बारिश का मौसम भले ही गर्मी से राहत दिलाता हो लेकिन इस की दूसरी कई समस्याएं भी हैं. इन दिनों मच्छरों से होने वाली बीमारियां डेंगू, चिकनगुनिया, मलेरिया आदि का प्रकोप बढ़ जाता है. आज बाजार में तरह-तरह के मौस्क्यूटो रिपलैंट जैसे कॉइल से ले कर कार्ड तक, स्प्रे से ले कर क्रीम तक उपलब्ध हैं.
इन के अलावा इलैक्ट्रॉनिक मच्छर मार डिवाइस और ऐप भी उपलब्ध हैं. अल्ट्रासाउंड पैदा करने वाले ऐंटीमौस्क्यूटो डिवाइस भी बाजार में आ चुके हैं. इन्हें बनाने वाली कंपनियों का दावा है कि ये डिवाइस हाई फ्रिक्वैंसी पर एक विशेष तरह का साउंड निकालते हैं. यह अल्ट्रासोनिक साउंड मच्छरों को पास फटकने से रोकता है.
इन के अलावा मच्छर भगाने का दावा करने वाले कुछ मोबाइल ऐप भी आ चुके हैं. कहने का मतलब यह कि आज मच्छरों से निबटने के लिए बाजार में इतना कुछ मौजूद है, लेकिन मच्छर हैं कि भागते नहीं.
घर-घर में विभिन्न कंपनियों के कौइल, स्प्रे, क्रीम आदि का इस्तेमाल हो रहा है. नित नए रिपलैंट बाजार में आ रहे हैं. मगर इस के प्रयोग से मच्छर भागते नहीं. इस से साफ हो जाता है कि यह मुनाफे का कारोबार है. भारत में यह 5-6 सौ करोड़ का कारोबार है. इतना ही नहीं, इस कारोबार में हर साल 7 से ले कर 10% तक वृद्धि भी हो रही है. मगर रिपलैंट का कारोबार जितना फूल-फल रहा है, मच्छरों का प्रकोप भी उतना ही बढ़ रहा है.
वैसे वैज्ञानिक तथ्य यह भी बताते हैं कि जितना दमदार रिपलैंट बाजार में आता है, मच्छर अपने भीतर उस से लड़ने की उतनी ही ताकत पैदा कर लेते हैं. अगर ऐसा ही है तो इस का मतलब साफ है कि जितना ऐडवांस रिपलैंट बाजार में आता है इंसानों के लिए वह उतना ही बड़ा खतरा बन जाता है, क्योंकि मच्छर उस से निबट लेते हैं.
स्वास्थ्य पर रिपलैंट का प्रभाव
हालांकि रिपलैंट बनाने वाली सभी कंपनियों को केंद्रीय कृषि मंत्रालय के अधीन केंद्रीय कीटनाशक बोर्ड में पंजीकरण करवाना पड़ता है. पर बोर्ड का काम इतना ही है. एक बार पंजीकरण की प्रक्रिया खत्म हो जाने के बाद कीटनाशकों के सेहत पर होने वाले नकारात्मक प्रभाव की निगरानी करने की कोई मशीनरी नहीं है. रिपलैंट समेत आजकल बाजार में पाए जाने वाले पर्सनल केयर उत्पाद, रूम फ्रैशनर से ले कर सुगंधित साबुन और डिटर्जेंट पाउडर या लौंड्री उत्पाद तक उपलब्ध हैं.
यूनिवर्सिटी ऑफ वाशिंगटन में वैज्ञानिकों के शोध से पता चलता है कि चाहे वे किसी भी नामी-गिरामी कंपनी के बने क्यों न हों उन में रासायनिक खुशबू का इस्तेमाल होता है, जिस का सेहत पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता ही है.
दरअसल, इन में खुशबू पैदा करने के लिए ऐसिटोन, लाईमोनेन, ऐसिटल्डिहाइड, बैंजीन, ब्यूटाडाइन, बैंजो पाइरेन आदि विभिन्न तरह के रासायनों का इस्तेमाल किया जाता है. इन का सब से बुरा असर स्नायुतंत्र पर पड़ता है. दमा, फेफड़ों की बीमारी, जेनेटिक विकृतियां, ब्लड कैंसर आदि का भी इन से खतरा होता है. इस के अलावा कुछ लोगों में एलर्जी, आंखों में जलन की भी शिकायत हो जाती है.
उम्मीद की किरण
मच्छरों से पनपने वाली बीमारियों और उन से होने वाली मौतों के बीच एक उम्मीद जगाने वाली खबर भी है. कोलकाता राजभवन में मच्छरमार और रोकथाम अभियान के दौरान कोलकाता नगर निगम के कीटपतंग विभाग के देवाशीष विश्वास को कुछ ऐसे मच्छरों का पता चला, जो इनसानों को नुकसान पहुंचाने के बजाय उलटा जानलेवा मच्छरों का सफाया करते हैं. सामान्य तौर पर इस मच्छर का नाम ऐलिफैंट मौस्क्यूटो है. इस प्रजाति के मच्छर इंसानी खून के प्यासे होने के बजाय डेंगू के ऐडिस एजिप्टाई लार्वा चट कर जाते हैं.
बताया जाता है कि चीन मच्छर नियंत्रण के लिए मच्छरों का ही इस्तेमाल कर रहा है. दक्षिण चीन में वैज्ञानिकों का एक दल इंजैक्शन के सहारे मच्छरों के अंडों में ओलवाचिया नामक बैक्टीरिया का प्रवेश कर बैक्टीरिया से संक्रमित मच्छर को छोड़ देता है.
चीनी वैज्ञानिकों का मानना है कि ये संक्रमित नर मच्छर जब किसी असंक्रमित मादा मच्छर के साथ मिलन करते हैं तो यह बैक्टीरिया मादा मच्छर में प्रवेश कर जाता है और मच्छरजनित बीमारियों के जीवाणुओं का खात्मा कर देता है.
वहीं सिंगापुर और थाईलैंड में हाथी मच्छर नाम की विशेष प्रजाति के मच्छरों का इस्तेमाल मलेरिया, डेंगू और चिकनगुनिया के मच्छरों पर नियंत्रण करने में किया जाता है. इसीलिए निगम इस उपकारी मच्छर के लार्वा को डेंगू और चिकनगुनिया के मच्छरों के उत्पात से त्रस्त इलाकों में फैलाने की तोड़-जोड़ कर रहा है.
गौरतलब है कि कोलकाता डेंगू के ऐडिस मच्छरों की राजधानी बन गया है. इस से पहले ऐडिस मच्छरों का स्वर्ग दिल्ली थी.
अगर श्रीलंका मच्छरजनित बीमारियों पर विजय प्राप्त कर सकता है, चीन, सिंगापुर और थाईलैंड मच्छरों पर नियंत्रण कर सकते हैं, तो भारत क्यों नहीं? पूरे देश में हाथी मच्छर के जरीए जानलेवा मच्छरों पर नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम तैयार किया जाना चाहिए.
मच्छर के काटने पर अपनाएं कुछ घरेलू उपाय
– नीबू के रस को मच्छर द्वारा काटे गए स्थान पर रगड़ लें. मच्छर के काटने से होने वाली खुजली में तुरंत आराम मिलेगा, साथ ही संक्रमण का खतरा भी जाता रहेगा.
– नीबू के रस में तुलसी का मसला पत्ता मिला कर लगाया जा सकता है.
– ऐलोवेरा जैल को 10-15 मिनट फ्रिज में रख कर काटे गए स्थान पर लगाने से भी आराम मिलता है.
– लहसुन या प्याज का पेस्ट सीधे प्रभावित स्थान पर मल लें. कुछ देर तक पेस्ट को लगा रहने दें. फिर अच्छी तरह धो लें. लहसुन या प्याज की गंध से भी मच्छर भागते हैं.
– बेकिंग सोडा को पानी में घोल रुई का फाहा उस में भिगो कर प्रभावित स्थान पर लगा कर 10-12 मिनट छोड़ दें. फिर कुनकुने पानी से धो लें आराम मिलेगा.
– बर्फ के टुकड़े को 10-12 मिनट तक कुछ-कुछ समय के अंतराल पर काटे गए स्थान पर रखें. बर्फ न होने पर ठंडे पानी की धार को कुछ देर तक प्रभावित जगह पर डालें.
– टूथपेस्ट भी खुजली पर असरदार होता है. थोड़ा सा पेस्ट उंगली में ले कर मच्छर द्वारा काटे गए स्थान पर मलें. आराम मिलेगा.
– प्रभावित स्थान पर कैलामाइन लोशन का भी इस्तेमाल किया जा सकता है. दरअसल, कैलामाइन लोशन में जिंक ऑक्साइड और फेरिक ऑक्साइड जैसे तत्व होते हैं, जो खुजली के साथ-साथ संक्रमण रोकने में भी कारगर होते हैं.
– डियोडैर्रेंट का स्प्रे भी खुजली और सूजन कम करने में कारगर होता है, क्योंकि इस में ऐल्यूमिनियम क्लोराइड होता है, जो दर्द और सूजन को रोकता है.