इस बात से स्वाति भड़क गई, ‘‘आप क्या समझते हैं, घर संभालने, सास की सेवा करने और लेखन कार्य करने मात्र से एक पत्नी के जीवन में खुशियां आ सकती हैं? इस के अलावा उसे और कुछ नहीं चाहिए? आप समझते क्यों नहीं कि एक स्त्री को इस के अतिरिक्त और भी कुछ चाहिए, उसे अपने पति से एक बच्चा भी चाहिए. वह मां बनना चाहती है. मां बन कर ही एक स्त्री को पूर्णता प्राप्त होती है.
‘‘इस घर में क्या हो रहा है, आप को दिखाई नहीं पड़ता? सासूमां मेरे बारे में क्याक्या बोलती रहती हैं, वह भी आप के कानों में नहीं पड़ता, क्योंकि आप ने अपनी आंखें और कान बंद कर रखे हैं. मेरी समझ में नहीं आता कि मेरे जीवन में आग लगा कर आप इतने निरपेक्ष कैसे रह सकते हैं. आप को पता है कि आप का रोग लाइलाज है परंतु अपनी नामर्दगी की सजा आप मुझे क्यों दे रहे हैं? मैं ने क्या अपराध किया है?’’ बोलतेबोलते स्वाति की आवाज भर्रा गई. वह पलंग पर बैठ कर सुबकने लगी. पीयूष ने उसे चुप कराने का कोई प्रयास नहीं किया और चुपचाप बाहर निकल गया. स्वाति ने नम आंखों से उसे बाहर जाते हुए देखा और उस का हृदय शीशे की तरह चटक गया. पीयूष के प्रति मन घृणा से भर गया. स्वाति की प्रिय सहेली नम्रता उसी के शहर में ब्याही थी. 2 साल का बच्चा था उस का. उस से यदाकदा बात होती रहती थी. उस के बेटे के जन्मदिन पर पीयूष के साथ गई थी. इधर मानसिक परेशानी और उलझनों के कारण उस ने नम्रता को काफी दिनों से फोन नहीं किया था. कुछ सोच कर उस ने नम्रता को फोन किया. हायहैलो के बाद स्वाति ने कहा, ‘‘मैं तुम से मिलना चाहती हूं.’’