रेटिंगः दो स्टार
निर्देशकः अभिषेक शर्मा
कलाकारः दुलकर सलमान, सोनम के आहुजा, संजय कपूर, अंगद बेदी, सिकंदर खेर और अन्य
अवधिः दो घंटा 16 मिनट
मशहूर राइटर अनुजा चौहान के कई उपन्यास चर्चा में रहे हैं. उनके कुछ उपन्यासों पर सीरियल भी बन चुके हैं. अब अनुजा चौहान के 2008 के चर्चित उपन्यास ‘‘द जोया फैक्टर’’ पर इसी नाम से फिल्मकार अभिषेक शर्मा एक रोमांटिक कौमेडी फिल्म ‘‘द जोया फैक्टर’’ लेकर आए हैं, जिसमें उन्होंने लक का तड़का लगाने की कोशिश की है. मगर एक बार फिर यह बात साबित हो गयी है कि किसी किताब को दृष्य श्राव्य/सिनेमा में बदलना आसान काम नही है.
कहानीः
क्रिकेट की पृष्ठभूमि पर बनी ये फिल्म सेना के अवकाश प्राप्त अधिकारी और राजपूत विजयेंद्र सिंह सोलंकी (संजय कपूर) की बेटी जोया सिंह सोलंकी (सोनम के आहुजा) के इर्द गिर्द घूमती है. चुलबुली और मासूम जोया एक विज्ञापन एजेंसी में काम करती है. जोया सोलंकी का जन्म 25 अगस्त 1983 को हुआ था, जिस दिन कपिल देव की कप्तानी में भारतीय क्रिकेट टीम विश्व विजेता बनी थी. कहा जाता है कि वह ब्रम्ह मुहूर्त था और जोया खुद को क्रिकेट के लिए लकी मानती हैं. जोया सिंह सोलंकी का सेना में कार्यरत भाई जोरावर सिंह सोलंकी (सिकंदर खेर) भी उसे क्रिकेट के लिए लकी मानता है.
उधर विज्ञापन एजेंसी की मालकिन मोनिता जब जब जोया को बाहर का रास्ता दिखाना चाहती है, तब तब कुछ ऐसा होता है कि जोया कि नौकरी बच जाती है. फिर जोया सोलंकी को भारतीय क्रिकेट टीम के साथ पेप्सी का एड फिल्माने की जिम्मेदारी दी जाती है और उसकी मुलाकात क्रिकेट टीम के कैप्टन निखिल खोदा (दुलकर सलमान) से होती है. पहली नजर में ही दोनों एक-दूसरे के आर्कषण में बंध जाते हैं. एक साल पहले ही निखिल खोदा को रौबिन रावल (अंगद बेदी) की जगह पर कैप्टन बनाया गया है. इस बात से एक तरफ रौबिन रावल और उसके मामा तथा क्रिकेट बोर्ड के प्रमुख जोगपाल नाराज हैं, तो दूसरी तरफ निखिल हर मैच हारते जा रहे हैं.
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एक दिन निखिल के कहने पर जोया सिंह भारतीय क्रिकेट टीम के साथ नाश्ता करती है और सभी को यह बताती है कि उसके घरवाले क्रिकेट के लिए उसे लकी चार्म मानते हैं, तो टीम के कई खिलाड़ी इस बात से प्रभावित नजर आते हैं. उसी दिन जब इंडिया अविश्वसनीय तरीके से मैच जीत जाती है, तो टीम का यह भरोसा पक्का हो जाता है कि जोया क्रिकेट के मामले में लकी है. जबकि निखिल को लक के बजाय खिलाड़ियों की मेहनत और प्रतिभा पर भरोसा है.
जोया और निखिल का प्यार आगे बढ़ता है और उसी के साथ भारतीय क्रिकेट टीम के सदस्यों के बीच क्रिकेट के लिए जोया लकी चार्म होने का यकीन बढ़ता जाता है. मगर इसी के साथ निखिल खोदा और रौबिन रावल की दुश्मनी बढ़ती है. रौबिन अपनी चाल चलता है. जिसके चलते भारतीय क्रिकेट बोर्ड जोया को भारतीय क्रिकेट टीम का लकी मस्कट बनने का प्रस्ताव देता है, जिससे भारत विश्व कप हासिल कर सके. पर निखिल के कहने पर जोया प्रस्ताव ठुकरा देती है. उसके बाद रोबिन चाल चलता है, जिससे जोया व निखिल के बीच गलतफहमियां पैदा हो जाती हैं.
अब जोया निखिल के सामने अपने लक फैक्टर को साबित करने के लिए क्रिकेट बोर्ड के एक करोड़ के कौन्ट्रैक्ट पर हस्ताक्षर कर देती है. जबकि अभी भी निखिल अपनी टीम की मेहनत की बदौलत विश्व कप जीतना चाहता है. कहानी कई मोड़ों से होकर गुजरती है. निखिल व जोया एक हो जाते हैं.
पटकथाः
अति कमजोर पटकथा के चलते फिल्म पूरी तरह से बचकानी बनकर रह गयी है. पटकथा लेखकों (अनुजा चौहान, प्रदुम्न सिंह और नेहा राकेश शर्मा) ने फिल्म को बर्बाद करने में अपनी तरफ से कोई कसर बाकी नहीं रखी. फिल्म की शुरूआत शाहरुख खान की आवाज के साथ होती है, जहां वह क्रिकेट को डेंगू और मलेरिया से ज्यादा खतरनाक बीमारी बताते हैं. यानी कि लेखकों ने फिल्म की शुरूआत में ही क्रिकेट को खारिज कर दिया. क्रिकेट की राजनीति पर फिल्म कुछ
कहती है, मगर क्रिकेट के व्यवसायीकरण पर फिल्म चुप रहती है. उसके बाद पटकथा लेखकों का सारा ध्यान क्रिकेट में व्याप्त राजनीति, दो खिलाड़ियों (दुलकर सलमान व अंगद बेदी के किरदारों) की निजी दुश्मनी पर ज्यादा रहा. जिसके चलते प्रेम कहानी ठीक से पनपने की बजाय महज शारीरिक आर्कषण बनकर रह जाता है. इतना ही नहीं फिल्म की शुरूआत में ही अनिल कपूर पर एक सर्कसनुमा एड फिल्म का सीन न सिर्फ बचकाना है, बल्कि बेवजह ठूंसा हुआ लगता है. इतना ही नहीं लेखकीय कल्पना की पराकाष्ठा तो यह है कि आधुनिक व वैज्ञानिक युग में लेखकों ने जोया को देवी की तरह पेश कर लोगों से उनके पैर छुआकर आशीर्वाद भी दिलवा दिया.
फिल्म ‘लक’ और ‘क्रिकेट’ के खेल के इर्दगिर्द है, पर फिल्म में क्रिकेट खेल को गंभीरता से लिया ही नहीं गया. जबकि पटकथा लेखकों ने क्रिकेट टीम में कुछ खिलाड़ियों के किरदार वास्तविक क्रिकेटरों पर ही रचे हैं. इस फिल्म से एक बात उभर कर आयी कि अवकाश प्राप्त सैनिक हो या सेवारत सैनिक हो, उनके हाथ में हमेशा शराब की बोटल ही रहती है. अब इससे सैनिक कितना सहमत हैं, पता नही.
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निर्देशनः
‘‘द जोया फैक्टर’’ देखने के बाद इस बात का अहसास ही नहीं होता कि इस फिल्म का निर्देशन ‘तेरे बिन लादेन’ व ‘परमाणु: द स्टोरी औफ पोखरण’ फेम निर्देशक अभिषेक शर्मा ने किया है. फिल्म में बहुत कुछ बचकाना सा है.
एक्टिंग:
फिल्म का सकारात्मक पक्ष सोनम के आहुजा का अभिनय ही है. वैसे कुछ सीन्स में उनके अभिनय में दोहराव नजर आता है. दुलकर सलमान हैंडसम लगे हैं और किरदार को ठीक से जिया है. यह एक अलग बात है कि सोनम के आहुजा और दुलकर सलमान को पटकथा से मदद नहीं मिल सकी. मगर परदे पर दुलकर और सोनम की केमिस्ट्री इस फिल्म को काफी हद तक संभालती है. अंगद बेदी ने संजीदा अभिनय किया है. संजय कपूर व सिकंदर खेर ने ठीक ठाक काम किया है. अब दुलकर व सोनम इस फिल्म को बौक्स आफिस पर कितना बचा पाते हैं, यह तो वक्त ही बताएगा.