लेखक- शम्भू शरण सत्यार्थी
कहा जाता है कि इंसान परिस्थितियों का दास होता है. जीवन में जिस तरह की कठिनाइयाँ और परेशानियॉ आती है. कुछ लोग विचलित और निराश हो जाते हैं. लेकिन विपरीत परिस्थिति में भी कुछ लोग ऐसे होते हैं. जो उसमें में नई तरकीब निकालकर नये तरह से इंजॉय करते हुवे जीवन को खुशी पूर्वक जीते हैं.
इस लॉक डाउन के दौरान “अगले जन्म मुझे बिटिया ही कीजो” सीरियल की मशहूर टी वी एक्ट्रेस रतन राजपूत (Ratan Rajput) बिहार के एक गाँव में फंस गयी हैं. यह उनका अपना गाँव नहीं है. लेकिन इस गाँव के लोगों ने मदद करते हुवे इन्हें रहने के लिए एक मकान दिया है. वे यहाँ नये ढंग से खुश रहते हुवे अभावों के बीच अपना स्वभाव बदल कर देश दुनिया को सोशल मीडिया के माध्यम से सन्देश दे रही हैं.
रोज की जरूरतों को पूरा करने के लिए कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. रतन राजपूत अपना सारा काम अपने से करने के साथ साथ अपनी सुरक्षा के लिए सैनिटाइजर तक खुद बना रही हैं. उन्होंने सोशल मीडिया पर दो वीडियो शेयर किया जिसे लोग देखकर जीवन की परिस्थितियों के साथ सामंजस्य बैठाने के लिए सिख रहे हैं.
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रतन राजपूत कहती हैं कि यही असली जिदंगी है. जो हम यहाँ सिख रहे हैं वो मुंबई में रहकर कदापी नहीं सिख पाते.यहाँ का भी जीवन मजेदार है. इसी बहाने गाँव के जिदंगी को भी निकट से देखने समझने का मौका मिला.एक कलाकार की यह खाशियत होनी चाहिए कि हर परिस्थिति में अपने आप को ढाल ले.अगर विपरीत परिस्थिति में एक कलाकार हार मान ले या रोने लगे तो पर्दे पर खुद को मजबूत दिखाना बेकार है. असल जिदंगी में भी कुछ करके दिखाना चाहिए.कठिनाइयाँ आपको और मजबूत बनाती हैं.गाँव में सुविधाओं का अभाव है. बाथरूम में कोई खिड़की और दरवाजा तक नहीं है.उन्होंने खुद फ़टे पुराने कपड़े को सिलकर पर्दा बनाया और लगा दिया.कपड़े धोने,बर्तन मांजने खाना बनाने का काम स्वयं कर रही हैं. एक टेबल एक साड़ी और पुराने स्टैंड से बनायी है.
खाने पीने का इंनतजाम भी जैसे तैसे कर रही है. सबसे बड़ी दिक्कत है. पीने के सुद्ध पानी का .पहले पानी को साफ कपड़े से छानकर उसे उबाल कर रख लेते हैं. उसके बाद वह पीने लायक हो जाता है.उसी का उपयोग करते हैं.रतन ईंट रखकर बनाये गए चूल्हे पर जलावन से चावल दाल बना लेती है. बताती है कि चटनी के साथ खाने में खूब आनंद आता है. मुंबई के बड़े रेस्त्रां से भी मुझे यह खाना अच्छा लग रहा है. उन्हें घरवालों की बहुत याद आ रही है. मोबाइल से अपने घर वालों से बातचीत करते रहती है. अगल बगल के लोग पहचाने नहीं इसलिए मुँह ढककर ही रहती हूँ. छत पर जब कपड़ा सुखाने जाती हूँ तो जी भर कर गाँव को देखती हूँ.घर की याद तो आती है. लेकिन यहाँ कुछ चीजें मेरे लिए नई है. इसी बहाने जानने और सीखने का मौका मिला.
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