‘‘आज फिर उस का फोन आया था. कह रहा था फिर से शादी कर लेते हैं. मैं अपने बेटे के बिना नहीं रह सकता हूं. तुम भी इतनी कोशिशों के बाद कोई अच्छी नौकरी नहीं ढूंढ़ पाई हो. इस बार पक्का वादा करता हूं, आखिरी सांस तक निभाऊंगा,’’ वंशिका एक सांस में सबकुछ बोल गई. रितु उस के चेहरे के भाव पढ़ने की कोशिश कर रही थी. खूबसूरत चेहरे पर लालिमा आ गई थी.
थोड़ा सा गर्व भी मस्तिष्क पर झलक रहा था जैसे कहना चाह रहा हो. आखिर मैं ने उसे उस की गलती का एहसास करवा ही दिया है. बेटे के प्रति उस के दिल में भावना जगा ही दी है. हार कर ही सही मैं जीत गई हूं. वंशिका के चेहरे की गरिमा देख कर रितु खुश थी लेकिन दुखी थी उस के साफ दिल से. वंशिका का दिल इतना साफ, इतना कोमल था कि उस की जिंदगी को 25 साल की उम्र में ही अवसाद से भर देने वाले इंसान से भी उसे नफरत नहीं थी.
‘‘किस मिट्टी की बनी हो, वंशिका. उस इंसान ने बिना किसी अपराध के तुम्हारी जिंदगी को कैद बना दिया है. फिर भी उस की बातों पर गौर कर रही हो.’’ वंशिका रितु की बात से सहमत थी, लेकिन सुजीत की बातों पर रितु की तरह शक नहीं कर पा रही थी. ‘‘उस ने खुद ही मु झ से संपर्क किया है. मैं ने तो कब से उस का नंबर ब्लौक कर दिया था, लेकिन उस ने दूसरे नंबर से कौल कर लिया.
फिर अभि के बारे में पता करने से मैं उसे नहीं रोक सकती हूं. कोर्ट का भी यही फैसला था.’’ वंशिका की बात सुन कर रितु सम झ गई कि अभी उस की प्यारी सहेली को फरेब और जिम्मेदारी का फर्क सम झ में नहीं आएगा इसलिए उस ने चले जाना ही बेहतर समझा.