World Tobacco Day: अब भी नही समझेंगे तंबाकू के खतरे तो कभी नहीं समझेंगे

कोई समझने वाला हो तो इशारा ही बहुत होता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 28-29 मई-2021 तक दुनियाभर में 36 लाख लोग कोविड-19 से अपनी जान गंवा चुके थे.इस आंकड़े के भीतर भी एक डराने वाला आंकड़ा छिपा है.मरने वाले लोगों में से 54%से ज्यादा के फेफड़े पहले से प्रभावित थे.आज विश्व तंबाकू निषेध दिवस पर युवाओं को विशेषकर इस डाटा से सबक सीखना चाहिए.क्योंकि तंबाकू के डरावने नतीजों को अब भी हमने गंभीरता से नहीं लिया तो समझो कभी नहीं ले पायेंगे.

साल 1984 में पहली बार विश्व स्वास्थ्य दिवस 7 अप्रैल को मनाया गया और इसकी थीम थी, ‘तम्बाकू या स्वास्थ्य- चुनना आपको है’.तभी से सही मायनों में पता चला है कि लगभग 2000 से अधिक रसायनों से युक्त तम्बाकू व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक तथा राष्ट्रीय स्वास्थ्य के लिए सबसे बड़ा खतरा है.विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक अनुमान के मुताबिक मौजूदा समय में दुनिया के करीब 122 करोड़ लोगों को तम्बाकू की लत लगी हुई है. इनमें से तकरीबन 100 करोड़ लोग विकासशील देशों में रहते हैं.पिछली शताब्दी के मध्य में तम्बाकू से सेहत को होने वाले खतरों के प्रति लोगों का ध्यान गया.

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तब धीरे धीरे यह समझ में आने लगा कि न सिर्फ कैंसर बल्कि श्वांस एवं हृदय सम्बंधी विकारों का भी कारण तम्बाकू ही है.डब्लूएचओ पिछले कई दशकों से लोगों को तम्बाकू सेवन के चिकित्सकीय, पर्यावरणीय, आर्थिक व सामाजिक दुष्परिणामों से सचेत कर रहा है. दुनिया में तंबाकू के दुष्प्रभावों को रोकने के लिए लगातार कई तरह की कोशिशें की जा रही हैं. मसलन- सार्वजनिक जगहों पर धूम्रपान पर रोक सम्बंधी कानून बनाये गये हैं, 18 साल से कम उम्र के लोगों को इसे बेंचने पर प्रतिबंध लगाया गया है.सिगरेट की डिब्बियों और तंबाकू के पाऊच में यह चेतावनी लिखवाई गयी है कि इसका सेवन हेल्त के लिए खतरनाक है.

मगर इस तमाम कवायद के बावजूद  तंबाकू के निषेध के मामले में बड़ी सफलता नहीं मिल रही. लोग इन तमाम कानूनों का कड़ाई से पालन नहीं करते.दरअसल जब कोई बुराई सामाजिक स्वीकार्यता का रूप हासिल कर लेती है, तब उससे लड़ना बहुत मुश्किल हो जाता है.एक ओर तो सरकार तंबाकू को राजस्व की प्राप्ति का एक बड़ा एवं मजबूत जरिया मानती है, दूसरी तरफ तंबाकू के कई उत्पादों जैसे गुटखा आदि पर समय समय पर रोक भी लगाती है. लेकिन इन तथाकथित रोकों में इतने चोर दरवाजे मौजूद होते हैं कि कानून के बावजूद बाजार में तंबाकू के ये उत्पाद धड़ल्ले से बिकते रहते हैं.

इसके लिए कई किस्म के मिथ भी गढ़ लिये गये हैं-मसलन एक यही कि धूम्रपान से स्ट्रेस यानी तनाव कम होता है, जबकि हकीकत यह नहीं है.आज चिकित्सा विज्ञान इस बात को भलीभांति जानता है कि किसी चीज का शरीर के आण्विक एवं कोशीय स्तर पर क्या स्वास्थ्य जनित प्रभाव पड़ता है? तंबाकू के इस्तेमाल के संबंध में पता चला है कि इससे शरीर कुछ ऐसे विषाक्त तत्वों को ग्रहण करता है, जो उसकी कोशिकाओं को प्रभावित करते हैं.चीन दुनिया में तंबाकू का सबसे बड़ा उत्पादक देश है जहां लगभग 2 करोड़ ग्रामीण परिवार 210 करोड़ हेक्टेयर जमीन पर तम्बाकू पैदा करते हैं.

तंबाकू से चीन सरकार हर साल 12 फीसदी की राष्ट्रीय आय प्राप्त करती है.चीन के बाद तंबाकू उत्पादन में ब्राजील का नम्बर आता है, जहां 1,35,000 परिवार देश की 0.7 फीसदी उपजाऊ जमीन पर तंबाकू की खेती करते हैं.भारत में 96,865 रजिस्टर्ड तंबाकू उत्पादक परिवार हैं, परंतु गैर रजिस्टर्ड भी कम नहीं हैं.भारत में लगभग 0.25 प्रतिशत उपजाऊ जमीन पर तंबाकू उगाया जाता है.1947 से ही सरकार ने अधिक राजस्व के लालच में तम्बाकू के उत्पाद एवं इसके उद्योग को बढ़ावा दिया है. दूसरे देशों के मुकाबले हमारे यहां बीड़ी बनाम सिगरेट की लड़ाई भी है. यही नहीं हमारे यहां तंबाकू को चबाकर खाने की भी संस्कृति है.

सुरती, खैनी और पान में तम्बाकू को चबाकर भी हमारे यहां खाया जाता है.इसलिए फेफड़े के कैंसर के साथ साथ ही हमारे यहां मुख एवं गले के मामले भी बहुत होते हैं. इन दिनों कोरोना की घातक शिकंजेबंदी में सबसे पहले वही लोग आ रहे हैं, जिनके फेफड़े तंबाकू के इस्तेमाल से पहले ही बहुत खराब हो चुके हैं. दुनिया में हर साल औसतन 67 लाख टन तंबाकू पैदा होता है.इसमें चीन 39.6 प्रतिशत, भारत 8.3 प्रतिशत ब्राजीन 7.0 प्रतिशत एवं अमरीका 4.6 प्रतिशत तम्बाकू का उत्पादन करते हैं.

तंबाकू के इस्तेमाल से स्वास्थ का कई तरह से नुकसान होता है. तंबाकू के इस्तेमाल से हम में सूंघने की क्षमता में कमी आ जाती है. इंसान कुछ गिनीचुनी स्थूल महकों के महसूसने तक ही सीमित हो जाता है, जबकि सामान्य तौरपर कोई व्यक्ति 10,000 किस्म की गंधें महसूस कर सकता है. तंबाकू के सेवन से सांस में बदबू आती है, भूख कम लगती है, इसमें निकोटीन  ज्यादा होने के कारण यह लार भी अधिक बनाती है. इसके नियमित इस्तेमाल से दांत काले पीले हो जाते हैं.बलगम अधिक बनता है जिस कारण सुबह के वक्त तंबाकू का सेवन करने वाले लोग खखारते रहते हैं, इसे स्मोकर्स थ्रोट कहते हैं.

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कई लोग कहते हैं कि वे इसे छोड़ना चाहते हैं, लेकिन छोड़ नहीं पाते. मगर विशेषज्ञ कहते हैं कि इसे छोड़ा जा सकता है.इसके लिए कुछ इस तरह की गतिविधियों का सहारा लिया जा सकता है.मसलन- धूम्रपान की शुरुआत ही न करें, करें तो इसके आदी न बनें और इसे छोड़ना चाहें तो दृढ़संकल्प के साथ कुछ ऐसी गतिविधियों में खुद को लिप्त कर लें जो इसकी तरफ आपका ध्यान ही न दिलाए.

नियमित रूपसे ऐसी गतिविधियों में शामिल रहें जिनमें  सुबह-शाम जोगिंग,स्विमिंग,योगासन,ध्यान लगाना, डांस करना जैसी गतिविधियां शामिल हों. गायन, वादन, चित्रकारी जैसी रचनात्मक गतिविधियां भी तंबाकू की तलब को खत्म करती हैं.

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