प्रेगनेंसी में रखें इन 7 बातों का ध्यान

गर्भवती होने के साथ ही एक औरत का जीवन जहां नई उम्मीदों से भर जाता है वहीं आने वाले दिनों की चिंता भी सताने लगती है. ये चिंता खुद से ज्यादा गर्भ में पल-पल सताती है. इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता है कि गर्भावस्था वो समय है जब एक महिला को सबसे ज्यादा देखभाल और परहेज की जरूरत होती है.  गर्भवती महिलाएं गर्भावस्था के समय रखे विशेष ख्याल. प्रेगनेंसी में रखें इन 7 बातों का ध्यान.

  1.  शरीर में पानी की कमी न होने दें. अपने डाक्टर की सलाह से पानी के अलावा नारियल पानी, जूस इत्यादि का सेवन बढ़ा दें.
  2. गर्भावस्था के दौरान कब्ज की समस्या कुछ महिलाओं में बढ़ जाती है. अत: दिन में थोड़ेथोड़े अंतराल पर फाइबर फूड का सेवन करती रहें. मैटाबोलिक रेट सही रहेगा तो कब्ज की समस्या नहीं होगी.
  3. ओटीसी यानी ओवर द काउंटर दवाओं का सेवन अपने अनुसार न करें क्योंकि गर्भावस्था में शरीर बदलावों से गुजर रहा होता है. ऐसे में आप की एक गलती आप के साथसाथ आने वाले बच्चे की जान भी जोखिम में डाल सकती है.
  4. ज्यादा कैफीन के साथसाथ नशीली चीजों से भी दूरी बना लें. नशीली चीजों के सेवन से बच्चे के मानसिक विकास पर गहरा असर पड़ता है. कई बार गर्भपात की समस्या भी हो जाती है.
  5. कच्चा पपीता, आधा पका अंडा, अंकुरित अनाज और कच्चा मांस बिलकुल न खाएं. ऐसा करने से बच्चे के विकास में खतरा पैदा हो सकता है. फिश से भी दूरी बना लें.
  6. नौर्मल डिलिवरी की चाह है तो डाक्टर की सलाह से किसी ऐक्सपर्ट की निगरानी में व्यायाम करें. रोजमर्रा के कुछ काम खुद करने की कोशिश करें. टहलना अपनी दिनचर्या में जरूर शामिल करें.
  7. कीगल व्यायाम कर सकती हैं. ऐक्सपर्ट की सलाह से यह व्यायाम उन महिलाओं के लिए बेहद फायदेमंद है जिन्हें यूटीआई की समस्या है. यह व्यायाम यूरिन फ्लो कंट्रोल करने में मदद करता है.

प्रैगनैंट वूमन के लिए ड्राइविंग टिप्स

रोड दुर्घटना के प्रमुख कारण हैं तेज चलाना, नशे में ड्राइव करना, ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन करना आदि. इन के अतिरिक्त खराब सड़कें और सिटी प्लानिंग भी दुर्घटनाओं के कारण हो सकते हैं.

महिलाएं और कार ऐक्सीडैंट

आजकल शहरों में महिला कार ड्राइवरों की संख्या निरंतर बढ़ रही है. इन में कुछ नियमित रूप से दफ्तर आनेजाने के लिए इस्तेमाल करती हैं तो कुछ दूसरे निजी काम के लिए. वर्किंग वूमन तो प्रैगनैंसी में भी ड्राइव कर दफ्तर जाती हैं. प्रैगनैंसी में लाइफस्टाइल, शारीरिक और मनोवैज्ञानिक बदलाव आने स्वाभाविक हैं. उन को स्वयं और गर्भस्थ शिशु दोनों का ध्यान रखना पड़ता है. ऐसे में गर्भवती महिलाओं को ड्राइव करते समय विशेष सावधानी बरतनी चाहिए.

छोटेमोटे कार ऐक्सीडैंट में कोई खास हानि नहीं होती है पर यदि ज्यादा चोटें आएं तो उन में निम्न तरह की हानि का खतरा रहता है:

मिसकैरेज:

हालांकि बेबी गर्भ में एम्नियोटिक द्रव में प्राकृतिक रूप से सुरक्षित रहता है फिर भी किसी बड़ी घटना में यूटरस पंक्चर होने का खतरा रहता है, जिस के चलते मिसकैरेज हो सकता है.

प्री मैच्योर बर्थ:

दुर्घटना के समय होने वाले स्ट्रैस या उस के चलते बाद में हुए स्ट्रैस से समय से पूर्व प्री मैच्योर प्रसव हो सकता है.

गर्भनाल का टूटना:

दुर्घटना के आघात के चलते गर्भनाल यूटरस से टूट कर अलग हो सकती है जिस के चलते बेबी गर्भ से बाहर आ सकता है. प्रैगनैंसी के अंतिम कुछ सप्ताह में इस की आशंका ज्यादा होती है.

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हाई रिस्क प्रैगनैंसी:

हाई रिस्क प्रैगनैंसी उसे कहते हैं जब प्रैगनैंसी के दौरान शिशु अथवा मां या दोनों के स्वास्थ्य पर निरंतर नजर रखना जरूरी हो जाता है जैसे मां के डायबिटीज, हाईब्लड प्रैशर आदि बीमारी या बहुत कम या अधिक आयु में प्रैगनैंसी में कुछ समस्याएं होती हैं.  ऐसे में मां और गर्भस्थ शिशु दोनों को डाक्टर के यहां चैकअप और अल्ट्रासाउंड आदि टैस्ट के लिए बारबार जाना पड़ सकता है. ऐसी महिला को ज्यादा सतर्क रहना चाहिए.

यूटरस इंजरी:

प्रैगनैंसी में यूटरस बड़ा हो जाता है और कार ऐक्सीडैंट में पेट में चोट लगने से यूटरस के फटने का खतरा रहता है. ऐसे में मां और शिशु दोनों की जान खतरे में पड़ सकती है.

बर्थ डिफैक्ट:

कार ऐक्सीडैंट में यूटरस को आघात पहुंचने से भू्रण में कुछ दोष होने की संभावना रहती है. यह बर्थ डिफैक्ट इस बात पर निर्भर करता है कि बेबी कितना पहले हुआ है और चोट कितना ज्यादा है.

भ्रूण को आघात:

कार दुर्घटना में मां के पेट में ज्यादा चोट लगने से बेबी को औक्सीजन सप्लाई में बाधा पहुंच सकती है. शिशु के शरीर के ब्रेन या अन्य किसी खास अंग में चोट लगने से उस में दूरगामी समस्या की आशंका रहती है.

कू  और कंट्रा कू इंजरी:

कार ऐक्सीडैंट में 2 तरह की हैड इंजरी होती हैं- कू और कंट्रा कूं इंजरी. कू इंजरी तब होती है जब कार में बैठी महिला का सिर स्टीयरिंग से टकरा जाए और सिर में सामने की ओर चोट आए. यह आघात लगने की जगह की प्रथम इंजरी है, इस में ब्रेन में दूसरे आघात की संभावना भी रहती है. कंट्रा कू इंजरी तब होती है जब आगे में लगी सिर की चोट पीछे ब्रेन तक पहुंचती है.

ऐसा इसलिए होता है क्योंकि खोपड़ी के अंदर ब्रेन आघात के चलते गतिशील हो जाता है और ब्रेन खोपड़ी के पिछले भाग से जा टकराता है. कू और कंट्रा कू इंजरी दोनों ही हालत में महिला को तो काफी खतरा होता ही है, साथ में गर्भस्थ शिशु पर भी इस के प्रतिकूल असर पड़ने की आशंका रहती है.

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सावधानियां

– ट्रैफिक नियमों का सख्ती से पालन करें .

– सीट बैल्ट अवश्य लगाएं. सिर्फ सीट बैल्ट लगाना ही काफी नहीं है, इसे ठीक से लगाएं ताकि यह आप के शरीर को सही स्थिति में रख सके. सीट बैल्ट आप की चैस्ट की बोनी (हड्डी) एरिया और जंघा के निकट पेट और पेल्विस एरिया के ऊपर ठीक से बांधने पर यह मां और शिशु दोनों को सुरक्षित रखती है. शोल्डर स्ट्रैप को दोनों स्तनों के बीच रखें. कुछ लोगों का कहना होता है कि सीट बैल्ट शिशु के लिए अच्छा नहीं है, यह मात्र वहम है. किसी दुर्घटना की स्थिति में यह जीवन रक्षक है या कम से कम आघात लगे, इतना तो सुनिश्चित करती ही है.

– अपना ध्यान ड्राइविंग पर केंद्रित रखें, किसी अन्य विषय में ध्यान न भटकने दें.

– ड्राइव करते हुए फोन का उपयोग न करें. यदि आवश्यक हो तो हैंड फ्री डिवाइस अपनाएं.

– म-पान या अन्य नशीली वस्तु लेने के बाद ड्राइव न करें.

जानिए क्यों प्रेग्नेंसी के दौरान लात मारता है बच्चा

प्रेग्नेंसी के दौरान प्रैग्नेंट महिलाओं को खुद में अनेक प्रकार के बदलाव देखने को मिलते हैं. जैसे-जैसे समय बीतता है यह बदलाव बढ़ता चला जाता है इस बदलाव के साथ प्रैग्नेंट महिलाओं को पेट में पल रही नन्हीं सी जान यानी की बच्चा और उसकी हरकतों में भी बदलाव महसूस होने लगता है. जैसे की बच्चे का पेट में पैर मारना हालांकि यह एहसास मां और परिवार वालों के लिए बहुत ही खास होता है. इसको महसूस करने का मजा तो सभी लेते है, लेकिन इस के पीछे का कारण क्या है इस से सभी अंजान है. प्रैग्नेंट महिलाएं भी समझ नहीं पाती आखिर बच्चा पैर क्यों मारता है. अगर आप भी इस के बारे में नहीं जानते तो आप नीचे दिए गए पौइंट्स को जरूर पढे. इसमें हम आपको बताएंगे ऐसे 6 कारण जिस वजह से प्रेंग्नेसी के दौरान बच्चें पैर मारते हैं.

प्रेग्नेंसी के दौरान बच्चे के पैर मारने से जुड़े 6 कारण

1. बच्चा है हेल्दी

अगर महिला की प्रेग्नेंसी के दौरान बच्चा पेट में लात मारता है या ऐसी कुछ हरकत करता है, तो इसका मतलब है कि बच्चा अंदर बिल्कुल स्वस्थ है. यह एक प्रकार से बच्चे का स्वस्थ होने का संकेत है.

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2. सही पोषण भरपूर एनर्जी

प्रैग्नेंट महिला जब कुछ खाती है तब बच्चा अधिक लात मारता है. दरअसल, मां के खाना खाने के बाद शिशु को उस भोजन से एनर्जी और पोषक तत्व मिलते है, जिससे बच्चा पेट में हलचल या लात मरने लगता है.

3. जब प्रैग्नेंट महिला लेटती है बाईं तरफ

बाईं तरह लेटने या सोने से शिशु के तरफ रक्त की आपूर्ति में वृद्धि हो जाती है. जब प्रैग्नेंट महिलाएं बाईं तरफ सोती है तब बच्चा पेट में हलचल या लात मरने लगता है.

4. जब बच्चा बाहरी परिवर्तन महसूस करने लगें

गर्भ में पल रहा बच्चा जब बाहरी परिवर्तन को महसूस करने लगता है तब वह भी अपनी प्रतिक्रिया देने की कोशिश करता है. ऐसे में बच्चा पेट में लात मारना शुरू कर देता है.

5. औक्सीजन में जब न हो रुकावट

सही रूप से औक्सीजन मिलने पर बच्चा अंदर स्वस्थ और एक्टिव रहता है. अगर गर्भ में पल रहा बच्चा लात नहीं मारता इसका मतलब है उसे औक्सीजन लेने में  दिक्कत है या फिर उसे पर्याप्त रूप से औक्सीजन नहीं मिल रहा है.

6. नौवें हफ्ते के बाद शुरू होती है शिशु का लात मारने का प्रतिक्रिया

प्रैग्नेंट महिला के पेट में पल रहा बच्चा 9 सप्ताह बाद पेट में लात मारना शुरू करता है. अगर महिला दूसरी बार प्रैग्नेंट होती है तो शिशु 13 सप्ताह बाद यह प्रक्रिया शुरू करता है.

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Edited by Rosy

मां की इस एक गलती से बच्चे हो सकते हैं मोटापे का शिकार

धूम्रपान सेहत के लिए बेहद हानिकारक होता है, फिर चाहे वो पुरुष हो या महिला, धूम्रपान सभी की सेहत को बुरी तरह से प्रभावित करता है. खास कर के गर्भवती महिलाओं को और अधिक सतर्कता बरतनी चाहिए. जो महिलाएं प्रेग्नेंसी के वक्त स्मोकिंग करती हैं वो अपनी सेहत के साथ साथ अपने बच्चे की भी सेहत के साथ खिलवाड़ करती हैं. हाल ही में सामने आई एक स्टडी में ये बात सामने आई की जो महिलाएं प्रेग्नेंसी के वक्त धूम्रपान करती हैं, उनके बच्चे बड़े हो कर मोटापे का शिकार हो सकते हैं.

क्या कहती है रिपोर्ट

स्टडी की रिपोर्ट में बताया गया है कि जो महिलाएं प्रेग्नेंसी के दौरान धूम्रपान करती हैं उनके बच्चे की स्किन में केम्रीन प्रोटीन फैल जाता है. बता दें यह एक तरह का प्रोटीन है जो शरीर में फैट कोशिकाओं द्वारा बनता है.

smoking of mother causes obesity in child

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कहीं आपके प्रेग्नेंट ना होने का कारण आपके पति की ये कमी तो नहीं?

क्या कहती है पहले की रिपोर्ट

इसी मामले में आई पिछली रिपोर्ट में कहा गया था कि मोटापे से पीड़ित लोगों के ब्लड में केम्रीन प्रोटीन भारी मात्रा में पाया जाता है. जबकि हाल में इसपर आई नई रिपोर्ट के मुताबिक प्रेग्नेंसी के दौरान स्मोकिंग करने से बच्चों की जींस में बदलाव आते हैं, जो शरीर की फैट कोशिकाओं को बनाने में अहम भूमिका निभाती हैं.

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बच्चों की अच्छी सेहत के लिए इस खबर को पढ़ें

क्या कहते हैं जानकार

शोध में शामिल जानकारों की माने तो स्टडी के आधार पर ये कहा जा सकता है कि जो महिलाएं प्रेग्नेंसी के दौरान धूम्रपान करती हैं, उनके बच्चों को मोटे होने का अधिक खतरा होता है. हालांकि, इसके पीछे के कारण की अभी पूरी तरह से पुष्टि नहीं हो पाई है.

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ये हैं सैंपल

बता दें, इस स्टडी के लिए शोधकर्ताओं ने 65 प्रेग्नेंट महिलाओं को शामिल किया. नतीजों में सामने आया कि स्टडी में शामिल आधी से ज्यादा प्रेग्नेंट महिलाएं प्रेग्नेंसी के दौरान धूम्रपान करती थीं.

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