मगर मु झे अच्छा नहीं लगा क्योंकि इस बार मैं अपना बर्थडे सब के साथ मनाना चाहती थी. पिछली बार कोरोना के कहर से मैं मरतेमरते बची थी, तो सोचा इस बार सारी कसर एकसाथ निकाल लूंगी.
औफिस जाते समय एक फिर अमित ने मु झे ‘बर्थडे विश करते हुए कहा, ‘‘आज हम दोनों रीजेंटा होटल में कैंडल लाइट डिनर करेंगे. बुक तैयार रखना. मैं औफिस से जल्दी आ जाऊंगा.’’
ठीक है न, वैसे भी हम पतिपत्नी को एकसाथ अकेले समय बिताने का मौका ही कहां मिल पाता है. तो इसी बहाने अमित के साथ गोल्डन टाइम स्पैंड करने का मौका मिल जाएगा मु झे, सोच कर मैं खुश हो गई. सच कहूं, तो हम औरतें एडजस्ट करना खूब जानती हैं. अब बचपन से यही तो सिखाया जाता है हमें.
तैयार हो कर आईने में मैं ने खुद को पता नहीं कितनी बार निहारा और मुसकराते हुए खुद में ही बोल पड़ी कि अनु, तुम्हें कोई हक नहीं बनता कि तुम इतनी सुंदर दिखो. वैसे मैं अपनी बढ़ाई नहीं करती, लेकिन कालेज में सब मु झे श्रीदेवी कह कर बुलाते थे, पता हैं क्यों? क्योंकि मैं देखने में बहुत कुछ उन के जैसा लगती थी.
तभी दरवाजे की घंटी बजी तो दौड़ कर मैं ने दरवाजा खोला यह सोच कर कि अमित आ गए शायद. लेकिन सामने धोबी को देख कर मेरा मूड ही औफ हो गया. मन तो किया कहूं, यही टाइम मिला तुम्हें यहां आने का?
धोबी ने ऊपर से नीचे तक मु झे निहारते हुए कहा, ‘‘अरे मैडमजी लगता है आप कहीं जा रही हैं तो मैं कपड़े बाद में लेने आ जाऊं?’’