राहुल गांधी का रेप इन इंडिया रिमार्क भारतीय जनता पार्टी को ज्यादा ही खला. गनीमत है कि उस के मंत्रियों, संतरियों ने चौकीदार चोर है के कटाक्ष के दौरान किए मैं हूं चौकीदार की तर्ज पर मैं हूं रेपिस्ट लिखना शुरू नहीं किया जबकि इस पर सोचा जरूर गया होगा. जिस तरह देश में रेप की खबरें फैली हुई हैं उस से लगता तो यही है कि अचानक यह नई महामारी डेंगू या एड्स की तरह की है जो हाल ही में पनपी है.
सच तो यह है कि बलात्कार हमेशा ही हमारे देश में औरतों पर अत्याचार का जरीया रहा है. यह उन्हें गुलाम बनाए रखने की साजिश है ताकि पुरुषों को हर समय सेवा करने वाली हाड़मांस की मशीनें मिलती रहें. बलात्कार की शिकार को समाज ने बलात्कार करने वालों से ज्यादा गुनहगार माना और ये शिकार हमेशा के लिए समाज में मुंह छिपाने वाली हैसीयत बन कर अपने पापों का बो झ जीवनभर ढोतीं और इन पर वही बलशाली पुरुष राज करते, जिन्होंने असल मर्यादा को नष्ट करा.
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हमारे यहां कानूनों को सख्त करने की बात चल रही है, जल्दी फैसला करने की मांग उठ रही है, बिना सुबूतों के किसी को भी बलात्कारी मान कर गोलियों से
उड़ा देने पर तालियां पिट रही हैं. ये सब ठीक है पर कोई यह नहीं कह रहा कि बलात्कारी के घर का हुक्कापानी बंद कर दिया जाए. बलात्कार की चेष्टा करने वाले पुरुष मर्द कहलाए जाते हैं. पत्नियां उन पुरुषों को छोड़ कर नहीं जातीं जिन पर बलात्कार का शक हो. बलात्कारी गैंग की तरह काम करते हैं यानी उन के दोस्तों और उन की सामाजिक स्थिति में कोई फर्क नहीं पड़ रहा.
चोर की इन से बुरी हालत होती है. चोर का पता चलने पर घर वाले शरण नहीं देते. कहीं नौकरी नहीं मिलती. उसे समाज के सब से गंदे इलाके में फेंक दिया जाता है जबकि बलात्कारी ठाट से सांसद, विधायक, अफसर बना घूमता रहता है. कहीं से यह आवाज तक नहीं उठ रही कि बलात्कारी की सामाजिक सजा पूरे परिवार को दी जाए, पूरी रिश्तेदारी उस से कट जाए. महल्ला उसे निकाल दे, वह गांव में न रह पाए.
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यह इसलिए होता है कि बलात्कार को सामाजिक मान्यता मिली हुई है. औरतों में इतनी हिम्मत नहीं कि अपने बेटे, भाई, पति, पिता को बलात्कार के अपराध में अपने से अलग कर दें. सड़कों पर जुलूस निकालना ठीक है पर इस से ज्यादा जरूरी है अपनी मानसिकता को बदलना. बलात्कार कहीं भी किसी भी सूरत में स्वीकार्य नहीं होना चाहिए पर न धर्म, न सामाजिक नियम, न इतिहास, न कानून औरतों को यह बल देते कि वे बलात्कारी पुरुषों को भारी कीमत देने को मजबूर कर दें. उलटे बलात्कारी पुरुष को तो हार पहनाए जाते हैं. विधायक कुलदीप सिंह सेंगर के मामले में यही हुआ हैझ्र न जब एक सांसद उस से मिलने जेल पहुंचे और फिर अपने चरणकमलों से संसद में नैतिकता का पाठ पढ़ाने लगे.