श्यामाचरण ने धर्मकर्म की चादर में खुद को लपेट रखा था. वे चाहते थे कि धर्म का वायरस पूरे घर को अपनी चपेट में लेले, लेकिन पाखंडों का भार कोई कब तक उठा सकता है.