‘कब तक झूठ बोलोगे? सचाई छिपाने से भी नहीं छिपती,’ उन की आंखों से आंसू निकलते जा रहे थे और वह कहे जा रही थी, ‘तुम लोगों ने कहीं भी मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा. कल तक जिन के सामने मैं गर्व से कहती थी कि मेरे बच्चे हीरे हैं, अब उन्हें क्या जवाब दूंगी? तुम तो कोयला ही निकले. अपने मुंह पर तो कालिख पोती ही तुम ने हमारे मुंह पर भी पोत दी.’
अनुज जानता था अभी मां से कुछ भी कहना ठीक नहीं है और उमा सदमे की स्थिति में कहती जा रही थीं, ‘अरे, इन्हीं हाथों से खिलाया, पिलाया, पढ़ाया, दिनरात एक कर दिए अपनी सभी इच्छाएं कुरबान कर दीं तुम दोनों पर, किंतु क्या मिला मुझे? यह अपमान, दुख और?’
तभी दोबारा फोन की घंटी घनघना उठी, तब तक अनुज वहां से चला गया था. उमा अचानक सामने रखे सुमित के आईकार्ड पर लगे फोटो पर तड़ातड़ चांटे मारने लगी, बोल, क्या जवाब दूं दुनिया को--- उन को जिन्होंने 10वीं में मैरिट में आने पर मिठाई खाई थी, हमारे आत्मगर्वित चेहरे को देख कर जिन आंखों में ईर्ष्या पैदा हो गई थी, वह आज क्या हमारा मजाक नहीं उड़ाएंगे?’
ममा, क्या हो गया है आप को? पागल तो नहीं हो गईं---? कम से कम आप तो धीरज रखिए, अनुज ने कहा.
हां, मैं पागल हो गई हूं अनुज, मैं अब और धीरज कैसे रखूं? सच बेटा, बेटियों से कहीं अधिक मुश्किल है आज बेटों को पालना--- बेटी एक बार न भी पढ़े तो लायक लड़का देख कर शादी कर दो, उस का जीवन तो कट ही जाएगा, लेकिन तुम लोग कुछ बन नहीं पाए तो क्या करोगे? तुम्हारे पिता के पास तो इतना पैसा भी नहीं है कि कोई व्यापार करा सकें, लेकिन यह भी तो जरूरी नहीं कि व्यापार में भी सफल हो पाओ. हर जगह प्रतियोगिता है, आज यदि एक जगह सफल नहीं हो पाए तो कैसे आशा करें कि दूसरी जगह भी सफल हो पाओगे?