वर्जिनिटी : भ्रम न पालें

किसी भी युवती के लिए पहले सैक्स के दौरान उस की वर्जिनिटी सब से ज्यादा माने रखती है. युवती की योनि के ऊपरी हिस्से में पतली झिल्ली होती है जो उस के वर्जिन होने का प्रमाण देती है, लेकिन किसी भी युवती की योनि और उस के ऊपरी सिरे में स्थित हाइमन झिल्ली को देख कर यह पता लगाना कि वह वर्जिन है कि नहीं न तो संभव है न ही ठीक. सैक्स के दौरान अकसर पार्टनर द्वारा युवती की योनि से रक्तस्राव की उम्मीद की जाती है लेकिन ज्यादातर मामलों में पाया गया है कि पहली बार सैक्स के दौरान युवती के वर्जिन होने के बावजूद उस की योनि से रक्तस्राव नहीं होता, फिर भी साथी  द्वारा यह मान लिया जाता है कि युवती पहले भी सैक्स कर चुकी है, जबकि पहली बार सैक्स के दौरान युवती की योनि से स्राव होने या न होने को उस के वर्जिन होने का सुबूत नहीं माना जा सकता, क्योंकि पहली बार में बहुत सी युवतियों को इसलिए रक्तस्राव नहीं होता, क्योंकि खेलकूद, साइकिल चलाना आदि की वजह से उन की योनि में स्थित झिल्ली कब फट जाती है उन्हें स्वयं नहीं पता चलता. इस का कारण हाइमन झिल्ली का बहुत पतला व लचीला होना है. कभीकभी युवती में जन्म के समय से ही यह झिल्ली मौजूद नहीं होती. ऐसे में पहले सैक्स के दौरान योनि से रक्तस्राव न होने के आधार पर युवती के चरित्र पर संदेह करना गलत होता है.

पहली बार सैक्स के दौरान युवक अपने साथी से उस के कुंआरी होने का सुबूत भी मांगते हैं, जबकि वह खुद के कुंआरे होने का सुबूत देना उचित नहीं समझते. इस वजह से पहला सैक्स जिसे हम वर्जिनिटी का नाम देते हैं, आगे चल कर सैक्स संबंधों में बाधा बन जाता है. युवती की वर्जिनिटी पर शक की वजह से कई तरह की गलतफहमियां जन्म लेती हैं. इस का प्रमुख कारण कुंआरेपन को ले कर लोगों से सुनीसुनाई बातें हैं.

किसी भी युवक या युवती के लिए पहली बार किए जाने वाले सैक्स का जो रोमांच होता है, उसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह एक ऐसी स्टेज है जहां युवकयुवती एकदूसरे के सामने अपने सारे कपड़े उतारने और सैक्स को ले कर होने वाली झिझक को दूर करने की शुरुआत करते हैं. यहीं से युवकयुवती के कुंआरेपन की समाप्ति होती है और यही वह स्टेज है जहां दोनों अपनी वर्जिनिटी खोते हैं.

युवती को अपने कुंआरेपन का सुबूत देने के लिए कई तरह की परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है जोकि सरासर गलत है. अगर युवती पुरुष से कुंआरे होने का सुबूत नहीं मांगती तो उसे भी चाहिए कि अपने साथी पर विश्वास करते हुए उस के कुंआरेपन पर सवाल खड़ा न करे. अकसर युवती के कुंआरेपन को ले कर घरेलू ंिहंसा व तलाक जैसी नौबत भी आ जाती है. अपने चरित्र का प्रमाण देने के लिए युवती को तमाम तरह के सुबूत पेश करने के लिए कहा जाता है.

सैक्स के दौरान वर्जिनिटी को ले कर आने वाले खून की कुछ बूंदों के प्रति पुरुषवर्ग इतना गंभीर होता है कि वह वर्षों से चले आ रहे इस दकियानूसी खयाल से बाहर आने की सोच भी नहीं सकता, जबकि अपने कुंआरेपन को गृहस्थी के बीच का मुद्दा बनाना गलत है. इसलिए युवकयुवतियों को चाहिए कि वे पहले सैक्स को यादगार बनाएं न कि वर्जिनिटी के चक्कर में पड़ कर संबंधों में दरार पैदा करें.

ये भी पढ़ें- 9 Tips: घर की सीढ़ियों का भी रखें ख्याल

प्यार और भरोसे से करें शुरुआत

नीरज की अरेंज्ड मैरिज थी, अत: वह अपनी होने वाली पत्नी से कभी मिला नहीं था. ऐसे में नीरज के दोस्त शादी की पहली रात को ले कर नीरज को तमाम तरह की सलाह देने में लगे हुए थे. उस के एक दोस्त ने कहा कि वह अपनी पत्नी के साथ पहली रात के सैक्स यानी सुहागरात में पत्नी के वर्जिन होने का पता लगाने के लिए योनि से रक्तस्राव होने पर जरूर ध्यान दे. अगर रक्तस्राव हुआ तो समझ ले कि पत्नी ने किसी के साथ सैक्स नहीं किया है, अगर नहीं हुआ तो वह पहले सैक्स कर चुकी है.

लेकिन नीरज ने दोस्त की इस बात पर ध्यान न दिया, क्योंकि वह जानता था कि पहले सैक्स में रक्तस्राव होना जरूरी नहीं. इस से यह पता चलता है कि वर्जिन होने के लिए सुबूत देने की जरूरत नहीं होती बल्कि पहली बार किए जाने वाले सैक्स की शुरुआत प्यार और भरोसे के साथ की जाए तो यह न केवल ज्यादा मजा देने वाला होता है, बल्कि इस से रिश्ता और भी गहरा व विश्वसनीय बन जाता है.

बातचीत है जरूरी

सैक्स व मनोरोग विशेषज्ञ डा. मलिक मोहम्मद अकमलुद्दीन का कहना है कि कौमार्य खोने के पहले एकदूसरे के बारे में अच्छी तरह से जान लें, क्योंकि सैक्स आनंद के लिए किया जाता है न कि भूख मिटाने के लिए. इसलिए सैक्स को मजेदार बनाने की कोशिश करें, आपस में कामुक बातचीत की शुरुआत हो और धीरेधीरे यह बातचीत शर्म से ऊपर उठ कर सैक्स संबंध के रूप में आगे बढे़. इस तरह सैक्स का मजा दोगुना हो जाता है और पतिपत्नी के बीच शर्म का परदा भी उठ जाता है.

पहले सैक्स को ज्यादा मजेदार व यादगार बनाने के लिए वर्जिनिटी जैसे दकियानूसी खयाल से ऊपर उठ कर शारीरिक व मानसिक संतुष्टि को ज्यादा महत्त्व देना चाहिए. इस के अलावा किसी तरह की अजीबोगरीब उम्मीदें नहीं पालनी चाहिए जिन से जीवन साथी को किसी तरह की ठेस पहुंचे.

कैसी प्रेमिका की चाहत

एक सर्वे के अनुसार 51% युवा प्रेमियों को प्रेमिका की ब्यूटी, 36% को ब्रेन और 15% को प्रेमिका की ब्यूटी विद ब्रेन दोनों का कौंबिनेशन प्रभावित करता है.

प्रेमी प्रेमिका की तरह अपनी पसंद और नापसंद के आधार पर प्रेमिका को चुनते हैं.

आइए जानें वे क्या पसंद करते हैं अपनी प्रेमिका में :

–       युवा प्रेमी को साफसफाई का खयाल रखने वाली प्रेमिका अधिक पसंद आती है.

–       युवा प्रेमी को प्रेमिका की बौडी लैंग्वेज, बाल, आंखें, मुसकराहट भी अपनी ओर आकर्षित करती है.

–       युवा प्रेमी बहुत होनहार प्रेमिका की चाहत नहीं रखते बल्कि उन्हें हर सामान्य कार्य में रुचि रखने वाली प्रेमिका ज्यादा पसंद आती है.

–       51% युवाओं का मानना है कि उन्हें प्रेमिका की खूबसूरती के अलावा उस का केयरिंग नेचर बहुत प्रभावित करता है.

–       आत्मविश्वासी प्रेमिका युवा प्रेमी को ज्यादा पसंद आती है.

–       अकसर युवक ऐसी प्रेमिका को पसंद करते हैं जो अपना अधिकांश समय उन्हें ही दे.

–       बातबात पर इमोशनल होने वाली पे्रमिका से वे दूरी बनाने में ही भलाई समझते हैं.

–       युवा प्रेमी अकसर ऐसी प्रेमिका चाहते हैं, जो सैक्सी और कौपरेट करती हो.

– रुचि सिंह

ये भी पढ़ें- Married Life में इसकी हो नो ऐंट्री

वर्जिनिटी शरीर की नहीं ग्रसित मानसिकता की उपज

इस साल जनवरी में मेरा रिश्तेदार की शादी में गुजरात जाना हुआ. वहां जाने के लिए मैंने हमेशा की तरह ट्रेन का सफ़र चुना. ट्रेन का सफ़र मुझे हमेशा रोमांचित करता है खासकर तब जब नयी जगह जाना हो. सरसराती हवाएं, दूर दूर तक खेतों में पड़ती नजर, उगता-डूबता सूरज यह सब चीजें अच्छा अनुभव कराती हैं. ट्रेन ने जैसे ही दिल्ली पार की तो मैंने सफ़र में समय काटने के लिए जेन ऑस्टिन की चर्चित नॉवेल प्राइड एंड प्रेज्यूडिस पढने के लिए निकाली. जैसे ही कुछ देर तक पढ़ा, कि सामने वाली सीट पर दो लड़के, यूँही कोई 20-22 के करीब, आपस में बात कर रहे थे और उनकी आवाज मेरे कानों तक आने लगी. उनकी बातों में प्रमुखता से सेक्स, ठरक, वर्जिनिटी वे कुछ शब्द थे जो किताब से मेरा ध्यान हटा रहे थे.

एक लड़का दुसरे को कहता “शादी ऐसी लड़की से होनी चाहिए जो वर्जिन हो. इससे लड़की की लोयालिटी का पता चलता है कि वह आपके प्रति कितनी ईमानदार रहेगी. फिर ‘माल’ भी तो नया रहता है.” फिर इसी बात को और भी लम्पटई शब्दों में दूसरा लड़का विस्तार देने लगा. उन दोनों की बातों में वह सब चीजें थी जो उस उम्र के युवा किसी लड़की के योवन को लेकर अनंत कल्पनाओं में बह जाते हैं. खैर, उनकी सेक्स को लेकर चल रही अधकचरी समझ मुझे इतनी समस्या में नहीं डाल रही थी, जितनी इस जेनरेशन के लड़कों में आज भी खुद के लिए तमाम आजाद यौनिक इच्छाओं और महिलाओं की योनिकता पर नियंत्रण रखने वाली पुरानी सोच से समस्या लग रही थी. यह सब उसी प्रकार से था, कि लड़का आजादी से अपनी सेक्सुअल प्लेजर का शुरू से मजा ले लेना चाहता है जिसके बारे में बताते हुए वह प्राउड महसूस भी करता है और उसके साथ उठने बैठने वाले उसके साथी उसे स्टड, प्ले बॉय का टेग लगा कर प्रोत्साहन करते हैं, वहीँ लड़की अगर किसी लड़के के साथ उठती बैठती है तो उसे रंडी, या स्लट कह देते हैं.

“पढ़ालिखा” समाज

हमारे देश में आज भी लड़का या उसका परिवार शादी करने से पहले इस बात को लेकर संतुष्ट होना चाहता है कि लड़की वर्जिन अथवा कथित तौर पर ‘पवित्र’ हो. ऐसा नहीं है कि यह कोई गाये बगाहे आया मामला है, इस प्रकार के अनेकों उदाहरण मिल जाते हैं, जहां पढ़े-लिखे होने के बावजूद भी ज्यादातर लड़के वर्जिन दुल्हन ही तलाशते हैं. तमाम मेट्रोमोनिअल साइटों पर सीधे सीधे वर्जिन या कुंवारी कन्या का ख़ासा विवरण वाला कालम होता है जिसे खासकर अखबार या सोशल मीडिया पर पढने वाला तबका बड़े चाव से देखता भी है.

पिछले साल की बात है कलकत्ता में कनक सरकार नाम के 20 साल से कार्यरत एक सीनियर प्रोफेसर ने फेसबुक में एक पोस्ट डाली जिसमें उन्होंने शादी के लिए वर्जिन दुल्हन को शादी के लिए जस्टिफाई किया था जिसकी तुलना उन्होंने कोल्ड्रिंक की बोतल और बिस्किट की पैकेट से किया था. उन्होंने लिखा “वर्जिन ब्राइड- क्यों नहीं? वर्जिन लड़की सील लगी बोतल या पैकेट की तरह होती है. क्या तुम सील टूटी बोतल या पैकेट खरीदना चाहोगे? नहीं न.” पोस्ट में आगे उन्होंने लिखा “वर्जिन लड़की अपने भीतर वैल्यू, कल्चर, सेक्सुअल हाय्जीन समेटे रखती है. वर्जिन लड़की का मतलब घर में परि होने का एहसास है.” यानी उन्होंने किसी लड़की की तुलना बड़े शर्मनाक तरीके से बेजान बोतल और बिस्किट के पैकेट से कर दी.

ये भी पढ़ें- जैसे लोग वैसा शासक

इसी तरह नासिक से भी ऐसी घटना सामने आई थी जब एक दुल्हे को संदेह हुआ कि उसकी पत्नी वर्जिन नहीं है उसने टेस्ट कराया और इस कारण उसने अपनी पत्नी को ही छोड़ दिया. आज भी अगर आम सर्वे करवा दिया जाए तो यह दावे के साथ कहा जा सकता है कि अधिकतर लड़के अपनी पत्नी के रूप में ऐसी दुल्हन चाहेंगे जिसका हाय्मन यानी झिल्ली टूटी नहीं हो. आज भी ग्रामीण इलाकों के बड़े हिस्से में वर्जिनिटी टेस्ट कराने पर विश्वास किया जाता है. जिसके तमाम उदाहरण हमारे आसपास दिखाई दे जाते हैं, या खुद में भी.

रस्में रिवाज की जड़ें

ऐसा इसलिए होता है क्योंकि वर्जिनिटी को महिला योग्यता में सबसे सम्पूर्ण देखा जाता है. इसका सीधा जुड़ाव शुद्धता से समझा जाता है. ऐसी विकृति घर से ही शुरू हो जाती है जब घर में बड़े लोग घर की बेटी को सलीके से रहने की ट्रेनिंग दे रहे होते हैं. जहां माँबाप बातबात पर बेटी को ‘नाक न कटाने’ के लिए अपील करते रहते है जिसका मतलब घर की इज्जत से होता है और घर की इज्जत तो लड़की की वेजाइना में ही समाई होती है. इसके लिए कई तरह की रोकाटाकी कि कपडे ठीक से पहनो, छाती पर चुन्नी ओढो, ज्यादा हंसो मत, बाहर मत घूमों इत्यादि सिर्फ इसलिए ही होता है कि उसकी तथाकथित वर्जिनिटी को बचाया जा सके. महिलाओं से एस्पेक्ट किया जाता है कि अगर वह अच्छी लड़की बनना चाहती है तो उन्हें शादी तक वर्जिन रहना ही पड़ेगा. जाहिर सी बात है हम पुरुष प्रधान समाज में रहते हैं. जहां महिला को संपत्ति के तौर पर देखा जाता है. जहां दूल्हा शादी के दिन दुल्हन के गले में सिन्दूर या मंगलशूत्र ही इसलिए बांधता है ताकि आधिकारिक तौर पर क्लेम कर सके कि उसके शरीर पर सिर्फ उसी का हक है.

शादी वाली रात लड़कियों से उम्मीद लगाईं जाती है कि उसी रात उसकी झिल्ली टूटेगी और वेजाइना से खून गिरेगा. इसे लड़की की इमानदारी, आचरण, चालचलन, और घर की परवरिश के तौर पर समझा जाता है. जिसका पता लगाने के लिए आज भी कई तरह की अवैज्ञानिक और अतार्किक रस्में प्रैक्टिस में लायी जाती हैं. जैंसे- ‘पानी की धीज’, जिसमें लड़की को सांस रोक कर पानी में तब तक डुबाए रखा जाता है जब तक पति द्वारा 100 कदम न पुरे हो जाएं. उसी प्रकार, कुछ इलाकों में ‘अग्निपरीक्षा’ की रस्म होती है जिसमें गरम जलते रोड को हाथ में रखना पड़ता है. अगर कोई इसे करने में असफल हो जाए तो उससे जबरन उसके कथित पार्टनर के नाम की उगलवाते हैं और उस लड़के या लड़की के परिवार वालों से पैसों की भरपाई की जाती है.

ऐसे ही एक रस्म होती है ‘कुकरी की रस्म’, जिसमें सुहागरात वाले दिन बेड पर सफ़ेद चादर बिछाई जाती है. अगले दिन घर के बड़े सदस्य आकर चादर में लगे खून के दाग देख कर लड़की के वर्जिन होने का विश्वास हांसिल कर पाते हैं. ऐसे ही एक और आम रस्म जिसे टूफिंगर के नाम से भी जाना जाता है. जिसमें गांव की दाई या घर की कोई बड़ी महिला लड़की की वेजाइना में ऊँगली फेर कर अंग के कसावट अथवा झिल्ली की जांच करती है. आमतौर पर टूफिंगर का तरीका रेप विक्टिम की जांच के लिए यूज़ किया जाता था जिसकी आलोचना ह्यूमन राईट एक्टिविस्ट ने की थी और सुप्रीम कोर्ट ने भी 2013 में इस पर आपत्ति जताते हुए अवैज्ञानिक कहा था. इसी प्रकार गुजरात हाई कोर्ट ने भी इसे लेकर विशेष टिप्पणी की थी जिसमें इस टेस्ट को रेप विक्टिम की अधिकारों का हनन मन गया.

धर्मपाखंड का बुना जाल

किन्तु ऐसा नहीं कि महिला के खिलाफ इस प्रकार की रस्में यूँही बनती चली गई, बल्कि इसके पीछे धर्मकर्म के पाखण्ड ने जितना योगदान दिया उतना शायद ही किसी और चीज ने दिया होगा. साल 2014 में दिल्ली सेशन कोर्ट के न्यायधीश ने अपने जजमेंट में कहा था कि “विवाह्पूर्ण यौन संबंध अनैतिक है और हर ‘धर्म के सिद्धांत’ के खिलाफ है.” इससे दो बात जाहिर हुई, एक यह कि कोर्ट के जज इतने जिम्मेदार पद पर बैठ कर पाखंड और पिछड़ेपन की गवाही दे रहे थे. दूसरा यह कि विवाह से पहले स्वेच्छा से किये जाने वाले यौन संबंधो पर धर्म ने हमेशा कड़ी प्रतिक्रिया जाहिर की है.

वहीँ, महिला पवित्रता या इमानदारी को अगर नंगी आंखो से समझना हो तो देश में कथित तौर पर पुरुषों में उत्तम की संज्ञा दिए जाने वाले भगवान राम के कृत्य से समझा जा सकता है जब रावण के कब्जे से छूटने के बाद भगवान् राम के कहने पर माता सीता तक को अपनी पतिव्रता की पवित्रता साबित करने के लिए अग्नि परीक्षा देनी पड़ी थी. जिसका गुणगान मौजूदा समय में भी बड़े उत्साह से किया जाता है. वहीँ अनुसूया को इसी पतिव्रता को साबित करने के लिए तीनों लोकों के महादेवों के सामने सशर्त नग्न अवस्था में आना पड़ा. भारत में तमाम ग्रन्थ महिला को पुरुष के अधीन कब्जे में रखे जाने की बात खुल्लम खुल्ला करते हैं. जिसे यदा कदा पढ़ समझ या पंडितों से सुन कर आम लोग अपने जीवन में में उतारते हैं.

भारत में सत्यार्थ प्रकाश लिखने वाले दयानंद सरस्वती जिन्हें आर्य समाज का जन्मदाता कहा जाता है उन्होंने अपनी किताबी के चतुर्थ समुल्यास में विधवा विवाह पर रोक लगाए रखने के लिए महिला शुद्धता के तमाम कुतर्क प्रस्तुत करने की कोशिश की. जिसमें मनु, वेदों के रेफरेन्सेस को ख़ास तौर पर शामिल किया गया. यही सब कारण भी थे कि पुराने समय में ऐसी प्रथाए प्रैक्टिस में लाइ गई जिसमें विधवा महिला को सती कर दिया, बालिका विवाह कर दिया, पढने से रोका गया, बाहर काम करने वाली को कुलटा कहा गया इत्यादि.

इसी प्रकार तमाम धर्म चाहे वह इसाई हो या इस्लाम सबमें महिला की पवित्रता से जुडी बातें देखने को मिल जाएंगी. बाइबल कहता है “दुल्हे को यदि संदेह होता है कि उसकी दुल्हन वर्जिन नहीं है तो वह उसे उसके पिता की चौखट पर जबरन खींच कर लेकर जा सकता है. और उसे पत्थरों की चोट से मार भी सकता है. जिसका तांडव देखने के लिए ख़ास तौर पर दर्शकों की भीड़ जुटाई जा सकती है.” (ओल्ड टेस्टामेंट- खंड 5, 22:13-21), वहीँ इस्लाम में भी महिला को एक वस्तु के तौर पर कब्जे में लेने व व्यापार करने की वस्तु माना जाता रहा.

ये भी पढ़ें- सारे अवसर बंद हो गए

यह बात तय है कि योनिकता पर खासकर महिला की योनिकता पर हमेशा से धर्म नियंत्रण करता रहा है. जिसमें बिना शादी किये या शादी से बाहर जाकर सेक्स करना प्रतिबंधित व शर्मनाक माना जाता रहा. संभव है कि धर्म ग्रंथो में पुरुषवादी सोच का इस तरह के प्रतिबन्ध बुनने का कारण उस समय गर्भनिरोधक की अपर्याप्तता भी कहा जा सकता है, ताकि वंश में पैदा होने वाला बच्चा शुद्ध तौर से पिता के ख़ून का ही हो.

सेक्सुअलिटी को लेकर संकुचित सोच

पश्चिमी देशों में कुछ अमूल परिवर्तनों के कारण आज वर्जिनिटी को लेकर कुतर्की और महिला विरोधी सोच में एक हद तक बदलाव देखने को मिले है, जिसका बड़ा कारण वहां महिलाओं में बढती आत्मनिर्भरता है. लेकिन भारत जैंसे बड़े जनसँख्या वाले देश में आज भी इस तरह की सोच का होना दुखद है. यहां के रुढ़िवादी कल्चर में सेक्स या इंटरकोर्स को देखने का एक नजरिया सेट है. जिसमें महिला पवित्रता का पता लगाने का तरीका हाय्मन के टूटने से ही लगाया जाता है. सेक्स को पीआईवी के मेथड से ही समझा जाता है. किन्तु ऐसे में पुरुष और महिला के बीच ओरल सेक्स या एनल सेक्स भी सेक्स के तरीके है फिर उनका क्या?

क्या यह एक बड़ी वजह नहीं कि इस कारण आज भी देश दुनिया में एलजीबीटीक्यू की योनिकता को लोग एक्सेप्ट नहीं कर पा रहे हैं. क्योंकि जिस कथित वर्जिनिटी को समाज का बड़ा हिस्सा महिला की पवित्रता मान कर चलता है और उसके भीतर पेनिस के घुसने को ही सेक्स समझता है तो उसमें तो एलजीबीटीक्यू कम्युनिटी स्टैंड ही नहीं करती. इनमें पीआईवी सेक्स होता ही नहीं. तो क्या फिर इस कारण ही समाज द्वारा इनके सेक्स/रिश्तों को अवैध करार दे दिया जाता है और उनके सेक्स के अनुभवों को एक्सेप्ट ही नहीं किया जाता? जबकि इनमें से कई लोग जब पहली बार अपने पार्टनर के साथ संपर्क में आते है या आए होंगे तो खुद के ‘वर्जिनिटी’ लूस होने का उसी प्रकार एहसास पाते होंगे जैंसे हेट्रोसेक्सुअल लोग महसूस करते हों. इसलिए पहले तो यह समझें कि सेक्सुअलिटी काफी काम्प्लेक्स चीज है जिसे पीआईवी तक समेटना लेंगिक भेदभाव करने को दर्शाता है. और फिर यह कि वर्जिनिटी का पवित्रता से कोई लेना देना नहीं है.

नए स्तर से सोचने की जरुरत

आज तमाम वैज्ञानिक समझ से यह बात जगजाहिर है कि वर्जिनिटी नाम की चीज कुछ नहीं होती है. वैश्विक समाज जिस कथित वर्जिनिटी(झिल्ली) को लड़की का ख़ास गहना मान कर चलता है वह बिना किसी पुरुष के संपर्क में आए, समय के साथ खुद ब खुद टूट सकती है. जिसके लिए लड़की का उछल कूद, दौड़ना भागना, बाइक या साइकिल चलाना या मास्टरबेट करना ही काफी वजह है. एक रिपोर्ट में कहा गया कि जिसे हम आमतौर पर वर्जिनिटी मानते हैं वह दुनिया की 90 फीसदी आबादी बिना शारीरिक हुए पहले खो चुकी होती है. जबकि उन्हें इस बारे में पता भी नहीं होता है. जाहिर है इस सब चीजों के बावजूद आज भी हमारे दिमाग से महिलाओं को किसी विशेष खांचे में डालने की आदत पूरी तरह से नहीं गई है.

हाल ही हैदराबाद में फॅमिली इंस्टिट्यूट नाम के एक इंस्टिट्यूट में महिलाओं के लिए ख़ास तरह के प्रोग्राम शुरू करने का विज्ञापन ख़बरों में चढ़ा. जिसमें प्री-मैरिज ट्रेनिंग, आफ्टर मैरिज ट्रेनिंग, कुकिंग, ब्यूटी टिप्स, सिलाई से रिलेटेड कोर्सेज थे. जिसमें एक आदर्श गृहणी बनने के लिए किस तरह से गुणों को निखारना है यह सब था. जाहिर है किसी महिला को विशेष खांचे में ढालने की तरह ही था.

यह चीजें दिखाती हैं कि आज भी वर्जिनिटी को लेकर समाज में कितना संकुचित सोच लोगों के भीतर व्याप्त है. जिसकी सबसे गहरी चोट समाज में आम महिला के साथ साथ विधवा महिलाओं को झेलना पड़ता है, जहां समाज में उन्हें घोषित तौर पर सेकंड हैंड माल या डिसट्रोएड माल समझा जाता है. जिन्हें दया या सांत्वना तो मिल जाती है लेकिन पहले जैसी डिग्निटी के साथ उन्हें समाज में जगह नहीं मिल पाती. वहीँ एलजीबीटीक्यू कम्युनिटी को सामाजिक बहिष्कार झेलना पड़ता है. जिस कारण उन्हें हिराकत की नजरों से देखा जाता है.

हमें यह बात समझने की जरुरत है कि वर्जिनिटी किसी स्त्री या पुरुष के भीतर नहीं होती, यह इंसानों के अंतर मन में समाहित होती है. लेकिन इन कृत्यों के कारण किसी लड़की को एक ख़ास उम्र तक हर समय डर डर कर जीना सिखाया जाता है. लड़की किशोरावस्था में पहुंची नहीं कि घर में शादी को लेकर चिंता पसरने लगती है. जिसके चलते वह हमेशा तनाव में रहती है. इसी सोच के चलते आज स्थिति यह भी है कि शादी के लिए देश दुनियां में लड़कियां वेजाइना में झिल्ली पाने के लिए हाय्मनोप्लास्टी सर्जरी करवा रही हैं. यह सामजिक दबाव ही है कि इस तरह सर्जरी या तो स्वेच्छा से या मजबूरन महिला को करवाना पड़ रहा है.

वर्जिन रहने के फितूर के कारण कामकाजी औरतें बहुत से जोखिम नहीं लेती और कहीं आने जाने से डरतीं हैं. विधवा या तलाकशुदा से शादी करने से पहले पुरुष दस बार यही सोचते रहते हैं कि होने वाली पत्नी वर्जिन नहीं होगी.

यह दिखाता है कि महिलाओं का वस्तुकरण आज भी समाज में व्याप्त हैं किन्तु इसके साथ यह भी कि कुछ बदलाव आएं जरूर हैं. जिसमें महिलाओं ने अपने अधिकारों को लेकर खुद संघर्ष किया है. एक आदर्श गृहणी के तौर पर हो सकता है घर परिवार दुल्हन से तथाकथित शुद्धता की मांग कर रहे हों, लेकिन आत्मनिर्भर महिला जो कहीं बाहर काम कर अपना खर्चा खुद उठा रही है और अपनी शर्तों पर जी रही हो, वह इन दकियानूसी बेड़ियों को तोडती हुई भी देखि जा सकती है जिसकी स्वीकार्यता बदले समय के साथ स्थापित भी हो रही है. इसलिए जरुरी यह है कि किसी रिश्ते में बंधते समय इस तरह की मांग/इच्छा रखने से बेहतर भविष्य के लिए बेहतर रिश्ते के लिए विश्वास की नीव रखी जाए.

ये भी पढ़ें- दिल में घृणा जबान पर कालिख

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें