90s की तवायफ के रोल में नजर आएगी फिल्म ‘यारियां’ की ये एक्ट्रेस, जानें क्या है कहना

फिल्म ‘यारियां’ से चर्चा में आने वाली मौडल और अभिनेत्री रकुल प्रीत सिंह दिल्ली की है. उसने अपने कैरियर की शुरुआत मौडलिंग से की है. हिंदी के अलावा उसने तमिल, तेलगू,कन्नड़ फिल्मों में भी काम किया है. माध्यम चाहे कोई भी हो रकुल को किसी प्रकार की समस्या नहीं होती. उसे अच्छी और चुनौतीपूर्ण कहानियां प्रेरित करती है. छरहरी काया की धनी रकुल को एक्शन फिल्मों में काम करने की इच्छा है. उसे एडवेंचर और समुद्री तट बहुत पसंद है. समय मिलने पर वह नेचर के करीब जाना पसंद करती है. कौलेज के दिनों में वह गोल्फ प्लेयर रह चुकी है और फिटनेस को जीवन में अधिक महत्व देती है. उसके कई जिम सेंटर है, जिसकी देखभाल वह खुद करती है. इन दिनों उसकी हिंदी फिल्म ‘मरजावां’ के प्रमोशन को लेकर वह काफी उत्सुक है, पेश है उससे हुई बातचीत के कुछ अंश.

सवाल-इस फिल्म में आपकी भूमिका कैसी है?

तारा सुतारिया इस फिल्म में मूक अभिनय कर रही है और मुझे भारी भरकम संवाद निर्देशक ने दिए है. जब उन्होंने मुझे इस फिल्म के लिए नैरेट दिया तो उनका कहना था कि आजतक मेरी फिल्म में हीरो के लिए बड़ा संवाद होता है, लेकिन इस फिल्म में ये मौका मुझे मिलेगा और मुझे अच्छा भी लगा. इसमें मैंने 90 के दशक की तवायफ की भूमिका निभाई है, जो अदा और नजाकत के साथ शायरी बोलती है. पिछले कई सालों से ऐसी फिल्में आई नहीं है और मुझे लगता है, दर्शकों को ये फिल्म पसंद आयेगी. मेरे लिए ये चुनौती है, जिसमें मुझे कुछ नया करने को मिला है.

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सवाल-इसके लिए क्या-क्या तैयारियां की है?

मैंने पुरानी हीरोइनों के अभिनय नहीं देखे, पर ‘बार’ में जाकर बार डांसर्स के हाव-भाव को देखा है. वही मेरा होम वर्क रहा.

सवाल-एक्टिंग में आना इत्तफाक था या बचपन से ही सोचा था?

बचपन मेरा खेलकूद में गुजरा, क्योंकि मैं एक फौजी की बेटी हूं. 10वीं कक्षा के बाद मैंने फिल्में देखनी शुरू की थी, लेकिन मेरी मां चाहती थी कि मैं अभिनय के क्षेत्र में कुछ करूं, क्योंकि मेरी कद काठी अच्छी थी. उन्होंने मुझे मिस इंडिया में भी भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया था. तब मुझे अच्छा नहीं लगा था, पर 12वीं के बाद मुझे लगने लगा कि मैं मौडलिंग करूं और मैंने पढ़ाई ख़त्म करने के बाद मौडलिंग शुरू की, साथ में फिल्मों के लिए भी औडिशन देती रही. इस तरह इस प्रोफेशन में आ गयी.

सवाल-आपने दक्षिण की फिल्मों में अधिक काम किया है, इसकी वजह क्या थी?

जब मौडलिंग शुरू की थी तो मुझे साउथ की इंडस्ट्री के बारें में कोई जानकारी नहीं थी. मैंने पहली बार तो उन्हें मना भी कर दिया था, लेकिन बाद में फिल्म जान कर अभिनय किया. इससे मुझे कुछ पैसे भी मिल गए मैंने अपने पैसे से कार भी खरीद ली, इतना ही नहीं अभिनय के बारें में बहुत कुछ सीखने को भी मिला. ऐसे ही आगे बढती गयी और अभिनय में मुझे मज़ा भी आने लगा. अब मेरे लिए माध्यम कोई बड़ी बात नहीं है. काम करते रहना जरुरी है. ‘यारियां’ मेरी पहली हिंदी फिल्म सफल थी, जिससे काम मिलना थोडा आसान हो गया था.

सवाल-आप बेटी बचाओ, बेटी पढाओं की ब्रांड एम्बेसेडर है, इसके तहत क्या-क्या करती है?

मैं ढाई सालों से इस अभियान के साथ जुडी हूं. हमारा उद्देश्य छोटे शहरों और गावं में जाकर काम करना है, जिसमें उन्हें बताना है कि सरकार की तरफ से उन्हें किस तरह की फंडिंग मिलती है और वे उसका फायदा कैसे उठा सकते है. जागरूकता अभियान भी करती हूं. तेलंगाना के नालगोडा में जाकर मैंने लोगों से बात की और विज्ञापन लगवाएं. ये एक धीमी प्रक्रिया है, जो धीरे-धीरे कारगर होती है.

सवाल-इस तरह के काम में समस्या क्या आती है?

समस्या पैसों की कमी की है. उन्हें बेटी पसंद नहीं, क्योंकि बेटी के लिए दहेज़ देने पड़ते है. सरकार की स्कीम के अंतर्गत जो मुफ्त शिक्षा है. उन्हें पता नहीं होता. बेटियों को वे पढ़ाते नहीं. इन सारी चीजों को दूर दराज तक पहुँचाना मुश्किल होता है.

सवाल-इंडस्ट्री में कभी आपको किसी गलत परिस्थिति का सामना करना पड़ा?

मैं कभी भी काम के लिए हताश नहीं थी. अगर आप हताश है और जब ये बात किसी को पता चलता है तो लोग उसका फायदा उठाने की कोशिश करते है. मुझे जो काम मिला उसे करती गयी. इसके अलावा मेरे पास एक अच्छी फॅमिली सपोर्ट है, जिससे ‘डू ऑर डाई’ वाली परिस्थिति कभी भी नहीं आई. ऐसे कई कलाकार है, जो काम की तलाश में यहाँ आ जाते है और संघर्ष करते है, पर अच्छा काम नहीं मिल पाता. केवल ग्लैमर इंडस्ट्री ही नहीं, दुनिया में हर कोई लाभ उठाने के लिए बैठा है, ऐसे में आप उन्हें कितना उसे लेने देते है, ये आप पर निर्भर करता है.

सवाल-सिद्दार्थ मल्होत्रा के साथ काम करने का अनुभव कैसा रहा?

सिद्दार्थ और मैं दोनों ही दिल्ली से है. दोनों की सोच अच्छी है, इसलिए काम करना मुश्किल नहीं था.

सवाल-आप कितनी फूडी है?

मुझे जंक फ़ूड पसंद नहीं. मां के हाथ का बना खाना बहुत पसंद है. घर जाने से पहले ही उन्हें मैं अपना मेन्यु दे देती हूं. काले चने, करेला, पालक सब मुझे उनके हाथ का बना पसंद है.मुझे खाना बनाना नहीं आता, पर बेकिंग पसंद है और करती हूं. मैं छोले भटूरे और बटर चिकन नहीं खाती. मैं फिटनेस पर अधिक ध्यान देती हूं. आयल मैं एकदम नहीं लेती.

सवाल-आपकी फिटनेस कोच कौन है?

मैं खुद अपने स्वास्थ्य के हिसाब से अपने आपको कोच करती हूं. मेरा ट्रेनर कुनाल सालों से है. इसके अलावा कई और ट्रेनर है.

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सवाल-अभिनय के अलावा किस बात में रूचि रखती है?

मेरे कई जिम सेंटर है, जिसकी देखभाल मैं खुद करती हूं.

सवाल-फिटनेस के लिए बेसिक क्या है?

हर किसी को अपनी फिटनेस का ख्याल रखनी चाहिए. जब आप घर को साफ रखते है, तो शरीर को क्यों नहीं और उसके लिए थोडा समय अवश्य निकाले. 20 मिनट भी आपके लिए काफी होता है. फिटनेस एक लाइफस्टाइल है और उसके लिए जिम की जरुरत नहीं होती.

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