इतने में एक नर्स रितु को इंजैक्शन लगाने आ गई. उस औरत की बेटी ने शायद पानी मांगा और उसे वह पानी पिलाने चली गई. रितु सोचने लगी कि उस की मम्मी भी एक औरत हैं और उस की सास भी, पर दोनों में कितना फर्क है. एक केवल शासन करना चाहती है, दूसरी नम्रतापूर्वक अनुसरण. एक किसी के घर को तोड़ना चाहती है, तो एक घर को बचाने के लिए स्वयं तकलीफ उठाती है. एक में दिखावा है, अभिमान है तो दूसरी में गंभीरता एवं सहजता है. पहली नारी है इसलिए सम्माननीय है, दूसरी सम्मान के साथसाथ श्रद्धा व प्रेम की पात्र भी है. एक केवल जननी है तो दूसरी मां. रितु की आंखें छलक रही थीं.
‘‘बेटा, चाय पी लो,’’ रामअवतार की आवाज से रितु का ध्यान भंग हो गया. रितु ने बड़े ध्यान से अपने ससुर की ओर देखा और सोचने लगी इस व्यक्ति ने आज तक मुझे बेटा के सिवा और किसी नाम से बात नहीं की और न ही कठोर शब्द बोले. इन लोगों के साथ गलत व्यवहार कर के मैं ने बहुत बड़ा अपराध किया है. फिर रितु का ध्यान भंग हुआ क्योंकि रामअवतारजी बगल वाली स्त्री से कह रहे थे :
‘‘बहनजी, आप को एक कष्ट दे रहा हूं. आप मेरी बहू को हाथ लगा कर उठा दें, ताकि वह चाय पी ले.’’
वह औरत उठी और रितु को उठा कर चाय पिलाने लगी तो रामअवतारजी वार्ड से बाहर चले गए. करीब 10 बजे सुनयना खिचड़ी और कुछ साफसुथरे कपड़े ले कर आ गईं और रितु को धीरे से बैठा कर चम्मच से अपने हाथ से खिलाने लगीं. आज उसे यह खिचड़ी मोहनभोग के समान लग रही थी.