देश की राजधानी दिल्ली में स्थित, सब से ऊंची सरकारी इमारत, ठीक रामलीला मैदान के सामने, सिविक सेंटर. नीले शीशों की इस इमारत के ए ब्लोक में तीसरे फ्लोर पर बैठतीं हैं साउथ दिल्ली म्युनिसिपल कोरपोरेशन की मेयर, अनामिका मिथिलेश सिंह (40). गोरा रंग और औसत कद काठी की अनामिका, किसी भी आम व्यक्ति को साधारण महिला सी दिखाई देंगी, लेकिन अपने मजबूत इरादों और नेतृत्व क्षमता के बदौलत वह असाधारण मुकाम तक पहुंची हैं.
नोर्मली जब कभी राजनीति की बात होती है तो मुख्य रूप से हमारे दिमाग में मर्दों का ही चेहरा नजर आता है. सिर्फ राजनीति ही क्यों, घर के बाहर कोई भी काम क्यों न हो, पुरुषों को ही उस का कर्ताधर्ता बताया जाता है. वहीँ, महिलाओं को घरों के भीतर ही समेट दिया जाता हैं.
इसी मेंटेलिटी को भाजपा पार्टी से निर्वाचित दक्षिणी दिल्ली म्युनिसिपेलिटी की मेयर अनामिका चैलेंज करती हैं, जो बिहार के छोटे से गांव मुरलीगंज कसबा, जिला मधेपुरा से आती हैं. अपने स्कूल के दिनों से ही ब्राइट छात्रा रहीं अनामिका ने राजधानी दिल्ली की मेयर बन कर महिलाओं को राजनीती में आने की प्रेरणा दी है.
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2017 में दिल्ली एमसीडी के चुनाव हुए थे जिस में अनामिका हरी नगर-बी वार्ड से निगम पार्षद बनीं. यह एक दुर्भाग्य है कि अधिकतर दिल्लीवासियों को अभी तक यह नहीं पता कि नगर निगम क्या है और यह कैसे काम करती हैं. राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली को 3 नगर निगमों द्वारा संचालित किया जाता है. एनडीएमसी, एमसीडी और दिल्ली कन्टेनमेंट बोर्ड. साल 2012 में दिल्ली एमसीडी को 3 हिस्सों में बांटा गया, नोर्थ दिल्ली म्युनिसिपल कारपोरेशन (104 सीटें), साउथ दिल्ली म्युनिसिपल कारपोरेशन (104 सीटें) और ईस्ट दिल्ली म्युनिसिपल कारपोरेशन (64 सीटें). कुल मिला कर 272 सीटें हैं, जिन में से 3 मेयर और 3 डिप्टी मेयर चुने जाते हैं.
24 जून 2020 को अनामिका मिथिलेश के कार्यों को सराहते हुए उन्हें दक्षिणी दिल्ली नगर निगम से मेयर बनाया गया. मेयर का काम केवल विभिन्न सेरेमनी में रिबन काटना ही नही होता बल्कि इस से कहीं ज्यादा होता है. सदन में अध्यक्षता के अलावा वे नई परियोजनाओं का सुझाव दे सकते हैं, अधिकारियों को बुला सकते हैं और यहां तक कि सिविल कार्य में तेजी लाने के लिए एडवांस अप्रूवल दे सकते हैं.
इसी के चलते हम मेयर अनामिका मिथिलेश से मिलने, उन के ओफिस चल दिए. सिविक सेंटर पहुंचें तो, सिक्यूरिटी गार्ड ने गेट नंबर 5 से प्रवेश करने के लिए कहा. गेट पास बना कर हम ए ब्लोक में तीसरे फ्लोर पर मेयर के ओफिस पहुंचें तो, हमें कुछ देर रुकने को कहा गया. थोड़े इंतज़ार के बाद जब फाइनली ओफिस में एंटर हुए तो देखा की मेयर अपनी कुर्सी पर बैठे, अपने रूटीन वर्क में बीजी थीं.
अपने स्कूल के दिनों को याद करते हुए अनामिका कहती हैं, “स्कूल के दिनों से ही मैं सभी कार्यक्रमों में सक्रिय रूप से भूमिका निभाती रहती थी. अपने स्कूल में मैं सभी शिक्षकों की चहेती थी. कुछ समय बाद स्कूल की तरफ से मुझे एक्टिविटीज के लिए अध्यक्ष भी चुना गया. स्कूल के दिनों से ही मुझे सोशल एक्टिविटीज में भाग लेना बहुत अच्छा लगता था.”
कुछ इस तरह से अनामिका अपनी प्रतिभा के बल पर अपने जीवन में आगे बढ़तीं रहीं हैं. लेकिन अनामिका का राजनीतिक सफर आननफानन में ही शुरू नहीं हुआ, बल्कि उन के नाना 15 सालों तक बिहार में एमएलसी (म्युनिसिपल लेजिस्लेटिव कौंसिलर) रह चुके थे. यह बताते हुए उन्होंने कहा, “राजनीति की तरफ मेरा झुकाव बचपन से ही रहा है. पहले मेरे नाना और फिर शादी के बाद मेरे पति दोनों से ही मुझे सीखने के लिए बहुत कुछ मिला है और फाइनली मेरा जो मेरा बनने का पैशन था वह मैं ने हांसिल किया.”
अकसर देखा जाता है कि किसी भी सफल महिला के लिए उन की पर्सनल लाइफ और प्रोफेशनल लाइफ को बैलेंस करना बेहद मुश्किल हो जाता है. खासकर तब जब बात किसी महिला राजनेता की हो, जिन की प्रोफेशनल लाइफ ही पब्लिक सेवा में हो. ऐसे में अनामिका भी अपने जीवन में संतुलन बनाए रखने के लिए समय के अनुसार सारे काम करना पसंद करती हैं.
वह बताती हैं, “मैं शिक्षक की बेटी हूं और शुरुआत से ही डिसिप्लिन माहौल में मेरी परवरिश हुई है. इसीलिए मुझे कोई भी काम करना ज्यादा टफ नहीं लगता, क्योंकि बचपन से मेरे घर, परिवार और स्कूल में मेरी ट्रेनिंग ही ऐसे हुई है कि मैं सारे काम अपनी पूरी जिम्मेदारी से कर सकूं.”
वह आगे कहती हैं, “जब मैं घर पर होती हूं तो मेरे पति की क्या आवश्यकता है, उन के साथ मेरी अच्छी अंडरस्टैंडिंग बने, उस की जिम्मेदारी मैं अच्छे से निभाती हूं. मैं एक अच्छी मदर कैसे बनूं, इस के लिए वीकेंड पर कोशिश करती हूं कि पूरा दिन मैं अपने दो बेटों के साथ गुजार सकूं.
“इस के अलावा हर रात काम से घर पहुंच कर अपने बच्चों की आवश्यकताओं को पूरा करती हूं. उन से बात करती हूं. अपने पिता की अच्छी बेटी कैसे बनूं, इस के लिए मैं समयसमय पर उन से बात करती रहती हूं. उन से अलगअलग चीजों के ऊपर सलाह मशविरा लेती हूं.”
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दक्षिणी दिल्ली मेयर के पद पर आसीन एक महिला का होना ही अपने आप में बहुत बड़ी बात है. जब हम बात करते हैं पुरुषों की तो राजनीति में मर्दों के जीवन में एक सेट विजन होता है, और वह अपने उस विजन के पदचिन्हों पर चलते हुए अपने राजनीतिक लक्ष्यों की पूर्ति करते हैं. जिन पर सिर्फ अपने करियर को बनाने की जिम्मेदारी होती है. लेकिन महिलाओं के सन्दर्भ में ऐसा नहीं होता. यदि कोई महिला राजनीति में है तो वह एक साथ कई रोल अदा करती है. उदाहरण के लिए अनामिका को ही देखा जा सकता है. वह केवल दक्षिणी दिल्ली की मेयर ही नहीं है, बल्कि जब वह घर में होती हैं तो वह पत्नी, मां, बेटी, बहु इत्यादि होती है. ऐसे में हमारे समाज में किसी महिला का राजनीति में होना मात्र ही अपनेआप में बहुत बड़ी बात है.
राजधानी दिल्ली की मेयर होने के साथ ही वह राजनीति के दांव पेंचों को बेहद बखूबी समझती हैं. उन से बात करते हुए उन की राजनीति में सक्रियता झलक रही थी. वह इस समय दिल्ली सरकार और एमसीडी के बीच चलने वाली घमासान को ले कर काफी सक्रीय हैं. फिर चाहे सीएम का घेराव करना हो, मांगों को ले कर भूख हड़ताल करना हो या फिर आन्दोलन करना हो.
इसी खींचतान को ले कर जब उन से सवाल पूछा गया तो उस के जवाब में उन्होंने बताया कि, “एमसीडी में आने वाली तीनों निगम, दक्षिणी, उत्तरी और पूर्वी दिल्ली नगर निगम के अपनीअपनी मान्यताएं और अपनेअपने काम हैं. संविधान की गाइडलाइन्स के अनुसार, किसी भी निकाय का खर्च वहां की राज्य सरकारें देंगी. प्रत्येक वर्ष दिल्ली फाइनेंस कमीशन की तरफ से, दिल्ली सरकार को बजट मुहैय्या करवाया जाता है. और केजरीवाल सरकार निगम के पैसे को, दिल्ली की खून पसीने से कमाए पैसे को, देश के अलग अलग राज्यों में अपने चेहरे चमकाने के लिए खर्च करती है जिस का बकाया 13 हजार करोड़ रूपए है.”
“कोरोना काल में अपनी जान से हाथ धो बैठे कर्मचारियों को दिल्ली सरकार ने एक पैसा नहीं दिया. पिछले 6 सालों जब से केजरीवाल साहब दिल्ली संभाल रहे हैं, तब से तीनों निगमों का 13 हजार करोड़ रूपए दिल्ली सरकार पर कर्जा है. इतना अनुरोध करने के बावजूद, दिल्ली सरकार के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी है. विवश हो कर निगम कर्मचारियों के फंड के लिए हमें, इस सर्द और ठिठुरती हुई रात में, उन के घर के बाहर बैठना पड़ा, और पाषाण ह्रदय वाले केजरीवाल एक बार भी हम से बात करने बाहर नहीं निकले.”
राजनीति में महिलाओं की संख्या ज्यादा से ज्यादा बढ़ सके इस के लिए अनामिका देश की युवतियों को संदेश देते हुए कहती हैं, “महिलाओं का नेचर ही ऐसा होता है कि वह कोई भी चुनौती को स्वीकार कर उसे सकारात्मक रूप भी देती है. आज का दौर तो महिलाओं के लिए ही बना है, चाहे वह कोई भी फील्ड हो हर फील्ड में महिलाएं नजर आती है और काफी महत्वपूर्ण पद हासिल करती हैं. भारत की राजनीति में महिलाओं का बहुत उज्जवल भविष्य है, जरुरत है अपने डर को खत्म करने की और कदम आगे बढ़ाने की.”