फिल्म ‘83’कोविड 19 और लॉकडाउन की वजह से बंद बक्से में चली गयी है, क्योंकि निर्देशक कबीर खान उसे थिएटर में रिलीज करना चाहते है. इस प्रोजेक्ट को उन्होंने 20 साल पहले सोचा था, लेकिन फाइनेंसर न मिलने की वजह से उन्हें इतना समय लगा है. ये फिल्म उनकी एक ड्रीम प्रोजेक्ट है, जिसे वे दर्शकों के बीच में अच्छी तरह से लाना चाहते है.
एक इंटरव्यू के दौरान निर्देशक कबीर खान कहते कि अभिनेता रणवीर सिंह ने क्रिकेटर कपिलदेव की एक-एक चीज को सामने बैठकर देखा है, हर संवाद को पहले कपिलदेव के कहने के बाद, रणवीर सिंह उसे दोहराते थे. अगर नोटिस किया जाय, तो रणवीर हमेशा खुद को किसी भी चरित्र में ढालने में माहिर है, क्योंकि यही एक्टर किसी में गलिबॉय, तो किसी में सिम्बा, तो किसी में अलाउद्दीन खिलजी आदि का अभिनय करता है. एक कलाकार के रूप में उसकी क्वालिटी आश्चर्यजनक है. वह एक गिरगिट की तरह है, क्योंकि गिरगिट भी अपने आसपास के माहौल के हिसाब से अपना रंग बदलती है. रणवीर सिंह भी किसी भूमिका में खुद को आसानी से ढाल लेते है. उनकी तक़रीबन सभी फिल्मों ने बहुत अच्छा काम किया है. इसलिए बहुत सोच समझकर रणवीरसिंह को लिया गया है, क्योंकि वे ही क्रिकेट प्लेयर कपिलदेव की भूमिका अच्छी तरह से निभा सकते है.वैसे कई कलाकारों के नाम मन में आये थे,बात भी किया जा चुका था, लेकिन अंत में रणवीर को ही फाइनल किया गया. अभिनेत्री दीपिका को भी लेने का मकसद यही है कि इन दोनों की जोड़ी को दर्शक शादी के बाद एक साथ देखना पसंद करेंगे. दीपिका इसमें कपिलदेव की पत्नी की भूमिका निभा रही है.
इसके आगे कबीर कहते है कि ये कहानी खिलाड़ियों के स्पिरिट की कहानी है. इसमें जब यहाँ की टीम लन्दन वर्ल्ड कप के लिए पहुंची थी तो सभी ने कहा था कि उन्हें यहाँ नहीं आना चाहिए था, क्योंकि ये टीम वर्ल्डकप के स्तर को कम कर देगी, लेकिन सभी प्लेयर्स ने साथ मिलकर वर्ल्ड कप को जीता है. ये अविश्वसनीय ह्यूमन स्टोरी है. इस फिल्म की कहानी हीरो है और हमारे देश में हर बच्चा गली मोहल्ले में क्रिकेट खेलकर ही बड़ा होता है. इसमें क्रिकेट हटाकर अगर कबड्डी भी डाल दिया जाता, तो भी ये उतनी ही दमदार स्क्रिप्ट होती. ऐसे में इस जबरदस्त कहानी को सही ढंग से पर्दे पर लाना बहुत जरुरी था.
सभी जानते है कि फिल्मइंडस्ट्री के कबीर खान को हमेशा से ही कला और साहित्य से जुड़े विषयों पर काम करने का शौक था. उनका सपना मुंबई आकर एक फिल्म बनाने की थी. हालाँकि उनका शुरूआती दौर बहुत संघर्षमय था, पर उन्हें जो भी काम मिला करते गए. उनकी सबसे सफलतम फिल्म ‘एक था टाइगर’ रही, जिसकी वजह सेकबीर खान को इंडस्ट्री में पहचान मिली.उन्हें बड़ी फिल्मों से अधिक डॉक्युमेंट्री फिल्में बनाना पसंद है, क्योंकि कम समय में वे बहुत सारी बातें कह पाते है. ह्यूमन स्टोरी वाली कहानी, जिसे बहुत कम लोग जानते है, उन्हें लोगों तक लाने की कोशिश कबीर ने की है. ऐसी कहानी को लेकर उन्होंने काफी फिल्में बनाई है, जिसमें किसी कहानी में नेता, तो किसी में आर्मी तो किसी में क्रिकेट प्लेयर की कहानी होती है. किसी भीकहानी को कहने में वे पीछे नहीं हटते. फिल्म फॉरगॉटन आर्मी- आज़ादी के लिए’, ‘बजरंगी भाईजान’, न्यूयार्कआदि कई सफल फिल्मों के साथ-साथ उन्होंने ‘’फैंटम’,‘काबुल एक्सप्रेस’, ‘ट्यूबलाइट’ जैसी असफल या एवरेज फिल्में भी बनाई, जिसे दर्शकों ने नहीं स्वीकारा. इस बारें में पूछे जाने पर उनका कहना है कि मैं असफलता को सीरियसली नहीं लेता न ही सफलता को अधिक महत्व देता हूं, क्योंकि असफलता से ही व्यक्ति बहुत कुछ सीख पाता है, जबकि सफलता उसकी सोच को नष्ट कर देती है. प्रोसेस को मैं एन्जॉय करता हूं. मैने 15 साल की इस कैरियर में देखा है कि सफलता से व्यक्ति का दिमाग ख़राब हो जाता है और उसका कैरियर नष्ट हो जाता है. हर फिल्ममेकर की फिल्में सफल और असफल दोनों होती है. जो इसे समझ लेता है वही इंडस्ट्री में टिका रहता है.
ये बात कबीर खान जितनी संजीदगी से कह गए, उसे समझना मुश्किल था, क्योंकि हर फिल्म को बनाने में करोड़ों रूपये लगते है, ऐसे में फिल्मों का सफल न होना बहुत बड़ी बात होती है, क्योंकि निर्माता, निर्देशक और कलाकार सभी की जिंदगी दांव पर लग जाती है, जिसे आसानी से पचा जाना मुश्किल होता है. एक फिल्म के असफल होने पर निर्देशक से लेकर कलाकार सभी को आगे बड़ी फिल्म के मिलने में कठिनाइयाँ आती है, जिसे सभी स्वीकारते है.
कबीर खान का राजनीति से काफी गहरा सम्बन्ध रहा है, इसलिए उनकी हर फिल्म में राजनीति की झलक देखने को मिलती है. उनकी पत्नी उनके स्क्रिप्ट की आलोचक है, जिसका सहयोग हमेशा कबीर खान को मिलता है. उनका कहना है कि एक अच्छी सपोर्ट सिस्टम ही क्रिएटिविटी को बढ़ाने में समर्थ होती है. घर का सुकून भरा माहौल मुझे बहुत कुछ करने की आज़ादी देता है. आगे भी मैं ऐसी ही कुछ चुनौतीपूर्ण कहानियों को लेकर आने वाला हूं.