‘‘बहन, सच्ची बात कहूं,’’ सुषमा ने नाराजगी के भाव से कहा, ‘‘दूसरों की मैं नहीं जानती परंतु मेरी बेटी बहुत सीधी है. मैं ने उसे ऐसे संस्कार दिए हैं कि मरती मर जाएगी, परंतु गलत काम नहीं करेगी. मजाल है कि राह चलते किसी लड़के की तरफ निगाह उठा कर देख ले.’’
शुभचिंतिका ने मन ही मन सोचा, लगता है सुषमा ने जमाना नहीं देखा है. कितना बदल गया है. लड़कालड़की किस तरह खुलेआम इश्क फरमाते घूम रहे हैं. लगता है समाज में नैतिकता और मर्यादा की सारी सीमाएं टूट चुकी हैं. शिवानी कब तक जमाने की बदबूदार हवा से अपनी नाक बंद कर के रखेगी. जवानी की आग जब देह को जलाने लगती है तो बड़ेबड़े संतों की दृढ़ प्रतिज्ञा तिल के समान जल जाती है.
शुभचिंतिका ने सुषमा को आगे समझना उचित नहीं समझ. शिवानी के पास कोई चारा नहीं था. भागदौड़ कर उस ने एक प्राइवेट स्कूल में नौकरी कर ली. तनख्वाह बहुत ज्यादा नहीं थी परंतु घर में बैठने से तो यह बेहतर था कि वह काम कर रही थी. अनुभव प्राप्त कर रही थी. इधर उस ने बीएड का फौर्म भर रखा था. चयन होने पर एक साल की ट्रेनिंग पर चली गई. ट्रेनिंग पूरी होते ही उसे उसी स्कूल में अच्छी तनख्वाह पर अध्यापिका की नौकरी मिल गई.
शिवानी के जीवन में खुशियां थीं परंतु प्यार नहीं. उस का कोई प्रेमी नहीं था. इस की कोई चाहत भी उस के मन में नहीं थी. वह चाहती थी जल्दी से जल्दी विवाह बंधन में बंध जाए. पति के घर चली जाए. फिर उस के जीवन में प्यार और खुशी के अनमोल मोती बरसेंगे.