जानिए क्या है आंख से जुड़ी समस्या ऑक्युलर हायपरटेंशन और इससे बचाव

आज के समय में चाहे बच्चे हो या बड़े हर कोई आँखों की समस्या से परेशान है कारण है ज्यादा देर तक मोबाइल, टीवी या कंप्यूटर का इस्तेमाल करना व हमारी डाइट में पौष्टिक खानपान की कमी होना. ऐसे में आँखों के मरीजों की समस्या लगातार बढ़ रही है.

ऑक्युलर हायपरटेंशन आंखों से जुडी एक दुर्लभ बीमारी है. जब हमारी आंख के फ्रंट एरिया में
मौजूद फ्लूएड पूरी तरह से नहीं सुख पाता है तो हमें यह परे शानी हो सकती है.

तो चलिए जानते है ऑक्युलर हाइपरटेंशन की समस्या है क्या व इससे कैसे हम अपनी आँखों को बचा सकते हैं.

समस्या को जाने

इस बीमारी को आंख का हाई ब्लड प्रेशर भी कहा जाता है.  आंख की पुतली के पीछे मौजूद एक
संरचना से जलीय पदार्थ निकलता है.  यह लिक्विड जब आंख से बाहर नहीं निकलता है तब आंख के सामने के एरिया में मौजूद फ्लूइड पूरी तरह से सूख नहीं पाता है जिस वजह से आंख के भीतर मौजूद प्रेशर जिसे इंट्राकुलर प्रेशर कहते है वह नार्मल से ज्यादा हो जाता है.  नार्मल िस्थति में यह प्रेशर 11 से 21 (mmHg) होता है .  इसके बढ़ने से ग्लूकोमा जैसी बीमारी भी हो सकती है या इसकी वजह से एक या दोनों आंखे प्रभावित हो सकती हैं। आंख में चोट लगना ,अनुवांशिक बीमारी का होना या स्टेरॉयड दवाओं , अस्थमा और अन्य गंभीर बीमारियों के इलाज में इस्तेमाल होने वाली दवाओं का सेवन भी इस बीमारी का कारण हो सकती हैं.

लक्षण व बचाव

शुरुवात में इस बीमारी के लक्षण पता नहीं चल पाते लेकिन यह समस्या गंभीर होने पर मरीजों में आंख में दर्द और लालिमा जैसी समस्याएं दिखाई देती हैं.  वैसे तो यह समस्या किसी भी उम्र में हो सकती है. लेकिन 40 साल के बाद इसका खतरा बढ़ सकता है.  जरूरी है कि नियमित रूप से आंखों की जांच कराएं व डॉक्टर की सलाह से ही दवाइयों का प्रयोग करें.

सर्दियों में होने वाली परेशानियों का ये है आसान इलाज

सर्दी के मौसम में खांसी, जुकाम, गले की खराश, जैसी समस्याएं आम हैं. खराश की समस्या को जल्दी ठीक करना जरूरी है, नहीं तो ये खांसी का रूप ले लेती है. इस खबर में हम आपको बताने वाले हैं कि सर्दी, खांसी, खराश जैसी समस्याओं का दवाइयों के बिना, घरेलू नुस्खों की मदद से कैसे इलाज कर सकते हैं.

इसमें एंटीबैक्टीरियल गुण होते हैं. गले के इंफेक्शन और दर्द में अदरक काफी लाभकारी होता है. इसके लिए आप एक कप में गर्म पानी उबाल लें. उसमें शहद डाल कर मिलाएं और दिन में दो बार पिएं. कुछ ही दिनों में आपको अंतर समझ आएगा.

1. नमक पानी से करें गरारा

गले की खराश में नमक के पानी का गरारा काफी लाभकारी होता है. खराश के कारण गले में सूजन आ जाती है. गुनगुने पानी और नमक का गरारा करने से सूजन में काफी आराम मिलता है. इसे दिन में 3 बार करने से आपको जल्दी ही आराम मिलेगा.

2. मसाला चाय

लौंग, तुलसी और काली मिर्च को पानी में डाल कर उबाल लें. इसके बाद इसमें चायपत्ती डालकर चाय बना लें. सर्दियों में नियमित तौर पर इसका सेवन करें. आपको सर्दी संबंधित परेशानियां नहीं होंगी.

3. अदरक

अदरक को पानी में डाल कर उबाल  लें. थोड़ी देर तक उसे उबालें ताकि अदरक का अर्क पानी में आ जाए. इसके बाद पानी में शहद मिला कर पिएं. सर्दी से होने वली परेशानियों में आपको काफी आराम मिलेगा.

4. लहसुन

लहसुन इंफेक्शन पैदा करने वाले जीवाणुओं को मार देता है. इसलिए गले की खराश में लहसुन बेहद फायदेमंद है. उपचार के लिए गालों के दोनों तरफ लहसुन की एक-एक कली रखकर धीरे-धीरे चूसते रहें.

5. भाप लेना

सर्दियों में होने वाली परेशानियों में भाप लेना काफी कारगर होता है. किसी बड़े बर्तन में गुनगुना पानी कर लें और तौलिया से पानी और चेहरा ढक कर भाप लें. आराम मिलेगा.

Winter Special: क्या करें जब सताए मौसमी ऐलर्जी

सर्दियों की ऐलर्जी आप को बीमार कर सकती है. इस से आप की नाक बहनी शुरू हो जाती है अथवा बंद हो जाती है, साथ ही गले में खराश भी हो जाती है. आंखों में खुजलाहट और लाली आ जाती है और छींक और कफ की समस्या बढ़ जाती है. फफूंदी, धूलमिट्टी, जानवरों की खुश्की और परफ्यूम जैसी चीजें ऐलर्जी की समस्या बढ़ाने का काम करती हैं और सर्दी के मौसम में आप के शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता भी कम हो जाती है. इस मौसम की सर्दीजुकाम एक मामूली समस्या होती है, लेकिन ऐलर्जी लंबे समय तक परेशान करती है.

फफूंदी, धूलमिट्टी व जानवरों की खुश्की जैसी चीजें वैसे तो पूरे साल वातारवण में मौजूद रहती हैं, लेकिन ठंड के मौसम में ये इसलिए ज्यादा सक्रिय हो जाती हैं क्योंकि लोग कमरे की सारी खिड़कियां और दरवाजे आदि बंद कर लेते हैं और ठंड के बचाव के लिए रूम हीटर आदि चला लेते हैं. ऐसे में कमरे का वातावरण इन चीजों के पनपने के लिए अनुकूल हो जाता है.

आइए, अब जानिए इस मौसम की ऐलर्जी की खास वजहों के बारे में विस्तार से, जो घर के अंदरूनी वातावरण में ही मौजूद होती हैं:

फफूंदी के जीवाणु: सांस लेने के दौरान अस्थमा के मरीजों के शरीर में जब वातावरण में मौजूद फफूंदी के जीवाणु प्रवेश कर जाते हैं तब बीमारी गंभीर रूप ले लेती है. ये जीवाणु आप को नजर नहीं आते. ये तो बाथरूम और बेसमैंट जैसी नमी वाली जगहों पर पनपते हैं. इस मौसम में हवा में उड़ रहे कटी फसल के कण भी समस्या बढ़ाने की वजह बनते हैं.

धूल के कण: ये घर के अंदर साफ दिखने वाले वातावरण में भी मौजूद रहते हैं. इन से आंखों से पानी आने, नाक बंद होने और लगातार छींक आने जैसी समस्याएं बढ़ जाती हैं. ये आप के तकियों, गद्दों, कमरे की सजावटी चीजों, परदों और कारपेट आदि में जमा रहते हैं.

जानवरों की खुश्की: ठंड में ऐलर्जी की समस्या बढ़ाने का काम पालतू जानवरों की लार और मूत्र में मौजूद प्रोटीन के तत्त्व करते हैं, जिसे जानवरों की खुश्की कहते हैं. यह बहुत ही हलकी होती है और आसानी से आप के कपड़ों, जूतों और बालों में चिपक जाती है.

आप क्या करें: इस मौसम की कोई भी समस्या, जैसे नाक बहना, खांसी, आंखों में खुजली व जलन, छींक आना और आंखों के आसपास काले घेरे अगर 1 हफ्ते से अधिक समय तक बरकरार रहें तो डाक्टर से संपर्क करना चाहिए. इस के अलावा बचाव के कुछ उपायों को अपना लेना हमेशा बेहतर रहता है.

घर के वैंटिलेशन का करें इंतजाम: जैसे ही सर्दियां आती हैं हम कंबल, गद्दों, सौफ्ट टौयज, तकिए और ऊनी कपड़ों से नजदीकी बढ़ा लेते हैं. इन चीजों में धूल के कण आसानी से अटक जाते हैं. हम अपनी खिड़कियां और दरवाजे बंद कर लेते हैं और कंपाने वाली ठंड से बचने के लिए घर में हीटर जला लेते हैं. इस का नतीजा यह होता है कि घर में सूरज की रोशनी प्रवेश नहीं कर पाती, जिस के चलते फफूंदी पनपती है. सर्दियों में कई बार ऐग्जिमा की समस्या भी बढ़ जाती है, जिस का संबंध धूलकणों से ऐलर्जी से होता है. इस से बचाव के लिए सूरज की रोशनी को घर में आने दें.

बनाएं एक ऐक्शन प्लान: परदों और कारपेट आदि को नियमित रूप से वैक्यूम क्लीनर की सहायता से साफ करें. अपने कंबल और स्वैटर आदि को कम से कम हफ्ते में एक बार धूप में जरूर रखें.

रहें सावधान: धूम्रपान करने और अगरबत्ती जलाने से बचें. मिट्टी के कणों और फफूंदी पनपने को रोकने के लिए घर में नमी के स्तर को सामान्य रखें. इस के लिए ह्यूमिडिफायर और डीह्यूमिडिफायर का इस्तेमाल करें.

अपने घर को करें स्कैन: आप को नियमित रूप से अपने घर की अच्छी तरह जांच करनी चाहिए और ऐसी जगहों की सफाई करनी चाहिए, जहां जीवाणुओं के पनपने की आशंका हो. अपने बेसमैंट की सफाई करें और ऐसी चीजों को हटा दें, जिन में मिट्टी के कण जमा होने का खतरा हो.

ऐलर्जी को कभी नजरअंदाज न करें. डाक्टर को दिखाएं. इस से आप को उस के लिए दवाओं, स्प्रे और इनहेलर जैसी चीजों के बारे में जानकारी मिल जाएगी, जो ठंड में आप को ऐलर्जी से राहत दिलाएगी.

– डा. सतीश कौल
कोलंबिया एशिया हौस्पिटल, गुड़गांव.

Top 10 Winter Health And Beauty Tips In Hindi: सर्दियों के लिए टॉप 10 बेस्ट हेल्थ और ब्यूटी टिप्स हिंदी में

Winter Health And Beauty Tips in Hindi: इस आर्टिकल में हम आपके लिए लेकर आए हैं गृहशोभा की 10 Winter Health And Beauty Tips in Hindi 2022. सर्दियों में हेल्थ और ब्यूटी से जुड़ी कई प्रौब्लम्स का सामना करना पड़ता है, जिसके लिए डौक्टर और पार्लर के चक्कर काटने पड़ते हैं. इसीलिए आज हम आपके लिए लेकर आए हैं Winter Health And Beauty Tips in Hindi, जिससे आपकी हेल्थ और स्किन अच्छी बनी रहेगी. तो आइए आपको बताते हैं घर बैठे अपना प्रौफेशनल और होममेड टिप्स से हेल्थ और ब्यूटी का ख्याल कैसे करें. अगर आपको भी है Winter में अपनी हेल्थ और ब्यूटी को खूबसूरत बनाए रखना है तो पढ़ें गृहशोभा की ये Winter Beauty Tips in Hindi.

1. Winter Special: बचे ऊन से बनाएं कुछ नया

winter

आप ने स्वैटर के लिए ऊन खरीदा तो थोड़ा ज्यादा ही लिया, क्योंकि आप यह जानती हैं कि बाद में ऊन खरीदने पर अकसर रंग में फर्क आ जाता है. ऐसा कई बार होने से ऊन के बहुत सारे छोटेबड़े गोले आप के पास इकट्ठा हो जाते हैं, जिन्हें संभालना एक मुसीबत है, क्योंकि गोले आपस में बुरी तरह उलझ भी जाते हैं. ऐसा न हो, इस से बचने के लिए क्यों न बचे ऊन का सुंदर प्रयोग कर इस सीजन में कुछ नया बना लिया जाए. आइए जानिए कि आप क्याक्या बना सकती हैं:

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2. Winter Special: सर्दी में पानी भी है जरूरी

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सर्दी शुरू होते ही खानपान की खपत भले ही बढ़ जाती हो पर पानी की खपत काफी कम हो जाती है. सर्दी में त्रिशला अकसर बीमार हो जाती है. उसे कब्ज, गैस व ऐसी ही अन्य समस्याओं से दोचार होना पड़ता है. उसे ताज्जुब है कि कोई समस्या ऐसी नहीं है जो खासतौर पर सर्दी में होने वाली अथवा सर्दी में हावी हो जाने वाली हो. फिर यह सब उसे क्यों हो रहा है?

एक कौर्पोरेट कंपनी में काम करने वाले सुशील कुमार कहते हैं कि उन का खानापीना, घूमना ठंड में ज्यादा होता है. वे सर्दी को मन से पसंद करते हैं. पता नहीं क्या बात है कि सर्दी में वे बुखार, संक्रमण आदि की चपेट में ज्यादा ही आते हैं. कई बार तरहतरह की डाक्टरी जांच करवाई. तब जा कर पता चला कि पानी की कमी से वे तरहतरह के संकट से घिरते व जूझते हैं.

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3. Winter Special: सर्दी में भी रहे दिल का रखें खास ख्याल

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सर्दी के मौसम में तापमान गिरते रहने से रक्त का गाढ़ापन बढ़ने लगता है और रक्त प्रवाह कम होने लगता है, जिस से दिल का दौरा पड़ने और कोरोनरी आर्टरी संबंधी बीमारियों के मामले भी बढ़ने लगते हैं. दिल का दौरा पड़ने के कारणों की जानकारी न होना और सर्दी के मौसम में सावधानियों की अनदेखी इन बीमारियों की बड़ी वजहें हैं.

कार्डियोवैस्क्यूलर रोगों से पीडि़त व्यक्तियों को सर्दी के मौसम में विशेष सावधानियां बरतनी चाहिए ताकि उन का दिल सुरक्षित रह सके.

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4. इस सर्दी रखें अपनी स्किन का खास खयाल

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सर्दियों का मौसम फिर से दस्तक दे रहा है और इस मौसम में जरूरी है हम अपनी त्वचा की देखभाल अच्छी तरह से करें. सर्दियों में त्वचा को चमकदार बनाए रखने के लिए विशेष देखभाल की जरूरत होती है. हम आप को कुछ ऐसे उपाय बता रहे हैं, जो आप की त्वचा के लिए बेहद फायदेमंद हो सकते हैं:

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5. Winter Special: सर्दियों में रखें बालों का खास खयाल

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आप की त्वचा की तरह आप के बाल भी मौसम की मार झेलते हैं. चिलचिलाती गरमी बालों को बेहद रूखा बना देती है तो मौनसून की नमी उन की सतह पर फंगल इन्फैक्शन के खतरे को बढ़ा देती है. इस के बाद ठंड आने पर बाल काफी कमजोर और डल से हो जाते हैं.

ऐसे में आप अगर सर्दी के मौसम में अपने बालों की केयर के लिए निम्न खास तरीके अपनाएंगी तो आप अपने बालों को स्वस्थ और खूबसूरत रख सकती हैं.

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6. Winter Special: सर्दियां आते ही ड्राय स्किन और फटे होठ की प्रौब्लम को करें दूर

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सर्दियां आते ही ज्यादातर लोगों की त्वचा रूखी होने लग जाती है. त्वचा की नमी कहीं खो सी जाती है और त्वचा रूखी-बेजान नजर आने लगती है. त्वचा के साथ ही हमारे होंठ भी फटने शुरू हो जाते हैं. कई बार ये समस्या इतनी ज्यादा बढ़ जाती है कि होंठों से खून भी आना शुरू हो जाता है. ऐसे में बहुत जरूरी है कि हम अपनी त्वचा को लेकर फिक्रमंद रहें ताकि वो हमेशा खूबसूरत और जवां बनी रहे.

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7. Winter Special: सर्दियों में ऐसे करें नवजात की देखभाल

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नवजात शिशु परिवार के सभी सदस्यों के लिए खुशियां और आशा की नई किरण ले कर आता है. परिवार के सभी सदस्य उस के पालनपोषण का दायित्व खुशीखुशी लेते हैं और डाक्टर मां को सही राय देते हैं ताकि उस का शिशु स्वस्थ रहे.

गरमियों की तपिश के बाद जब सर्दी शुरू होती है तो लोग राहत महसूस करते हैं. पर सर्दी भी अपने साथ लाती है खुश्क हवाएं, खांसी और जुकाम जैसी कुछ तकलीफें, जिन से नवजात शिशु को खासतौर से बचाना चाहिए और उस की देखभाल में बहुत सावधानी बरतनी चाहिए.

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8. Winter Special: होंठों को दें नाजुक सी देखभाल

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चेहरे के सौंदर्य में खूबसूरत होंठों की बड़ी भूमिका होती है, मगर इस मौसम में चलने वाली सर्द हवाएं जहां शरीर के हर अंग की त्वचा को रूखा बना देती हैं, वहीं होंठों की नमी भी छीन लेती हैं. ऐसे में होंठों की त्वचा में दरारें पड़ने लगती हैं और कभी कभी खून भी निकलने लगता है, जिस से होंठों की कोमलता मुरझाने लगती है. यदि होंठों की सही देखभाल की जाए तो सर्दियों में भी इन्हें फटने से बचाया जा सकता है.

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9. Winter Special: सर्द मौसम में ऐसे करें अपने दिल की हिफाजत

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सर्दियों का मौसम और इस मौसम की सर्द हवाएं अपने साथ साथ आलस लेकर आती हैं. आलस की वजह से लोग अपने शरीर खासतौर से अपने दिल को तंदुरुस्त रखने पर ध्यान नहीं देते. जिसकी वजह से सबसे ज्‍यादा परेशानी उन लोगों को होती है जो दिल और फेफड़ों के मरीज हैं.

डाक्टरों का कहना है कि ठंडे मौसम की वजह से दिल की धमनियां सिकुड़ जाती हैं, जिससे दिल में रक्त और आक्सीजन का संचार कम होने लगता है. इससे हाइपरटेंशन और दिल के ब्लड प्रेशर के बढ़ने सम्बन्धी समस्या सामने आती है. ठंडे मौसम में ब्लड प्लेट्लेट्स ज्यादा सक्रिय और चिपचिपे होते हैं, इसलिए रक्त के थक्के जमने की आशंका भी बढ़ जाती है.

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10. Winter Special: बुनाई करते समय ध्यान रखें ये 7 टिप्स

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मौसम की फिज़ा में अब ठंडक घुलने लगी है कुछ समय पूर्व तक इस मौसम में महिलाओं के हाथ में ऊन और सलाइयां ही दिखतीं थीं. आजकल भले ही हाथ से बने स्वेटरों की अपेक्षा रेडीमेड स्वेटर का चलन अधिक है परन्तु स्वेटर बुनने की शौकीन महिलाओं के हाथ आज भी खुद को बुनाई करने से रोक नहीं पाते. रेडीमेड की अपेक्षा हाथ से बने स्वेटर अधिक गर्म और सुंदर होते हैं साथ ही इनमें जो अपनत्व और प्यार का भाव होता है वह रेडीमेड स्वेटर में कदापि नहीं मिलता परन्तु कई बार स्वेटर बनाने के बाद ढीला पड़ जाता है अथवा फिट नहीं हो पाता या फिर धुलने के बाद रोएं छोड़ देता है.

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Winter Special: सर्दी-जुकाम में इन 4 टिप्स से जल्द मिलेगा आराम

सर्दी-जुकाम ऐसा संक्रामक रोग है जो जरा सी लापरवाही ही लोगों को अपने गिरफ्त में ले लेता है. यह इंसानों में सबसे ज्यादा होने वाला रोग है. सर्दी या फिर जुकाम कोई ऐसी गंभीर बीमारी नहीं है जिसकी वजह से परेशान हुआ जाए. साल भर में वयस्कों को दो से तीन बार और बच्चों को छः से बारह बार जुकाम की समस्या होना आम है.

सामान्य जुकाम के लिए कोई खास उपचार नहीं होता लेकिन इसके लक्षणों का इलाज किया जाता है. इसके आम लक्षणों में खांसी, नाक बहना, नाक में अवरोध, गले की खराश, मांसपेशियों में दर्द, सर में दर्द, थकान और भूख का कम लगना शामिल हैं. ये लक्षण 7 – 8 दिनों तक शरीर में दिखाई पड़ते हैं. ऐसे कई घरेलू उपचार हैं जो सर्दी-जुकाम से राहत दिलाने में आपकी मदद कर सकते हैं. तो चलिए आज  ऐसे ही कुछ घरेलू नुस्खों के बारे में आपको बताते हैं.

1. अदरक और तुलसी का काढ़ा

अदरक के यूं तो स्वास्थ्य संबंधी अनेक फायदे होते हैं लेकिन सर्दी-जुकाम को दूर करने में इसका अहम रोल होता है. अदरक जुकाम के लिए सर्वोत्तम औषधि है. थोड़े से अदरक को एक कप पानी के साथ उबालें और इसमें तुलसी की 10-12 पत्तियां डाल दें. इस मिश्रण को तब तक उबाले, जब तक पानी आधा न रह जाए. अब इस काढ़े का सेवन करें. यह सर्दी को जड़ से ठीक करने में काफी फायदेमंद है.

2. शहद

शहद खांसी के बेहतरीन इलाज में से एक है. इसमें एंटी-बैक्टीरियल और एंटी-माइक्रोबियल गुणों से भरपूर होता है. गले की खराश और दर्द से राहत पाने के लिए नींबू की चाय मे शहद मिलाकर पीना चाहिए इसके अलावा दो चम्मच शहद में एक चम्मच नींबू का रस एक ग्लास गर्म पानी या गर्म दूध में मिलाकर पीने से काफी लाभ होता है, लेकिन एक साल से कम के बच्चों को शहद नहीं देना चाहिए.

3. भाप लें

गर्म पानी के बर्तन के ऊपर सिर रखकर नाक से सांस लें. आप चाहे तो इसमें जरूरत के हिसाब से मिंट मिला सकती हैं. अब सिर को किसी हल्के तौलिए से ढककर कटोरे से तकरीबन 30 सेंटीमीटर की दूरी से भाप लें. इससे बंद नाक से राहत मिलती है.

4. ज्यादा से ज्यादा पेय पदार्थो का सेवन

सर्दी और जुकाम की बीमारी में ज्यादा से ज्यादा तरल पदार्थों का सेवन श्वांसनली को नम रखता है और आपको डिहाइड्रेट होने से भी बचाता है. ऐसे में गर्म पानी, हर्बल चाय, ताजा फलों के जूस और अदरक की चाय का सेवन सर्दी और खांसी दोनों से ही राहत दिलाते हैं.

Winter Special: सर्द मौसम में ऐसे करें अपने दिल की हिफाजत

सर्दियों का मौसम और इस मौसम की सर्द हवाएं अपने साथ साथ आलस लेकर आती हैं. आलस की वजह से लोग अपने शरीर खासतौर से अपने दिल को तंदुरुस्त रखने पर ध्यान नहीं देते. जिसकी वजह से सबसे ज्‍यादा परेशानी उन लोगों को होती है जो दिल और फेफड़ों के मरीज हैं.

डाक्टरों का कहना है कि ठंडे मौसम की वजह से दिल की धमनियां सिकुड़ जाती हैं, जिससे दिल में रक्त और आक्सीजन का संचार कम होने लगता है. इससे हाइपरटेंशन और दिल के ब्लड प्रेशर के बढ़ने सम्बन्धी समस्या सामने आती है. ठंडे मौसम में ब्लड प्लेट्लेट्स ज्यादा सक्रिय और चिपचिपे होते हैं, इसलिए रक्त के थक्के जमने की आशंका भी बढ़ जाती है.

50 फीसदी तक बढ़ते हैं दिल के रोग

क्या आप जानती हैं कि सर्दियों के मौसम में सीने का दर्द और दिल के दौरे का जोखिम 50 फीसदी तक बढ़ जाता है. इस मौसम में दिन छोटे हो जाते हैं, धूप कम और हल्की निकलती है और लोग भी ज्यादा समय घर के अंदर ही रहना पसंद करते हैं. जिसकी वजह से मानव शरीर में विटामिन ‘डी’ की कमी भी हो जाती है. ऐसे में इस्केमिक हार्ट डिसीज, कंजस्टिव हार्ट फेल्योर, हार्ट अटैक और स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है. इससे बचाव के लिए सर्दियों में उचित मात्रा में धूप सेंकना बेहद ही जरूरी है.

बढ़ता है अवसाद

इस मौमस में अक्सर बड़ी उम्र के लोगों में सर्दियों से जुड़ा अवसाद देखने को मिलता हैं. अवसाद से पीड़ित लोग ज्यादा चीनी, ट्रांसफैट और सोडियम व ज्यादा कैलोरी वाला आरामदायक भोजन खाने लगते हैं, जो मोटापे, दिल के रोगों और हाइपरटेंशन से पीड़ित लोगों के लिए यह बेहत ही खतरनाक साबित हो सकता है. इससे तनाव बढ़ता है और हाइपरटेंशन होने से, पहले से कमजोर दिल पर और दबाव पड़ जाता है. शरीर को गर्मी प्रदान करने के लिए हमारा दिल ज्यादा जोर से काम करने लगता है, रक्त धमनियां और सख्त हो जाती हैं. ये सब चीजें मिलकर हार्ट अटैक को बुलावा देती हैं.

सर्दियों में नजरअंदाज न करें सेहत

उम्रदराज और उन लोगों को, जिन्हें पहले से दिल की समस्याएं हैं, उन्हें छाती में असहजता, पसीना आना, जबड़े, कंधे, गर्दन और बाजू में दर्द के साथ ही सांस फूलने से सम्बन्धित समस्या बढ़ जाती है. जिसे नजरअंदाज करना उनके लिए और उनके दिल के लिए घातक हो सकती है. इसके बचाव के लिए नियमित रूप से व्यायाम करने के साथ ही संतुलित व पौष्टिक भोजन लेना आवश्यक है.

सर्दियों मे अपने दिल की हिफाजत के लिए अपनाएं ये उपाय

मौसम के हिसाब से अपने जीवनशैली में बदलाव लाएं, साथ ही सुबह जल्दी और देर रात तक बाहर रहने से परहेज करें.

ठंडे मौसम में वह व्यायाम करें, जो आपके शरीर को थकान का एहसास कराएं. जौगिंग, योग और एरोबिक्स करते हों, तो उसे जारी रखें.

सर्दियों में शराब और सिगरेट से दूर ही रहें तो अच्छा.

इस मौसम में अगर आपके रक्तचाप (ब्लड प्रेशर) में कोई असामान्य बदलाव नजर आए, तो तुरंत अपने डाक्टर की सलाह लें.

Top 10 Winter Health Tips in Hindi: सर्दियों के लिए टॉप 10 बेस्ट हेल्थ टिप्स हिंदी में

Health Tips in Hindi: इस आर्टिकल में हम आपके लिए लेकर आए हैं गृहशोभा की 10 Winter Health Tips in Hindi 2021. सर्दियों में हेल्थ से जुड़ी कई प्रौब्लम्स का सामना करना पड़ता है, जिसके लिए डौक्टर के चक्कर काटने पड़ते हैं. इसीलिए आज हम आपके लिए लेकर आए हैं Winter Health Tips, जिससे आपकी हेल्थ और फिटनेस बनी रहेगी. तो आइए आपको बताते हैं घर बैठे अपना प्रौफेशनल और होममेड टिप्स से हेल्थ का ख्याल कैसे करें. अगर आपको भी है Winter में अपनी हेल्थ बनाए रखनी है तो पढ़ें गृहशोभा की ये Winter Health Tips in Hindi.

1. Winter Special: सर्दियों में फ्लू से जुड़ी ये बातें जानती हैं आप?

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जैसे ही हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है वैसे ही हम पर वायरस का हमला हो जाता है, जिससे हमें सर्दी, जुकाम, खांसी और कभी-कभी बुखार की समस्‍या हो जाती है, जो कई दिनों तक आपको परेशान करती हैं.

फ्लू

सुबह की सर्द हवाएं, वातावरण में नमी और चारों तरफ छाई धुंध ये बताती है कि सर्दी ने दस्‍तक दे दी है. ये तो आप सभी जानते होंगे कि सर्दी आते ही हमारे रहन-सहन में थोड़ा बदलाव आ जाता है. लेकिन सबसे जरूरी बात यह है कि हम अपनी सेहत का किस तरह से ख्‍याल रख रहे हैं.

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2. Winter Special: सर्दियों में पानी पीना न करें कम

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हमारा शरीर जिन तत्वों से बना है, उसमें जल मुख्य घटक है. अगर शरीर में जल की मात्रा कम हो जाए, तो जीवन खतरे में पड़ जाता है. इससे यह बात बिल्‍कुल साफ है कि पानी पीना हमारे लिए कितना जरूरी है. गर्मियों में प्यास अधिक लगती है तो लोग पानी भी खूब पीते हैं मगर सर्दियों में यह मात्रा कम हो जाती है. इसकी एक वजह यह है कि हमें इन दिनों प्यास नहीं लगती, जिसके कारण लोग पर्याप्‍त पानी नही पीते हैं. इस वजह से कई गंभीर समस्‍याओं का सामना करना पड़ता है.

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3. सर्दियों में ऐसे करें अपने दिल की देखभाल

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जैसे-जैसे तापमान गिरने लगता है, दिल का दौरा पड़ने का खतरा बढ़ने लगता है. ठंड का मौसम हृदय संबंधी समस्याओं के लिए जोखिम पैदा कर सकता है. यहाँ जानिए इससे संबंधित आवश्यक बातें.

ठंड का मौसम और हृदय स्वास्थ्य

ठंड का मौसम आपके हृदय की मांसपेशियों में ऑक्सीजन युक्त रक्त की आपूर्ति को कम कर सकता है. यह आपके हृदय को अधिक काम करने के लिए मजबूर कर सकता है; नतीजतन आपका दिल अधिक ऑक्सीजन युक्त रक्त की मांग करता है. दिल में ऑक्सीजन की कम सप्लाई होना फिर दिल द्वारा ऑक्सीजन की अधिक मांग हार्ट अटैक का कारण बनता है. ठंड रक्त के थक्कों को विकसित करने के जोखिम को भी बढ़ा सकती है, जिससे फिर से दिल का दौरा या स्ट्रोक हो सकता है.

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4. सर्दियों में होने वाली परेशानियों का ये है आसान इलाज

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सर्दी के मौसम में खांसी, जुकाम, गले की खराश, जैसी समस्याएं आम हैं. खराश की समस्या को जल्दी ठीक करना जरूरी है, नहीं तो ये खांसी का रूप ले लेती है. इस खबर में हम आपको बताने वाले हैं कि सर्दी, खांसी, खराश जैसी समस्याओं का दवाइयों के बिना, घरेलू नुस्खों की मदद से कैसे इलाज कर सकते हैं.

इसमें एंटीबैक्टीरियल गुण होते हैं. गले के इंफेक्शन और दर्द में अदरक काफी लाभकारी होता है. इसके लिए आप एक कप में गर्म पानी उबाल लें. उसमें शहद डाल कर मिलाएं और दिन में दो बार पिएं. कुछ ही दिनों में आपको अंतर समझ आएगा.

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5.सर्दियों में सताता है जोड़ों का दर्द ऐसे पाएं राहत

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उत्तर भारत में ठंड की दस्तक हो चुकी है. ठंड का मौसम वैसे तो अधिकतर लोगों के चेहरे पर मुस्कान ले आता है लेकिन दूसरी ओर कइयों की परेशानी का कारण भी बनता है. क्या ठंड का नाम सुन कर आप को भी जकड़े हुए जोड़ याद आते हैं? क्या ठंड आप को बीमारियों की याद दिलाता है?

ऐसा नहीं है कि ये समस्या केवल एक निर्धारित उम्र के लोगों को ही परेशान करती है. वास्तव में गतिहीन जीवनशैली के कारण ये समस्या अब हर उम्र के लोगों में देखने को मिल रही है. जोड़ों का दर्द ही नहीं बल्कि मांसपेशियों में दर्द, पीठ दर्द, सिरदर्द, गर्दन दर्द, तंत्रिका दर्द, फाइब्रोमायल्जिया आदि समस्याएं इस मौसम में बहुत ज्यादा परेशान करती हैं.

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6. सर्दियों में बड़े काम का है गाजर

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सर्दियों में गाजर सेहतमंद सब्जियों के श्रेणी में आता है , गाजर कंद प्रजाति की एक सब्जी है. गाजर विटामिन बी का अच्छा सोर्स है. इसके अलावा, इसमें ए, सी, डी, के, बी-1 और बी-6 काफी क्वॉन्टिटी में पाया जाता है. इसमें नैचरल शुगर पाया जाता है, जो सर्दी के मौसम में शरीर को ठंड से बचाता है. इस मौसम में होने वाले नाक, कान, गले के इन्फेक्शन और साइनस जैसी समस्याओं को दूर करने के लिए गाजर या इससे बनी चीजों का सेवन फायदेमंद साबित होता है. यह सब्जी सलाद, अचार आदि बनाकर उपयोग की जाती है. आप इसे सलाद के तौर पर खाएं या गाजर का हलवा बनाकर, दोनों ही फायदेमंद है. आयुर्वेद के अनुसार गाजर स्वाद में मधुर, गुणों में तीक्ष्ण, कफ और रक्तपित्त को नष्ट करने वाली है. इसमें पीले रंग का कैरोटीन नामक तत्व विटामिन ए बनाता है.

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7. सर्दियों में फायदेमंद है ताजा मेथी का सेवन

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सदियों में ताजा मेथी बाजार में आराम से मिलती है. मेथी की सुगंध और स्वाद भारतीय भोजन का विशेष अंग है. मेथी के पत्तों को कच्चा खाने की परंपरा नहीं है. आलू के साथ महीन महीन काट कर सूखी सब्ज़ी या मेथी के पराठे आम तौर पर हर घर में खाए जाते हैं. लेकिन गाढ़े सागों के मिश्रण में इसका प्रयोग लाजवाब सुगंध देता है, उदाहरण के लिए सरसों के साग, मक्का मलाई या पालक पनीर के पालक में.

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8. जानें क्या है सर्दियों में धनिया के ये 14 फायदे

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सर्दियों में धनिया हर किसी का पसंदीदा हो जाता है, सर्दियों में बाजार में धनिया की ताजी पत्तियां मिलती हैं, जिसका उपयोग हर तरह की सूखी और रसेदार सब्ज़ी में परोसते समय मिलाने और सजावट करने के लिए किया जाता है , साथ ही  धनिये की चटनी पूरे भारत में प्रसिद्ध है. आलू की चाट और दूसरी चटपटी चीज़ों में इसको टमाटर या नीबू के साथ मिलाया जा सकता है. सूप और दाल में बहुत महीन काट कर मिलाने पर रंगत और स्वाद की ताज़गी़ अनुभव की जा सकती है. हर तरह के कोफ्ते और कवाब में भी यह खूब जमता है. इसकी पत्तियों को पका कर या सुखा कर नहीं खाया जाता क्यों कि ऐसा करने पर वे अपना स्वाद और सुगंध खो देती हैं.

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9. सर्दियों में हेल्थ के लिए बहुत फायदेमंद है तेजपत्ता

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तेजपत्ता हल्का, तीखा व मीठा होता है. इसकी प्रकृति गर्म होती है. सर्दियों के समय यह मशाला आप के व्यंजन का स्वाद बढ़ाने के साथ ही आपको सर्दी जुखाम से बचाता है. सर्दियों के समय तेजपात हम सभी के लिए उपयोगी होता है, सर्दियों में थोड़ी से लापरवाही हुई नही कि आप सर्दी जुखाम के शिकार हो गये. तेजपात  कफ रोगों के लिए उपयोगी मसाला है.  इसे पिप्पली चूर्ण की एक ग्राम मात्रा में शहद के साथ लेने पर खाँसी-जुकाम में फायदा होता है.  आप सर्दियों में चाय के साथ इसे उबाल कर सेवन कर सकते है.

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10. 6 टिप्स: ऐसे रहें सर्दियों में हेल्दी

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इस मौसम में व्‍यायाम पर थोड़ा ध्‍यान देकर आप स्‍वास्‍थ्‍य संबंधी मामूली समस्‍याओं से भी बच सकते हैं. लेकिन अगर आपको हृदय संबंधी समस्‍या है, तो आपको अतिरिक्‍त सुरक्षा की आवश्‍यकता होती है. ऐसे में अगर आप अच्‍छा स्‍वास्‍थ्‍य चाहते हैं, तो यह मौसम सबसे अच्‍छा है. सर्दियों में स्‍वस्‍थ रहने के टिप्‍स –

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Winter Special: जाड़े में भी स्वस्थ रहेंगे अस्थमा के रोगी

15 साल की अनुरिमा अस्थमा की शिकार है. बचपन से ही उसे अस्थमा के अटैक आते थे, जो बाद में उम्र के हिसाब से ओर बढ़ते गए. इस के लिए उसे नियमित दवा लेनी पड़ती है. दरअसल, यह बीमारी सर्दी के दिनों में और अधिक बढ़ जाती है, क्योंकि सर्द मौसम की वजह से श्वासनली में बलगम जल्दी जमा हो जाता है, जो श्वासनली को अवरुद्ध कर देता है, जिस से मरीज को सांस लेने में कठिनाई होने लगती है. फलस्वरूप सांस फूलने लगती है. कुछ लोगों को यह बीमारी उन्हें ठंड की ऐलर्जी होने की वजह से भी बढ़ जाती है.

इस बारें में मुंबई के एसआरवी हौस्पिटल की चैस्ट फिजिशियन डा. इंदु बूबना बताती है, ‘‘स्ट्रैस और धूम्रपान अस्थमा के ट्रिगर पौइंट हैं. इन से सब से अधिक अस्थमा बढ़ती है. इस के अलावा नींद की कमी व प्रदूषण भी इस के जिम्मेदार हैं. जाड़े के मौसम में इस बीमारी के बढ़ने का खतरा अधिक रहता है. लेकिन सही लाइफस्टाइल से इस खतरे को कम किया जा सकता है. मेरे पास कई मरीज ऐसे आते हैं, जो अस्थमा रोग का नाम सुन कर ही घबरा जाते हैं, जबकि यह बीमारी जानलेवा नहीं है.’’

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डा. इंदु के अनुसार ये सावधानियां जाड़े  के मौसम में अस्थमा के रोगियों को अवश्य रखनी चाहिए:

– सब से पहले घर को साफसुथरा रखें. वैंटिलेशन सही हो.

–  सांस हमेशा नाक से लें इस से हवा गरम हो कर छाती तक पहुंचती है, जिस से ठंड कम लगती है. मुंह से सांस लेने की कोशिश कम करें.

–  फ्लू का वैक्सिन अवश्य लगा लें. इस से 70% व्यक्ति ठंड की ऐलर्जी से बच सकता है.

–  घर में अगर रूमहीटर का प्रयोग करते हैं, तो समयसमय पर उस के फिल्टर की सफाई अवश्य करें, ताकि उस पर धूलमिट्टी न जमें.

–  घर के पैट्स, टैडी बियर, फर वाले खिलौने, प्लांट्स आदि को बैड से दूर रखें.

–  ठंड से बचने के लिए अधिकतर लोग आग या रूमहीटर के पास बैठते हैं, जो ठीक नहीं, क्योंकि इस से ऊनी कपड़े के रेशे जल जाते हैं. उन से निकलने वाला धुआं अस्थमा के रोगी के लिए खतरनाक होता है. इसलिए रूमहीटर से घर को गरम जरूर करें, पर दूरी बनाए रखें. साथ ही घर की नमी को भी बनाए रखें.

–  पुराने सामान को घर में न रखें. डस्टिंग के वक्त धूल न उड़ाएं. घर की सफाई गीले कपड़े से  करें.

–  खाना खाने से पहले हाथों को अच्छी तरह धो लें. इस से किसी भी प्रकार के वायरस से आप दूर रहेंगे.

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–  सर्दियों में भी वर्कआउट अवश्य करें, लेकिन पहले अपनेआप को वार्मअप करना न भूलें.

–  ठंड में तरल पदार्थों का सेवन अधिक करें. घर पर बना कम वसायुक्त खाना खाएं. ताजे फलसब्जियां अधिक लें. खट्टे पदार्थ खाने से अस्थमा नहीं बढ़ता. हां जिन्हें ऐलर्जी हो, वे न खाएं.

–  कपड़े हमेशा साफसुथरे ही पहनें. कौटन के कपड़े पहन कर ही ऊपर ऊनी कपड़े पहनें.

–  अगर छोटे बच्चे अस्थमा के शिकार हैं तो जाड़े में उन्हें हैल्दी, न्यूट्रिशन वाला भोजन दें.

–  दवा का सेवन नियमित करें.

दिमाग की दुश्मन हैं ये आदतें

कभी-कभी औफिस में काम करतेकरते अचानक मूड औफ हो जाता है या फिर घर में कोई नईपुरानी बात याद कर मन बेचैन हो उठता है तो आप को सतर्क हो जाना चाहिए. सतर्क तो आप को उस वक्त भी हो जाना चाहिए जब खुद आप को ऐसा लगने लगे कि आप की रूटीन जिंदगी में बेवजह का खलल पड़ने लगा है.

आप वक्त पर अपने तयशुदा काम नहीं कर पा रही हैं, भूख कम या ज्यादा लग रही है, नींद पूरी नहीं हो पा रही है, आप पति, घर बच्चों पर पहले जैसा ध्यान नहीं दे पा रही हैं, बातबात पर चिड़चिड़ाहट, गुस्से या डिप्रैशन का शिकार होने लगी हैं तो तय मानिए आप अपनी ब्रैन सैल्स को मैनेज नहीं कर पा रही हैं. यह एक ऐसी वजह है जिसे हरकोई नहीं जानता, लेकिन इस का शिकार जरूर होता है.

इन लक्षणों में से आप किसी एक का भी शिकार हैं तो  तय यह भी है कि आप की ही कुछ आदतें आप की ब्रेन सैल्स को नुकसान पहुंचा रही हैं, जिस का एहसास या अंदाजा आप को जानकारी के अभाव के चलते नहीं होता. लेकिन ये सबकुछ सामान्य है और वक्त रहते आदतें सुधार ली जाएं तो सबकुछ ठीक और आप के कंट्रोल में भी हो सकता है.

क्या हैं ब्रेन सैल्स

नुकसान चाहे जिस भी वजह से हो रहा है उसे अगर वैज्ञानिक और तकनीकी तौर पर सम झ लिया जाए तो फिर कोईर् खास मुश्किल नुकसान से बचने में पेश नहीं आती. बात जहां तक ब्रेन सैल्स को सम झने की है तो उन के बारे में इतना जानना ही काफी है कि वे हमारे शरीर का महत्त्वपूर्ण हिस्सा हैं जो हमें हर फीलिंग से न केवल परिचित कराती हैं, बल्कि उन से होशियार रहने के लिए भी सचेत करती हैं.

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मनोविज्ञान की जटिल भाषा को सरल करते हुए भोपाल के वरिष्ठ मनोचिकित्सक विनय मिश्रा बताते हैं कि ब्रेन सैल्स 2 तरह की होती हैं- पहली ब्रेन सैल्स को रिसैप्टर कहा जाता है, जिन का काम रिसीव करना होता है और दूसरी को इफैक्टर कहा जाता है, जो मस्तिष्क को निर्देशित करती हैं. इसे भी सरलता से इस उदाहरण से सम झा जा सकता है कि जब हम किसी गरम चीज पर हाथ रखते हैं तो रिसैप्टर गरमी का एहसास कराती हैं और इफैक्टर हमें उस गरम चीज से तुरंत हाथ हटा लेने को कहती हैं.

नुकसानदेह आदतें

क्या हमारी आदतें ब्रेन सैल्स को प्रभावित करती हैं? इस का जवाब हां में है कि करती हैं खासतौर से बुरी आदतें, जिन के चलते ब्रेन सैल्स डैमेज हो कर हमें गड़बड़ाने लगती हैं. इन नुकसानदेह आदतों को वक्त रहते सम झ लिया जाए तो जिंदगी बहुत आसान हो जाती है.

कई बार हम खुद तनाव पाल लेते हैं और कई बार हालात की देन होता है. दौड़तीभागती लाइफ में हालांकि तनाव से खुद को बचा पाना मुश्किल है, लेकिन इसे आदत बना लिया जाए तो ब्रेन सैल्स का बैलेंस बिगड़ने लगता है. जब हम तनाव में होते हैं तो शरीर में कोर्टिसोल नाम का रसायन बनना शुरू होता है, जो ब्रैन सैल्स को काफी नुकसान पहुंचाता है.

तनाव से बचने का कारगर तरीका यह है कि हम हर वक्त तनाव से बचने की कोशिश करते रहें न कि उसे बढ़ाते रहें. एक छोटे से उदाहरण से इसे यों सम झा जा सकता है कि बच्चे की स्कूल बस तयशुदा वक्त पर नहीं आई और आप को तनाव होने लगता है कि बस जाने क्यों लेट हो रही है. कहीं ऐक्सीडैंट न हो गया हो, बस टै्रफिक जाम में न फंस गई हो या फिर कहीं ऐसा न हो कि बस निकल गई हो और बच्चा उस से उतर ही न पाया हो.

इस तरह की कई फुजूल आशंकाएं बहुत कम समय में ब्रेन सैल्स को प्रभावित करती हैं. ऐसे तनाव से बचने की कोशिश करते रहें न कि उसे बढ़ाते रहें.

ऐसे वक्त में आप को चाहिए कि धैर्य रखें, क्योंकि जब थोड़ी देर में बच्चा घर आ जाता है तो आप चंद मिनटों पहले की घबराहट या तनाव भूल जाती हैं, क्योंकि तनाव के दूर होते ही ब्रेन सैल्स संतुलित हो जाती हैं, इसलिए तनाव को आदत में शुमार न करें.

दूसरी अहम वजह है वक्त पर पर्याप्त नींद न लेना, देर से सोने की आदत ब्रेन सैल्स को गड़बड़ाती है, इसलिए देर रात तक न जागें और कम से कम 7 घंटे की क्वालिटी नींद जरूर लें. इस से ब्रेन सैल्स को अपना काम सुचारु ढंग से करने में सहूलियत रहती है.

क्या करें क्या नहीं

डाइट पर ध्यान दें: जंक और फास्ट फूड, मसालेदार भोजन और बेवक्त का खाना ब्रेन सैल्स के काम में बाधा डालता है. ज्यादातर फास्ट फूड और प्रिजर्वेटिव खाना ब्रेन सैल्स की प्रगति को बाधित करता है, क्योंकि उस में मौजूद ऐक्सोटाकिल ब्रेन सैल्स को ब्लौक करता है. इसलिए खानपान की आदतों को सुधारें.

आलस: यह एक ऐसी आदत या अवस्था है, जिस से ब्रेन सैल्स भी निष्क्रिय हो कर अपना असर स्वभाव या मूड पर जरूर दिखाती हैं. हर कोई जानता है कि ऐक्सरसाइज करने से स्ट्रैस लैवल कम होता है और न करने से बढ़ता है, इसलिए ब्रेन सैल्स की सक्रियता के लिए नियमित व्यायाम करें. ऐक्सरसाइज से दिमाग में खून की सप्लाई बढ़ती है. ब्रेन सैल्स को सुचारु रूप से काम करने देने के लिए वैज्ञानिक सब से बढि़या ऐक्सरसाइज पैदल चलने को मानते हैं. रोजाना 3-4 किलोमीटर चलने से ब्रेन सैल्स बेहतर तरीके से काम कर पाती हैं.

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उत्तेजना किसी भी तरह से हो सकती है. अगर आप भी बातबात पर उत्तेजित होने की आदत का शिकार हो चली हैं तो संभल जाएं, क्योंकि इस में भी ब्रेन सैल्स गड़बड़ाती हैं.

कम पानी पीने की आदत भी ब्रेन सैल्स के काम में बाधक बनती है, इसलिए प्रतिदिन कम से कम 8 गिलास पानी पीएं ताकि शरीर डिहाइड्रेशन का शिकार न हो. कई महिलाएं विशेष हालात में इसलिए पर्याप्त मात्रा में पानी नहीं पीतीं, क्योंकि उन्हें यह डर सताता रहता है कि इस से बारबार यूरिन के लिए जाना पड़ेगा. लेकिन सोचें यह कि यह आजकल कोई बहुत बड़ी समस्या नहीं है. टौयलेट हर कहीं आसानी से उपलब्ध हैं. जानबू झ कर पानी न पीने से ब्रेन सैल्स किसी दूसरी वजह के मुकाबले जल्दी निष्क्रिय होने लगती हैं और कभीकभी बेहोशी के बाद मृत्यु तक हो जाती है.

यह भी ध्यान रखें

ये ऐसी नुकसानदेह आदतें या स्थितियां हैं, जिन की जिम्मेदार आप खुद होती हैं और इन से ब्रेन सैल्स को कैसेकैसे नुकसान होते हैं यह नहीं सम झ पातीं. लेकिन बात सम झ आ जाए तो कई परेशानियों से बचा जा सकता है.

ब्रेन सैल्स की सक्रियता बढ़ाने के लिए पौष्टिक भोजन लेना बहुत जरूरी है. जंक और फास्ट फूड के बजाय फल और ड्राईफू्रट्स लेना बेहद फायदेमंद साबित होता है. हरी सब्जियां और बींस भी ब्रेन सैल्स के मित्र हैं. दिन में 2-3 बार चाय पीना भी ब्रेन सैल्स के लिए फायदेमंद है.

डायबिटीज, ब्लड प्रैशर और दिल के मरीजों के लिए तो और भी ज्यादा एहतियात बरतते हुए नुकसानदेह आदतों से बचना चाहिए. फायदेमंद आदतों को अपना कर नुकसानदेह आदतों को हटाया जा सकता है और यह मुश्किल भी नहीं है. पर्याप्त नींद, पौष्टिक खाना, व्यवस्थित दिनचर्या, ऐक्सरसाइज और पर्याप्त पानी पीना अच्छी आदतें हैं.

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घर की कैलोरी डस्टबिन न बनें

ग्लोबल न्यूट्रिशन रिपोर्ट 2017 के अनुसार 51 फीसदी भारतीय औरतें प्रजनन उम्र में ऐनीमिया की शिकार होती हैं. ‘इंडियन ह्यूमन डैवलपमैंट सर्वे’ यानी आईएचडीएस 2011 के एक सर्वे के मुताबिक दिल्ली की 15 से 49 वर्ष की 5 में से 1 शादीशुदा औरत और उत्तर प्रदेश की पूर्ण जनसंख्या की आधी औरतें अपने पति के बाद खाना खाती हैं. ‘सोशल ऐटिट्यूट्स रिसर्च फौर इंडिया’ ने टैलीफोनिक इंटरव्यू द्वारा 2016 में की गई रिसर्च में पाया कि आंकड़े आईएचडीएस  की 2011 की रिपोर्ट से ज्यादा भिन्न नहीं हैं.

जिन औरतों से यह बातचीत की गई थी उन के परिवार में पति के बाद खाने का अर्थ है सब से आखिर में खाना खाना. परिवार के लिए जितना खाना बनता है उस में से जो बचता है उसे ये औरतें खा लेती हैं. इस स्थिति में कई बार औरतें अपनी पोषण आवश्यकता से कम खाती हैं.

भारतीय परिवारों में रोटियों को ले कर अकसर एक बात कही जाती है कि आखिर में बनी रोटी जोकि बचे आटे की होती है और बाकी रोटियों से पतली होती है, घर के मर्द को नहीं खानी चाहिए, क्योंकि इस से उस की सेहत खराब हो सकती है. यह कैसी मानसिकता है, यह तो पता नहीं, लेकिन पूर्णरूप से निरर्थक है, यह साफ है.

जाहिर है कि किस तरह बचे कहे जाने वाले खाने को भी औरतों के सिर कितनी आसानी से मढ़ दिया जाता है. वैसे यह आज की बात नहीं है, सदियों से भारतीय परिवारों में यह परंपरा है कि घर के मर्द जब तक न खा लें उस से पहले औरत का खाना खा लेना उस के लिए पाप समान है.

औरतों पर मढ़ा गया बचा खाना

खुद हिंदू धर्मग्रंथों में ‘उच्छिष्ट’ का वर्णन मिलता है, जिस का अर्थ है बचा खाना या इंग्लिश में लैफ्टओवर. इस उच्छिष्ट खाने का अर्थ है किसी का बचा हुआ या जूठा खाना जिसे हिंदू धर्म में अवांछित माना गया है परंतु कुछ स्थितियों में इसे खाना अच्छा काम है जैसे, शूद्र का ऊंची जाति या ब्राह्मण के उच्छिष्ट या पत्नी का अपने पति के उच्छिष्ट का सेवन करना. कहीं भी इस बात का वर्णन नहीं है कि पति अपनी पत्नी का उच्छिष्ट खा सकता है.

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औरतों के आखिर में खाना खाने पर 2 स्थितियां सामने आती हैं. पहली, जिस में वह अंडरवेट हो जाती हैं और दूसरी जिस में उन का वेट अपने बच्चों की प्लेट से बचा खाने पर ओवरवेट हो जाता है. ये दोनों ही स्थितियां एकदूसरे से काफी अलग हैं और दोनों के ही अपने नुकसान हैं.

औरतों का अंडरवेट होना व कम खाना खाना केवल उन के खुद के लिए ही हानिकारक नहीं है, बल्कि यह गर्भधारण के समय उन के होने वाले बच्चे को भी अत्यधिक प्रभावित करता है. भारत में कुपोषण के शिकार बच्चों की गिनती प्रति वर्ष बढ़ रही है.

ऐनीमिया से ग्रस्त औरतों का आंकड़ा 60 फीसदी के पार है. बच्चे की सेहत उस की मां पर निर्भर करती है. बच्चे के जीवन के 2 साल पूर्णरूप से उस की मां की सेहत से जुड़े होते हैं. गर्भावस्था में मां के शरीर से भ्रूण को अपना पोषण मिलता है, उस का विकास होता है. पैदा होने के 6 महीने तक पूर्णरूप से नवजात अपनी मां के दूध पर आश्रित होता है. ऐसे में जब मां की खुद की सेहत सही नहीं होगी तो उस के बच्चे का सही विकास कैसे होगा?

बचा खाना खाने के गंभीर परिणाम

रिसर्च से सामने आया है कि अधिकतर भारतीय औरतें गर्भावस्था से पहले अंडरवेट होती हैं और गर्भावस्था के दौरान उन का वजन कुछ हद तक बढ़ता है. इस से पैदा होने वाले बच्चे का वजन सामान्य से कम होता है, नजवात की मृत्यु हो सकती है, वह बौना भी पैदा हो सकता है.

औरतें अकसर अपने बच्चों की प्लेट से बचा खाना उस समय भी उठा कर खाती हैं जब वे गर्भावस्था में होती हैं. गर्भावस्था के दौरान किसी का जूठा, बचा खाने से महिला के गर्भ में पल रहा बच्चा मानसिक रूप से अपंग भी हो सकता है. यूके में हर वर्ष 1 हजार बच्चे सीएमवी यानी साइटोमेगालो वायरस के शिकार होते हैं, जिन में से करीब 200 सेरेब्रल पाल्सी, ऐपिलैप्सी, सिर का छोटा आकार व अन्य विकास संबंधित बीमारियों से ग्रस्त होते हैं.

सीएमवी से महिला को गर्भपात भी हो सकता है तथा जो बच्चा इस इन्फैक्शन के साथ पैदा होता है उसे जन्म के तुरंत बाद चाहे कोई बीमारी न हो, लेकिन कुछ सालों के भीतर लक्षण दिखने शुरू हो जाते हैं. इस बीमारी का सब से बड़ा कारण है किसी का सलाइवा जूठे खाने के माध्यम से गर्भवती महिला के संपर्क में आना. इसलिए गर्भवती महिलाओं के लिए अपने पति या बच्चों की प्लेट से बचा खाना खाने की आदत को छोड़ना बहुत जरूरी है.

बचा और जूठा खाने की मजबूरी

परिवार के साथ बैठ कर खाना खाने वाली महिलाएं एपीआई आवश्यकतानुसार भोजन करती हैं, बावजूद इस के जब उन के पति या बच्चे खाने की प्लेट में कुछ बचा देते हैं तो भूख न होते हुए भी वे उसे खा लेती हैं. पति और बच्चे तो अपनीअपनी प्लेट सरका कर उठ जाते हैं, लेकिन औरत का यह मानना कि चाहे कुछ भी हो जाए खाना व्यर्थ न जाए, उस की इस आदत की सब से बड़ी वजह है. वह खाना व्यर्थ न करने के लिए अपनी भूख से ज्यादा खा लेती है. इस से उस के शरीर में 400 कैलोरी तक बढ़ सकती है.

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यदि अपने बच्चे को खाना परोस रही हैं तो उस की जरूरत के हिसाब से दें. प्रोटीनयुक्त खाद्यपदार्थ जैसे चिकन या मछली उस की हथेली के साइज का दें. फल और सब्जियां 2 हथेलियों के बराबर और फैट्स जैसेकि चीज और मक्खन एक अंगूठे जितना दें. चावल आप उसे मुट्ठीभर दें व दाल और रोटी भी उस की भूख के हिसाब से दें. इस से न खाना बचेगा न आप को खाना पड़ेगा. यदि बच्चों ने रोटीसब्जी बचा दी है या कोई और स्नैक तो उसे बाद केलिए बचा लें. जब बच्चे को फिर भूख लगे तब दें.

अधिकतर बच्चों की आदत होती है कि पैक्ड फूड के बड़ेबड़े पैकेट्स तो वे शौक से खोल लेते हैं और एकाधा बाइट खा कर ही अपनी मां को पकड़ा देते हैं. कभी चौकलेट तो कभी बिस्कुट, कभी नमकीन तो कभी बची पेप्सी, सब मां के हिस्से में ही आता है. घर में तो फिर भी औरतें बच्चों का बचा खाने से पहले सोचती हैं, लेकिन बच्चों की यही आदत जब किसी रिश्तेदार या दोस्त के घर दिखने लगे तो मां के पास बच्चों के छोड़े खाने को खाने के अलावा कोई चारा नहीं बचता. आखिर जिन के घर गए हैं उन के खाने को बरबाद करना भी तो ठीक नहीं.

बासी खाने की परंपरा

स्थिति केवल बचे खाने को मां द्वारा खाने की ही नहीं है, बल्कि बचे खाने को बासी कर खाने की भी है. भारतीय परिवारों में पति को बासी खाना देना औरत के लिए एक अपमान की बात सम झी जाती है, जिस का एक कारण लोगों का यह मानना है कि पति काम कर के, खूनपसीना बहा कर आता है और इस बाबत उसे ताजा पका खाना ही देना चाहिए. दूसरा, यह पितृसत्तात्मक समाज की देन है. वहीं बच्चे तो अकसर सभी के नखरीले ही होते हैं और उन्हें पिछली रात का या सुबह का खाना नहीं खाना तो मतलब नहीं खाना. तो इस में भी इस बासी भोजन को खाने का जिम्मा औरत के सिर ही आता है.

बासी खाना खाने से व्यक्ति को गंभीर पाचन संबंधी बीमारियां हो सकती हैं. खाना बनने के 2 घंटे के भीतर ही उसे फ्रिज में न रखा जाए तो उस में बैक्टीरिया लगने शुरू हो जाते हैं, जिस से फूड पौइजनिंग तक हो सकती है. ऐसिडिटी भी हो सकती है.

इस बात का ध्यान रखें कि आप कोई डस्टबिन नहीं हैं जो कुछ भी उठाया और खा लिया. साथ ही परिवार के साथ बैठ कर खाना जरूरी है बजाय सभी के बाद खाने के. बदलाव ही जीवन का आधार है और यदि आप अपनी आदतें या कहें पुरानी परंपराएं नहीं बदलेंगी तो आप का शरीर बदलने लगेगा. आप की सेहत

में बदलाव होगा. बुरे बदलावों की गुंजाइश ऐसे में ज्यादा होती है. इसलिए अपनी और अपने परिवार की सेहत के लिए अच्छी आदतें अपनाइए और अपने शरीर के साथ खिलवाड़ करना छोड़ दीजिए.

‘इंडियन ह्यूमन डैवलपमैंट सर्वे’ यानी आईएचडीएस 2011 के एक सर्वे के मुताबिक दिल्ली की 15 से 49 वर्ष की 5 में से 1 शादीशुदा औरत और उत्तर प्रदेश की पूर्ण जनसंख्या की आधी औरतें अपने पति के बाद खाना खाती हैं.

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सैंट जौर्जेस यूनिवर्सिटी, लंदन के वैज्ञानिकों की रिसर्च के मुताबिक जो महिलाएं गर्भावस्था के दौरान बचा, जूठा खाना खाती हैं सीएमवी यानी साइटोमेगालो वायरस की चपेट में आ सकती हैं. इस रोग के चलते उन के बच्चे का विकास बाधित हो सकता है, मानसिक बीमारियां हो सकती हैं. वह बेहरा भी पैदा हो सकता है.

वर्ल्ड बैंक रिपोर्ट के अनुसार भारत में 4 वर्ष से कम आयु के करीब आधे बच्चे कुपोषण के शिकार हैं वहीं 30 फीसदी नवजात कुपोषित पैदा होते हैं.

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