सपनों को न छोड़ने को लेकर क्या कहती है, निर्देशक राजश्री ओझा, पढ़े इंटरव्यू

बिना किसी फिल्मी पृष्ठभूमि के हिंदी सिनेमा में आने वालों को जो संघर्ष करना पड़ता है, वैसा ही संघर्ष राजश्री ने भी किया, लेकिन इस दौरान उनका सबसे बड़ा मानसिक सहारा बने उनके पिता प्रमोद ओझा.

यहां तक कि जब उनकी पहली फिल्म ‘चौराहे’के निर्माता ने बीच में ही हाथ खींच लिए, तो उनके पिता ने ही ये फिल्म पूरी कराई.सोनी लिव पर उनकी वेब सीरीज पॉटलॉक काफी लोकप्रिय सीरीज है, जिसे राजश्री ने बड़ी मेहनत और लगन से बनाई है.

होती है कहानी की चुनौती

वेब सीरीज को बनाने की चुनौती के बारें में पूछने पर खूबसूरत, विनम्र, हंसमुख राजश्री ओझा बताती है कि निर्देशक के रूप में मुझे ये देखना पड़ता है कि कहानी से खुद को दर्शक जोड़ सकें. ‘पॉटलॉक’ एकपरिवार की कहानी है, इसमें दर्शकों को सीरीज को देखते हुए लगना चाहिए कि वे अपने आसपास ऐसे कुछ व्यक्ति को देखा या जानते है, जिसे वे सीरीज में देख रहे है. मैने आसपास कई ऐसे चरित्र देखे है, और उसी से प्रेरित हूँ. इसके दूसरे सीजन में चरित्र को आगे आकर अपनी कहानी कहने का मौका मिला है.

 

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मिली प्रेरणा

राजश्री ओझा ने जब इंडस्ट्री में आने का मन बनाया,तो उन्हें यह कहना मुश्किल था कि वह डायरेक्टर बनना चाह रही हैं, क्योंकि उनके पिता चाहते थे कि वे कुछ और बने. राजश्री को फिल्मों में आने की प्रेरणा के बारें में पूछने पर वह कहती है कि मैं कोलकाता से हूँ, वहां मेरा जन्म हुआ है. मेरे परिवार के सभी किताबें पढ़ते और फिल्मे देखते थे. मैं भी फिल्मे देखती थी, कहानियां पढने का मुझे शौक था, इसी से मुझे प्रेरणामिली. इसके अलावा मुझे कोलकाता कल्चर बहुत पसंद है. कक्षा 5 के बाद मैं बैंगलोर चली गई.मेरे कैरियर को लेकर पिता को थोड़ी चिंता थी, क्योंकि उन्हें मैंने कुछ बताया भी नहीं. असल में मुझे बचपन से ही सत्यजीत रे की फिल्में बहुत पसंद थी. मुझे लगता है तभी से मेरे अंदर एक निर्देशक बनने की चाह उत्पन्न हो गई थी, फिर तय किया कि न्यूयॉर्क जाकर फिल्म निर्माण की ट्रेनिंग लेनी चाहिए. काफी समय से सोच रही थी कि पिता को यह बात बताऊं, लेकिन हिम्मत नहीं हो रही थी.मैं कंप्यूटर विज्ञान पढने अमेरिका गई. स्नातक करने के बाद न्यूयॉर्क जाकर फिल्म में डिप्लोमा करने की बात पिता को बताई, तो उन्होंने अपने दिल पर पत्थर रखकर जाने की इजाजत दी. मैंने वहां पर थिएटर भी किया, कुछ फिल्मे बनाई और अवार्ड भी जीते.बाद में फिल्म मेकिंग में मास्टर्स किया. इससे पिता को लगा कि मैं कुछ अच्छा कर रही हूँ. असल में मुझे चार्ली चैपलिन की ब्लैक एंड व्हाइट फिल्में और सत्यजीत रे की कॉमेडी फिल्म ‘गुपी गाइन बाघा बाईन’देखने के बाद से ही लगा था कि इसे मैं भी बना सकती हूँ. यही से मेरे अंदर एक पैशन ने जन्म लिया.

मिली संतुष्टि

सीरियल और फिल्म के बीच की कड़ी है वेब सीरीज, आपने फिल्में भी बनाई है, ओटीटी से आपको कितनी संतुष्टि मिली है?पूछने पर राजश्री कहती है कि ओटीटी ने मुझे बहुत संतुष्टि दिया है. ये सही है कि ओटीटी, फिल्म और धारावाहिक के बीच की कड़ी है. मुझे फिल्म और ओटीटी में कोई खास अंतर नहीं दिखा, सिर्फ टाइम का अंतर है. काम वही पसंद होता है, जिसे आप अच्छी तरह से दर्शा सकते है. इसमें समय महत्वपूर्ण होता है, समय मिलने पर किसी चरित्र को अच्छी तरह से प्रेजेंट किया जा सकता है, गानों और कहानी को अच्छी तरह से दिखाया जा सकता है. जबकि फिल्म में समय के हिसाब से और सीरियल्स में चैनल के हिसाब से काम करना पड़ता है. ओटीटी सभी क्रिएटर्स के लिए एक अच्छा समय लेकर आया है. पूरा विश्व इसे घर बैठे देख सकता है. बाहर के वेब सीरीज और देश के वेब सीरीज में अंतर यही है कि वहां का बजट तीन गुना और समय अधिक होता है,जो देश में नहीं मिलता.

 

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होती है मानसिक तनाव

राजश्री आगे कहती है कि महिलाओं को मानसिक तनाव कैरियर में होता है.देखा जाय तो हर क्षेत्र में मानसिक तनाव होता है, घर में बैठे या काम करें, स्ट्रेस बहुत होता है. मैंने अपनी माँ को घर में रहकर भी तनाव लेते हुए देखा है. ये लाइफ का एक पार्ट होता है. हर किसी को होता है. कभी अच्छा तो कभी बुरा दिन सबके लिए होता है. मैं बहुत लकी हूँ कि मुझे मेरी माँ से मानसिक शक्ति मिली है. दरअसल लाइफ कभी आसान नहीं होती.

नहीं है कोई समस्या

राजश्री कहती है कि महिलाओं के लिए निर्देशक बनना चुनौतीपूर्ण होता है. मैं 20 साल से काम कर रही है, काम खुद में चुनौती होती है. ये टफ होता है, कहानी को विजुअल और प्रभावी तरीके से बनाना आसान नहीं होता. इसे मैं समस्या नहीं समझती. मुझे याद है जब दिल्ली में मैं थी, तो मैं कभी-कभी रात में घर आती थी, तो सभी मुझे इतनी रात को बाहर रहने से मना करते थे, लेकिन तब मैं दिल्ली को जानती नहीं थी, क्योंकि मैं बैंगलोर की हूँ.इतनी बाधाएं वहां नहीं थी. महिलाओं के लिए ऐसे कई चुनौतियाँ होती है, जो पुरुषों को नहीं होता.

ड्रीम को न छोड़े अधूरा

निर्देशक हंसती हुई कहती है कि मेरे बहुत सारे ड्रीम है, जिसे मैं आगे करना चाहती हूँ और महिलाओं को मेरा मेसेज है कि अपने ड्रीम को पूरा करें, किसी के लिए इंतज़ार न करें, मलाल न रखे. शादी करें, बच्चों को भी पालें, पर ड्रीम न छोड़े.

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