म्युकोर मायकोसिस का समय रहते करवाएं इलाज 

कोविड की दूसरी वेव बढ़ते संक्रमण और अपनों के मृत्यु के बीच लोग म्युकोर मायकोसिस यानि ब्लैक फंगस से परेशान है. ये बीमारी पोस्ट कोविड में अधिकतर हो रही है, जिसका इलाज़ काफी महंगा होता है. म्युकोर मायकोसिस उन लोगों को अधिक होता है, जो किसी गंभीर बीमारी से पीड़ित है, जिसमें उनकी इम्युनिटी कमजोर हो जाती है, मसलन अनकंट्रोल्ड डायबिटीज, कैंसर के मरीज आदि. इस बारें में  पुणे के अपोलो स्पेक्ट्रा हॉस्पिटल के ईएनटी सर्जन डॉ. अलकेश ओसवाल कहते है कि ब्लैक फंगस रेयर बीमारी के अंतर्गत गिना जाता है, लेकिन कोविड के बाद ये बीमारी बढ़ी है. ये बीमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता के कम होने की वजह से ही फैलता है. ये बीमारी नई नहीं, बहुत पहले से चली आ रही है, पहले साल में 8 से 10 मरीज बड़े अस्पताल में इलाज के लिए आते रहे है. अब ये अचानक कोविड की दूसरी लहर के बाद बहुत बढ़ चुकी है. ये कोविड के मरीज को 10 दिनों के बाद से 40 दिनों तक कभी भी हो सकता है. ये अभी तक अनकंट्रोल्ड डायबेटिक पेशेंट में देखा गया है.

क्या है म्युकोर मायकोसिस ( ब्लैक फंगस )

असल में ये एक फंगल इन्फेक्शन है. ये फंगस आसपास के वातावरण में होता है, मसलन  मिट्टी, पेड़ पौधों, हवा , मृत जानवरों आदि में होता है और हवा के द्वारा नाक के अंदर साइनस में ये फंगस त्वचा से चिपक जाता है. अधिकतर लोगों को इसकी कोई तकलीफ महसूस नहीं होती, लेकिन कुछ लोगों को, जिनमें खासकर इम्यूनोकोम्प्रोमाइज वाले मरीज होते है. ये अधिकतर कैंसर के मरीज, जिसका कीमोथेरेपी चल रहा हो, अनकंट्रोल्ड डायबिटीज, किडनी या लंग्स ट्रांसप्लांट किया गया हो. ऐसे मरीजों की इम्युनिटी कम होती है और फंगस को फैलने का अवसर आसानी से मिल जाता है. ये ऑपरचुनिटी वाला फंगस है. इसलिए ये नाक के द्वारा साइनस से होते हुए आँख या जबड़े में पहुँच जाता है. अगर ध्यान न दिया गया हो तो ये आगे मस्तिष्क तक भी पहुँच सकता है.

लक्षण  

इस बीमारी में किसी प्रकार का लक्षण नहीं होता, ऐसे में इसे पता लगाना मुश्किल होता है. कभी- कभी ये नाक से अपने आप हट भी जाती है. कोविड महामारी एक नया इन्फेक्शन है, जिसकी वजह से व्यक्ति में इम्युनिटी कम हो जाती है और व्यक्ति इसका शिकार बन जाता है, लेकिन घबराने की बात नहीं, क्योंकि डायबिटीज के मरीज को जब कोविड इन्फेक्शन होता है, तो उसका शुगर लेवल बढ़ जाता है और उसकी इम्युनिटी कम हो जाती है, साथ ही कोविड के लिए दिए गए स्टेरॉयड के इंजेक्शन से शुगर लेवल कम हो जाता है. यहाँ शुगर को बार-बार कंट्रोल में रखना पड़ता है. यही वजह है कि अधिकतर पेशेंट अनकंट्रोल्ड शुगर लेवल वालों में ही पाया गया है. उन लोगों में ये फंगस बहुत जल्दी फैलने लगता है.

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इसके अलावा ये बीमारी अधिकतर गांवों में देखी जाती है, क्योंकि वहां लोग गन्दी जगह और मिट्टी में काम करते है, जब तक उन्हें इम्यूनोकोम्प्रोमाईज़ की शिकायत नहीं होती, ये बीमारी फ़ैल नहीं सकती.

इलाज 

इसके आगे डॉ. अलकेश कहते है कि मेरे पास जो रोगी म्युकोर मायकोसिस का आया था, उसको कोविड ठीक होने के थोड़े दिनों बाद हुआ था. कुछ रोगी ऐसे है, जिनको कोविड इन्फेक्शन शुरू होने के साथ-साथ ही म्युकर मायकोसिस शुरू हो गया था. मैंने अधिकतर मरीज कोविड से रिकवर होने के बाद देखे है. इसमें मरीज की आँखों के नीचे लाल और सूजन आ गयी थी, साथ ही उसी तरफ के नाक भी ब्लाक हो गए थे. मुझे पता लग गया था कि ये म्युकोर मायकोसिस का केस है. इलाज के लिए इसमें पहले दूरबीन से उसकी जांच की जाती है, जिसमे बायेप्सी कर इस बीमारी को कन्फर्म किया जाता है. संदेह होने पर एम्आरआई भी करवाना पड़ता है. इस मरीज का म्युकोरमायकोसिस मस्तिष्क तक पहुँच चुका था. मैंने दूरबीन की सहायता से आँखों के नीचे से फंगस को साफ़ किया, जिससे उसे बहुत आराम हुआ है.

साधारणत: म्युकोरमायकोसिस का इलाज 3 तरह से किया जाता है,

  • प्रिवेंशन यानि बीमारी हो ही नहीं, इसके लिए हाई रिस्क वाले मरीज को खोजना पड़ता है और काफी सोच विचार कर उसका इलाज किया जाता है,
  • कोविड से संक्रमित डायबिटीज के मरीज को डॉक्टर की सलाह से दवाई, स्टेरॉयड के इंजेक्शन आदि लेना पड़ता है, लेकिन डर इस बात से है कि आजकल अधिकतर लोग फ़ोन से पूछकर या व्हाटसेप पर देखकर दवाई ले लेते है, जो बहुत गलत हो रहा है. डायबिटीज वाले मरीज के शुगर लेवल को लगातार मोनिटर करना पड़ता है, मसलन डाइट, दवाइयां समय से लेना और शुगर अनकंट्रोल्ड होने पर डायबेटोलोजिस्ट की भी सहायता लेने की जरुरत पडती है.
  • ब्लैक फंगस के पेशेंट को नाक की साफ़ सफाई पर बहुत अधिक ध्यान देना पड़ता है, आजकल सभी मास्क पहन रहे है, इसके अलावा जल नेती, जो सेलाइन नेजल वाश वाटर से साफ करना है, इससे अगर फंगस नाक में पहुंचा है, तो वह साफ़ हो जाता है.

इसके अलावा इसमें इलाज दो तरीके से ही की जाती है,

सर्जरी और दवाई 

सर्जरी में जितना भाग म्युकोर मायकोसिस से सड़ गया है, उसे निकलना पड़ता है, उसे सर्जिकल डीबराइडमेंट कहते है, इसमें रोगी को बीमारी एम आर आई से देखने के बाद रोगी में बीमारी जितनी फैली हो उसे निकाला जाता है. कई बार ये फंगस केवल आँखों में ही नहीं, खून में भी आ जाता है, ऐसे में उसे कंट्रोल करने के लिए दवाई दी जाती है, जो एंटी फंगल होती है.

एंटी फंगल दवाई भी दो तरह की होती है

एम्फोटेरेसिन ( Amphotericin) और पोसाकोनजोल, ( Posaconazole)  इन दो दवाइयों से इन्फेक्शन को फैलने से रोका जाता है. रोगी डॉक्टर की निगरानी में रहते है, ताकि दवा का असर देखा जा सके. कई बार दूरबीन से देखने पर अगर बीमारी फिर से आगे फ़ैल गयी हो तो वापस सर्जरी करनी पड़ती है. कई बार रोगी को एक साथ कई सर्जरी का सामना करना पड़ता है. कभी-कभी  रोगी को बुखार आना, सांस लेने में तकलीफ होता है. म्युकोर मायकोसिस मस्तिष्क और  लंग्स का भी होता है, लेकिन सबसे कॉमन ये म्युकोर मायकोसिस 80 से 85 प्रतिशत लोगों में पाया जाता है, जिसके लक्षण बाहर से ही दिखते है. इसमें जितना जल्दी आप इलाज के लिए समय देंगे, ये जल्दी ख़त्म होगा.

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करनी पड़ती है रिकंस्ट्रक्शन 

सर्जरी के द्वारा चेहरे से निकाले गए भाग को प्लास्टिक सर्जन, रिकंस्ट्रक्शन या प्रोस्थेटिक की सहायता से ओरिजिनल बना देते है. इससे मरीज हीन भावना से ग्रस्त नहीं होता. डॉक्टर आगे कहते है कि यहाँ जो दवाई किसी की जान बचाती है, लोग उसकी कालाबाजारी करने लगते है. एम्फोटेरेसिन भी ब्लैक फंगस को कंट्रोल करने लिए दी जाती है, लेकिन अब वह बाज़ार में नहीं है. जो दवा 3 से 4 हजार में मिलती थी, वह अब 8 से 10 हज़ार हो गयी है. जिनके पास पैसे है ,वो उसे खरीद लेंगे, लकिन गरीब इंसान क्या करेगा, ये सोचने वाली बात है. एक दिन में 5 डोज लगते है ऐसे में 10 हज़ार एक दवा की कीमत होने पर रोज 50 हज़ार खर्च होंगे. इसलिए मेरा कहना है कि जरुरत की दवा की कालाबाजारी न कर उसे गरीब और जरुरतमंदों तक पहुंचाएं. पहले मैंने ब्लैक फंगस के करीब एक या दो मरीज ही सरकारी अस्पतालों में देखा था, लेकिन अब संख्या बहुत है.

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सावधान! कोरोना का नया रूप, आखिर क्या है म्यूकोर माइकोसिस ?

कोरोना के कहर से पूरा देश मानो मौत के साए में है हर पल….हर जगह अस्पताल बेहाल हैं. कई अस्पतालों का ये हाल है कि वहां पर बेड नहीं मिल रहा है. दवाइयां और ऑक्सीजन के अभाव में कोरोना के मरीज पल-पल दम तोड़ रहे हैं. श्मशान में लाशों की लाइने लग रही हैं. अभी तक जो लोग कोरोना से ठीक हो रहे थें वो खुश थें कि चलो ठीक हो गए लेकिन अब ख़बर है कि शरीर से कोरोना के जाने के बाद भी इंसानों की जान जा रही है क्योंकि एक और बीमारी मरीजों के शरीर में अपनी जगह बना रही है. जिसे कोरोना का नया रूप कह सकते हैं.किसी ने सोचा भी नहीं होगा शायद कि कोरोना का कहर ऐसा होगा कि कोरोना से जंग जीतने के बाद भी इंसान ठीक नहीं होगा और मौत उसे अपने गले लगाने के लिए घात लगा कर बैठी है. कोरोना से ठीक होने के बाद भी मरीज आंख, नाक या जबड़ा गवां बैठ रहा है. यहां तक कि जिंदगी की जंग भी हार जाएगा..लेकिन दिल्ली से लेकर गुजरात तक ऐसे मामले देखने को मिल रहे हैं. अब जाहिर है कि आपके मन में ये सवाल उठ रहा होगा कि आखिर ये बला क्या है ? कौन सी बीमारी है ? जो कोरोना के जाने के बाद भी लोगों की जान ले लेता है. दरअसल इस बीमारी का नाम है “म्यूकोर माइकोसिस” जो कि बहुत ही खतरनाक साबित हो रहा है इतना ही नहीं कोरोना से ठीक हुए मरीजों की जान तक ले रहा है ये.

आखिर क्या है ये म्यूकोर माइकोसिस ?

दरअसल म्यूकोर माइकोसिस एक तरह का फंगल इन्फेक्शन है इसे ब्लैक फंगल इन्फेक्शन कहते हैं. कोरोना से जो मरीज ठीक हुए हैं उनमें ही ये इंफेक्शन पाया जा रहा है जिसके कारण डॉक्टर्स भी काफी परेशान हैं. अगर कोरोना से ठीक हुए व्यक्ति की नाक बंद रहती है, आंख या गाल में सूजन है और नाक में काली पपड़ी पड़ रही है तो इसका मतलब है कि आपको म्यूकोर माइकोसिस नाम का इंफेक्शन हो चुका है. फौरन सतर्क हो जाने वाली बात है .सीधा डॉक्टरों से संपर्क करें..क्योंकि इसके चलते आंखों में सूजन, आंखों के चिपकने की समस्या, धुंधला दिखना..और नाक में भी सूजन और तेज दर्द हो जाता है और तकलीफ इस हद तक बढ़ जाती है कि फिर ये मरीज की जान लेकर ही दम लेता है.डॉक्टरों के मुताबिक कुछ मरीजों की आंखों की रोशनी खत्म हो सकती है. नाक और जबड़े की हड्डी भी खत्म हो सकती है. ऐसे में मरीजों के जबड़े, नाक की हड्डियां, आंखें तक निकालनी पड़ जाती हैं. यहां तक कि दिमाग में म्यूकोर माइकोसिस के पहुंचने पर मरीज की मौत भी हो जाती है.

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कोरोना के साइड इफेक्ट, के कारण ये फंगल इंफेक्शन दिमाग तक पर असर करता है. एक खबर के मुताबिक अहमदाबाद सिविल अस्पताल की डॉ. बेला बेन प्रजापति ने इसके लक्षण और इससे होने वाले नुकसान के बारे में बताया.इतना ही नहीं दिल्ली में भी पिछले कुछ दिनों में ऐसे कई केस सामने आए. गुजरात में भी इस बीमारी की चपेट में कई लोग आ रहे हैं.

2 दिनों में दिल्ली में इस इंफेक्शन से पीड़ित 6 मरीजों को अस्पताल में भर्ती कराया गया. दिसंबर में भी सर गंगाराम हॉस्पिटल सहित कई अस्पतालों में कोरोना से रिकवर हुए मरीजों में म्यूकोर माइकोसिस नाम के फंगल इंफेक्शन के काफी केस देखने को मिले थे. तब इस बीमारी से कुछ मरीजों के आंखों की रोशनी भी चली गई थी और कई मरीजों की नाक और जबड़ा भी निकालना पड़ा था और अब हर स्टेट में ऐसे केस बढ़ते ही जा रहे हैं. खबरों के मुताबिक सूरत में 15 दिन के अंदर ऐसे 40 से अधिक केस सामने आए हैं. जिनमें 8 मरीजों की आंखें निकालनी पड़ी हैं.

अहमदाबाद में अब तक ऐसे 60 से ज्यादा मरीजों की पहचान की गई है. जो म्यूकोर माइकोसिस की चपेट में आ गए हैं. इनमें से 9 लोगों की मौत भी हो चुकी है और तीन की आंखों की रोशनी जा चुकी है..ऐसे 30 से ज्यादा मरीज सिविल अस्पताल में भर्ती हैं. लोगों का ये मानना है कि कोरोना की दूसरी लहर में ये बीमारी ज्यादा सामने आ रही है. डॉक्टरों की मानें तो कोरोना से ठीक होने के बाद मरीज अगर आंख दर्द, सिर दर्द और गाल के सूजन को इग्नोर करता है.तो ये लापरवाही मरीज को भारी पड़ सकती है और उसकी मौत हो सकती है.

डॉक्टर्स का कहना है कि जुकाम वगैरह होने पर जो मरीज घर में ही इलाज शुरू कर रहे हैं वो खतरनाक भी हो सकता है. ऐसा होने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करने में ही भलाई है. एक रिपोर्ट के मुताबिक म्यूकोर माइकोसिस नाम का फंगल इन्फेक्शन कोरोना ठीक होने के बाद पहले साइनस में होता है और 2 से 4 दिन में आंख तक पहुंच जाता है. इसके 24 घंटे के भीतर ये ब्रेन तक पहुंच जाता है.चूंकि साइनस और आंख के बीच हड्डी होती है. इसलिए आंख तक पहुंचने में इसे दो से ज्यादा दिन लगते हैं…आंख से ब्रेन के बीच कोई हड्डी नहीं होने से ये सीधा ब्रेन में पहुंच जाता है और आंख निकालने में देरी होने पर मरीज की मौत हो जाती है. जुकाम होने पर इसका असर कुछ इस तरह होता है कि कुछ समय बाद कफ जम जाता है और फिर नाक के पास गांठ बन जाती है.. इस गांठ का सीधा असर आंखों पर होता है, जिसके बाद आंखें चिपकने लगती हैं और सिर में तेज दर्द होने लगता है.. इसीलिए आंख, गाल में सूजन और नाक में रुकावट या नाक में काली सूखी पपड़ी पड़ने के तुरंत बाद एंटी-फंगल थैरेपी शुरू करा देना चाहिए.एक खबर के मुताबिक ….कोरोना के जो मरीज पहले से किसी न किसी बीमारी का शिकार हैं या फिर कोविड मरीजों के इलाज में अधिक स्टेरॉयड का इस्तेमाल किया जा रहा है तो इन कारणों से म्यूकोर माइकोसिस नाम का फंगल इंफेक्शन हो सकता है.. जिन कोविड मरीजों की इम्युनिटी कम है… वो सबसे ज्यादा इसकी चपेट में आ रहे हैं.. कुल मिलाकर लोगों को ज्यादा सावधान रहने की जरूरत है तभी इस कोरोना से छुटकारा मिलेगा और इस फंगल इंफेक्शन से भी.

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