खूबसूरत जौर्जेट की हलके वर्क की यलो साड़ी पर मैं ने मैचिंग ऐक्सैसरीज पहन खुद को आईने में देख गर्वीली मुसकान छोड़ी. फिर बालों से निकली लट को हलके से घुमाते हुए मन ही मन सब के चेहरे शिखा, नेहा, रूपा, आशा, अंजलि, प्रिया, लीना याद किए कि आज तो सब की सब जल मरेंगी.
मन ही मन सुकून, गर्व और संतुष्टि की सांस लेते हुए मैं आखिरी लुक ले रही थी कि तभी आवाज आई, ‘‘ओ ऐश्वर्या राय, अब बख्शो इस आईने को और चलो. हम रिसैप्शन में ही जा रहे हैं किसी फैशन परेड में नहीं.’’
‘‘उफ्फ,’’ गुस्से से मेरी मुट्ठियां भिंच गईं कि जरा सा सजनासंवरना नहीं सुहाता इन्हें. मेरे चुप रहने का तो सवाल ही नहीं था अत: बोली, ‘‘रिसैप्शन में भी जाएंगे तो ढंग से ही तो जाएंगे न… आप के जैसे फटीचरों की तरह तो नहीं… समाज में सहेलियों में इज्जत है मेरी… समझे?’’
इन्होंने भी क्यों चुप रहना था. अत: बोले, ‘‘इज्जत मेरी वजह से है तुम्हारे मेकअप की वजह से नहीं. कमाता हूं… 4 पैसे लाता हूं… समाज में 2 पैसे लगाता हूं, तो तुम्हारी इज्जत बढ़ती है… आई बड़ी इज्जत वाली.’’
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मैं ने पलटवार किया, ‘‘हां तो यही समझ लो. आप की, अपने घर की इज्जत बनाए रखने, स्टेटस बचाए रखने के लिए ही तो तैयार हो कर जाती हूं.’’
‘‘तुम्हारे इस तरह बननेसंवरने के चक्कर में रिसैप्शन की पार्टी खत्म न हो जाए.’’
मैं भी तुनक कर बोली, ‘‘जब देखो तब जल्दीजल्दी… खुद को करना क्या पड़ता है… बस शर्ट डाली, पैंट चढ़ाई और हो गए तैयार… सिर पर इतने बाल भी नहीं हैं, जो उन्हीं को सैट करने में टाइम लगे.’’
ये चिढ़ गए. बोले, ‘‘तुम से तो बात करना ही बेकार है. चलना है तो चलो वरना रहने दो… ऐसे मूड में जाने से तो अच्छा है न ही जाएं.’’
मैं डर गई कि अगर नहीं गए तो सहेलियों के उतरे, जले मुंह कैसे देखूंगी. अपनी शान कैसे मारूंगी, ‘‘नहींनहीं, चलना तो है ही,’’ मैं ने फटाफट चप्पलें पहनते हुए कहा.
रिसैप्शन लौन के बाहर ही रूपा मिल गई. बोली, ‘‘हाय रिया, आ गई? मुझे तो लगा कहीं मैं ही तो लेट नहीं हो गई. पर अच्छा हुआ तू मिल गई… और सब आ गए?’’
मैं हंस दी, ‘‘अरे, मुझे क्या पता आए कि नहीं. मैं तो अभी तेरे सामने ही आई हूं.’’
वह मुसकराई पर कुछ बोली नहीं. इधरउधर नजरें घुमाते हुए उस ने मुझ पर तिरछी नजर डाली.
मैं मन ही मन इतराई, ‘‘देख ले बेटा, अच्छे से देख और जल… जल रही है तभी तो कुछ बोल नहीं रही और बोले भी तो क्या. अब यहीं खड़ी रहेगी या अंदर भी चलेगी. चल जरा देखें अंदर कौनकौन आया है.’’
‘‘हांहां चल.’’
हम गेट पर स्वागत के लिए खड़े मेजबानों का अभिवादन स्वीकार कर अंदर गए. मंच पर सजेधजे खड़े दूल्हादुलहन को लिफाफा दिया. फिर चले खानेपीने के स्टाल की तरफ. वहां सब दिखीं. देखते ही सब हमारे पास लपकी आईं. ये अपने दोस्तों में बिजी हो गए और मैं अपनी सहेलियों में.
शिखा देखते ही बोली, ‘‘हाय. नीलम सैट तो बड़ा प्यारा लग रहा है. असली है?’’
मैं दर्प से बोली, ‘‘अरे, और नहीं तो क्या? तुझे तो पता ही है नकली चीज मुझे पसंद ही नहीं.’’
आशा ने व्यंग्य किया, ‘‘तो इस साड़ी पर वर्क भी असली है क्या?’’
मैं ने भी करारा जवाब दिया, ‘‘नहीं पर जौर्जेट असली है.’’
नेहा ने चूडि़यों पर हाथ घुमाया, ‘‘ये बड़ी प्यारी लग रही हैं. ये भी असली हैं?’’
मैं ने कहा, ‘‘पूरे क्वढाई लाख की हैं. अब तू ही सोच ले असली हैं या नकली.’’
निशी बोली, ‘‘अरे, अभी मेरी मौसी ने ली हैं. पूरे क्व4 लाख की हीरे की चूडि़यां… इतनी खूबसूरत डिजाइन है कि बस देखो तो देखते ही रह जाओ.’’
मैं ने अपनी चिढ़ दबाई, ‘‘पर हीरे की चूडि़यों में वह बात नहीं जो इस महीन नक्काशी में होती है. फिर आजकल हीरा पहनो तो पता ही नहीं चलता कि असली है या नकली. बाजार में डायमंड के ऐसेऐसे आर्टिफिशियल सैट्स मिल रहे हैं कि खराखोटा सब एक जैसे दिखते हैं. इसीलिए मैं तो डायमंड की ज्वैलरी लेती ही नहीं.’’
लीना बोली, ‘‘पर जो भी हो डायमंड तो डायमंड ही है. भले किसी को पता चले न चले पर खुद को तो सैटिस्फैक्शन रहती ही है कि अपने पास हीरा है
मैं ने मुंह बनाया, ‘‘हुंह ऐसे हीरे का क्या फायदा जिस का बस खुद को ही पता हो. अरे चीज की असली कीमत तो तब वसूल होती है जब 4 लोग सराहें वरना क्या… खुद ही लाए, खुद ही पहना, खुद ही देखा और लौकर में रख दिया.’’
अंजली ने नेहा को देखा, ‘‘हां, सही तो है. चीज खरीदने का मजा तो तभी है जब 4 लोग उसे देखें वरना क्या मतलब चीज लेने का… अब अगर आज रिया ये सब नहीं पहनती तो हमें क्या पता चलता इस के पास हैं कि नहीं.’’
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नेहा बोली, ‘‘छोड़ो न, चलो देखते हैं खानेपीने में क्या है. सोनेहीरे की बातों से तो पेट नहीं भरेगा न.’’
‘‘हांहां चलो. देखें क्याक्या है,’’ कहती हुई सब की सब स्टाल की तरफ लपकीं. तभी किसी का पैर मेरी चप्पल पर पड़ा. चप्पल खिंची तो पटा टूट गया. अब चलूं कैसे? मैं रोंआसी हो गई कि अब तो इन सब को मजा आ जाएगा. उफ, क्या करूं कैसे इन की नजरों से बचाऊं. फिर सोचा यहीं खड़ी रहूं. पर तभी शिखा ने मुझे खींचा, ‘‘चल न खड़ी क्यों है?’’
मैं चलने लगी पर लंगड़ा गई, ‘‘कुछ नहीं, कुछ नहीं,’’ कह कर मैं थोड़ा और आगे बढ़ी पर फिर लंगड़ा गई.
अब सभी मुझे घेर कर खड़ी हो गईं, ‘‘अरे, क्या हुआ? कैसे हुआ? क्या टूटा? पैर में लगी क्या? चक्कर आया क्या?’’
अब उन्हें क्या बताती कि मेरी चप्पल टूट गई. बड़ी अजीब सी हालत हो गई. शिखा बोली, ‘‘चप्पलें असली नहीं थीं क्या? ऐसे कैसे टूट गई?’’
मैं झल्ला कर बोली, ‘‘सोना नहीं मढ़वाया था इन में… चमड़े का ही सोल था निकल गया.’’
शिखा ने मंचूरियन मुंह में डाला, ‘‘अरे चिढ़ मत, मैं ने तो इसलिए पूछा कि तू कभी कोई चीज नकली पहनती जो नहीं.’’
अंजली ने हंसते हुए उस के हाथ पर ताली मारी, ‘‘अब तू एक काम कर, चप्पल कहीं कोने में उतार दे और ऐसे ही घूमफिर. कौन देखने वाला है कि तू ने पैर में चप्पलें पहनी हैं या नहीं.’’
सब हंसने लगीं. इच्छा तो हुई कि इन जलकुकडि़यों के मुंह पर 1-1 जमा दूं, पर मनमसोस कर रह गई. अब न खाने में मन था न रिसैप्शन में रुकने का. मैं इन्हें ढूंढ़ने लगी. मोबाइल कर इन्हें बुलाया. ये आए.
इन्हें एक तरफ ले जा कर मैं ऐसे फटी जैसे बादल, ‘‘देखा… देखा आप ने… आप के जल्दीजल्दी के चक्कर में मेरी कितनी बेइज्जती हो गई… जरा 2 मिनट और मुझे ढंग से देख लेने देते तो जरा अच्छी चप्पलें निकाल कर पहन लेती. पर नहीं, मेरी इज्जत का जनाजा निकले तो आप को तो मजा ही आएगा न… अब हो लो खुश… करो ऐंजौय मेरी बेइज्जती को.’’
इन्होंने देखा. चप्पल को मेरे पैर सहित रूमाल से बांधा तो मैं थोड़ा चलने लायक हुई. पर अब वहां रुकने का तो सवाल ही नहीं था. मैं ने इन की बांह पकड़ी और घर की राह ली. पर सहेलियों की हंसती, व्यंग्य करती खिलखिलाहट मेरा पीछा कर रही थी.
मैं इन पर बरस रही थी, ‘‘घर से निकलते समय टोकना या झगड़ा करना आप की हमेशा की आदत है. इसी वजह से आज मेरी इतनी बेइज्जती हुई. जरा शांति से काम लेते तो मैं भी ढंग की चप्पलें पहन लेती.’’
मेरी आंखें बरस रही थीं, ‘‘अब अगली बार इन सहेलियों को क्या मुंह दिखाऊंगी और दिखाऊंगी तो मुंहतोड़ जवाब देना भी जरूरी है. मगर यह तभी संभव होगा जब ढाईतीन हजार की चप्पलें मेरे पैरों में आएंगी. समझे?’’
इन का जवाब सुने बिना मैं ने जोर से दरवाजा बंद किया और सोचने लगी, ‘कल ही सब से महंगे शोरूम में जा कर चप्पलें खरीदूंगी, पर इन लोगों को कैसे बताऊंगी, यह सोचविचार भी जारी है…’
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