की ओर देखा, तो वहां से उठ कर वह दूसरे कमरे में जा लेटा.

‘‘जाओ मौली, तुम भी आराम कर लो. अच्छे से सोच लो पहले. ठंडा पानी पीयो, मुझे भी पिलाओ. मैं वोल्वो बस की टिकट का इंतजाम कर के कल मिलता हूं तुम से.’’

‘‘ठीक है, प्रौमिस,’’ शशांक ने उस के हाथ पर हाथ रख दिया था. मौली जानती

थी वह झूठा प्रौमिस कभी नहीं करता.

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मौली को अच्छी तरह समझाबुझा कर शशांक निकला ही था कि रास्ते में तेज आती ट्रक से इतनी जबरदस्त टक्कर हुई कि वह उड़ता हुआ दूर जा गिरा. सिर पर गहरी चोट लगी थी, पैर में भी फ्रैक्चर महसूस हुआ, मोबाइल सड़क पर टुकड़ों में पड़ा था.

‘‘अच्छा हुआ एक पाप करने से बच गया,’’ पीड़ा में भी राहत की मुसकान उस के खून रिसे होंठों पर आ गई, फिर पूरे होश गुम हो गए. लोगों और पुलिस ने उसे अस्पताल पहुंचाया. तब तक वह कोमा में जा चुका था.

जब दूसरे दिन भी न शशांक आया न उस का फोन तो मलय ने मजाक बनाना शुरू कर दिया, ‘‘इसी दोस्त के प्रौमिस का गुणगान कर रही थी, भाग गया पतली गली से,’’ वह व्यंग्य से हंसा था.

‘‘वह करे या कोई और तुम को क्या? कहीं इसी डर से तो तलाक नहीं दे रहे, सारा किस्सा ही खत्म हो जाता.’’

‘‘कौन डरता है, कल चलो.’’

‘‘ठीक है… मुकर मत जाना,’’ मौली रोष में आश्वस्त होना चाहती थी.

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और सच में बात कहां से कहां पहुंच गई. अदालत में अर्जी फिर तलाक के बाद मौली हिम्मत कर के मायके पहुंची तो मां सदमे में थीं, पर मौली ने उन्हें संभाल लिया. लेकिन खुद को न संभाल सकी. महीने में ही दोनों का तलाक हो गया था. पर शरीर क्षीण होता ही जा रहा था उस का. उधर मलय भी इगो में भर कर तलाक लेने के बाद अब पछता रहा था. हर वक्त उस का दिल कचोटता रहता. उसे सब याद आता कि कितने दिलोजान से मौली ने मेरे बूढ़े, बीमार मांबाप की तीमारदारी की थी. इतना तो वह भी नहीं कर सका था. सभी का बातों से दिल जीत लेती, सभी उस से पूछते क्यों चली गई मौली, पर उसे कोई जवाब देते न बनता.

सब ने आना कम कर दिया. सूना सा घर सांयसांय करता. वही मलय जो जरा से शोर पर चिल्ला उठता वही आज एक आवाज को तरसता. पछतावे में खाट पकड़ ली थी उस ने. दिल कोसता हर वक्त पर ‘अब पछताए होत क्या जब चिडि़या चुग गई खेत.’ अब तो कोई पानी पूछने वाला भी नहीं था. अगर हिमानी दी को किसी ने खबर न दी होती तो यों ही दम तोड़ देता.

आगे पढ़ें- स्वरा का नंबर तो मिला, पर वह…

लौट आओ मौली: भाग 2- एक गलतफहमी के कारण जब आई तलाक की नौबत

पहला भाग पढ़ने के लिए- लौट आओ मौली: भाग-1

लेखक- नीरजा श्रीवास्तव

‘‘क्यों तुम्हारे मियां को ताजा हवा अखरती है?’’ शशांक के प्रश्न पर एक उदास मलिन सी रेखा मौली के चेहरे पर उभर आई, जिसे उस ने बनावटी मुसकान से तुरंत छिपा लिया.

‘‘अब यहीं खड़ेखड़े सब जान लोगे या कहीं बैठोगे भी?’’

‘‘अरे तो तुम बाइक पर बैठो तभी तो… या वहां तक पैदल घसीटता हुआ अपनी ब्रैंड न्यू बाइक की तौहीन करूं… हा हा…’’

‘‘कुछ ही देर में शशांक के जोक्स से हंसतेहंसते मौली के पेट में बल पड़ गए. बहुत दिनों बाद वह खुल कर हंसी थी.’’

‘‘अब बस शशांक…’’ उस ने पेट पकड़ते हुए कहा, ‘‘सो रैग्युलेटेड, हाऊ

बोरिंग… न साथ में घूमना, न मूवी, न बाहर खाना, न किसी पार्टीफंक्शन में जाना. हद है यार, शादी करने की जरूरत ही क्या थी… अच्छा उन के लिए समोसे ले चलते हैं, कैसे नहीं खाएंगे देखता हूं. तुम झट अदरकइलायची वाली चाय बनाना, कौफी नहीं…’’ वह बिना संकोच किए मौली को घर छोड़ने को क्या मलय के साथ चाय भी पीने को तैयार था. मौली कैसे मना करे उसे, पता नहीं मलय क्या सोचे इसी उलझन में थी.

‘‘सोच क्या रही हो, बैठो मेरे इस घोड़े पर… अब देर नहीं हो रही?’’ अपनी बाइक की ओर इशारा कर के वह समोसे का थैला रख मुसकराते हुए फटाफट बाइक पर सवार हो गया.

घबरातेसकुचाते मौली को मलय से शशांक को मिलाना ही पड़ा. शशांक के बहुत जिद करने पर मलय ने समोसे का एक टुकड़ा तोड़ लिया था. चाय का एक सिप ले कर एक ओर रख दिया तो मौली झट उस के लिए कौफी बना लाई. शशांक ने कितनी ही मजेदार घटनाएं, जोक्स सुनाए पर मलय के गंभीर चेहरे पर कोई असर न हुआ. उस के लिए सब बचकानी बातें थीं. उस के अनुसार तो एक उम्र के बाद आदमी को धीरगंभीर हो जाना चाहिए. बड़ों को बड़ों जैसे ही बर्ताव करना चाहिए… कितनी बार मौली को उस से झाड़ पड़ चुकी थी इस बात के लिए.

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मलय उकता कर उठने को हुआ तो शशांक भी उठ खड़ा हुआ, ‘‘मैं चलता हूं. काफी बोर किया आप को, मगर जल्दी ही फिर आऊंगा, तैयार रहिएगा.’’

गेट तक आ कर मौली को धीरे से बोला, ‘‘जल्दी हार मानने वाला नहीं. इन्हें इंसान बना कर ही रहूंगा. कैसे आदमी से ब्याह कर लिया तुम ने. मिलता हूं कल शाम को… बाय.’’

इस से पहले मौली कुछ कहती वह किक मार फटाफट निकल गया.

दूसरे दिन 5 ही बजे शशांक मौली के घर उपस्थित था, ‘‘जल्दी तैयार हो जाओ, खड़ूसजी कहां हैं? उन्हें भी कहो गैट रैडी फास्ट,’’ मौली को हैरानी से अपनी ओर देखते हुए देख उस ने हंसते हुए हवा में आसमानी रंग के मूवी टिकट लहराए, जैसे कोई जादू दिखा रहा हो.़

‘‘रोहित शेट्टी की नई फिल्म की 3 टिकटें हैं.’’

‘‘तुम्हें बताया था न, नहीं जाते हैं मूवीशूवी और ऐसी कौमेडी टाइप तो बिलकुल भी नहीं.’’

‘‘अरे बुलाओ तो उन्हें, ब्लैक कौफी वहीं पिलवा दूंगा और रात का डिनर भी

मेरी तरफ से. उन के जैसा सादा शुद्ध भोजन. ऐसे मत देखो, मैं यहां नया हूं यार. मेरा यहां कोई रिश्तेदार भी नहीं. वह तो अच्छा हुआ जो तुम मिल गईं…. चलोचलो जल्दी करो. कैब बुक कर दी है 20 मिनट में पहुंच जाएगी,’’ शशांक बेचैन हो रहा था.

मलय मना ही करता रह गया पर शशांक की जिद के आगे उस की एक न चली. जबरदस्ती मूवी देखनी पड़ी थी उसे. लौट कर हत्थे से उखड़ गया, खूब बरसा था मौली पर.

‘‘अपने दोस्त को समझा लो वरना मैं ही कुछ उलटा बोल दूंगा तो रोती फिरोगी कि मेरे दोस्त को ऐसावैसा बोल दिया. तुम को जाना है तो जाओ, उस के बेवकूफी भरे जोक्स तुम ही ऐंजौय करो. बहुत टाइम है न तुम्हारे पास फालतू…’’

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मांपापा के जाने का दुख मौली को भी था पर मलय जितना नहीं होगा यह भी सही है पर जिंदगी तो चलानी ही है. कब तक यों ही मुंह लटकाए रहा जा सकता है. मौली याद करती जब अपने पापा को खोया था तो उस की उम्र 20 साल की रही होगी… कुछ दिनों तक लगता था कि सब खत्म हो गया पर जल्द ही खुद को संभाल लिया. फिर पूरे घर का माहौल खुशनुमा बना दिया था. अपनी पढ़ाई भी पूरी की. टीचिंग शुरू कर मां की घर चलाने में मदद भी करने लगी थी.

यहां मलय को खुश करने की सारी कोशिश बेकार थी. 2 साल हो गए थे मगर हर समय मायूसी छाई रहती. टीवी में भी उस की कोई दिलचस्पी न थी. मौली के पसंद के शोज को वह बकवास, बच्चों वाले, मैंटल के खिताब भी दे डालता. हार कर मौली ने पास ही में स्कूल जौइन कर लिया कि कुछ तो दिल लगेगा, घर पर भी ट्यूशंस लेने लगी. अब कुछ अच्छा लगने लगा था उसे. समय कैसे गुजर जाता पता ही नहीं चलता. काम के साथसाथ सब से हंसनाबोलना भी हो जाता. पर शनिवार को मलय घर होता, बच्चों का शोरगुल उसे कतई रास न आता. भुनभुन करता ही रहता. मौली कोशिश करती कि शनिवार को बच्चों को न बुलाए पर परीक्षा हो तो बुलाना ही पड़ता.

उस के व्यस्त रहने और कुछ मलय की बेरुखी समझने के कारण शशांक का घर आना कम हो गया था. पर शनिवार को वे अवश्य मिल लेते. मौली पेट भर हंस लेती जैसे हफ्ते भर का कोटा पूरा कर रही हो. इधर स्कूल का भी काम बढ़ने लगा था. बच्चों की परीक्षाएं आ गई थीं, मौली को अधिक समय देना पड़ता.

मौली ने खाना बनाने के लिए कामवाली रख ली. लाख कोशिशों के बाद भी मौली सास के बने खाने जैसा स्वाद नहीं ला सकी थी… मलय को चिड़चिड़ तो करनी ही थी, हो सकता है कामवाली के हाथ का खाना पसंद आ जाए.

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मौली हरदम खुद को संवार के रखती कि इसी बहाने कभी तो प्यार के 2 मीठे बोल बोले, कुछ प्यारी सी टिप्पणी कर दे, पर वह कभी कुछ न बोलता. बात वह पहले भी कहां करता था. हंसीठिठोली उसे पसंद नहीं थी, यह सब उसे बचकानी हरकतें लगतीं. उस के खट्टेमीठे अनुभव में उस की कोई दिलचस्पी न थी.

आगे पढ़ें- मौली बच्चों के साथ हैप्पी बर्थडे गीत गा कर…

लौट आओ मौली: भाग 1- एक गलतफहमी के कारण जब आई तलाक की नौबत

लेखक- नीरजा श्रीवास्तव

‘‘फिरसे 104…’’ मलय का माथा छूते हुए बड़ी बहन हिमानी ने थर्मामीटर एक ओर रख दिया, भीगे कपड़े की पट्टियां फिर से रखनी शुरू कर दीं.

‘‘पता नहीं इस का फीवर क्यों बढ़ रहा है… उतरने का नाम ही नहीं ले रहा. मलय भी इतना जिद्दी है कि डाक्टर के पास नहीं जाता,’’ हिमानी बड़बड़ा रही थी.

‘‘ठीक हो जाएगा न, करना ही क्या है…’’ मलय ने बहन हिमानी को धीरे से बोल कर समझाया.

‘‘देखी नहीं जा रही तेरी हालत. धंसीधंसी आंखें, एकदम कमजोर शरीर… मालूम है मौली का जाना तुझे सहन नहीं हो रहा. खुद ही तो कांड किया है बिना किसी को पूछे, बिना बताए तलाक तक ले डाला. पूरे 7 साल तुम दोनों साथ रहे. क्या हुआ जो मातापिता नहीं बन पाए, 2 बार गर्भपात हुआ था उस का. किसी बच्चे को गोद न लेने का भी निर्णय तुम्हारा ही था. मांपापा थे तब तक सब ठीक था. थोड़ीबहुत नोकझोंक होती थी. पर उन के जाते ही जाने क्या हो गया घर को…

‘‘मैं समझती नहीं क्या कि उस के साथ बोलनेबतियाने वाला कोई नहीं रह गया… तू तो वैसे भी कम बोलता है. बेचारी ने ऊब से बचने के लिए टीचिंग करनी शुरू कर दी और घर पर ट्यूशन लेना भी शुरू कर दिया. तुझे दोनों ही रास नहीं आए. तुझे लगा वह पैसों के लिए नौकरी कर रही है. तेरे अहं को ठेस लगी कि मैं भरपूर कमा कर देता नहीं. मैं तेरे दकियानूसी विचारों को जानती नहीं क्या?… मांबाप तेरे ही नहीं गए, उस ने भी दोबारा मातापिता का साया खोया. बहुत प्यार था उसे उन से.

‘‘तेरा गुस्सा भी अच्छी तरह जानती हूं. उस पर चिल्लाता होगा. अकेली,

पढ़ीलिखी, सोशल, संयुक्त परिवार की लड़की करती भी क्या? किसी से उस का मिलनाजुलना तुझे पसंद नहीं आ रहा था, न ही किसी का आनाजाना. अब जब वह चली गई तब भी चैन नहीं आ रहा. बीमार हो गया. उस का भी जाने क्या हाल होगा.’’

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‘‘बस करो, सिर बहुत दुख रहा है. ऐसा कुछ भी नहीं…मुझे क्या परेशानी, वह जहां चाहे जिस के साथ चाहे रहे मेरी बला से. मुझ से जान तो छूटी उस की. कहती थी कि मरोगे तो कोई पूछने वाला भी न होगा. वह यही चाहती थी. आप उस की तरफदारी कर रही हो… मर ही तो जाऊंगा इस से ज्यादा क्या होगा.’’

‘‘तेरी जरा सी तबियत खराब होने पर कैसे टपटप आंसू गिरने लगते थे उस के. तुझे जरा सी चोट लगने पर उस का चेहरा सफेद पड़ जाता था. मां के आपरेशन के समय भी कितना रोई थी. बेहोश भी हो गई थी. फिर तो उन के पास ही चिपकी बैठी रही. उन का वह सारा काम किया जो हम भी मुश्किल से कर पाते. उस ने बिना नाकभौं सिकोड़े अपनेपन से किया… ऐसे कैसे छोड़ कर, सारे रिश्ते तोड़ कर चली गई…

‘‘कोई तो नंबर दे ताकि उस से बात हो सके… ऐसे कैसे सब ने नंबर ब्लौक कर दिया… उस की पक्की सहेली स्वरा से तो तू भी बात करता था. उस का तो नंबर होगा… दे,’’ हिमानी खुद ही उस के मोबाइल में मौली नंबर ढूंढ़ने लगी.

‘‘अब कोई फायदा नहीं दी, उसी ने बताया कि शशांक से शादी कर वह कनाडा चली गई,’’ उस की आंखें ढपी जा रहीं थीं.

2 साल ही तो बड़ी थी हिमानी. उस की शादी के 5 साल बाद मलय की शादी हुई थी. मौली घर में रचबस गई. सब खुश थे. अचानक एक दिन मां को हार्ट अटैक हुआ, इतना तीव्र था कि वह चल ही बसीं, पहले मां गईं फिर पापा, शुगर के मरीज थे. हम दोनों का बचपन इसी घर में बीता. पुराने प्यार करने वाले सब लोग चले गए. मलय यादों के साथ अकेला रह गया. मौली और मलय का स्वभाव एकदूसरे के विपरीत था.

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मलय धीरगंभीर और मौली चुलबुली. एकदूसरे को पूरा समझने में वक्त तो लगता ही है, पर अवसाद भरे मलय के मन ने उसे मौका न दिया.

जहां मलय अंतर्मुखी था, वहीं मौली मस्तमौला और सब से मिलनेजुलने वाली. मांपापा के निर्देश पर घर का सारा काम निबटा कर थोड़ी देर को बाहर चली जाती. कुछ बाहर के काम भी कर आती. उस ने आसपास के सभी लोगों से दोस्ती कर ली थी. कभी उन के घर चली जाती तो कभी उन को बुला लेती. रिटायर्ड मांपापा उसे बेटी जैसी ही मानते. उन का दिल भी लगा रहता. पर मांपापा के जाने के बाद वही सब अब मलय को शोर लगने लगा था. वह चिढ़ने लगा था. मौली उस के जैसी अचानक तो नहीं हो जाती. कभी मां के जैसे खाने के स्वाद के लिए खीजता तो कभी खाली समय में उस के गप्पें मारने से उसे गुरेज होता.

बचपन का साथी शशांक एक दिन मौली से अचानक टकरा गया. चौथी कक्षा से 12वीं कक्षा तक उन्होंने साथ ही पढ़ाई की थी. पढ़ाई में बस ठीकठाक ही था, सब से मदद ले लेता. मौली से तो अकसर ही, क्योंकि मौली का काम हमेशा पूरा रहता. पर वह था एक नंबर का हंसोड़, चुटकलेबाज. क्लास में टीचर के आने के पहले और जाने के बाद शुरू हो जाता. आज भी वह बिलकुल बदला नहीं था. चेहरे पर वही शरारत, वही डीलडौल… बस एक फुट लंबा अवश्य हो गया था. फ्रैंच कट दाढ़ी भी रख ली थी. मौली को पहचानने में एक सैकंड ही लगा होगा…

‘‘अरे शशांक तुम यहां… पहचाना…?’’

‘‘अरे… तुम… मौली,’’ वैवाहिक स्त्री के रूप में सजी मौली को ऊपर से नीचे देखता हुआ वह हंस पड़ा.

‘‘मुझे तो स्कर्टब्लाउज, 2 चोटी वाला, रूमाल से नाक पोंछता रूप ही याद आ रहा है. हा हा… तो शादी कर ली तुम ने हा हा…’’

‘‘और तुम ने?’’

‘‘अरे नहीं यार, अभी आजाद पंछी हूं मस्त. इतनी मुश्किल से पढ़ाई की फिर बमुश्किल इतनी बढि़या नौकरी पाई. यों ही हलाल थोड़े ही हो जाऊंगा. कुछ साल तो चैन की सांस लूं. हा हा…’’ वह उसी चिरपरिचित ठहाके वाली हंसी फिर हंसा था.

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वह अपनी नई चमकती बाइक की बैग में अपना खरीदा सामान रख कर मुसकराता खड़ा हो गया, ‘‘कुछ लेना है तुम्हें या चलें किसी रेस्तरां में? वहीं बैठ कर बात करेंगे…’’

‘‘नहीं बस… घर में दिन भर हो जाता है तो शाम को हवा खाने निकल पड़ती हैं. कुछ जरूरी हो तो सामान भी ले आती हूं,’’ वह मुसकराई.

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