Abortion Pills लेने के बाद मेरी वाइफ कंसीव नहीं कर पा रही है, क्या करें?

सवाल-

सुहागरात के बाद जब बीवी पेट से हुई, तो मुझे 2 महीने बाद पता चला. मैं ने मैडिकल स्टोर से बच्चा गिराने की दवा लेकर खिला दी थी. अब 7 महीने हो चुके हैं, पर वह दोबारा पेट से नहीं हुई. मैं क्या करूं?

जवाब-

कभी भी बाजार से दवा ला कर गर्भपात नहीं करना चाहिए. इस के लिए माहिर डाक्टर की मदद लेनी चाहिए. ऐसी मनमानी से अकसर नुकसान हो जाता है. अब आप किसी माहिर महिला डाक्टर से अपनी बीवी का चैकअप कराएं और उसी के मुताबिक इलाज कराएं. वैसे, आप की बीवी का फिलहाल पेट से न होना महज संयोग भी हो सकता है.

बचाव इलाज से ज्यादा अच्छा होता है, महिला गर्भनिरोधक उपायों पर यह बात बिलकुल सही बैठती है. बाजार में काफी पहले से महिला गर्भनिरोधक मौजूद हैं, लेकिन आज भी भारत में लाखों महिलाएं ऐसी हैं, जो नहीं जानतीं कि उन के लिए कौन सा गर्भनिरोधक उपाय सही है. इस वक्त तो महिलाओं के लिए अनचाहे गर्भ से बचने और बच्चों में अंतर रखने के लिए कई तरह के उपाय बाजार में मौजूद हैं. इन में ओरल पिल्स से ले कर इंप्लांट्स तक कई विकल्प हैं. लेकिन आमतौर पर इन में से सही विकल्प का चुनाव महिलाएं नहीं कर पातीं. ज्यादातर महिलाएं विज्ञापनों, सहेलियों या रिश्तेदारों के कहने पर गर्भनिरोधकों का इस्तेमाल करने लगती हैं, लेकिन जानकारी की कमी और गलत विकल्प का चुनाव महिलाओं के लिए बड़ी परेशानी का कारण बन जाता है.

मूलचंद अस्पताल की सीनियर गायनाकौलोजिस्ट डा. मीता वर्मा के मुताबिक, ‘‘महिलाएं गर्भनिरोधकों के बारे में जानती हैं, लेकिन भारतीय समाज में ऐसी कई भ्रांतियां हैं, जो महिलाओं के लिए मुश्किल पैदा कर देती हैं. भारत में अभी भी बच्चों को कुदरत की देन मान कर परिवार नियोजन की सोच को ही खत्म कर दिया जाता है. कई महिलाओं में यह सोच भी विकसित हो जाती है कि गर्भनिरोधकों का इस्तेमाल करने से उन की प्रजनन क्षमता और होने वाले बच्चे के विकास पर गलत प्रभाव पड़ेगा. इसी तरह के और भी न जाने कितने मिथक महिलाओं के मन में घर किए रहते हैं, लेकिन आज के समय में जरूरी है कि डाक्टर की सलाह से सही गर्भनिरोधक का इस्तेमाल किया जाए.’’

डा. मीता बताती हैं कि ज्यादातर जोड़े ऐंजौयमैंट को ज्यादा तरजीह देते हैं, जिस के चलते वे कंडोम या किसी भी तरह के दूसरे कौन्ट्रासैप्टिव का इस्तेमाल नहीं करते और जब गर्भ ठहर जाता है, तो गर्भपात कराने से भी नहीं हिचकते. लेकिन यहां वे यह भूल जाते हैं कि गर्भपात इस का हल नहीं है, क्योंकि बारबार गर्भपात से बच्चेदानी पर बुरा असर पड़ता है, जो महिलाओं के लिए बड़ी मुसीबत बन जाती है. इसलिए युवा और नवविवाहित जोड़े अगर गर्भपात को आसान रास्ता मान रहे हैं तो यह उन की भूल है.

इस वक्त महिला गर्भनिरोधक के बाजार में 2 तरह के कौन्ट्रासैप्टिव मौजूद हैं-

  • हारमोन बेस्ड कौन्ट्रासैप्टिव्स.
  • नौनहारमोनल कौन्ट्रासैप्टिव्स.

हारमोन बेस्ड कौन्ट्रासैप्टिव्स : इस तरह के कौन्ट्रासैप्टिव सब से ज्यादा चलन में हैं. ये ऐसे कौन्ट्रासैप्टिव्स हैं, जिन के इस्तेमाल से शरीर के अंदर हारमोनल बदलाव के जरिए अनचाहे गर्भ को रोका जाता है. 35 से कम उम्र की कोई भी स्वस्थ महिला जो कुछ समय तक बच्चा नहीं चाहती, डाक्टर की सलाह से इन का प्रयोग कर सकती है. लेकिन अगर कोई महिला हार्ट या लिवर की बीमारी से पीडि़त है या उसे अस्थमा और ब्लडप्रैशर की शिकायत रहती है, तो हारमोन बेस्ड कौन्ट्रासैप्टिव्स उस के लिए ठीक नहीं हैं. इस से अलग जो महिलाएं धूम्रपान या शराब का सेवन करती हैं या जिन का वजन ज्यादा है उन्हें भी इस तरह के कौन्ट्रासैप्टिव्स से बचना चाहिए.

इस वक्त बाजार में इस कैटेगरी के सब से ज्यादा कौन्ट्रासैप्टिव्स उपलब्ध हैं.

  1. ओरल पिल्स

यह सब से ज्यादा इस्तेमाल में लाया जाने वाला उपाय है. इसे महीने में 21 दिन खाना होता है. यह इसलिए भी ज्यादा चलन मेें है, क्योंकि इस का इस्तेमाल काफी आसान है और यह उपाय सस्ता भी है. लेकिन ओरल पिल्स को बिना डाक्टर की सलाह के न लें, क्योंकि ये सभी को सूट नहीं करतीं. इन्हें सही तरह से इस्तेमाल करने पर ही ये बचाव कर सकती हैं. लेकिन ज्यादातर महिलाएं सही पिल्स का चुनाव नहीं कर पातीं, जिस का नतीजा होता है अनचाहा गर्भ. ओरल पिल्स कई महिलाओं में वजन बढ़ाने और उल्टियों की समस्या का भी कारण बनती हैं. ओरल पिल्स के अलावा बाजार में मिनी पिल्स भी उपलब्ध हैं, जो ज्यादा कारगर और सेफ हैं. मिनी पिल्स भी प्रोजैस्ट्रौन और दूसरे हारमोंस के कौंबिनेशन से बनी होती हैं, जिन्हें दूध पिलाने वाली मां भी इस्तेमाल कर सकती है.

2. इमरजेंसी पिल्स

इस तरह की गर्भनिरोधक गोलियां ओरल पिल्स की पूरक हैं. अगर कोई महिला ओरल पिल्स लेना भूल जाती है और असुरक्षित सैक्स संबंध बनाती है, तो अनचाहे गर्भ से बचने के लिए 72 घंटे के अंदर वह इस का इस्तेमाल कर सकती है. इसीलिए इसे मौर्निंग आफ्टर पिल भी कहा जाता है. लेकिन यह उपाय भी सुरक्षा की पूरी गारंटी नहीं देता. इसलिए इसे केवल मजबूरी में ही इस्तेमाल करें, इसे आदत न बनाएं. लगातार इस्तेमाल से यह महिलाओं के लिए मुसीबत भी बन सकती है.

3. हारमोन इंजैक्शन

यह एक बेहद प्रभावशाली उपाय है. जो महिलाएं रोजाना गोलियां नहीं खाना चाहतीं, वे इस का इस्तेमाल कर सकती हैं. इस में महिला को प्रोजैस्ट्रौन का इंजैक्शन दिया जाता है. यह इंजैक्शन यूटरस की दीवार पर मौजूद म्यूकस को गाढ़ा कर देता है ताकि स्पर्म अंदर न जाएं और औव्यूलेशन को रोका जा सके. इस इंजैक्शन को लेने के 24 घंटों के अंदर ही इस का असर शुरू हो जाता है. यह 10 से 13 हफ्तों तक सुरक्षा देता है, जिस के बाद फिर इंजैक्शन लेना होता है. कुछ महिलाओं का इस से वजन बढ़ सकता है और उन के पीरियड्स अनियमित भी हो सकते हैं. इस के इस्तेमाल के बाद कंसीव करने में भी कुछ महीनों का वक्त लग सकता है.

4. इंप्लांट

इस प्रक्रिया में एक बेहद पतली प्लास्टिक रौड हाथ के ठीक निचले हिस्से में फिट कर दी जाती है. यह रौड शरीर में प्रोजैस्ट्रौन रिलीज करती है, जिस से औव्यूलेशन नहीं हो पाता. यह यूटरस में मौजूद म्यूकस का नेचर बदल देता है, जिस से प्रैग्नैंसी को रोका जा सकता है. इसे सब से सेफ औप्शन माना जाता है. यह इंप्लांट 3 से 5 साल तक के लिए प्रैग्नैंसी से बचाव करता है. लेकिन भारत में अभी यह उपलब्ध नहीं है. 

नौनहारमोनल कौन्ट्रासैप्टिव्स: ये ऐसे कौन्ट्रासैप्टिव्स हैं जिन से किसी तरह के हारमोन शरीर के अंदर नहीं जाते. ये उन महिलाओं के लिए कारगर हैं, जिन्हें हार्ट, लिवर, अस्थमा या ब्लडप्रैशर की शिकायत रहती है. लेकिन नौनहारमोनल कौन्ट्रासैप्टिव्स के इस्तेमाल से पहले डाक्टरी सलाह बेहद जरूरी है.

फीमेल कौन्ट्रासैप्टिव्स की इस कैटेगरी में भी कई विकल्प मौजूद हैं.

5. फीमेल कंडोम

गर्भनिरोधकों की श्रेणी में महिलाओं के लिए कंडोम एक नई चीज है. यह कंडोम लुब्रिकेटेड पौलीथिन शीट का बना होता है. भारत में महिलाओं के लिए बने ये कंडोम हाल में ही बाजार में उतारे गए हैं. इसे भी पुरुष कंडोम की ही तरह एक ही बार इस्तेमाल में लाया जा सकता है. ये प्रैग्नैंसी रोकने में पूरी तरह से कारगर हैं, बशर्ते सैक्स के दौरान इस की पोजीशन ठीक रहे. यह प्रैग्नैंसी रोकने के अलावा एचआईवी जैसे रोगों से भी सुरक्षा देता है. लेकिन यह एक महंगा विकल्प है. महिला कंडोम की कीमत बाजार में 80 रुपए तक है, इसलिए डाक्टर पुरुष कंडोम की सलाह देते हैं, क्योंकि वह ज्यादा सस्ता विकल्प है.

6. इंट्रायुटेराइन कौन्ट्रासैप्टिव डिवाइस

इस डिवाइस को कौपर टी या मल्टीलोड डिवाइस के नाम से ज्यादा जाना जाता है. यह एक तरह की लचीली प्लास्टिक की डिवाइस होती है जिसे कौपर के तार के साथ यूटरस में लगा दिया जाता है. इसे डाक्टर की सहायता से फिट किया जाता है. कौपर वायर यूटरस में ऐसा असर पैदा करता है जिस से शुक्राणु और अंडाणु आपस में मिल नहीं पाते और गर्भ नहीं ठहरता. यह 98% तक सुरक्षा देता है. इसे 3 या 5 साल के लिए लगवाया जा सकता है. सरकारी हैल्थ सैंटरों में यह मुफ्त उपलब्ध है, जबकि बाजार में इस की कीमत 375 रुपए से 500 रुपए के बीच है. इस से पीरियड ज्यादा होना और पैरों में दर्द रहना आम बात है. जिन्हें कौपर से ऐलर्जी है उन के लिए इस का इस्तेमाल नुकसानदेह हो सकता है.

7. स्पर्मिसाइड जैली

इस तरह के कौन्ट्रासैप्टिव्स भी काफी अच्छे विकल्पों में गिने जाते हैं. अगर महिलाएं कंडोम या किसी तरह के डिवाइस को इस्तेमाल नहीं करना चाहतीं, तो इस तरह की जैली या फोम बेस्ड कौन्ट्रासैप्टिव इस्तेमाल कर सकती हैं. इसे सैक्स से ठीक पहले वजाइना में लगाना होता है. इस में मौजूद ‘नोनोक्सिनोल 9 कैमिकल’ स्पर्म को संपर्क में आते ही खत्म कर देता है. कुछ मेल कंडोम में भी स्पर्मिसाइड होते हैं. यह उपाय काफी कारगर है, लेकिन कुछ महिलाओं को इस से ऐलर्जी भी होती है, इस का ध्यान रखना जरूरी है.  

सर्दियों में आंखों में खुजली शुरू हो जाती है?

सवाल-

मैं 25 साल की कामकाजी महिला हूं. सर्दियों में आंखों में खुजली शुरू हो जाती है. कई उपाय ट्राय कर लिए, लेकिन कोई फायदा नहीं मिला. बताएं मैं क्या करूं?

जवाब-

ठंड के मौसम में आंखों में नमी की कमी के कारण उन में सूखापन और खुजली होना आम समस्याएं हैं. इन से घबराने की जरूरत नहीं है. चूंकि इस मौसम में ज्यादातर लोग ठंड से बचने के लिए हीटर का प्रयोग करते हैं, इसलिए आंखों की त्वचा अधिक रूखी हो जाती है. खुजली की समस्या से बचने के लिए हीटर का कम से कम इस्तेमाल करें. आंखों की नमी बरकरार रखने के लिए मौइस्चराइजर लगाएं. बाहर जाते वक्त चश्मा लगाएं. फिर भी समस्या ठीक न हो तो किसी डर्मेटोलौजिस्ट से संपर्क करें.

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मौनसून में होने वाली आंखों की प्रमुख समस्याएं हैं:

कंजक्टिवाइटिस: कंजक्टिवाइटिस में आंखों के कंजक्टाइवा में सूजन आ जाती है. उन में जलन महसूस होती है. आंखों से पानी जैसा पदार्थ निकलने लगता है.

कारण: फंगस या वायरस का संक्रमण, हवा में मौजूद धूल या परागकण, मेकअप प्रोडक्ट्स.

उपचार: अगर आप कंजक्टिवाइटिस के शिकार हो जाएं तो हमेशा अपनी आंखों को ठंडा रखने के लिए गहरे रंग के ग्लासेज पहनें. अपनी आंखों को साफ रखें. दिन में कम से कम 3-4 बार ठंडे पानी के आंखों को छींटे दें. ठंडे पानी से आंखें धोने से रोगाणु निकल जाते हैं. अपनी निजी चीजें जैसे टौवेल, रूमाल आदि किसी से साझा न करें. अगर पूरी सावधानी बरतने के बाद भी आंखें संक्रमण की चपेट में आ जाएं तो स्विमिंग के लिए न जाएं. कंजक्टिवाइटिस को ठीक होने में कुछ दिन लगते हैं. बेहतर है कि किसी अच्छे नेत्ररोग विशेषज्ञ को दिखाया जाए और उचित उपचार कराया जाए.

कौर्नियल अल्सर: आंखों की पुतलियों के ऊपर जो पतली झिल्ली या परत होती है उसे कौर्निया कहते हैं. जब इस पर खुला फफोला हो जाता है, तो उसे कौर्नियल अल्सर कहते हैं. कौर्नियल अल्सर होने पर आंखों में बहुत दर्द होता है, पस निकलने लगता है, धुंधला दिखाई देने लगता है.

कारण: बैक्टीरिया, फंगस या वायरस का संक्रमण.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- आंखों की सुरक्षा है जरुरी

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सर्दियों के दौरान आंखों की त्वचा बहुत ज्यादा ड्राई हो जाती है?

सवाल-

सर्दियों के दौरान आंखों की त्वचा बहुत ज्यादा खुश्क और रूखी हो जाती है. उस में सिकुड़न आ जाती है, जिस से मुझे शर्मिंदगी होती है. बताएं इस समस्या से कैसे छुटकारा पाऊं?

जवाब-

ठंड के मौसम में आंखों की त्वचा में हलकी सिकुड़न आना नौर्मल समस्या है. लेकिन यदि सिकुड़न ज्यादा होती है तो आंखों का खास ध्यान रखने की जरूरत है. इस मौसम में बाकी अंगों के साथसाथ आंखों की त्वचा को भी नमी की जरूरत होती है. इसलिए एक अच्छे मौइस्चराइजर का इस्तेमाल करें. रोज रात को सोने से पहले कैस्टर औयल से हलके हाथों से त्वचा की मसाज करें. त्वचा को रगड़ें बिलकुल नहीं. सुबह फेस वाश करने के बाद कुछ देर क्लींजिंग मिल्क से आंखों की त्वचा की मसाज करें. फिर साफ कर मौइस्चराइजर में गुलाबजल मिला कर लगाएं. यदि इन उपायों से भी समस्या ठीक न हो तो डर्मेटोलौजिस्ट से मिलें.

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