महेश बहुत देर से पता नहीं क्या सोचती हुई अपनी उदास सी पत्नी वैशाली का चेहरा देख रहे थे, वैशाली अपने ज्वैलरी बौक्स में अपनी चीजें रख रही थी, जब महेश से रहा नहीं गया, तो पत्नी को छेड़ते हुए बोले, ‘‘कहां खोई हो? अरे, नईनई डायमंड ज्वैलरी को देख कर भी कोई स्त्री इतनी उदास होती है क्या? आज तो तुम्हारा चेहरा खुशी से चमकना चाहिए, इकलौते बेटे की सगाई की है आज तुम ने. इतनी उदासी क्यों?’’
वैशाली कुछ बोली नहीं, चुपचाप अलमारी को ताला लगाया और सोने के लिए कपड़े बदलने चली गई, बेटा विपिन दोस्तों के साथ था उसे आने में देर थी. वैशाली सोने आई, महेश ने फिर पूछा, ‘‘क्या हुआ? थक गई क्या?’’
‘‘नहीं, ठीक हूं.’’
‘‘वैशाली, बहुत अच्छा प्रोग्राम रहा न आज? मन बहुत खुश है मेरा, कितनी अच्छी जोड़ी है विपिन और अंजलि की.’’
वैशाली ने बस ‘हूं’ कहा और आंखों पर हाथ रख लिया.
"चलो, अब सो जाओ, तुम शायद थक गई हो," कह कर महेश ने लाइट बंद कर दी और सोने लेट गए.
वैशाली ने ठंडी सांस भर कर अंधेरे में आंखों से हाथ हटाया और पिछले दिनों के घटनाक्रम पर गौर करने लगी. विपिन की ही पसंद अंजलि से उस की सगाई आज एक शानदार होटल में हुई थी, विवाह दो महीने बाद मई में था, विपिन के साथ ही पहले इंजीनियरिंग फिर एमबीए किया था. अंजलि ने, सफल, धनी, बिजनैसमैन अनिल और राधागोयल की इकलौती बेटी अंजलि को वैशाली ने देखते ही बहू के रूप में स्वीकार कर लिया था. गौर वर्ण, नाजुक सी, सुशिक्षित, सुंदर, स्मार्ट अंजलि को विपिन ने मातापिता से एक कौफी शौप में मिलवाया था, वैशाली की नजर में इस सवालों की जातिउम्र का कोई महत्व नहीं था, वैशाली का परिवार ब्राह्मïण था, अंजलि वैश्य परिवार से, जो था सब ठीक था. जब गोयल दंपती पहली बार इस रिश्ते के बारे में बात करने आए थे, वैशाली तो उन के सभ्य व्यवहार और शालीनता पर मुग्ध हो गई थी, इतने बड़े बिजनैसमैन, इतने विनम्र, हाथ जोड़ कर ही बात करते रहे थे, वैशाली को तो संकोच हो आया था, उसी समय बात पक्की हो गई थी और आज का दिन सगाई का तय हो गया था, उसी दिन बात पक्की होते ही अनिल ने महेश, वैशाली और विपिन के हाथ में एकएक भारी लिफाफा पकड़ाया तो महेश और वैशाली तो मना करते ही रह गए थे, लेकिन राधा ने हाथ जोड़ कर कहा था, ‘‘मना मत कीजिए, भाई साहब, हमारी एक ही बेटी है, सब उसी का तो है. और यह तो बस आज खुशी में एक छोटा सा तोहफा है, हमारे भी तो अरमान है.’’