किन्नरों की मुफ्तखोरी- क्या है किन्नरों से जुड़ा दूसरा सच

यह भी सच है ;

दिल्ली में किन्नरों की बढ़ती कमाई को देखते हुए बाहर से भी किन्नर बुलाए जाते हैं. ये किन्नर यूपी, बिहार और राजस्थान से आते हैं.

कमाई के हिसाब से चौराहों की भी ग्रेडिंग की हुई है.

किन्नर अपनी कमाई का एक हिस्सा पुलिस को भी देते हैं.

बढ़ती कमाई के कारण कई बार जबरन किन्नर बनाए जाने की घटनाएं भी सामने आती हैं.

बहुत से किन्नर गलत धंधों से भी पैसा कमा रहे हैं.

भारत में साल 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने इन्हें सरकारी दस्तावेज़ों में बाक़ायदा थर्ड जेंडर के तौर पर एक पहचान दी है. ये सरकारी नौकरियों में जगह पा सकते हैं. स्कूल- कॉलेज में जा कर पढ़ाई भी कर सकते हैं. उन्हें वही अधिकार दिए गए हैं जो किसी भी भारतीय नागरिक के हैं.

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किन्नरों से जुड़ी कुछ बेसिरपैर की मान्यताएं

ऐसा माना जाता है कि अगर आप काफी समय से धन की कमी से जूझ रहे हों तो किन्नरों से एक सिक्का ले कर अपने पर्स में रख लें. ऐसा करने से आप को फिर धन की कमी नहीं होगी. यदि कुंडली में बुध गृह कमजोर हो तो किसी किन्नर को हरे रंग की चूड़ियां व साड़ी दान करनी चाहिए. इस से अवश्य फायदा होता है. इस तरह की मान्यताएं समाज में अस्थिरता फैलाती हैं.

हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार किन्नर बुध ग्रह का प्रतीक होते हैं. ऐसा माना जाता है कि किन्नर बुध ग्रह को शांत करते हैं. इसलिए अगर किसी जातक को बुधवार के दिन ये आशीर्वाद दे दें तो उस की किस्मत खुल जाती है.

माना जाता है कि ये अगर खुश हो कर दुआ देते हैं तो उन्हें पूरा होने में थोड़ा भी समय नहीं लगता है. लेकिन अगर ये गुस्से में कुछ कहे तो सब कुछ खत्म हो जाता है.

मान्यता है कि अगर धन में कमी हो रही है तो किसी किन्नर से एक रुपया ले कर अपने पर्स में रखने या फिर उस सिक्के को किसी कपड़े में बांध कर तिजोरी में रखने से धन की कमी नहीं रहती.

किन्नरों को दान करने की प्रथा बहुत पुराने जमाने से है. जब भी घर में कोई अच्छा काम होता है तो किन्नरों का आना और उन का दुआएं देना बहुत अच्छा माना जाता है. इसीलिए लोग कभी भी किन्नर को खाली हाथ वापस नहीं भेजते.

माना जाता है कि अगर बुरा समय चल रहा है तो किन्नर को पूजा की सुपारी सिक्के के ऊपर रख कर दान करने से बुरा समय खत्म हो जाता है.

विवाहित जीवन में दिक्कतें हैं तो किन्नरों को सुहाग की चीजें जैसे कि हरी चूड़िया, लाल साड़ी, कुककुम, लिपस्टिक आदि दान में देने से समस्या का समाधान होता है.

मानसिकता में बदलाव जरुरी

वास्तव में हिजड़ों को इस तरह रुपएपैसे और वस्तुएं देने का मतलब इन की अकर्मण्यता को बढ़ावा देना है. जरुरी है कि हम लोगों की मानसिकता में बदलाव लाएं. बहुत से किन्नर ऐसे भी हैं जो पढ़ाईलिखाई कर ऊंचे ओहदों तक पहुंचे है. मगर ऐसे किन्नरों की संख्या काफी कम है.

जब तक समाज निठल्लों को बैठेबिठाये खिलाता रहेगा तब तक इस तरह के लोग पनपते रहेंगे. ऐसा नहीं कि इन का शरीर अशक्त है , ये देख नहीं सकते या चल नहीं सकते. ये पूरी तरह स्वस्थ और मजबूत होते हैं. महज एक अंग की आकृति दूसरों से भिन्न होने का मतलब यह नहीं कि हम इन्हें सिर पर बिठा ले , इन्हे मुफ्त की रोटियां तोड़ने को बढ़ावा दे या फिर इन की बदतमीजी और दादागिरी सहते रहे, इन के चरणों में झुक जाए या अपनी मेहनत की कमाई इन पर लुटाते रहे.

भारत में इस तरह की रूढ़िवादी सोचो का ही नतीजा है कि करीब एकचौथाई आबादी दूसरों पर परजीवी की तरह जीने की आदी हो चुकी है. एक तरफ पंडेपुजारियों ने धर्म की दुकानें खोल रखी है और धार्मिक चोंचलों के जरिए लोगों से रूपए ठगते हैं तो दूसरी तरफ भिखारी और हिजड़ों की पूरी जमात निठल्ले घूमते हुए अपनी जिंदगी गुजार देती है.

ये चाहे तो क्या नहीं कर सकते ? प्रकृति ने उन्हें जननांग छोड़ कर सब कुछ दुरुस्त दिया है. ये देख सकते हैं, सुन सकते हैं, पढ़लिख सकते हैं, मेहनत कर के रोजीरोटी कमा सकते हैं मगर नहीं. जब भारत की बेवकूफ जनता इतनी इज्जत के साथ इन्हें मुफ्त की रोटियां खिला रही है तो भला ये अपने हाथपैर हिलाने का कष्ट क्यों करेंगे ? ज्यादातर किन्नर या तो भीख मांगते हैं या फिर वैश्यावृति के पेशे में उतर जाते हैं.

सोच बदलनी जरूरी

राजधानी दिल्ली में रहने वाली 56 वर्षीया मीता कहती हैं, “हमारे एक परिचित सज्जन है जो काफी धनाढ्य परिवार से ताल्लुक रखते हैं. उन के पास धनदौलत की कोई कमी नहीं. मगर वे हिजड़ों, भिखारियों और पंडेपुजारियों की मुफ्तखोरी को ले कर काफी रुष्ट रहते हैं. वे कभी भी पूजापाठ, शुभअशुभ, ग्रहनक्षत्रों या पापपुण्ड्य के चक्कर में नहीं पड़ते. मेहनत से अपना काम करते हैं और चिंतारहित खुशहाल जिंदगी जीते हैं. अपने बच्चों को भी उन्होंने यही शिक्षा दे रखी है.

“एकबार उन की पौत्री की शादी के दौरान मैं उन के पास ही बैठी थी. कहीं से हिजड़ों को इस शादी की खबर लग गई और वे दलबल के साथ आ धमके. लोगों को लगा कि आज के दिन तो यह मना नहीं कर पाएंगे और हिजड़ो के हाथ में खुशी से कुछ रखेंगे. आखिर बिटिया के जीवन का सवाल है. पर मैं यह देख कर चकित रह गई जब वह हौले से मंदमंद मुस्कुराते हुए उठे और हिजड़ो के पास जा कर सहज स्वर में बोले,

“भाई न तो हमें तुम्हारी दुआओं से फर्क पड़ता है और न बददुआओं से. इसलिए बेहतर होगा कि कहीं और शिकारी ढूंढो. हमें आप की जरूरत नहीं है.”

हिजड़ों का मुखिया अवाक नजरों इन्हें देखता रहा फिर भुनभुनाता हुआ अपने काफिले को ले कर चला गया. आज बच्ची की शादी के 5 साल गुजर चुके हैं. उन का पूरा परिवार खुशहाल जिंदगी जी रहा है. मैं भी उन से काफी प्रभावित रहने लगी हूं और मैं ने भी अपने घर में हिजड़ों और भिखारियों का प्रवेश निषिद्ध कर रखा है.”

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इस तरह के लोग समाज को बदलने का दायित्व निभा सकते हैं. वर्षों से जकड़ी पुरातन सोच को जड़ से मिटाना मुश्किल है पर नामुमकिन नहीं. धीरेधीरे यदि कुछ लोग समाज के सामने उदाहरण पेश करें और मानसिकता बदले तो संभव है कि एक दिन हमारा समाज हिजड़ो के चंगुल से पूरी तरह मुक्त हो सकेगा.

जब पीछा छुड़ाना हो हिजड़ों और किन्नरों से

हेल्पलाइन -ट्रेन में किन्नरों का पैसे मांगना गैरकानूनी है. रेलयात्रा के दौरान किन्नरों के गलत व्यवहार का सामना करना पड़े तो शिकायत इस पते पर करें : जनरल मैनेजर, नॉर्दर्न रेलवे हेडक्वार्टर, बड़ौदा हाउस, नई दिल्ली-110001, फोन 011-2338 7227, फैक्स : 011-2338 4548

किन्नरों की बदसलूकी से तुरंत निजात पाने के लिए पुलिस कंट्रोल रूम नंबर 100 या फिर लोकल पुलिस स्टेशन से संपर्क कर सकते

किन्नरों की मुफ्तखोरी

कुछ दिन पहले सपना के यहां बच्चे की छठी का अवसर था. वहां बड़ी धूमधाम से सारे काम निबटाये जा रहे थे. ख़ुशी भरा माहौल था. खानेपीने का भी अच्छा प्रबंध था. तभी धूमधड़ाके के साथ हिज़ड़ों का समूह आ धमका. तालियां बजाते हुए उन्होंने बच्चे के दादा और घरवालों को घेर लिया. अपनी क्षमता के हिसाब से कहीं ज्यादा रकम उन लोगों ने हिजड़ों के हाथों में थमा दिया और बच्चे के सर पर हाथ फेरने का आग्रह करने लगे. मगर हिजड़े जिद पर अड़ गए कि कम से कम 50 हज़ार और दो.

सपना के पति ने हाथ जोड़ दिए मगर तब तक उस के ससुर दौडतेभागते कहीं से रूपए लाने चले गए. इतने समय में ही हिज़ड़ों ने अपनी जात दिखानी शुरू कर दी. वे ऐसा बर्ताव करने लगे जैसे वे लोग रूपए उगाहने आये हों और मनमाफिक रूपए न मिलने पर तेवर दिखाना उन का अधिकार हो. यही नहीं उन्होंने यह चेतावनी भी दे डाली कि वे बददुआ दे देंगे. सारी खुशियां जल कर भस्म हो जाएंगी. घर वाले हाथ जोड़े गिड़गिड़ा रहे थे कि बख्स दो. ऐसा न करो.

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बच्चे के दादा हैरानपरेशान से आये और उन्होंने 50 हजार की गड्डी हिजड़ों के मुखिया के हाथों पर रख दी. उस का चेहरा खिल गया और शब्दों का चोला बदल गया. वह बड़े प्यार से बच्चे के सर पर हाथ फिराने लगा,  ‘तेरा बेटा खूब पढ़ेगा, अफसर बनेगा, माँबाप की खूब सेवा करेगा. जा खुश रह. हम चलते हैं”, कह कर वे आँखों से ओझल हो गए. बूढ़े दादा की आँखें ख़ुशी से छलछला उठीं. आँखों में कृतज्ञता के भाव लिए उन्होंने हिज़ड़ों को विदा किया.

सवाल उठता है कि आखिर इन हिजड़ों से इतना डरने की क्या बात है. उन की बददुआ से इतना भयभीत होने की क्या जरुरत? समारोह में आये हजारों लोगों ने जब बच्चे के सुंदर भविष्य की कामना की, आशीर्वाद दिये तो 4 -5 हिजड़ों के श्राप से डरना कैसा? कोई उन्हें कुछ रूपए भी भला क्यों दे? घर में बच्चे ने जन्म लिया तो खुशियां मना रहे हैं. ये हिजड़े भला कौन होते हैं रंग में भंग डालने वाले? आखिर बिना किसी श्रम के उन्हें रूपए पाने का हक़ किस ने दे दिया?

क्या इन हिजड़ों के कहने भर से बच्चा अफसर बन जाएगा और माँबाप को निहाल कर देगा? क्या बच्चे का भविष्य हिजड़ों के शब्दों पर निर्भर है? वस्तुतः यह सब बेमतलब की बातें हैं. आज से 30 साल बाद क्या होगा यह देखने के लिए शायद बच्चे के दादा जीवित भी न बचें मगर मन को संतुष्टि देने के लिए इस तरह के अंधविश्वासों को हवा जरूर मिलती है.

समाज का तानाबाना मर्द और औरत से मिल कर बना है. लेकिन एक तीसरा जेंडर भी हमारे समाज का हिस्सा है. इस की पहचान कुछ ऐसी है जिसे सभ्य समाज में अच्छी नज़र से नहीं देखा जाता. समाज के इस वर्ग को थर्ड जेंडर, किन्नर या हिजड़े के नाम से जाना जाता है.

इन के कई नाम होते हैं. किन्नर, हिजड़ा और न जाने क्याक्या कहा जाता है. हमारे देश में इस समय 5 लाख से ज्यादा किन्नर रहते हैं. 2014 से इन को समाज में थर्ड जेंडर की श्रेणी में गिना जाने लगा. इस से पहले इन की न तो कोई पहचान थी और न ही कोई अधिकार. अभी भी इन के बलात्कार को हमारा कानून बलात्कार नहीं मानता.

क्यों डरते हैं लोग

ट्रैफिक पर जैसे ही बत्ती लाल होती है हाथ पसारे, तालियां बजाते हिजड़े जरूर आ धमकते है. भीख मांगने के इस पॉलिशड तरीके में वे दीनहीन बन कर रूपए नहीं मांगते बल्कि दादागिरी दिखा कर मांगते हैं. जबरदस्ती रूपए निकलवाते हैं. इंडिया गेट हो या सेंट्रल पार्क, बुद्धा जयंती पार्क हो या फिर कोई चौराहा, किन्नर हर जगह पैसे मांगते नजर आ जाएंगे. अगर किसी ने पैसे देने में आनाकानी की तो वे मूड खराब कर डालेंगे. शादी व बच्चे के जन्म पर घर में आने वाले किन्नरों की भी यही हालत है. आम आदमी इन के मांगने का ज़्यादा विरोध नहीं करता और चुपचाप पैसे निकाल कर इन के हाथों में पकड़ा देता है.

ऐसा करने के पीछे वजह वही डर है, हिज़ड़ों की बददुआ का डर. साथ ही सदियों से मन में बिठाया गया अन्धविश्वास. इस के पीछे एक मनोवैज्ञानिक कारण भी है वो यह कि किन्नरों की जब हम कोई बात नही मानते है तो वे लोगो को अपने गुप्तांगो को दिखाने का प्रयास करते है. उन की अप्राकृतिक बनावट के कारण लोगो का मन खराब हो जाता है. जिस का मनोवैज्ञानिक असर कही न कही लोगों की निजी जिंदगी पर भी पड़ता है.

मुफ्तखोरी की आदत

सवाल उठता है कि अगर व्यक्ति अपना लिंग बदलना चाहता है या जन्म से ही उस के साथ इस तरह की शारीरिक कमी है तो इस का मतलब यह तो नहीं कि उस को यह अधिकार मिल गया कि वह मेहनत करना छोड़ दे. शरीफ लोगो को सार्वजानिक स्थलों पर पैसे न देने के नाम पर प्राइवेट जगहों पर हाथ लगाने, बददुआ देने या गालीगलौच करने का काम करे. जबरदस्ती रूपए वसूले.

इस तरह के लोग विदेशों में भी होते हैं मगर वहां तो ये ऐसे निठल्ले और बदतमीज नहीं होते. वे किसी के आगे हाथ भी नहीं फैलातें. उन मुकामों तक पहुंच कर दिखातें है जहाँ कोई मर्द भी नहीं पहुंच पाता. हिज़ड़ा होने का मतलब यह नहीं कि उन्हें ज़िन्दगी भर काम से आज़ादी मिल गयी है और वे जो चाहे वह कर सकतें हैं.

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1. हिन्दू मान्यताओं के अनुसार, वीर्य यानी स्पर्म की अधिकता से बेटा होता है और रज यानि रक्त की अधिकता से बेटी. अगर रक्त और वीर्य दोनों बराबर रहें तो किन्नर पैदा होते हैं. ऐसा भी माना जाता है कि ब्रह्माजी की छाया से किन्नरों की उत्पत्ति हुई है. दूसरी मान्यता यह है कि अरिष्टा और कश्यप ऋषि से किन्नरों की उत्पति हुई है.

2. इन का इतिहास बहुत पुराना है. इन का जिक्र महाभारत और उस,के बाद मुगलों की कहानियों में भी हैं.

3. ये ख़ुद को मंगलमुखी मानते हैं इसलिए ये लोग शादी, जन्म समारोह जैसे मांगलिक कामों में ही भाग लेते हैं. मरने के बाद भी ये लोग मातम नहीं मनाते बल्कि खुश होते हैं कि इस जन्म से पीछा छूट गया.

4. इन के समाज में नए सदस्य का आना कई तरीकों से होता है. अगर किसी के घर बच्चा पैदा होता है और उस बच्चे के जननांग में कोई कमी पायी जाती है तो उसे किन्नरों के हवाले कर दिया जाता है.

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