करीब 10 वर्षों बाद छवि अपने गांव धीरजपुर आई है. इस गांव में उस का बचपन बीता है. यहां उस के दादाजी, तायाजी, ताईजी और उन के बच्चे व चचेरे भाईबहन हैं. तायाजी की बड़ी बेटी शिखा का विवाह है. चारों ओर धूमधाम है. कहीं हलवाई बैठा मिठाई बना रहा है तो कहीं मसाले पीसे जा रहे हैं, कहीं दरजी बैठा सिलाई कर रहा है तो कहीं हंसीठिठोली चल रही है. पर वह सब से अनभिज्ञ घर की छत पर खड़ी प्राकृतिक सौंदर्य निहार रही थी. चारों तरफ हरेभरे खेत, सामने दिखते बगीचे में नाचते मोर तथा नीचे कुएं से पानी भरती पनिहारिन के दृश्य आज भी उस के जेहन में बसे थे. वह सोचा करती थी न जाने कैसे ये पनिहारिनें सिर पर 2 और बगल में 1 पानी से भरे घड़े ले कर चल पाती हैं.
यह सोच ही रही थी कि छत पर एक मोर दिखाई दिया. फोटोग्राफी का उसे बचपन से शौक था और जब से उस के हाथ में स्मार्टफोन आया है, हर पल को कैद करना उस का जनून बनता जा रहा था, मानो हर यादगार भोगे पल से वह स्वयं को सदा जोड़े रखना चाहती हो. कुतूहलवश उस ने उस के नृत्य का वीडियो बनाने के लिए अपने मोबाइल का कैमरा औन किया पर वह मोर जैसे आया था वैसे ही चला गया, शायद प्रकृति में आए बदलाव से वह भी अछूता नहीं रह पाया.
अनमने मन से वह अंदर आई. दीवानखाने में लगे विशालकाय कपड़े का कढ़ाईदार पंखा याद आया जिसे बाहर बैठा पसीने में लथपथ नौकर रस्सी के सहारे झला करता था और वह व अन्य सभी आराम से बैठे पंखे की ठंडी हवा में मस्ती किया करते थे. वह सोचने लगी, न जाने कैसी संवेदनहीनता थी कि हम उस निरीह इंसान के बारे में सोच ही नहीं पाते थे.