अनु ने आखिरी बार सरसरी निगाहें अपने समान पर डालीं. एक सूटकेस में उस के और सुभाष के कपड़े थे. एक छोटी सी डलिया में खानेपीने का समान था. सब कुछ अनु ने अपने हाथों से बनाया था.
एक छोटा सा लाल रंग का बैग था, जिस में अनु ने अपने साटन के इनर वियर और नाईटी रखी हुई थी.
तभी सुभाष अंदर आया और बोला,”अनु, तैयार हो तुम?”
अनु ने जल्दीजल्दी अपने होंठों पर लिपस्टिक का टचअप किया और बालों में कंघी कर बाहर आ गई. सुभाष समान को बस के अंदर ठीक से रखवा रहा था.
अनु बस में बैठ कर बोली,”अब पहले कहां जाना है?”
सुभाष बोला,”पहले गाजियाबाद से पूर्णिमा और सिद्धार्थ को ले लेंगे फिर नोएडा से अपेक्षा और साकेत को, मेरठ से अजय और पल्लवी को लेते हुए बिनसर चले जाएंगे.”
अनु बोली,”देखो, किसी के घर बैठ कर गप्पें मत मारने लग जाना.”
सुभाष हंसते हुए बोला,”अनु, तुम्हारी तरह ही सब को जल्दी है उन वादियों में जाने की.”
सुभाष को अच्छे से मालूम था कि अनु न जाने क्यों पूर्णिमा से खार खाए रहती है.
अनु स्थानीय डिग्री कालेज में गणित की प्रोफैसर है और सुभाष सरकारी अस्पताल में सीनियर डाक्टर. उन का
एक बेटा भी है जो फिलहाल बोर्डिंग स्कूल में पढ़ाई कर रहा है.
अनु के भूरे घुंघराले बाल इधरउधर हवा में लहरा रहे थे. अपनी काली आंखों को उस ने काजल से बांध रखा
था. अनु खूबसूरत तो नहीं पर आकर्षक और बिंदास थी और अपने घर व कालेज में लेडी सिंघम के नाम
से मशहूर भी.
सड़क पर जाम को देख कर अनु का पारा चढ़ गया और वह उठ कर ड्राइवर को खरीखोटी सुनाने लगी. सुभाष ने बहुत मुश्किल से उसे चुप कराया. यह अनु की सब से बड़ी कमी थी जिस के कारण उस का अपना बेटा भी उस से दूर छिटकता था.
जैसे ही बस गाजियाबाद के कविनगर में रुकी तो पूर्णिमा को देख कर एकाएक अनु के मुंह से निकल
गया,”यह क्या? इतना सजधज कर यात्रा करेगी?”
सुभाष ने अनु की तरफ आंखें तरेरीं तो अनु चुप हो गई.
जैसे ही पूर्णिमा बस में चढ़ी, अनु बोल पड़ी,”पूर्णिमा शादी में से आ रही हो क्या?”
पूर्णिमा कट कर रह गई पर मुसकराते हुए बोली,”मैं टीशर्ट में अपने पेट के टायर दिखाने से बेहतर कुरता पहनना
पसंद करती हूं.”
यह कह कर वह बड़ी अदा के साथ अपने बालों को झटक कर पीछे की ओर कर ली.अनु ने कनखियों से देखा और मन ही मन सोचा कि गजब
की खूबसूरत लग रही है पूर्णिमा. दिनरात पार्लर में रहने का कुछ तो फायदा होगा.
पूर्णिमा मंझोले कद की नीली आंखों की खूबसूरत महिला थी जो स्थानीय इंजिनीरिंग कालेज में पढ़ाती थी. उस के पति सिद्धार्थ का हार्डवेयर का बिजनैस था.
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कहने वाले तो यह भी कहते हैं कि पूर्णिमा अपनी खूबसूरती के बल पर ही नौकरी पर टिकी हुई है और अपनी
खूबसूरती के बल पर ही वह इधरउधर बड़ेबड़े शोरूम से गहने, कपड़े ऐसे ही ले आती है.
वाहन तेजी से नोएडा की सड़कों पर दौड़ रहा था. बस सोसाइटी के सामने रुक गई. अपेक्षा और साकेत अपनेअपने सूटकेस के साथ तेजी से बस की तरफ चले आ रहे थे.
अपेक्षा का गेरुआ कुरता देख कर अनु फिर बोल पड़ी,”अपेक्षा कम से कम गुरुजी को आज तो छोड़ दिया होता.”
अपेक्षा बिना कुछ बोले कानों में हेडफोन लगा कर ध्यानमग्न हो गई थी.
अपेक्षा का पति साकेत ही अनु से
बोला,”यह उस के ध्यान का समय है, इसलिए 1 घंटे तक अपेक्षा किसी से बात नहीं करेगी.”
अपेक्षा को साकेत की इस मित्रमंडली से बेहद चिढ़ थी. अपेक्षा को डर था कि अगर साकेत ऐसे ही इन तितलियों के करीब रहेगा तो वह कभी भी मोक्ष प्राप्त नहीं कर पाएगी. जब भी साकेत अपने दोस्तों के यहां जाता या वे लोग अपेक्षा के घर आते एक ही टौपिक होता था गुरुजी का मजाक. अपेक्षा खून के घूंट पी कर रह जाती थी. अपेक्षा हमेशा से इन लोगों के साथ असहज रहती थी. जो खुशी उसे अपने गुरुजी के आश्रम में मिलती है वह कोई भी दर्शनीय स्थल में नहीं मिल सकती है. पर इन दौलत और वासना के फूलों पर मंडराने वाली तितलियों से कैसे अपना पीछा छुङाए?
सुभाष साकेत और सिद्धार्थ जहां गपशप में मशगूल थे, वहीं पूर्णिमा धीरेधीरे किसी से मोबाइल पर बात कर रही थी. अनु भी अपने मोबाइल पर ही लगी हुई थी पर उस का सारा ध्यान पूर्णिमा पर ही लगा हुआ था.
मन ही मन अनु सोच रही थी कि सिद्धार्थ तो मिट्टी का माधो है. उसे तो पता भी नहीं कि पूर्णिमा किस राह पर चल रही है.
जैसे ही बस मेरठ के शास्त्रीनगर में घुसी तो सब दोस्तों ने तय कर लिया था कि अजय के घर चाय पी कर फिर
आगे बढ़ेंगे.
जब सारा लावालश्कर अजय के घर पहुंचा तो उस की पत्नी पल्लवी ने सारी तैयारी कर रखी थी. चाय क्या पूरा नाश्ते का प्रबंध था. ढोकला, घेवर, मटर समोसा, कालाजामुन, ब्रैडकटलैट से मेज सजी हुई थी.
सुभाष ने कहा,”भाभी आपने तो कमाल कर दिया है.”
पल्लवी मुसकराते हुए बोली,”अरे आप लोग क्या रोजरोज आते हो?”
पल्लवी का कद छोटा था और रंग बेहद गोरा. उस के आंख, नाक हर समय बातों के लिए फड़कते रहते
थे. पल्लवी घर के काम में जितनी तेज थी, अपने लिए उतनी ही ढीली थी. पांवो की फटी हुई बिवाई इस की गवाह थी.
अभी भी फूहड़ों की तरह पल्लवी ने ढीली सी जींस के ऊपर लबादे जैसा कुरता पहना हुआ था.
1 घंटा बीत गया तो अनु ने ही कहा,”बिनसर आज पहुंचना है या कल?”
बस में बैठेते ही सब लोग नींद के आगोश में चले गए. करीब शाम के 5 बजे नैनीताल में यह मंडली रुकी ताकि थोड़ाबहुत नाश्ता कर चला जाए. आगे की यात्रा में तीखी चढ़ाई थी. करीब साढ़े 7 बजे उन की
मिनी बस कसार जंगल के रिसोर्ट पहुंच गई थी.
इस में 4 छोटीछोटी कौटेज अजय ने बुक करा रखी थी. बैरों ने आ कर समान ले लिया और सब लोग अपनीअपनी कौटेज में दुबक गए. तय हुआ था रात 9 बजे सारे युगल डाइनिंग एरिया में मिलेंगे और फिर रात का कार्यक्रम तय करेंगे.
रात के 9 बजे सब से पहले साकेत और अपेक्षा पहुंचे. अपेक्षा सफेद कुरती और गेरुए स्कर्ट में बहुत सौम्य लग रही थी. उस के गले मे रुद्राक्ष की माला थी और कानों में भी रुद्राक्ष के ही टौप्स थे. माथे पर चंदन की बिंदी लगी हुई थी.
किसी को वहां न देख कर अपेक्षा बोली,”साकेत, गुरुजी से मेरी जूम मीटिंग है रात 10 बजे और मैं उस मीटिंग को टाल नहीं सकती हूं.”
साकेत कुछ तल्खी के साथ बोला,”अपेक्षा, कम से कम छुट्टियों में तो यह गुरुजी का राग मत अलापो.”
अपेक्षा बोली,”तुम्हें पता तो है न कि तुम्हारी नौकरी और हमारा पुश्तैनी व्यपार सब गुरुजी के कारण ही चल रहा है.”
इस से पहले कि साकेत कुछ बोलता, अनु और सुभाष भी वहां पहुंच गए. डैनिम शौर्ट्स और टीशर्ट में अनु एकदम बिंदास बाला लग रही थी. 38 की उम्र में भी वह 28 की लग रही थी.
तभी पूर्णिमा और सिद्धार्थ भी आ गए. पूर्णिमा ने एक लंबा गाउन पहना हुआ था जिस की एक तरफ स्लिट थी, गाउन का गला भी अपेक्षाकृत काफी खुला हुआ था. पूर्णिमा के डाइनिंग एरिया में प्रवेश करते ही सभी पुरूष उसी की ओर ही देख रहे थे.
पूर्णिमा का गुलाबी गाउन, गुलाबी लिपस्टिक जहां पुरुषों को लुभा रही थी, वहीं अनु जैसी महिलाओं को
आग की तरह जला भी रही थी.
पल्लवी और अजय सब से आखिर में करीब 9:30 बजे आए. पल्लवी ने एक सादा सा कौटन का सूट पहन रखा था. अजय जींस और व्हाइट शर्ट में बहुत ही स्मार्ट लग रहा था. पल्लवी का जहां अपनी ओर बिलकुल भी ध्यान नहीं था, वहीं अजय खुद को ले कर कुछ अधिक ही सजग था.
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अगर सरल शब्दों में कहें तो जहां अजय इस मित्रमंडली का बेताज बादशाह था तो, वहीं पूर्णिमा भी इस समूह की महारानी थी.
खाने के पश्चात अपेक्षा अपनी कौटेज की तरफ चली गई, वहीं बाकी सभी जोड़े सुभाष के कौटेज में चले गए. इस मित्रमंडली में जहां सुभाष का बहुत अधिक सम्मान था, वहीं अनु से सभी कटते थे. पर सुभाष की बात को कोई भी नहीं काटता था.
1 घंटे तक सिनेमा, राजनीति और क्रिकेट की हलकीफुलकी बातें होती रहीं. फिर बातचीत की दिशा बच्चों की ओर मुड़ गई.
तभी खटाक से दरवाजा खुला और अपेक्षा ने प्रवेशा किया. अनु अपनी आदत अनुसार बोल पड़ी,”अपेक्षा,
तुम्हारे गुरुजी ने आखिर तुम्हें छोड़ ही दिया. अब यह बोलो कि वे तुम्हें मां कब बनाएंगे?”
यह वाक्य सुनते ही वहां सन्नाटा छा गया.
सुभाष गुस्से में बोला,”अनु, होश में तो हो न?”
अपेक्षा बोली,”नहीं सुभाषजी, अनुजी को सारे लोग अपने कालेज के विद्यार्थी लगते हैं. इसलिए यह घटिया जोक्स मारती रहती हैं.”
अनु बोली,”अरे, अपेक्षा मेरा मतलब आशीर्वाद से था. अब तुम्हारा दिमाग ही उस दिशा में दौड़ रहा है तो मैं क्या कर सकती हूं डार्लिंग.”
यह सुनते ही पूर्णिमा और पल्लवी के चेहरों पर एक अजीब सी मुसकान थिरक उठी जो अपेक्षा से छिपी न रही.
अपेक्षा किसी भी तरह से साकेत का इस मित्रमंडली से पीछा छुङाना चाहती थी. सारा दिन वे लोग साकेत के कान गुरुजी के खिलाफ भरते रहते थे. पर इस बार अपेक्षा निर्णय ले कर आई थी कि वह इस बार उन्हें सटीक
जवाब जरूर देगी.
अपेक्षा भी बोली,”हां अनु, हरकोई तो तुम्हारी तरह भाग्यशाली नहीं होता कि साम, दाम, ढंड, भेद से दौलत को
हथिया ले.”
यह सुनते ही अनु का चेहरा सफेद पड़ गया क्योंकि यह हरकोई जानता था कि किस तरह चालाकी से अनु ने अपनी मां के ₹40 लाख अपने नाम करवा लिए थे और फिर उन्हें अपने बड़े भाई के पास चलता कर दिया था.
तभी अजय ने म्यूजिक चला दिया.अचानक से अजय ने पूर्णिमा को डांस के लिए उठा दिया और दोनों धीरेधीरे एक युगल की तरह डांस करने लगे.
1 बजे तक माहौल बेहद हलका और रूमानी हो गया था. किशोरावस्था के प्रेम प्रकरण, शादी के रूमानी पल सब छनछन कर बाहर निकल रहे थे. कड़वाहट एक भाप की तरह वहां से उड़ गई थी. रात के लगभग 1:30 बजे महफिल खत्म हुई और सुबह 10 बजे मिलने का कार्यक्रम तय हो गया था.
पूरा दिन बिनसर के दर्शनीय स्थल देखने में बीत गया था. मौसम इतना अच्छा था कि पूरा दिन घूमने के बाद
भी ताजगी बरकरार थी.
आज फिर सुभाष की काटेज में महफिल जमने का कार्यक्रम तय हो गया था. सब लोग समय से पहले ही आ गए. अजय ताश के पत्ते फेंटने लगा और साकेत पैग बनाने लगा. पूर्णिमा कनखियों से अजय की ओर देख रही थी और अजय रहरह कर आखों में इशारे कर रहा था.
ताश की बाजी के साथ सब लोगों का जोश ऊपरनीचे हो रहा था. रमी की पहली ही बाजी में पूर्णिमा आउट हो
गई थी. फिर अजय भी बाहर निकल गया था.
थोड़ी देर बाद पूर्णिमा सिद्धार्थ के कानों में फुसफुसा कर चली गई थी. कुछ देर बाद अजय बोला,”मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा है. कुछ देर बाहर टहल कर आता हूं.”
बाकी सभी लोग ताश में मशगूल थे इसलिए किसी ने अधिक ध्यान नहीं दिया था.
करीब 45 मिनट बाद अजय गुनगुनाते हुए वापस आ गया था और पल्लवी से लाड़ लड़ाने लगा था.
अनु बोली,”यार, तुम सब लोग भी कुछ सीखो अपने दोस्त से. कितने रोमांटिक हैं अभी भी.”
सुभाष , सिद्धार्थ और साकेत हंसने लगे और बोले,”यार, अजय क्यों हम लोगों की सुखी गृहस्थी में आग लगा रहा है?”
अपेक्षा अचानक से ध्यान को बीच में छोड़ कर बोली,”या ऐसा भी हो सकता है कि अपने घर मे लगी आग को अजय औरों के घर में भी लगाना चाह रहा हो?”
अजय बोला,”क्या मतलब?”
साकेत व्यंग्य करते हुए बोला,”कुछ नहीं, अपेक्षा ने आज अधिक ध्यान लगा लिया है.”
चारों युगल अपनेअपने कमरों में जा कर बहुत देर तक एकदूसरे की बखिया उधेड़ते रहे और फिर न जाने किस पहर सब की आंखें लग गई थीं.
अचानक से साकेत को दरवाजे पर धङधङ की आवाज सुनाई दी. आंखे मलते हुए साकेत उठा तो देखा सुभाष बदहवास सा वहां खड़ा था.
“साकेत… यार, गजब हो गया हैं. पूर्णिमा के गहने गायब हो गए हैं.”
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तभी अपेक्षा भी उठ कर आ गई और बोली,”क्याक्या खोया है? जरूर किसी स्टाफ का ही काम होगा. पुलिस में रिपोर्ट करनी चाहिए. फिर सब मिल जाएगा.”
तीनों सिद्धार्थ की काटेज में पहुंचे. वहां जा कर देखा कि रिसोर्ट का मैनेजर और अन्य स्टाफ खड़ा हुआ था.
पूर्णिमा का रोरो कर बुरा हाल था,”कानों की बालियां और सौलिटेयर रिंग गायब हैं. दोनों की कीमत लगभग ₹30 लाख हैं.”
तबतक अजय और अनु भी आ गए थे. अजय बोला,”मेरी कोई न कोई जानपहचान निकल जाएगी. पुलिस में रिपोर्ट करनी है क्या?”
अनु फट से बोली,”क्या बेवकूफों वाली बात कर रहे हो? रिपोर्ट तो करनी ही होगी.”
सिद्धार्थ बोला,”नहीं, इन का बिल भी नही है. ये मैं ने कैश में लिए थे. और फिर मेरी सालाना इनकम कागजों में ₹5 लाख हैं, तो मैं कैसे रिपोर्ट करूं?”
अनु को पता था यह जरूर पूर्णिमा के किसी दोस्त की सौगात रही होगी. तभी न बिल है और न ही कुछ
और प्रूफ.
अजय बोला,”मैं स्टाफ की खबर लेता हूं.”
रिसोर्ट में करीब 10 कौटेज थी. 3 खाली थी और 4 में ये लोग ही रह रहे थे. बैरों से पूछताछ की जाने
लगी. सब ने एक ही जवाब दिया कि उन्हें इस बारे में कुछ नहीं पता है.
अजय का दोस्त मैनेजर की जानपहचान का था. उस के कहने पर मैनेजर ने सुपरवाइजर से कह कर पूरे
स्टाफ के कमरों और समान की तलाशी करवाई थी. लेकिन कहीं कुछ भी नहीं निकला.
अचानक से गुस्से में एक बैरा बोल पड़ा,”साहबजी हम गरीबों की ही तलाशी क्यों करवाई हैं? खोट तो किसी की नीयत में भी हो सकता है?”
अनु बोली,”बात तो तुम्हारी सही है भैया. अजय, हम सब के कमरों की भी तलाशी करवा लो. जब तक तलाशी चलेगी हम सब बाहर ही रहेंगे.”
अपेक्षा गुस्से में बोली,”मैं कोई चोर नही हूं जो तलाशी करवाऊंगी.”
पूर्णिमा चुप बैठी थी. पल्लवी बोली,”अरे, अपेक्षा इस में चोर की कोई बात नही है, क्या पता गलती से किसी की कौटेज में रह गए हों.”
अपेक्षा बोली,”फिर तो अनु की कौटेज से शुरुआत करते हैं, क्योंकि वहीं पर ही तो हम सब का जमावड़ा रहता था और ऐसा हो सकता है कि यहां से जा कर फिर से अनु
एकाएक ₹30 लाख की मालकिन बन जाए…”
अनु बोली,”अरे, अपेक्षा तुम्हारे गुरुजी जितनी सिद्धि मेरे पास कहां है? वे तो तुम्हारी हर तरह से सहायता करते हैं.
क्या मैं जानती नही हूं कि तुम्हारी और गुरुजी के बीच क्या रासलीला चलती रहती है.”
साकेत एकाएक अपनी पत्नी पर यह आरोप सुन कर आप खो बैठा और बोल उठा,”अनु जबान संभाल कर बात करो…”
इस से पहले कि बात और बढ़ती अजय बीच में आ गया और बोला,”क्यों बात को बढ़ा रहे हो?”
सुभाष और अनु के कमरे में कुछ नहीं मिला.
जब साकेत और पूर्णिमा के कमरे से भी कुछ न मिला तो सिद्धार्थ
बोला,”यार यह तमाशा बंद करो. ऐसा भी तो हो सकता है कि बाहर गिर गए हों.”
अपेक्षा फट पड़ी,”यह क्या बात हुई?”
अजय बोला,”अरे भई सिद्धार्थ चुप करो.”
अचानक से अजय के कमरे से शोर की आवाज सुनाई दी. पता चला कि पूर्णिमा के दोनों गहने अजय के कुरते और तकिए के नीचे पाए गए हैं.
अजय हक्काबक्का रहा गया तो पूर्णिमा का चेहरा सफेद पड़ गया.बात संभालते हुए पूर्णिमा बोली,”अरे यह वेटर झूठ बोल रहा है. जरूर इस ने ही चुराया होगा और अब जब पता चला दाल नहीं गलेगी तो यह कहानी गढ़ रहा है.”
अजय भी एकाएक आगबबूला हो उठा,”मुझे बिलकुल उम्मीद नहीं थी कि यहां पर ऐसे चोर काम करते हैं.”
वेटर ने लाख बोला पर किसी ने उस की बात नहीं सुनी थी.
सब को पता था कि वेटर सच बोल रहा था पर अपनी इज्जत बचाने के लिए एक गरीब की बलि दे दी गई थी.
किसी के भी गले यह बात नहीं उतर रही थी कि अगर वेटर को झूठ ही बोलना था तो गहने अजय के कुरते और तकिए के नीचे ही उस ने क्यों बताए?
सुभाष तो बस इस बात पर चैन की सांस ले रहा था कि अनु का मुंह बंद था.
अजय के पास पल्लवी के सवालों का कोई जवाब नहीं था. उधर सिद्धार्थ भी पूरी रात करवटें बदलता रहा
था. उसे पता था कि उस की तितलीनुमा बीबी बस एक डाल पर नहीं रह सकती है. पर उस ने यह कतई नहीं सोचा था कि उस के जिगरी दोस्त के साथ भी उस की बीबी के संबंध हो सकते हैं.
उधर पूर्णिमा को समझ नहीं आ रहा था कि कैसे वह इतनी बड़ी बेवकूफी कर गई थी. अब पल्लवी से वह कैसे
नजरें मिला पाएगी?
सुबह नाश्ता कर के सब को वापस निकलना था. आज यह मंडली पूरी तरह से शांत थी. हर सदस्य अपनेअपने प्रश्नों में उलझा हुआ था.
जहां अजय और पूर्णिमा आगे की कहानी का तानाबाना बुन रहे थे, वहीं पल्लवी और सिद्धार्थ फिर से अपने
जख्मों पर झूठ का मलहम लगाने में व्यस्त थे.
अनु को रहरह कर वेटर के लिए बुरा लग रहा था. सुभाष और साकेत को समझ नहीं आ रहा था कि आगे
भी यह दोस्ती बरकरार रह पाएगी या नहीं?
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उधर अपेक्षा मन ही मन बेहद खुश थी. इन सब लोगों ने बहुत बार उस की भक्ति का, उस के ध्यान का मजाक उड़ाया है. अब सांप भी मर गया और लाठी भी नहीं टूटी.
अब कोई भी उस के और उस की गुरुभक्ति के बीच नहीं आ पाएगा. उसे कुछ करना भी नहीं पड़ा और अपनेआप ही ये सभी कांटे उस के रास्ते से हट गए.