family story in hindi
family story in hindi
अब नीलम ने अपनी 4 सहअध्यापिकाओं को जो नीलम के आसपास रहती थीं को एकसाथ अपनी कार में स्कूल चलने को राजी कर लिया. उन के द्वारा दी गई धनराशि से वह पैट्रोल डलवा कर बचे हुए रुपयों में और रुपए मिला कर किस्त भरने लगी.
राजेश इन बातों से अनजान था. रोज नीलम से गाड़ी चलाने के लिए मिन्नत करता दिखाईर् देता. नीलम भी मन ही मन मुसकराती सौसौ एहितयात बरत कर गाड़ी चलाने का आदेश दे कर चाबी देती.
एक दिन नीलम की स्कूल की छुट्टी थी. उस ने नोटिस किया पूरे घर की कुछ
गुप्त मंत्रणा चल रही है. उस के रसोई में व्यस्त होने का लाभ उठाया जा रहा था. वह समझ गई कोई बड़ा फैसला ही है जो उस से गुप्त रखा जा रहा है. 2-3 बार उस ने वकील को भी घर में आते देखा.
वैसे तो उसे कोई चिंता नहीं थी पर वह अब राजेश की किसी चालाकी भरी योजना का शिकार नहीं बनना चाहती थी. वह ससुराल के प्रति अपने कर्तव्य से भली प्रकार परिचित थी और उन्हें पूरा कर भी रही थी. वह एकदम नौर्मल बातचीत करती रही.
राजेश ने कार की चाबी मांगी और मातापिता को कार में बैठा कर कहीं ले गया. दोपहर बाद सब लौटे. राजेश ने भी आज छुट्टी ली हुई थी. शाम को उस के सासससुर अपने रूटीन के अनुसार पार्क में घूमने चले गए.
नीलम ने राजेश को कुछ सामान लेने के बहाने भेजा. घर में इस समय कोई न था. उस ने झटपट सास के तकिए के नीचे रखीं अलमारी की चाबियां निकाल अलमारी खोल डाली. सामने वही लिफाफा पड़ा था जो उस ने ससुर के हाथ में देखा था.
कागजात निकाल कर उस ने जल्दीजल्दी पढ़े, फिर उसी तरह कागजात लिफाफे में डाल, आलमारी में रख चाबी वहीं रख नौर्मल बन कर काम में लग गई.
दरअसल यह पुशतैनी मकान सासससुर ने अपनी दोनों की मृत्यु के बाद राजेश के छोटे भाई के नाम कर दिया था. उन्हें यह विश्वास था राजेश और नीलम समय आने पर नया प्लैट लेने में सक्षम रहेंगे.
कुछ दिनों बाद नीलम को सासससुर ने बड़े प्यार से बुला कर कहा, ‘‘बेटी, यह
पुशतैनी मकान पुराने तरीके से बना हुआ है. हमारा जमाना तो गुजर गया. अब राजेश, सुरेश और तुम लोगों को इस तरह के मकान में तंगी आएगी. हम सोच रहे हैं कि इसे नए तरीके के
घर में तब्दील कर लें. अगर तुम कुछ लोन ले लो तो यह काम आसान हो जाएगा. अभी तो तुम्हारे सिर पर कोई जिम्मेदारी नहीं है. नौकरी भी लंबी है. आसानी से किस्तें चुका सकती हो.’’
नीलम समझ गई उस पर जाल फेंक दिया गया है. उस ने कहा, ‘‘ठीक है ममीपापा मैं स्कूल में जा कर पता करती हूं.’’
3-4 दिन बीत गए. उस ने अकाउंट विभाग और अनुभवी साथियों से विचारविमर्श कर नीलम ने घर आ कर बताया कि लोन तो मिल जाएगा
पर तभी मिलेगा जब मकान मेरे नाम पर होगा क्योंकि सिक्यूरिटी के लिए मुझे मेरे नाम के मकान के कागजात बैंक ने अपने पास रखने हैं ताकि किस्तें न चुका पाने की हालत पर वह मकान पर कब्जा कर सके… यह नियम तो आप को मालूम ही होगा.
मरते क्या न करते. मकान को नीलम के नाम किया गया. अब नीलम ने लोन ले कर अपने मनपसंद तरीके से मकान को रैनोवेट करवाना शुरू करवा दिया. 3-4 महीनों में ही पुराने मकान की जगह एक नया खूबसूरत घर तैयार हो गया, जिस की मालकिन नीलम थी.
मकान बनने के कुछ दिन बाद ही एक दिन नीलम की एक सहकर्मी अध्यापिका उसे जल्दी घर ले कर आ गई. उस ने घर में सब को बताया कि अभी नीलम को अस्पताल से ले कर आ रही है. इसे स्कूल में घबराहट और चक्कर आ रहे थे. वहीं से वे दोनों अस्पताल गई थीं. डाक्टर ने मुआयना कर बताया कि यह किसी बड़े तनाव को झेल रही है. कुछ दिन घर पर आराम करने की सलाह दी गई है. यह बता कर वह चली गई.
एक दिन बाद सभी ने नीलम से तनाव के बारे में पूछा. नीलम ने कहा, ‘‘उसे हर समय लोन का तनाव रहने लगा है. स्कूल में भी मैं छात्राओं को मन लगा कर नहीं पढ़ा पाती. मानसिक तनाव से हर समय सिरदर्द रहता है. प्रिंसिपल के पास मेरी शिकायत भी छात्राओं ने की है. मुझे प्रिंसिपल की ओर से वार्निंग भी मिल चुकी है. इस कारण मैं मानसिक रूप से बहुत चिंतित हूं और तनाव ग्रस्त रहने लगी हूं.
‘‘मुझे डर है यह लोन का तनाव मेरी
नौकरी को न ले डूबे. आजकल स्कूलकालेजों में बहुत सख्त नियम बन गए हैं. जो पढ़ाने में लापरवाही करे या मनमानी करे उसे संस्पैंड कर देते हैं या किसी दूरदराज की शाखा में स्थानांतरित कर देते हैं. जहां मूलभूत सुविधाएं भी कठिनाई से मिलती हैं. मजबूरी में कुछ लोग तो नौकरी छोड़ना बेहतर समझते है. जब वे इतने ज्यादा वेतन देते हैं तो काम भी एकदम बेहतरीन मांगते हैं,’’ यह सुन सभी घबरा गए.
नीलम ने बड़े ही प्यार से आगे कहा, ‘‘कुछ महीने में लोन की रकम बढ़ा कर लोन जल्दी से जल्दी उतारने की कोशिश करती हूं, घर खर्चे की जिम्मेदारी आप दोनों उठा लें.’’
अगले महीने से सारा घर खर्च ससुर की पैंशन और राजेश के वेतन से चलने
लगा. नीलम ने बड़ी होशियारी से खुद को घर खर्च से आजाद कर लिया. नीलम मन ही मन हंसती रही. उस ने कार और मकान का लोन उतारने के लिए स्कूल में ही कुछ ट्यूशंस भी ले लीं, जिस से उस की आमदनी बढ़ गई और फिर वह लोन की किस्त की रकम बढ़ा कर लोन उतारने लगी.
राजेश ने भी रोज एक सोने का अंडा देने वाली मुरगी के सपने देखने छोड़ दिए और घर खर्च में तालमेल बैठाने के लिए पार्टटाइम जौब करने लगा.
नीलम भी मन ही मन सोचती कि प्यारमुहब्बत सादगी से राजेश उस से सहयोग चाहता तो वह बड़ी खुशी से करने को तैयार थी पर जहां उस ने चालाकी, मक्कारी से उसे मूर्ख बनाने की कोशिश की वहां तो तू डालडाल मैं पातपात वाली कहावत ही लागू करनी पड़ी.
रात को सिरदर्द का बहना बना जल्दी सोने का नाटक किया. सोचती रही उस के मातापिता बेचारे ऐसा योग्य नेक दामाद पा कर कितना खुश हैं. नहीं, नहीं मैं उन का यह भ्रम बनाए रखूंगी. राजेश को मैं ही सबक सिखाऊंगी.
कुल्लूमनाली में उस ने नोटिस किया कि बड़ेबड़े खर्चे उसी के ऐटीएम से रुपए निकाल कर हो रहे हैं. छोटेमोटे खर्च वह अपने क्रैडिट कार्ड से करता. घर वालों के लिए उपहार ले कर वह बहुत संतुष्ट था. उस ने भी बहाने से उस के पर्स से क्रैडिट कार्ड निकाल अपने मातापिता के लिए दुशाला व शाल ले ली. क्रैडिट कार्ड वापस राजेश के पर्र्स में रख दिया. बातोंबातों में राजेश बड़े ही प्यार से उस से उस की अभी तक की सेविंग्स, पीएफ, वेतन आदि की जानकारी लेता रहा. नीलम भी सावधान थी. उस ने कोई भी जानकारी सही नहीं दी.
घर लौट कर नीलम ने बड़ी होशियारी से सब के लिए लाए उपहार उन्हें दिए, साथ में मेरी ओर से, मेरी ओर से कहना नहीं भूली. राजेश चुप रह गया. वह जानता था कि सब नीलम के पैसों से खरीदा है. सभी नीलम से खुश हो गए.
अब जीवन की गाड़ी अपनी रोजमर्रा की पटरी पर आ गई. राजेश का औफिस
नीलम के स्कूल के आगे ही था. राजेश अगर थोड़ा जल्दी निकल जाए तो नीलम को समय पर स्कूल छोड़ आगे जा सकता. वह स्कूटर पर जाता था. नीलम ने जब उस के सामने यह प्रस्ताव रखा तो उस ने हामी भर दी.
राजेश दूसरेतीसरे दिन नीलम के कार्ड से पैट्रोल के बहाने मनमाने रुपए निकलवा लेता था पर ले जाने के समय सप्ताह में 3 या 4 दिन ही ले जा पाता. कोई न कोई बहाना बना देता.
नीलम ने यह भी नोटिस किया कि छोटे भाई या बहन को कुछ पैसों की जरूरत होती तो वे दोनों चुपके से उस से मांग लेते और कह देते किसी को मत कहना.
नीलम अभी नई थी. ज्यादा कुछ नहीं कह पाती. पर उस ने सोच लिया कि इस का भी कोई न कोई हल निकालना पड़ेगा. 1-2 महीने ऐसे ही गुजर गए. नीलम के ही वेतन से लगभग परिवार का खर्चा चल रहा था. सभी को बचत करने की पड़ी थी. पापा अपनी पैंशन से धेला भी खर्च नहीं करते. यही हाल राजेश का था. राशन, दूध, बाई, बिजलीपानी का बिल, फलसब्जियों सबका भुगतान नीलम करती. छोटेछोटे खर्च राजेश दिखावे के लिए करता.
एक दिन नीलम मायके गई तो उस ने अपने पापा को कुछ उदास पाया. बारबार पूछने पर उन्होंने बताया कि मकान बनाने पर अनुमान से बहुत ज्यादा पैसा लग चुका है. अब हालत यह है कि मकान में लकड़ी का काम करवाने के लिए पैसे कम पड़ गए हैं. बिल्डर ने काम रोक दिया है. नीलम को मन ही मन बहुत दुख हुआ कि जिन मातापिता ने शिक्षा दिलवाई, कमाने योग्य बनाया वही आज पैसों की तंगी सहन कर रहे हैं. वह उदास मन से वापस आई. महीने के खत्म होते ही छुट्टी के दिन जब सवेरे सब फुरसत चाय की चुसकियां ले रहे थे उस समय नीलम ने बड़ी शालीनता और अपनेपन की चाशनी पगी जबान में कहा, ‘‘देखिए, कायदे से हमारे घर 3 जनों की आमदनी आती है- मेरी और राजेशजी का वेतन और पापाजी की पैंशन पर बचत के नाम पर कुछ भी नहीं है ऐसे कैसे चलेगा. मुझे तो बहुत चिंता होती है. सुरेश भैया की पढ़ाई के 2 साल बाकी हैं. मधु की शादी भी करनी है,’’ ऐसी अपनेपन और जिम्मेदारी वाली बातें कर उस ने सब का दिल जीत लिया.
‘‘आगे खर्च बढ़ेंगे. इसलिए हमें अभी से प्लानिंग कर के खर्च करना चाहिए.
आज हम यह देख लेते हैं कि इस महीने किस ने कम खर्च किया किस ने ज्यादा. सब अपने द्वारा किए हुए खर्च का ब्योरा दें. जिस का खर्च ज्यादा हुआ होगा उसे इस महीने राहत दी जाएगी.
‘‘नए महीने से सब बराबर खर्च करेंगे ताकि सब की थोड़ीबहुत बचत होती रहे जो भविष्य में होने वाले खर्च में सहायक बने.’’
एक कागज पर तीनों ने अपने द्वारा किए खर्च का ब्योरा लिखा. जब उस ब्योरे को जोरजोर से पढ़ा गया तो सब से ज्यादा रकम नीलम की ही खर्च हुई थी. राजेश के भाईबहन द्वारा लिया सारा खर्च भी सबके सामने स्पष्ट हो गया.
राजेश थोड़ा झेंप गया क्योंकि उस ने भी नीलम का बहुत पैसा निकाला था. अगले महीने के लिए सारे खर्च को बराबरबराबर बांट दिया गया. अब नीलम की अच्छीखासी बचत हो जाती थी. वह गुप्त रूप से माएके का मकान बनाने वाले बिल्डर से मिली. कुछ अग्रिम पैसा दे कर उस से कहा कि आप मकान का लकड़ी का
काम पूरा करिए. मैं समयसमय पर भुगतान करने आती रहूंगी. पापा को इस बात का पता नहीं लगना चाहिए.
1 महीने के अंदर घर का लकड़ी का
काम हो गया. नीलम ने मकान की सफाई वगैरह करवा कर सारा हिसाब चुकता कर दिया. उस
ने मकान की चाबी पापा को दे कर शिफ्ट होने
को कहा.
यह सब जान पापा चकित रह गए. बेचारे नीलम की इस मदद से शर्म से झके जा रहे थे. नीलम ने इस बात को गोपनीय रखने को कहते हुए पापा से कहा कि आप को इस मदद के लिए शर्म, लज्जा महसूस करने की आवश्यकता नहीं है. आप का हमारे ऊपर पूरा हक है क्योंकि आप ने ही हमें इस योग्य बनाया है.
राजेश भी कम न था. उस ने बिना दहेज के शादी की थी. मन ही मन नीलम से उस का मुआवजा चाहता था. एक दिन नीलम को उस के एक सहकर्मी से पता चला कि उस ने राजेश को कार के शोरूम में कार पसंद करते देखा. राजेश नीलम के सहकर्मी को पहचानता न था. नीलम को अंदाजा लग गया कि शीघ्र ही उस से रुपए ले कर राजेश कार खरीदने की योजना बना रहा है. नीलम ने भी एक योजना बना डाली.
अपने 2 बुजुर्ग सहकर्मियों को जो बहुत समझदार व अनुभवी थे अपने साथ ले कर एक नामी कार के शोरूम जा पहुंची. बहुत सोचसमझ कर उस ने एक कार पसंद की, डाउन पेमेंट कर आसान किश्ते बनवा लीं. कार उस ने अपने नाम से खरीदी. कार चलाना उसे कालेज के समय से आता था. 3-4 दिन उस ने सहकर्मी की पुरानी कार से अभ्यास किया. आत्मविश्वास आ जाने पर कार ले कर घर आई. पूरा परिवार देख कर चकित रह गया.
नीलम ने कहा, ‘‘मेरे मम्मीपापा ने विवाह की पहली वर्षगांठ पर मुझे दी है.’’
राजेश और उस के परिवार को खुशी तो
थी पर कार की मालकिन तो आखिर नीमम ही थी. बिना नीलम की इजाजत के कोई स्वेच्छा से कार नहीं ले जा सकता.
मेहमानों के जाते ही सब ने राहत की सांस ली. सभी थके हुए थे पर मन खुशी से उछल रहे थे. दरअसल, आज नीलम का रोकना हो गया था. गिरधारी लालजी के रिटायरमैंट में सिर्फ 6 महीने बाकी थे पर उन की तीसरी बेटी नीलम का रिश्ता कहीं पक्का ही नहीं हो पाया था. जहां देखो कैश और दहेज की लंबी लिस्ट पहले ही तैयार मिलती.
गिरधारी लालजी 3 बेटियां ही थीं. उन्हें बेटियां होने का कोई मलाल न था. उन्होंने तीनों बेटियों को उन की योग्यता के अनुसार शिक्षा दिलवाई थी. कभी कोई कमी न होने दी.
2 बड़ी बेटियों के विवाह में तो लड़के वालों की मांगों को पूरा करतेकरते उन की कमर सी टूट गई थी, फिर मकान भी बन रहा था. उस के लिए भी पैसे आवश्यक थे. नीलम की शादी में अब वे उतना खर्च करने की हालत में नहीं रहे थे.
नीलम केंद्रीय विद्यालय में नौकरी करने लगी थी. उस ने लड़के वालों के नखरे देख कर शादी न करने की घोषणा भी कर दी थी? परंतु परिवार में कोई भी उस की बात से सहमत न था. जब किसी रिश्ते की बात चलती वह कोई न कोई बहाना बना मना कर देती. बारबार ऐसा करने से घर में कलह का वातावरण हो जाता. पापा खाना छोड़ बाहर निकल जाते. देर रात तक न आते. मम्मी उसे कोसकोस कर रोतीं. कभीकभी बहनों को बीचबचाव के लिए भी बुलाया जाता. वे भी उसे डांट कर जातीं.
नीलम को शादी या लड़कों से नफरत नहीं थी. वे शादी के नाम पर लड़की वालों को लूटनेखसोटने यानी दहेज, कैश जैसी प्रथाओं से चिढ़ती थी. आखिर में उस ने कहा कि जो लड़का बिना दहेज के शादी करने को तैयार होगा, मेरे योग्य होगा उस से विवाह कर लूंगी. इत्तफाक से नीलम की इकलौती बूआजी ऐसा ही रिश्ता खोज कर ले आईं. लड़का प्राइवेट कंपनी में मैनेजर था. लड़के वालों को दानदहेज कुछ नहीं चाहिए था. केवल पढ़ीलिखी, नौकरी वाली लड़की की मांग थी. बस दोनों ओर से रजामंदी हो गई.
आज रोकना की रस्म में भी लड़के ने केवल नारियल और 101 रुपए का शगुन लिया. गिरधारी लालजी ने लड़के के मातापिता, भाईबहन को मिठाई के डब्बे दे कर विदा किया.
उन के जाते ही महफिल जुट गई. नीलम की दोनों बहनें आई हुए थीं. बूआजी थीं. बूआजी तो आज की विशेष मेहमान थी. सभी उन की तारीफ कर रहे थे. उन्होंने भाई की बड़ी समस्या सुलझ दी थी. लड़का व परिवार भी अच्छा लग रहा था. लड़का एक प्राइवेट कंपनी में मैनेजर था. स्मार्ट भी था. चाय पी रहे थे. सभी खुश थे परंतु नीलम की तर्कबुद्धि, यह मानने को तैयार नहीं थी कि आज के जमाने में ऐसे आदर्शवादी लोग भी मिलते हैं, जो दहेज के बिना भी शादी करने को तैयार हो जाते हैं.
2 महीने बाद का ही विवाह का मुहूर्त भी निकल आया था. विवाद भी सादगीपूर्ण हुआ. नीलम अपनी ससुराल जा पहुंची. ससुराल में भी कोई सजावट या दिखावा नहीं था. नीलम ने स्कूल से एक महीने की छुट्टियां ली थीं. उस के पति राकेश ने हनीमून के लिए कुल्लूमनाली जाने का प्रयोग बनाया. जाने से एक दिन पहले राजेश के कुछ दोस्त, जो शादी में शामिल नहीं हुए थे, घर आ गए. लिविंगरूम में हंसीमजाक चल रहा था.
नीलम चायनाश्ता ले कर जा रही थी कि अचानक उस के कानों में एक दोस्त की आवाज सुनाई पड़ी. वह कह रहा था कि यार राजेश तूने बिना दहेज के शादी कर के बड़ी दरियादिली दिखाई. यह सुन नीलम के कदम पीछे ही रुक गए. वह राजेश का जवाब सुनने को आतुर हो उठी. नीलम की आहट से अनजान राजेश जोर से ठहाका लगा कर बोला कि मेरा दिमाग अभी पागल नहीं हुआ है. मैं तुम सब जैसा नहीं हूं. तुम जैसों से बुद्धि में चार कदम आगे ही चलता हूं. तुम सब दहेज मांग कर ससुराल में अपनी इमेज खराब करते हो. वहीं मैं ससुराल में भी मानसम्मान बनाए रख सरकारी नौकरी वाली लड़की से विवाह कर के अपना भविष्य सुरक्षित करने की सोचता हूं. आगे समझने लगा. तुम सब महामूर्ख हो. एक बार ढेर सारा दहेज ले कर सोचते हो उम्र कट जाएगी. बचपन में पढ़ी, वह कहानी, जिस में हंस लड़के को एक सोने का अंडा देने वाली मुरगी मिल जाती है.
उस मूर्ख ने सोचा रोजरोज कौन इंतजार करे एक ही बार इस मुरगी का पेट काट इस के सारे सोने के अंडे निकाल लूं और फिर उस ने वैसा ही किया. क्या हुआ मुरगी भी गई अंडा भी न मिला. तुम सब भी उस मूर्ख लड़के हंस से कम नहीं हो. कहानी याद आई कि नहीं? मैं तो मुरगी से रोज 1 सोने का अंडा लिया करूंगा. समझ लो मैं ने सोने का अंडा देने वाली मुरगी पाल ली है. तुम लोगों को यह पता ही है कि सहज पके सो मीठा होय. जहां तुम लोग बड़ेबड़े व्यवसायियों की लड़कियों से शादी कर दहेज और रकम के सपने पूरे करने के पीछे पागल रहते. वहीं मैं कुछ और ही सोच रखता था. अब देखो मेरी पत्नी नीलम 3 बहनें ही हैं. मातापिता के बाद उन के पास जो भी है वह तीनों बहनों को ही मिलेगा, फिर नीलम नौकरी भी करती है.
सरकार स्कूल में पीजीटी अध्यापिका है. समझे कुछ? उसे 7वें पे कमीशन के अनुसार मोटा वेतन और तरहतरह की सुविधाए मिलती हैं. मैं ने तो नीलम से शादी कर के जीवन बीमा करवा लिया है जो जिंदगी के साथ भी और जिंदगी के बाद भी होगा. ऐसा सौदा किया है वरना दिमाग पागल नहीं हुआ था जो बिना दहेज की शादी करता.
दोस्त भी ठहाका लगा कर हंसने लगे. बोले कि जानते हैं, यार तू तो कालेज के जमाने से ही बनिया बुद्धि का था. हर जगह हिसाबकिताब, लाभहानि देखता था. फिर सभी का समवत ठहाका लगा.
यह सब सुन कर नीलम का मन खट्टा हो गया. उस की तार्किक बुद्धि आखिर जीत ही गई. वह समझ गई हाथी के खाने के दांत अलग हैं और दिखाने के अलग हैं. बेमन से चायनाश्ता देने अंदर गई. कुछ देर पास बैठ कर काम के बहाने बाहर निकल आई. वह सोचने लगी प्रेम, अपनापन, सहयोग के चलते हम दोनों मिल कर घर, बाहर का खर्च मिलबांट कर करते तो उसे कभी कोई एतराज न होता आखिर पढ़ीलिखी, नौकरी वाली बहू किसलिए आजकल मांग में है? पर इस प्रकार चालाकी से, रोब से या बेवकूफ बना कर कोई उस की कमाई पर हक जताएगा यह बात उसे कतई गवारा नहीं.