कब रुकेगा यह सिलसिला

‘‘हद हो चुकी है इंसानियत की. ऐसा लगता है जैसे हम आदिम युग में जी रहे हैं. महिलाओं को अपने तरीके से जीने का अधिकार ही नहीं है. बेचारियों को सांस लेने के लिए भी अपने घर के मर्दों की इजाजत लेनी पड़ती होगी,’’ विनय रिमोट के बटन दबाते हुए बारबार न्यूज चैनल बदल रहा थे और साथ ही साथ अपना गुस्सा जाहिर करते हुए बड़बड़ा भी रहे थे. उन्हें भी टीवी पर दिखाए जाने वाले समाचार विचलित किए हुए हैं. वे अफगानी महिलाओं की जगह अपने घर की बहूबेटी की कल्पनामात्र से ही सिहर उठे.

‘‘अफगानी महिलाओं को इस का विरोध करना चाहिए. अपने हक में आवाज उठानी चाहिए,’’ पत्नी रीमा ने उन्हें चाय का कप थमाते हुए अपना मत रखा. उन्हें भी उन अपरिचित औरतों के लिए बहुत बुरा लग रहा था.

‘‘अरे, वैश्विक समाज भी तो मुंह में दही जमाए बैठा है. मानवाधिकार आयोग कहां गया? क्यों सब के मुंह सिल गए?’’ विनय थोड़ा और जोश में आए.

तभी उन की बहू शैफाली औफिस से घर लौटी. कार की चाबी डाइनिंगटेबल पर रखती हुई वह अपने कमरे की तरफ चल दी.

विनय और रीमा का ध्यान उधर ही चला गया. लंबी कुरती के साथ खुलीखुली पैंट और गले में झलता स्कार्फ… विनय को बहू का यह अंदाज जरा भी नहीं सुहाता.

‘‘कम से कम ससुर के सामने सिर पर पल्ला ही डाल ले, इतना लिहाज तो घर की बहू को करना ही चाहिए,’’ विनय ने रीमा की तरफ देखते हुए नाखुशी जाहिर की.

रीमा मौन रही. उस की चुप्पी विनय

की नाराजगी पर अपनी सहमति की मुहर लगा रही थी.

‘‘अब क्या कहें? आजकल की लड़कियां हैं. अपनी मरजी जीती हैं,’’ कहते हुए रीमा ने मुंह सिकोड़ा.

सवालिया निशान

शैफाली के कानों में शायद उन की बातचीत पड़ गई थी. वह अपने सासससुर के सामने सवालिया मुद्रा में जा खड़ी हुई. बोली, ‘‘आप को क्या लगता है तालिबानी सिर्फ किसी मजहब या कौम का नाम है?’’ कहते हुए शैफाली ने अपना प्रश्न अधूरा छोड़ दिया.

बहू का इशारा समझ कर विनय गुस्से में तमतमाता हुए घर से बाहर निकल गए. रीमा भी बहू के सवालों से बचने का प्रयास करती हुई रसोई में घुस गईं.

यह कोई कपोलकल्पित घटना नहीं है बल्कि हकीकत है. यदि गौर से देखें तो हम पाएंगे कि हमारे आसपास भी अनेक छद्म तालिबानी मौजूद हैं. चेहरे और लिबास बेशक बदल गए हों, लेकिन सोच अभी भी वही है.

इन दिनों हर तरफ एक ही मुद्दा छाया हुआ है और वह है अफगानिस्तान पर तालिबानियों का कब्जा. चाहे किसी समाचारपत्र का मुखपृष्ठ हो या किसी न्यूज चैनल पर बहस हर समाचार, हर दृश्य सिर्फ एक ही तसवीर दिखासुना रहा है और वह है अफगानिस्तान में तालिबानी शासन के बाद महिलाओं की दुर्दशा.

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बुद्धिजीवी और विचारक केवल एक ही बात पर मंथन कर रहे हैं कि वहां महिलाओं पर हो रही अमानवीयता को कैसे रोका जाए? सोशल मीडिया पर तालिबानियों को खूब कोसा जा रहा है. महिलाओं को उन के ऊपर हो रहे अत्याचारों के विरोध में आवाज बुलंद करने के लिए जगाया जा रहा है. सिर्फ मीडिया ही नहीं बल्कि आम घरों के लिविंगरूम में भी यही खबरें माहौल को गरम किए हुए हैं.

कहां है बराबरी

कहने को भले ही हमारे संविधान ने महिलाओं को प्रत्येक स्तर पर बराबरी का दर्जा दिया हो, लेकिन समाज आज भी उसे स्वीकार नहीं कर पाया है. महिलाओं और लड़कियों को स्वतंत्रता देना अभी भी उसे रास नहीं आता.  किसी और का उदाहरण क्या दें, खुद कानून बनाने वाले और संविधान के तथाकथित रखवाले भी महिलाओं को ले कर कितने ओछे विचार रखते हैं इस की बानगी देखिए:

‘‘महिलाएं ऐसे तैयार होती हैं कि उस से लोग उत्तेजित हो जाते हैं,’’ भाजपा नेता कैलाश विजयवर्गीय.

‘‘लड़के लड़के होते हैं, उन से गलतियां हो जाती हैं. लड़कियां ही लड़कों से दोस्ती करती हैं, फिर लड़ाई होने पर रेप हो जाता है,’’ सपा नेता मुलायम सिंह यादव.

‘‘अगर 2 मर्द एक औरत का रेप करें तो इसे गैंगरेप नहीं कह सकते,’’ जेके जौर्ज.

‘‘शादी के कुछ समय बाद औरतें अपना चार्म खो देती हैं. नईनई जीत और नई शादी का अपना महत्त्व होता है. वक्त के साथ जीत की याद पुरानी हो जाती है. जैसेजैसे वक्त बीतता है, बीवी पुरानी होती जाती है और वह मजा नहीं रहता,’’ कांग्रेस नेता श्रीप्रकाश जायसवाल.

अभद्र बयान

सिर्फ बड़े नेता ही नहीं बल्कि स्वयं देश के प्रधानमंत्री पर भी महिलाओं को ले कर दिए गए अभद्र बयान के छींटे हैं. 2012 में उन्होंने एक चुनाव सभा में शशि थरूर की पत्नी सुनंदा थरूर को ‘50 लाख की गर्लफ्रैंड’ कह कर विवाद को जन्म दिया था.

इस के अतिरिक्त महिलाओं को ‘टचमाल’ कह कर दिग्विजय सिंह, ‘परकटी’ कह कर शरद यादव, और ‘टनाटन’ कह कर बंशीलाल महतो भी विवादों में घिर चुके हैं.

आज भी केवल भाई, पति, पिता और बेटा ही नहीं बल्कि हर पुरुष रिश्तेदार के लिए स्त्री की आजादी एक चुनौती बनी हुई है.

‘‘फलां की लड़की बहुत तेज है. फलां ने अपनी बहू को सिर पर चढ़ा रखा है. सिर पर नाचने न लगे तो कहना,’’ जैसे जुमले किसी भी आधुनिक पोशाक पहनी, कार चलाती या फिर बढि़या नौकरी करती अपने मन से जीने की कोशिश करती महिला के लिए सुने जा सकते हैं.

धर्म या समुदाय चाहे कोई भी क्यों न हो, महिलाओं को सदा निचली सीढ़ी ही मिलती है. एक उम्र के बाद खुद महिलाएं भी इसे स्वीकार कर लेती हैं और फिर वे भी महिलाओं के प्रतिद्वंद्वी पाले में जा बैठती हैं. यह स्थिति संघर्षरत महिला बिरादरी के लिए बेहद निराशाजनक होती है.

जानवर जिंदा है

हर व्यक्ति मूल रूप से एक जानवर ही होता है जिसे समाज में रहने के लिए विशेष प्रकार से प्रशिक्षित किया जाता है. अवसर मिलते ही व्यक्ति के भीतर का जानवर खूंख्वार हो उठता है जिस की परिणति बलात्कार, हत्या, लूट जैसी घटनाओं होती है. यही पाशविक प्रवृत्ति उसे महिलाओं के प्रति कोमल नहीं होने देती.

धर्म और संस्कृति के नाम पर सदियों से महिलाओं के साथ कायरता व्यवहार किया जाता रहा है. विभिन्न धर्मों में इसे भिन्नभिन्न नाम से परिभाषित किया जाता है, किंतु मूल में सिर्फ एक ही तथ्य है और वह यह कि महिलाओं की उत्पत्ति पुरुषों को खुश रखने और उन की सेवा करने के लिए ही हुई है. महिलाओं की यौनेच्छा को भी बहुत हेय दृष्टि से देखा जाता है. यहां तक कि विभिन्न प्रयासों से इस नैर्सिगक चाह को दबाने पर भी बल दिया जाता है.

गलत प्रथा

मुसलिम समुदाय की खतना प्रथा यानी फीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन को इन प्रयासों में शामिल किया जा सकता है. 2020 में यूनिसेफ द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार दुनियाभर में करीब 20 करोड़ बच्चियों और महिलाओं के जननांगों को नुकसान पहुंचाया गया है. हाल ही में ‘इक्विटी नाऊ’ द्वारा जारी नई रिपोर्ट के अनुसार खतना प्रथा विश्व के 92 से अधिक देशों में जारी है. इस प्रथा के पीछे धारणा यह रहती है कि ऐसा करने से स्त्री की यौनेच्छा खत्म हो जाती है.

महिलाओं को अपनी संपत्ति सम?ो जाने के प्रकरण आदिकाल से सामने आते रहे हैं. बहुपत्नी प्रथा इसी का एक उदाहरण है. मुसलिम पर्सनल ला के अनुसार मुसलमानों को 4 शादियां करने की छूट है. हिंदू और ईसाइयों में हालांकि बहुपत्नी प्रथा को कानूनन प्रतिबंधित कर दिया गया है, लेकिन यदाकदा इस की सूचनाएं आती रहती हैं.

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गुजरात प्रांत में ‘करार’ नामक प्रथा प्रचलित थी जो कहींकहीं लुकेछिपे आज भी जारी है. इस में स्त्रीपुरुष बाकायदा करार कर के साथ रहना स्वीकार करते थे. यह करार ‘लिव इन रिलेशनलशिप’ जैसा ही होता है. फर्क सिर्फ इतना है कि इस में लिखित में करार होने के कारण शायद महिलाएं मानसिक दबाव में रहती हैं और पुरुष के खिलाफ किसी तरह की कोई शिकायत कहीं दर्ज नहीं कराती होंगी. मैत्री प्रथा में पुरुष हमेशा शादीशुदा होता है. हालांकि गुजरात के उच्च न्यायालय ने मीनाक्षी जावेरभाई जेठवा मामले में इसे शून्य आदित घोषित कर दिया था.

स्त्रीपुरुष संबंधी मूल क्रिश्चियन मान्यता के अनुसार गौड ने मैन को अपनी इमेज से बनाया और वूमन को उस की पसली से. पुरुष को यह चाहिए कि वह महिला को दबा कर रखे और उस से खूब आनंद प्राप्त करे.

दोषी कौन

ताजा हालात के अनुसार अफगानिस्तान की महिलाएं पूरे विश्व के लिए सहानुभूति और दया की पात्र बनी हुई हैं क्योंकि तालिबानियों द्वारा लगातार उन की स्वतंत्रता को कैद करने वाले फरमान जारी किए जा रहे हैं. उन पर विभिन्न तरह की पाबंदियां लगाईं जा रही हैं.

तालिबान शासन में लड़कियों को पढ़ने की इजाजत तो दी गई है, लेकिन इस पाबंदी के साथ कि वे लड़कों से अलग पढ़ेंगी और उन से किसी तरह का कोई संपर्क नहीं रखेंगी.

यों देखा जाए तो इस तरह की व्यवस्था भारत सहित अन्य कई देशों में भी है, लेकिन यहां इसे महिलाओं के लिए की गई विशेष व्यवस्था के नाम पर देखा और इसे महिला शिक्षा को बढ़ावा देने के रूप में प्रचारित किया जाता है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुमान के अनुसार तालिबान में 90% महिलाएं हिंसा का शिकार हैं और 17% ने यौन हिंसा ?ोली है. मगर मात्र अफगानिस्तान ही नहीं बल्कि विश्व के प्रत्येक कोने से लड़कियों और युवा महिलाओं के लिए इस तरह की आचार संहिता या फतवे जारी होने की खबरें अकसर पढ़नेसुनने में आती रहती हैं.

वैश्विक समुदाय के परिपेक्ष में देखें तो राष्ट्रीय अपराध रिकौर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार भारत में महिलाओं के खिलाफ हर घंटे लगभग 39 अपराध होते हैं, जिन में 11% हिस्सेदारी बलात्कार की है.

यौन हिंसा की शिकार

यूरोप में महिलाओं के खिलाफ हिंसा पर हुए ताजा सर्वे बताते हैं कि लगभग एकतिहाई यूरोपीय महिलाएं शारीरिक या यौन हिंसा की शिकार हुई हैं.

पैरिस स्थित एक थिंक टैंक फाउंडेशन ‘जीन सौरेस’ के मुताबिक देश की करीब 40 लाख महिलाओं को यौन हिंसा का शिकार होना पड़ा. यह कुल महिला आबादी का 12% है यानी देश की हर 8वीं महिला अपनी जिंदगी में रेप का शिकार हुई है.

जनवरी, 2014 में व्हाइट हाउस की एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ था कि दुनिया के सब से विकसित कहे जाने वाले देश में भी महिलाओं की स्थिति कुछ खास अच्छी नहीं है. यहां भी हर 5वीं महिला कभी न कभी रेप की शिकार हुई है. चौंकाने वाली बात यह है कि इन में से आधी से अधिक महिलाएं 18 वर्ष से कम उम्र में रेप का शिकार हुई हैं.

न्याय विभाग द्वारा 2000 के अध्ययन में पाया गया कि जापान में केवल 11% यौन अपराधों की सूचना ही दी जाती है और बलात्कार संकट केंद्र का मानना है कि 10-20 गुना अधिक मामलों की रिपोर्ट के साथ स्थिति बहुत खराब होने की संभावना है.

कहीं खतना, कहीं खाप तो कहीं ओनर किलिंग हर तरफ से मरना तो केवल स्त्री को ही है. यह भी गौरतलब है कि इस तरह के फरमान अधिकतर युवा महिलाओं के लिए ही जारी किए जाते हैं और इन का विरोध भी इसी पीढ़ी द्वारा ही किया जाता है. तो क्या उम्रदराज महिलाएं इन फरमानों या शोषण किए जाने वाले रीतिरिवाजों से सहमत होती हैं? क्या उन्हें अपनी आजादी पर पहरा स्वीकार होता है या फिर 40-50 तक आतेआते उन की संघर्ष करने की शक्ति समाप्त हो चुकी होती है?

उम्रदराज महिला नेत्रियों के उदाहरण देखें तो बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी बलात्कार के मामलों में लड़कों पर अधिक दोषारोपण नहीं करतीं. वहीं दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत शीला दीक्षित भी लड़कियों को ही नसीहत देती नजर आई थीं कि उन्हें ऐडवैंचर से दूर रहना चाहिए.

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उत्तर कोई नहीं

अमूमन घर की बड़ीबूढि़यां समाज के ठेकेदारों द्वारा निर्धारित इन नियमों को लागू करवाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं. एक प्रकार से वे अपनेअपने घर में इन फैसलों का पालन करवाने के लिए अघोषित जिम्मेदारी भी लेती हैं. कहीं यह युवा पीढ़ी के प्रति उन की ईर्ष्या  तो नहीं? कहीं यह विचार तो उन से यह सब नहीं करवाता कि जो सुविधाएं या आजादी भोगने में वे नाकामयाब रहीं वह स्वतंत्रता आने वाली पीढ़ी को क्यों मिले? ठीक वैसे ही जैसे आम घरों में सासबहू के बीच तनातनी देखी जाती है.

सास ने अपने समय में अपनी सास की हुकूमत मन मार कर ?ोली थी, वह यों ही बिना किसी एहसान के अपनी बहू को सत्ता कैसे सौंप दे या फिर उम्रदराज महिलाओं के इस आचरण के पीछे भी कोई गहरा राज तो नहीं? कहीं ऐसा तो नहीं कि पुरुषप्रधान समाज का कोई डर उन के अवचेतन मन में जड़ें जमाए बैठा है और वही डर महिलाओं से अपनी ही प्रजाति के खिलाफ खड़ा कर रहा हो?

प्रश्न बहुत से हैं और उत्तर कोई नहीं. जितना अधिक गहराई में जाते हैं उतना ही अधिक कीचड़ है. चाहे किसी भी धर्म की तह खंगाल लो, स्त्री को सदा ‘नर्क का द्वार’ या फिर ‘शैतान की बेटी’ ही समझ जाता रहा है और उस के सहवास को महापाप. सदियां गुजर चुकी हैं, लेकिन अभी भी कोई तय तिथि नहीं है जिस पर स्त्री की दशा पूरी तरह से सुधरने का दावा किया जा सके. हजारों सालों से जिस व्यवस्था में कोई परिवर्तन नहीं आ सका उस की उम्मीद क्या आने वाले समय में की जा सकती है?

उम्मीद पर दुनिया कायम है या आशा ही जीवन है जैसे वाक्य मात्र छलावा ही दे सकते हैं कोई उम्मीद नहीं.

क्यों सहें दर्द चुपचाप

हमारे देश में महिलाओं को पुरुषों का हमकदम बनाने के लिए महिला आयोग बनाया गया है. हर राज्य में आयोग की एक फौज है, जहां महिलाओं की परेशानियां सुनी और सुलझई जाती हैं. लेकिन बीते कुछ समय से महिला आयोग संस्था की चाबियों का गुच्छा कुछ ज्यादा ही भारी हो गया है, इसलिए वह संभाले नहीं संभल रहा है और जमीन पर गिरने लगा है. केरल महिला आयोग में भी ऐसा ही कुछ हुआ.

आयोग की अध्यक्ष एम सी जोसेफिन ने घरेलू हिंसा की शिकार एक महिला को रूखा सा जवाब देते हुए टरका दिया. दरअसल, आयोग अध्यक्षा टीवी पर लाइव महिलाओं की परेशानी सुन रही थीं. इसी बीच घरेलू हिंसा की शिकार एक महिला आयोग की अध्यक्षा को फोन पर अपनी आपबीती सुनाते हुए कहने लगी कि उस के पति और ससुराल वाले उसे काफी परेशान करते हैं.

अध्यक्षा को जब पता चला कि लगातार हिंसा सहने के बाद भी महिला ने कभी उस की शिकायत पुलिस में नहीं की, तो वे भड़क गईं और रूखे अंदाज में कहा कि अगर हिंसा सहने के बाद भी पुलिस में शिकायत नहीं करोगी तो भुगतो. उन का पीडि़ता पर झल्लाने का वीडियो वायरल हुआ तो उन्होंने अपने पद का ही त्याग कर दिया.

मगर जातेजाते वे यह कहना नहीं भूलीं कि औरतें फोन कर के शिकायत तो करती हैं, लेकिन जैसे ही पुलिसिया काररवाई की बात आती है, पीछे हट जाती हैं. इस के बाद से आयोग अध्यक्षा घेरे में आ गईं कि कैसे इतने ऊंचे पद पर बैठी महिला, तकलीफ में जीती किसी औरत से इस तरह रुखाई से बात कर सकती है. बात भले ही आ कर अध्यक्षा की रुखाई पर सिमट गई, लेकिन गौर करें तो मामला कुछ और ही है.

दरअसल, मारपीट की शिकायत ले कर आई महिला चाहती थी कि आयोग की दबंग दिखने वाली महिला उस के पति को बुला कर समझए या सास पर रोब जमा कर उसे डरा दे कि बहू को तंग किया तो तुम्हारी खैर नहीं वरना क्या वजह है कि औरतें शिकायत ले कर आती तो हैं, लेकिन पुलिस के दखल की बात सुनते ही लौट जाती हैं.

जुल्म सहने को मजबूर

ममता बदला हुआ नाम के पति और सास उस पर जुल्म करते हैं. रोतीकलपती वह अपने मायके पहुंच जाती है. पर उस में इतनी हिम्मत नहीं है कि उन की शिकायत ले कर पुलिस में जाए. कारण, एक डर कि अगर पति को पुलिस पकड़ कर ले गई और बाद में जब वह छूट कर घर आएंगे, तो उस पर और जुल्म होगा. दूसरी बात यह भी कि पति के घर के सिवा दूसरा आसरा नहीं है, तो वह कहां जाएगी? ममता 2 बच्चों की मां है और उस का मायका उतना मजबूत नहीं है, इसलिए वह पति और सास का जुल्म सहने को मजबूर है.

अकसर पति, ससुराल के हाथों हिंसा की शिकार महिला पुलिस के पास शिकायत ले कर नहीं जाती है यह सोच कर कि घर की बात घर में ही रहनी चाहिए और फिर अगर पति का घर छूट गया तो वह कहां जाएगी? लेकिन आसरा छूट जाने का और घर की बात घर में ही रहने वाली जनाना सोच औरतों पर काफी भारी पड़ रही है.

वूमन का डेटा बताता है कि हर 3 में से 1 औरत अपने पति या प्रेमी के हाथों हिंसा की शिकार होती है. इस में रेप छोड़ कर बाकी सारी बातें शामिल हैं. जैसे पत्नी को मूर्ख समझना, बातबात पर उसे नीचा दिखाना, उसे घर बैठने को कहना, बच्चे की कोई जिम्मेदारी न लेना या फिर मारपीट भी.

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यौन हिंसा

भारत में महिलाओं पर सब से ज्यादा यौन हिंसा होती है, वह भी पति या प्रेमी के हाथों. नैशनल फैमिली हैल्थ सर्वे ने 2016 में लगभग 7 लाख महिलाओं पर एक सर्वे किया था. इस दौरान लंबे सवालजवाब हुए थे, जिन से पता चला कि शादीशुदा भारतीय महिलाओं के यौन हिंसा ?ोलने का खतरा दूसरे किस्म की हिंसाओं से लगभग 17 गुना ज्यादा होता है, लेकिन ये मामले कभी रिपोर्ट नहीं होते हैं. बिहार, उत्तर प्रदेश और झरखंड जैसे कम साक्षरता दर वाले राज्यों के अलावा पढ़ाईलिखाई के मामले में अव्वल राज्य जैसे केरल और कर्नाटक की औरतें भी पति या प्रेमी की शिकायत पुलिस में करते ?िझकती है.

देश की राजधानी दिल्ली के एक सामाजिक संगठन द्वारा कराए गए सर्वेक्षण में यह बात सामने आई कि देश में लगभग 5 करोड़ महिलाएं घरेलू हिंसा की शिकार होती है लेकिन इन में से केवल 0.1% महिलाओं ने ही इस के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराई है.

हिंसा का यह डेटा तो सिर्फ एक बानगी है. असल कहानी तो काफी लंबी और खौफनाक है. लेकिन बात फिर आ कर वहीं अटक जाती है कि जुल्म सहने के बाद भी महिलाएं चुप क्यों हैं?

घरेलू हिंसा का मुख्य कारण क्या है

हमारे समाज में बचपन से ही लड़कियों को दबाया जाना, उन्हें बोलने न देना, लड़कियों के मन में लचारगी और बेचारगी का एहसास ऐसे भरा जाना घरेलू हिंसा का मुख्य कारण है. अकसर मांबाप और रिश्तेदार यह कह कर लड़की का मनोबल तोड़ देते हैं कि बाहर अकेली जाओगी? जमाना देख रही हो? ज्यादा मत पढ़ो. शादी के बाद वैसे ही तुम्हें चूल्हा ही फूंकना है.

ज्यादा पढ़लिख गई तो फिर लड़का ढूंढ़ना मुश्किल हो जाएगा. वगैरहवगैरह. फिर होता यही है कि चाहे लड़की कितनी भी पढ़ीलिखी, ऊंचे ओहदे पर चली जाए, रिश्ता निभाना ही है, यह बात उस के जेहन में बैठ जाती है और सहना भी आ जाता है. बचपन में पोलियो की घुट्टी से ज्यादा जनानेपन की घुट्टी पिलाने के बाद भी अगर लड़की न सम?ो, तो दूसरे रास्ते भी होते हैं.

लड़की अपना दुखतकलीफ अगर मां से कहे तो नसीहतें मिलती है कि जहां 4 बरतन होते हैं खटकते ही हैं. यहां तक कि गलत होने पर भी दामाद को नहीं, बल्कि बेटी को ही कठघरे में खड़ा कर दिया जाता है ताकि रिश्ता न टूटे और बेटी अपनी ससुराल में टिकी रहे. लड़की को समझ में आ जाता है कि मायका उस के लिए सच में पराया बन गया और जब अपने ही उस की बात नहीं सुन रहे हैं, फिर पुलिस में शिकायत कर के क्या हो जाएगा? और रिश्ता ही बिगड़ेगा, यह सोच कर लड़की चुप रहती है.

आर्थिक निर्भरता नहीं

घरेलू हिंसा सहना और चुप्पी की एक वजह आर्थिक निर्भरता भी है. आमतौर पर महिलाओं को लगता है कि अगर पति का आसरा छूट गया तो वे कहां जाएंगी? बच्चे कैसे पलेंगे? बच्चों व पति के बीच महिलाएं अपनी पढ़ाईलिखाई को भी भूल जाती हैं. उन के पास भी कोई डिगरी है, याद नहीं उन्हें. रोज खुद को मूर्ख सुनते हुए वे अपनी काबिलीयत को ही भूल चुकी होती हैं. वे मान चुकी होती हैं कि पति की शिकायत पुलिस में करने के बाद उम्मीद का आखिरी धागा भी टूट जाएगा और वे बेसहारा हो जाएंगी. मगर पुलिस में शिकायत के बाद भी क्या महिला को इंसाफ मिल पाता है?

कहने को तो लगभग हर साल औरतमर्द के बीच फासला जांचने के लिए कोई सर्वे होते हैं, रिसर्च होती हैं, कुछ कमेटियां बैठती हैं. लेकिन फर्क आसमान में ओजोन के सूराख से भी ज्यादा बड़ा हो चुका है.

पितृसत्तात्मक माने जाने वाले भारतीय समाज में जहां शादियों को पवित्र रिश्ते का नाम दिया गया है. वहां एक पति का अपनी पत्नी के साथ रेप करना अपराध नहीं माना जाता. मुंबई की एक महिला ने सैशन कोर्ट में जब कहा कि पति ने उस के साथ जबरदस्ती संबंध बनाए और जिस के चलते उसे कमर तक लकवा मार गया. इस के साथ ही उस महिला ने अपने पति और ससुराल वालों के खिलाफ दहेज उत्पीड़न का केस भी किया, तो कोर्ट ने कहा कि महिला के आरोप कानून के दायरे में नहीं आते हैं.

+???साथ ही कहा कि पत्नी के साथ सहवास करना अवैध नहीं कहा जा सकता है. पति ने कोई अनैतिक काम नहीं किया है. लेकिन साथ में कोर्ट ने महिला का लकवाग्रस्त होना कुदरती बताया और यह भी कहा कि इस के लिए पूरे परिवार को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है. 2017 में केंद्र सरकार ने कहा था कि मैरिटल रेप का अपराधीकारण भारतीय समाज में विवाह की व्यवस्था को अस्थिर कर सकता है. वहीं 2019 में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा था कि मैरिटल रेप को अपराध घोषित करने की कोई जरूरत नहीं है.

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मैरिटल रेप क्या है

जब एक पुरुष अपनी पत्नी की सहमति के बिना उस के साथ सैक्सुअल इंटरकोर्स करता है तो इसे मैरिटल रेप कहा जाता है. मैरिटल रेप में पति किसी भी तरह के बल का प्रयोग करता है.

भारत में क्या है कानून

भारत के कानून के मुताबिक, रेप में अगर आरोपी महिला का पति है तो उस पर रेप का केस दर्ज नहीं हो सकता. आईपीसी की धारा 375 में रेप को परिभाषित किया गया है. यह कानून मैरिटल रेप को अपवाद मानता है. इस में कहा गया है कि अगर पत्नी की उम्र 18 साल से अधिक है तो पुरुष का अपनी पत्नी के साथ सैक्सुअल इंटरकोर्स रेप नहीं माना जाएगा. भले ही यह इंटरकोर्स पुरुष द्वारा जबरदस्ती या पत्नी की मरजी के खिलाफ किया गया हो.

2021 के अगस्त में भारत की अलगअलग अदालतों में 3 मैरिटल रेप के मामलों में फैसला सुनाया गया. केरल हाई कोर्ट ने 6 अगस्त को एक फैसले में कहा था कि मैरिटल रेप क्रूरता है और यह तलाक का आधार हो सकता है. फिर 12 अगस्त को मुंबई सिटी एडिशनल सैशन कोर्ट ने कहा कि पत्नी की इच्छा के बिना यौन संबंध बनाना गैरकानूनी नहीं है और 26 अगस्त को छत्तीसगढ़ कोर्ट ने मैरिटल रेप के एक आरोपी को यह कहते हुए बरी कर दिया कि हमारे यहां मैरिटल रेप अपराध नहीं है. मैरिटल रेप के 4 केस कोर्ट तक पहुंचे, लेकिन उन्हें खारिज कर दिया गया. सोशल मीडिया पर इस फैसले को ले कर बहस छिड़ गई.

जैंडर मामलों की रिसर्चर कोटा नीलिमा ने ट्विटर पर लिखा कि अदालतें कब महिलाओं के पक्ष में विचार करेंगी? उन के ट्विटर के जवाब में कई लोगों ने कहा कि इस पुराने कानूनी प्रावधान को बदल दिया जाना चाहिए. लेकिन कुछ लोग इस बात से सहमत नहीं दिखें. एक ने तो आश्चर्य जताते हुए पूछा कि किस तरह की पत्नी मैरिटल रेप की शिकायत करेगी? तो दूसरे ने कहा उस के चरित्र में ही कुछ खराबी होगी.

ब्रितानी औपनिवेशिक दौर का यह कानून भारत में 1860 से लागू है. इस के सैक्शन 375 में एक अपवाद का जिक्र है जिस के अनुसार अगर पति अपनी पत्नी के साथ सैक्स करे और पत्नी की उम्र 15 साल से कम की न हो तो इसे रेप नहीं माना जाता है. इस प्रावधान के पीछे मान्यता है कि शादी में सैक्स की सहमति छिपी हुई होती है और पत्नी इस सहमति को बाद में वापस नहीं ले सकती है.

यह कैसा कानून

मगर दुनिया भर में इस विचार को चुनौती दी गई और दुनिया के 185 देशों में से 151 देशों में मैरिटल रेप अपराध माना गया. खुद ब्रिटेन ने भी 1991 में मैरिटल रेप को यह कहते हुए अपराध की श्रेणी में रख दिया कि छुपी हुई सहमति को अब गंभीरता से लिया जा सकता है. लेकिन मैरिटल रेप को अपराध करार देने के लिए लंबे समय से चली आ रही मांग के बावजूद भारत उन 36 देशों में शामिल है जहां मैरिटल रेप को अपराध नहीं माना जाता है. भारत के कानून में आरोपी अगर महिला का पति है तो उस पर रेप का केस दर्ज नहीं हो सकता और इसी वजह से कई महिलाएं शादीशुदा जिंदगी में हिंसा का शिकार होने को मजबूर हैं.

फरवरी, 2015 में सुप्रीम कोर्ट में एक मैरिटल रेप का मामला पहुंचा. दिल्ली में काम करने वाली एक एमएनसी ऐग्जीक्यूटिव ने पति पर आरोप लगाया कि मैं हर रात उन के लिए सिर्फ एक खिलौने की तरह थी, जिसे वे अलगअलग तरह से इस्तेमाल करना चाहते थे. जब भी हमारी लड़ाई होती थी तो वे सैक्स के दौरान मु?ो टौर्चर करते थे. तबीयत खराब होने पर अगर कभी मैं ने मना किया तो उन्हें यह बात बरदाश्त नहीं होती थी. 25 साल की इस लड़की के मामले को सुप्रीम कोर्ट ने यह कह कर खारिज कर दिया कि किसी एक महिला के लिए कानून नहीं बदला जा सकता है.

तो क्या भारत में महिला के पास पति के खिलाफ अत्याचार की शिकायत का अधिकार नहीं है?

सीनियर ऐडवोकेड आभा सिंह कहती हैं कि इस तरह की प्रताड़ना की शिकार हुई महिला पति के खिलाफ सैक्शन 498 के तहत सैक्सुअल असौल्ट का केस दर्ज करा सकती है. इस के साथ ही 2005 के घरेलू हिंसा के खिलाफ बने कानून में भी महिलाएं अपने पति के खिलाफ सैक्सुअल असौल्ट का केस कर सकती हैं.

इस के साथ ही अगर आप को चोट लगी है तो आप आईपीसी की धाराओं में भी केस कर सकती हैं. लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि मैरिटल रेप को साबित करना बहुत बड़ी चुनौती  होगी. चारदीवारी के अंदर हुए गुनाह का सुबूत दिखाना मुश्किल होगा. वे कहती हैं कि जिन देशों में मैरिटल रेप का कानून हैं वहां यह कितना सफल रहा है, इस से कितना गुनाह रुका है यह कोई नहीं जानता.

चौकाने वाला सच

1980 में प्रोफैसर बख्शी उन जानेमाने वकीलों में शामिल थे जिन्होंने सांसदों की समिति को भारत में बलात्कार से जुड़े कानूनों में संशोधन को ले कर कई सुझव भेजे थे. उन का कहना था कि समिति ने उन के सभी सुझव स्वीकार कर लिए थे सिवा मैरिटल रेप को अपराध घोषित कराने के सुझव के. उन का मानना है कि शादी में बराबरी होनी चाहिए और एक पक्ष को दूसरे पर हावी होने की इजाजत नहीं होनी चाहिए. आप अपने पार्टनर से ‘सैक्सुअल सर्विस’ की डिमांड नहीं कर सकते.

मगर सरकार ने तर्क दिया कि वैवाहिक कानून का आपराधिकरण विवाह की संस्था को ‘अस्थिर’ कर सकता है और महिलाएं इस का इस्तेमाल पुरुषों को परेशान करने के लिए कर सकती हैं. लेकिन हाल के वर्षों में कई दुखी पत्नियां और वकीलों ने अदालतों में याचिका दायर कर इस अपमानजनक कानून को खत्म करने की मांग की है. संयुक्त राष्ट्र, ह्यूमन राइट्स वाच और एमनेस्टी इंटरनैशनल ने भी भारत के इस रवैए पर चिंता जताई है.

कई जजों ने भी स्वीकार किया है कि एक पुराने कानून का आधुनिक समाज में कोई स्थान नहीं है. उन का यह भी कहना है कि संसद को वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित कर देना चाहिए.

नीलिमा कहती हैं कि यह कानून महिलाओं के अधिकारों का स्पष्ट उल्लंघन है और इस में पुरुषों को मिलने वाली इम्यूनिटी अस्वभाविक है. इसी वजह से इस से संबंधित अदालती मामलों की संख्या बढ़ती जा रही है. भारत में आधुनिकता एक मुखौटा है. अगर आप सतह को खरोचें तो असली चेहरा दिखता. महिला अपने पति की संपत्ति बनी रहती है. 1947 में भारत का आधा हिस्सा आजाद हुआ था. बाकी आधा अभी भी गुलाम है.

वैवाहिक बलात्कार महिलाओं के लिए एक अपमान की तरह है क्योंकि यहां दूसरे पुरुषों की तरह ही अपने पति द्वारा यौन उत्पीड़न, छेड़छाड़ और जबरन नग्न करने जैसे कृत्य पत्नियों के लिए किसी अपमान से कम नहीं हैं. पतियों द्वारा वैवाहिक बलात्कार महिलाओं में तनाव, अवसाद, भावनात्मक संकट और आत्महत्या के विचारों जैसे मानसिक स्वास्थ्य प्रभाव उत्पन्न कर सकता है.

वैवाहिक बलात्कार और हिंसक आचरण बच्चों के स्वास्थ्य और सेहत को भी प्रभावित कर सकता है. पारिवारिक हिंसक माहौल उन्हें मनोवैज्ञानिक रूप से प्रभावित कर सकता है. स्वयं और बच्चों की देखरेख में महिलाओं की क्षमता कमजोर पड़ सकती है. बलात्कार की परिभाषा में वैवाहिक बलात्कार को अपवाद के रूप में रखना महिलाओं की गरिमा, समानता और स्वायत्तता के विरुद्ध है.

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एकतिहाई पुरुष मानते हैं कि वे जबरन संबंध बनाते हैं:

द्य इंटरनैशनल सैंटर फार वूमेन और यूनाइटेड नेशंस पौपूलेशन फंड की ओर से 2014 में कराए गए एक सर्वे के अनुसार एकतिहाई पुरुषों ने खुद यह माना कि वे अपनी पत्नी के साथ जबरन सैक्स करते हैं.

द्य नैशनल फैमिली हैल्थ सर्वे: 3 के मुताबिक, भारत के 28 राज्यों में 10% महिलाओं का कहना है कि उन के पति जबरन उन के साथ शारीरिक संबंध बनाते हैं जबकि ऐसा करना दुनिया के 151 देशों में अपराध है.

द्य एक सरकारी सर्वे के मुताबिक 31 फीसदी विवाहित महिलाओं पर उन के पति शारीरिक, यौन और मानसिक उत्पीड़न करते हैं. यूनिवर्सिटी औफ वारविक और दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफैसर रहे उपेंद्र बख्शी का कहना है कि मेरे विचार से इस कानून को खत्म कर दिया जाना चाहिए. वे कहते हैं कि पिछले कुछ वर्षों में भारत में महिलाओं के खिलाफ होने वाली घरेलू हिंसा और यौन हिंसा से जुड़े कानूनों में कुछ प्रगति जरूर हुई है, लेकिन वैवाहिक बलात्कार रोकने के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया है.

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