प्रैगनैंसी टालें पर एक सीमा तक

आज कई महिलाएं अपना कैरियर बनाने और अपनी फिगर मैंटेन रखने के चलते प्रैगनैंसी को टालती रहती हैं. और जब प्रैगनैंट होना चाहती हैं, तो कई तरह की परेशानियां उन के प्रैगनैंट होने में बाधक बन जाती हैं.

‘‘अनुज, आखिर क्यों यह निर्णय हम ने पहले नहीं लिया? कैरियर और पैसा कमाने के चक्कर में आज मैं मां बनने के लिए तरस रही हूं,’’ एक वर्किंग वूमन ने अपने पति से कहा.

‘‘नेहा, तुम चिंता मत करो, सब ठीक हो जाएगा,’’ पति ने उसे सांत्वना दी.

‘‘लेकिन कैसे अनुज? कितने ही डाक्टरों को दिखाया पर सब का वही जवाब कि आप चिंता मत कीजिए. पर हमारी शादी को 6 वर्ष बीत गए. काश, यह फैसला हम ने पहले लिया होता,’’ अब नेहा को अपने फैसले पर अफसोस था.

यदि उम्र ज्यादा हो जाए तो कंसीविंग में काफी अड़चनें आ जाती हैं. इस के पीछे स्त्री रोग विशेषज्ञा डा. नूपुर पगौड़े ने कुछ कारण बताए:

प्रैगनैंसी टालने के कारण

– आजकल इस समस्या में ज्यादा बढ़ोतरी देखी जा रही है. इस का कारण है, देर से शादी याशादी के बाद ऐंजौयमैंट को प्राथमिकता देते हुए बच्चा पैदा न करना.

– कैरियर बनाने, सही मुकाम पाने, सफलता पाने के चक्कर में जल्दी बच्चा पैदा न करने की जिद.

– अच्छा घर, लग्जरी कार, घर में हर आरामदायक वस्तु का होना. सुविधा की वस्तुएं होंगी तभी तो लाइफस्टाइल अच्छा होगा, स्टेटस बनेगा. इस होड़ में बच्चे से पहले इन वस्तुओं को प्राथमिकता दी जाती है.

– फिगर खराब न हो जाए, इस के चलते भी प्रैगनैंसी को टाला जाता है.

– औफिस में क्या इंप्रेशन पड़ेगा, यदि इतनी जल्दी बच्चा हो जाएगा. यह सोच कर भी जल्दी बच्चे का होना टाला जाता है.

– कई लड़कियां अपने औफिस में अपनी शादी छिपाती हैं, इसलिए भी जल्दी बच्चा पैदा करने से कतराती हैं.

– इस के अलावा कुछ शारीरिक परेशानियों के चलते भी प्रैगनैंसी टाली जाती है. जैसे किसी को टीबी है या कोई अन्य बीमारी है तो डाक्टर ही जल्दी बच्चे पैदा न करने की सलाह देते हैं.

– अंडाणु का न बन पाना, फैलोपियन ट्यूब खराब होना और शुक्राणु के विकार के कारण भी प्रैगनैंसी में बाधा आती है.

– कुपोषण, तनाव, प्रदूषण, मोटापा जैसी समस्याएं भी कुछ हद तक प्रैगनैंसी में बाधा उत्पन्न करती हैं.

गर्भधारण की सही उम्र

इन्हीं कारणों की वजह से महिलाएं गर्भधारण करने से या तो बचती हैं या मजबूरी में नहीं कर पातीं, जिस की वजह से एक उम्र के बाद गर्भधारण में बहुत सी मुश्किलें आने लगती हैं.

सामान्य रूप से गर्भधारण की सही उम्र अमूमन 30-32 से पहले ही मानी जाती है. लेकिन कैरियर बनाने या अन्य कारणों के चलते 30-32 साल की उम्र तो यों ही बीत जाती है और जब महिलाएं प्रैगनैंट होना चाहती हैं तो काफी दिक्कतें आती हैं.

आज की युवा पीढ़ी बंधन नहीं चाहती. नए दंपती अपनीअपनी जिंदगी जीने में विश्वास रखते हैं. ऐसे में बच्चा एक आफत लगता है. और जब मां बनने की सुध आती है, तब तक या तो देर हो चुकी होती है या किसी अन्य कारण से गर्भधारण में परेशानी आती है.

इस तरह सभी को या तो बच्चा होने से पहले या बच्चा होने के बाद किसी न किसी तरह की परेशानी का सामना करना पड़ता है. लेकिन यदि देखा जाए तो दोनों ही हालात में पतिपत्नी को ज्यादा समझदारी दिखाने की जरूरत होती है.

क्यों आती है प्रैग्नैंसी में रुकावट

मानव शरीर एक ऐसी जटिल मशीन है जिस का प्रत्येक भाग दूसरे के साथ घनिष्ठ रूप से जुड़ा हुआ है. ऐसे में महिलाओं में बां झपन का कारण उन के जीवन में आई बीमारियों, गलत जीवनशैली और आनुवंशिक रोगों के साथसाथ उम्र का फैक्टर भी हो सकता है. डायबिटीज, ऐनीमिया और मोटापा जैसी स्थितियां या लापरवाह जीवनशैली जैसे तंबाकू और शराब का सेवन किसी के भी स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है और यह बां झपन का बड़ा कारण हो सकता है. इस के अतिरिक्त कुछ महिलाएं जन्मजात ऐसी पैदा हो सकती हैं जिन का शरीर प्रजनन के लिए अनुकूल नहीं होता है.

आइए, इन में से कुछ फैक्टर्स को सम झते हैं:

ओव्यूलेशन विकारों का प्रभाव

ओव्यूलेशन वह घटना है जब एक परिपक्व अंडा अंडाशय से बाहर निकलता है जो शुक्राणु द्वारा निषेचित होने के लिए तैयार होता है. ओव्यूलेशन से संबंधित विकारों का मतलब है कि प्रजनन पीरियड के दौरान अंडे अनुपस्थित हैं जिस से स्वाभाविक रूप से कोई भू्रण (ऐंब्रो) नहीं बनता है.

ऐंडोमिट्रिओसिस का प्रभाव

ऐंडोमिट्रिओसिस वह स्थिति है जिस में ऐंडोमिट्रियम जो गर्भाशय को लाइनिंग करने

वाला टिशू होता है, इस के बाहर बढ़ता है. यह 10-15% महिलाओं में प्रजनन आयु के दौर में पाया गया है. इसलिए यह कई फर्टिलिटी पैरामीटर्स को प्रभावित करता है यानी व्यवहार्य अंडों (बाइबल एग्स) की कम संख्या (लो ओवेरियन रिजर्व), अंडे और भू्रण की खराब क्वालिटी और साथ ही इंप्लांटेशन में बाधा डालता है.

गर्भाशय फाइब्रौयड का प्रभाव

गर्भाशय फाइब्रौयड गैरकैंसर वाले ट्यूमर हैं जो कंसीव कर सकने की उम्र में महिलाओं के गर्भाशय में बढ़ते हैं. वे विभिन्न आकारों और गर्भाशय के विभिन्न भागों में पाए जा सकते हैं. हारमोन ऐस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरौन जब ज्यादा होता है तो ये इन की वृद्धि का कारण बन सकते हैं. वे गर्भावस्था के नुकसान के जोखिम को बढ़ाते हैं और महिलाओं में बां झपन की संभावना बढ़ा देते हैं.

डायबिटीज और पीसीओएस का प्रभाव

टाइप 1 डायबिटीज के रोगियों में मासिकधर्म में देरी और रजोनिवृत्ति की शुरुआत में देरी होती है, साथ ही ओव्यूलेशन में देरी और अनियमित माहवारी भी होती है. इस के अलावा इस से गर्भवती होने की संभावना कम हो जाती है या गर्भपात तथा मरे बच्चे को जन्म देने की संभावना बढ़ जाती है.

टाइप 2 डायबिटीज में जहां अतिरिक्त इंसुलिन होता है, वहां इस का प्रतिरोध देखा जाता है जिस का उपयोग नहीं किया जा रहा है. इस के अलावा ब्लड शुगर की अधिकता भी पाई जाती है. पौलिसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम (पीसीओएस) प्रजनन आयु वाली 5-13% महिलाओं को प्रभावित करता है और यह इंसुलिन प्रतिरोध और बढ़े हुए टेस्टोस्टेरौन के स्तर से जुड़ा होता है. डायबिटीज होने पर महिलाओं के लिए गर्भधारण करना मुश्किल हो सकता है.

मोटापे का प्रभाव

मोटापे को गर्भधारण के लिए हानिकारक माना गया है. माहवारी संबंधी विकार और एनोव्यूलेशन (जब मासिकधर्म के दौरान अंडाशय से अंडा नहीं निकलता है) मोटी महिलाओं में आम बात होती है. अधिक वजन या मोटापे से ग्रस्त महिलाओं में गर्भपात के साथसाथ बां झपन का खतरा भी अधिक होता है. इस के साथ ही गर्भधारण, गर्भपात और गर्भावस्था की समस्याओं के खतरे भी बढ़ जाते हैं.

तंबाकू के सेवन का प्रभाव

अध्ययनों से पता चला है कि धूम्रपान करने वाली 60% से अधिक महिलाएं दूसरों की तुलना में बां झपन से जू झती हैं. यह भी पाया गया है कि तंबाकू का धूम्रपान ओवेरियन के काम को बाधित करता है और हारमोन की एकाग्रता को कम करता है. तंबाकू शरीर में जहरीले तत्त्व लाता है जिन में अंडों को नुकसान पहुंचाने और उन की संख्या को कम करने की क्षमता होती है. इस के अलावा यह अनियमित मासिकधर्म के कारण मासिकधर्म को बाधित करता है और इस के परिणामस्वरूप जल्दी रजोनिवृत्ति (अर्ली मेनोपौज) भी हो सकती है. तंबाकू के सेवन से अस्थानिक गर्भावस्था (ऐक्टोपिक प्रैगनैंसी) की संभावना भी बढ़ जाती है.

तंबाकू का सेवन न केवल प्रजनन प्रणाली (ह्म्द्गश्चह्म्शस्रह्वष्ह्लद्ब1द्ग ह्य4ह्यह्लद्गद्व) को खराब करता है बल्कि गर्भावस्था को भी जटिल कर सकता है. गर्भधारण करने वाले और जन्म लेने वाले बच्चे के स्वास्थ्य को भी नुकसान पहुंचा सकता है. पूर्ण अवधि के जन्म (फुल टर्म बर्थ) के बावजूद बच्चे बहुत छोटे पैदा हो सकते हैं, मस्तिष्क और फेफड़ों में क्षति के साथसाथ कटे होंठ आदि जन्मजात दोषों का खतरा भी बढ़ जाता है.

ब्लौक्ड फैलोपियन ट्यूब का प्रभाव

फैलोपियन ट्यूब अंडाशय (ओवरी) को गर्भाशय (यूटरस) से जोड़ती है और यह वह मार्ग है जिस के माध्यम से अंडे गर्भ में पहुंचते हैं. जब फैलोपियन ट्यूब ठीक से काम नहीं कर रही होती है, तो इस से बां झपन हो सकता है क्योंकि निषेचन (फर्टिलाइजेशन) की प्रक्रिया ही नहीं होती है. ऐसा ब्लौकेज और संक्रमण के कारण हो सकता है.

फैलोपियन ट्यूब ब्लौकेज एक ऐसी स्थिति है जहां या तो एक या दोनों मार्ग अवरुद्ध हो जाते हैं, जिस से विभिन्न स्वास्थ्य और प्रजनन संबंधी जटिलताएं पैदा होती हैं. ये रुकावटें शुक्राणुओं के अंडों तक पहुंचने के मार्ग को बाधित करने के साथसाथ निषेचित अंडे (फर्टिलाइज्ड एग) के मार्ग को भी बाधित करती हैं. फैलोपियन ट्यूब बैक्टीरिया सहित विभिन्न रोगजनकों से संक्रमित हो सकती है और उन्हें पेल्विक इनफ्लैमेटरी डिजीज (पीआईडी) के तहत वर्गीकृत किया जाता है. रुकावटें जन्मजात भी सकती हैं और पूर्व सर्जरी के कारण भी.

उम्र का प्रभाव

महिलाएं अपने अंडाशय में सीमित अंडे के रिजर्व के साथ पैदा होती हैं जो उम्र के साथ घटती जाती है. 10 लाख से अधिक अपरिपक्व अंडे यौवन आतेआते लगभग 3 लाख अंडे तक रह जाते हैं जो माहवारी के प्रत्येक ओव्यूलेशन के साथ और कम हो जाते हैं और कुछ नष्ट भी हो जाते हैं. 30 के दशक के मध्य में अंडों की मात्रा और गुणवत्ता खराब हो जाती है और महिलाओं के 40 वर्ष की उम्र में लगभग 50% अंडे का पूल आनुवंशिक रूप से असामान्य हो जाता है. रजोनिवृत्ति यौवन के अंत और व्यवहार्य अंडों की अनुपलब्धता का प्रतीक है. अंडों का कम होना प्रजनन क्षमता में कमी का एक स्पष्ट संकेत है. रजोनिवृत्ति शरीर में कई संबंधित परिवर्तनों को प्रेरित करती है और इस में स्वाभाविक रूप से गर्भधारण करने की क्षमता भी शामिल है.

इलाज क्या है

जिस प्रकार बां झपन का कारण भिन्न होता है, उसी प्रकार इस का इलाज भी भिन्नभिन्न होता है. जो महिलाएं डायबिटीज, पीसीओएस और मोटापे जैसी परिस्थितियों के कारण स्वाभाविक रूप से गर्भधारण करने में असमर्थ हैं, उन के लिए पहला उपाय इस पर नियंत्रण पाना है. यह नियमित रूप से डाक्टरों से परामर्श कर के किया जा सकता है ताकि स्वस्थ आहार, शारीरिक गतिविधि के साथसाथ नियमित रूप से दवा की मौनिटरिंग होती रहे. इस के अलावा यह भी देखा गया है कि शराब और तंबाकू के सेवन न करने से प्राकृतिक गर्भाधान की संभावना काफी बढ़ जाती है.

हालांकि कुछ मामलों में बीमारियों से पहुंची क्षति या जन्मजात परिस्थितियों के कारण प्राकृतिक गर्भधारण संभव नहीं है. ऐसे में असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टैक्नोलौजी या एआरटी इन महिलाओं के जीवन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है. एआरटी में इनविट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ), इंट्रासाइटोप्लाज्मिक स्पर्म इंजैक्शन (आईसीएसआई) और अंतर्गर्भाशयी गर्भाधान (आईयूआई) जैसी प्रक्रियाएं शामिल हैं.

यदि कोई दंपती बां झपन से परेशान है और यहां तक कि मौजूदा बीमारियों के लिए उपाय भी कर रहे हैं, तो भी उन्हें अपनी मैडिकल हिस्ट्री पर चर्चा करने के लिए प्रजनन क्षमता/आईवीएफ विशेषज्ञ से परामर्श लेना चाहिए. यहां यह ध्यान रखना महत्त्वपूर्ण है कि एआरटी 100% सफलता की गारंटी नहीं देता है और इस के संभावित दुष्प्रभावों को सम झ लेना चाहिए. इस के बाद कई परीक्षण और स्कैन किए जाते हैं जो दोनों पार्टनर्स के मैडिकल कंडीशन की जांच करते हैं.

महिलाओं के प्रजनन अंगों की जांच करने के लिए अल्ट्रासाउंड और रक्त परीक्षण, ऐंटीमुलरियन हारमोन (एएमएच) के स्तर या गर्भाधान में बाधा डालने वाली किसी भी वृद्धि की जांच शामिल हो सकती है. इस के बाद ट्रीटमैंट का सु झाव दिया जाता है जिस में परिपक्व अंडों के लिए हारमोनल इंजैक्शन, उन का कलैक्शन, स्पर्म के साथ फर्टिलाइजेशन और भ्रूण को गर्भाशय में ट्रांसफर करना शामिल है. अंत में बीटाह्यूमन कोरियोनिक गोनाडोट्रोपिन (बीटाएचसीजी) परीक्षण गर्भावस्था की पुष्टि करता है.

     -डा. क्षितिज मुर्डिया

सीईओ और कोफाउंडर इंदिरा आईवीएफ    

कोरोनावायरस और प्रसव की चुनौतियां

अभी तक इस बात का कोई प्रमाण नहीं है कि जिन गर्भवती महिलाओं को कोरोना संक्रमण होता है उन्हें स्वस्थ व्यक्तियों की तुलना में खतरा अधिक होता है. लेकिन यदि आपके लक्षण गंभीर है तो आपको विशेष देखभाल की आवश्यकता है.

लेकिन यह भी सच है कि डाक्टर दुनिया भर में कोविड – 19 संकट के मद्देनजर महिलाओं को गर्भावस्था को अभी स्थगित करने की सलाह दे रहे हैं , क्योंकि इस समय में गर्भवती महिलाएं हाई रिस्क केटेगरी में आती हैं , इसलिए कई स्त्री रोग विशेषज कम से कम अगले दो से तीन महीनों के लिए परिवार नियोजन का परामर्श दे रहे हैं, ताकि भविष्य में जोखिम से बचा जा सके. इस सम्बंद में बता रही हैं गयनोकोलोजिस्ट डॉ पूजा चौधरी.

जो महिलाएं पहले ही गर्भधारण कर चुकी हैं , उन्हें सावधानी के तौर पर घर पर ही रहना चाहिए. जितना हो सके हास्पिटल जाने से बचें . हालांकि गर्भावस्था के दौरान मां से बच्चे में वायरस के फैलने के कोई सबूत नहीं है लेकिन ऐतियाती उपायों से किसी भी जोखिम से बचने की सलाह दी जाती है.

जो महिलाएं गर्भघारण की कोशिश कर रही हैं यह एक वयक्तिगत और निजी फैसला है. आप अपने स्वास्थय और कोविद 19 के संभावित जोखिमों के आधार पर निर्णय ले सकती हैं. डाक्टर अभी भी शोध कर रहे हैं कि कोविद 19 गर्भवती महिलाओं को प्रभावित करता है है या नहीं. गर्भवती महिलाओं में सामान्य लोगों की तुलना में लक्षण अधिक गंभीर नहीं होते हैं. लेकिन लो महिलाएँ डायबिटीज , अस्थमा, फेफड़े की बीमारी या हृदय रोग से ग्रसित हैं उन्हें कोविद 19 से खतरा अधिक है.

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वर्तमान शोध की माने तो यह कहा जा सकता है कि कोविद 19 गर्भावस्था या प्रसव के दौरान बच्चे में फैल सकता है. लेकिन इस पर और शोध की जरूरत है , क्योंकि जन्म के बाद अगर नवजात शिशु वायरस के संपर्क में है तो वायरस उसे संक्रमित कर देगा. कोविद 19 में अपनी और शिशु की देखभाल कैसे करनी है, इसके लिए गयनोकोलॉजिस्ट से जरूर बात करें.

गर्भावस्था के समय

कोरोना वायरस मुख्य रूप से व्यक्ति से व्यक्ति में फैलता है. गर्भवती महिलाएँ खुद को बचाने के लिए अन्य लोगों के समान कदम उठा सकती हैं , जैसे कम से कम 20 सेकंड तक साबुन और पानी से हाथ धोना, अल्कोहल युक्त sanitizer से हाथों को साफ करना, अपनी आंख, नाक और मुंह को छूने से बचें , जितना संभव हो सके घर पर रहें , यदि बाहर जाना है तो अन्य लोगों से कम से कम 6 फीट दूर रहें , ऐसे लोगों से बचें जो बीमार हैं.

सीडीसी का कहना है कि गर्भवती महिलाओं को कोविद 19 से बचने के लिए मास्क पहनना या फिर मुंह को ढकना अनिवार्य है,
क्योंकि अध्यनो से पता चला है कि संक्रमित व्यक्ति में लक्षण दिखने से पहले वायरस फैल सकता है. मास्क से चेहरे को ढकना उन जगहों पर सबसे महत्वपूर्ण है जहां लोगों की आवाजाही होती है, जैसे किराने की दुकानें , दवाई की दुकान आदि. इसलिए जब भी आप घर से निकले तो दूसरों से दूरी बना कर ही रखें.

इसके अलावा गर्भवस्था के दौरान सामान्य बातों का पालन करके गर्भवती महिलाएं स्वस्थ रह सकती हैं. जिसमें शामिल हैं ,

– सेहतमंद भोजन करें , जैसे दाल, रोटी, स्प्राउट्स.
– ताजे फल और सब्ज़ियां.
– प्रोटीन युक्त चीजें जैसे – अंडे, मटर, सोया, नट्स.
– दूध और दूध से बनी चीजें.

कोविड 19 के कारण कुछ महिलाओं को डर , तनाव या चिंता महसूस हो सकती है. ऐसे समय में दोस्तों और परिवार के लोगों से फ़ोन और ऑनलाइन चैटिंग लाभ पहुंचा सकती है. शारीरिक गतिविधि भी आपके मानसिक स्वास्थय में लाभ पहुंचा सकती है.

यदि वाटर ब्रेक हो जाए तो ऐसी स्थिति में क्या करें

यदि वाटर ब्रेक होने पर कुछ बातों का ध्यान रखेंगे तो इस स्थिति को अच्छे से संभाल सकते हैं.

– शांत रहें , जरूरी नहीं कि आप अपने बच्चे को तुरंत छोड़े. आपके पास अभी भी सांस लेने और अगले चरण के बारे में सोचने का समय है.
– अपने डाक्टर को सूचित करें.
– अपने हाथ में कुछ मैटरनिटी पैड्स रखें. एक बार जब वाटर ब्रेक होता है तो उसकी जरूरत होती है.

गर्भावस्था के बाद

प्रसव हो जाने के बाद महिलाओं के सामने कई चुनौतियों आती हैं. प्रसव के बाद महिलाओं में शारीरिक परिवर्तन होते हैं और इस समय जब कोरोना वायरस का प्रकोप हर जगह फैला हुआ है, ऐसे में सावधानी बरतने की आवश्यकता और बढ़ जाती है.

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शारीरिक परिवर्तन

– शरीर के तापमान में बदलाव

शरीर के तापमान में परिवर्तन होता है. पसीना आने लगता है, गर्मी लगती है और कुछ देर बाद ठंड का एहसास होता है. अधिकतर महिलाओं को गर्भावस्था के बाद कई हफ्तों तक गर्म और ठंडा महसूस होता है.

– कब्ज

डिलीवरी चाहे सामान्य हो या आपरेशन द्वारा, महिलाओं को कब्ज होने की संभावना रहती है. यह मूलाधार में घाव होने की वजह से हो सकता है, जिससे महिलाएँ मलत्याग को लेकर आशंकित रहती हैं.

– खून का रिसाव या ब्लीडिंग होना

डिलीवरी के बाद बच्चेदानी पूर्व अवस्था में आती है, जिससे कई दिनों तक ब्लीडिंग होना स्वाभाविक है. इसके लिए वे पैड्स का इस्तेमाल करें और जितना हो सके आराम करें और किसी भी तरह का तनाव न लें.

– वजन घटना

कभी कभी ऐसा होता है कि प्रसव के बाद महिलाएं हलका महसूस करती हैं और हो सकता है कि थोड़ा वजन भी घट जाए इसलिए परेशान न हो. क्योंकि दूध पिलाने से कैलोरीज बर्न होने से वजन में कमी आती है.

गर्भावस्था के बाद की सावधानी

 पैड का उपयोग करें

गर्भावस्था के बाद गर्भाशय की परत झड़ना शुरू होती है, पीरियड्स की तरह ब्लीडिंग होती है. ऐसा 6 हफ्तों तक होता है, जिससे संक्रमण का खतरा हो सकता है. इसलिए इस दौरान पैड्स का इस्तेमाल करना सुरक्षित है, क्योंकि पैड्स संक्रमण की संभावना को कम कर देता है.

– स्वच्छता का रखें विशेष खयाल

गर्भावस्था के बाद महिलाओं को स्वच्छता का विशेष ध्यान रखना चाहिए. और कोरोना वायरस ने इसे और अधिक जरूरी बना दिया है.

– हलकी एक्सरसाइज करें

गर्भावस्था के बाद महिलाओं के शरीर में कमजोरी आ सकती है, जिससे तनाव और चिंता बढ़ सकती है, इसलिए थोड़ा बहुत मैडिटेशन जरूर करें.

– पोषणयुक्त आहार

अकसर देखा गया है कि महिलाएँ गर्भावस्था के बाद अपने भोजन पर ध्यान नहीं देती हैं , जो काफी जरूरी है. क्योंकि शिशु को स्तनपान भी करवाना होता है. इसलिए उन्हें पौष्टिक डाइट जरूर लेनी चाहिए.

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– पानी पीने में कमी न करें 

पानी शरीर के लिए क्या मायने रखता है, यह किसी से नहीं छिपा. पानी न सिर्फ शरीर को हाइड्रेट करने का काम करता है बल्कि शरीर में जमा गंदगी को बाहर निकालने में भी मददगार है. इसलिए खूब पानी पियें.

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