मम्मी के लाख समझाने के बावजूद मैं चाह कर भी अपनेआप को बदल नहीं पाती. सौभाग्य से मुझे वेदांत मिले जिन्हें सिर्फ मुझ से प्यार है, मेरी जिद से उन्हें कोई सरोकार नहीं. उन्होंने कभी मेरे लाइफ स्टाइल पर एतराज जाहिर नहीं किया.
टेलीफोन की घंटी कानों में पड़ते ही मैं फिर वर्तमान में आ पहुंची. दूसरी तरफ अंजलि भाभी थीं. उन्होंने बताया कि तेजस लोकल टे्रन से गिर गया था. इलाज के लिए उसे अस्पताल में दाखिल करवाया गया है. मैं ने उसी वक्त वेदांत को एवं आलोक भैया को फोन द्वारा सूचित तो कर दिया लेकिन मैं अजीब उलझन में पड़ गई. न तो मैं ऋचा को अकेली छोड़ कर जा सकती थी और न ही उसे अस्पताल ले जाना मेरे लिए ठीक रहता. अब क्या करूं...एक बार फिर मुझे मालती की याद आ गई...उफ, इस औरत का मैं क्या करूं?
डोरबेल बजने पर जब मैं ने दरवाजा खोला तो दरवाजे के बाहर मालती को खड़ा पाया. उसे सामने देख कर मेरा सारा गुस्सा हवा हो गया क्योंकि उस की सूजी हुई आंखें और चेहरे पर उंगलियों के निशान देख कर मैं समझ गई कि वह फिर अपने पति के जुल्म का शिकार हुई होगी.
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‘‘क्या हुआ, मालती? तुम्हारे चेहरे पर हवाइयां क्यों उड़ रही हैं?’’ लगातार रो रही मालती उत्तर देने की स्थिति में कहां थी. मैं ने भी उसे रोने दिया.
मालती ने रोना बंद कर बताना शुरू किया, ‘‘भाभी, मैं तुम से माफी मांगती हूं. बंसी ने मुझे इतना पीटा कि मैं 3 दिन तक बिस्तर से उठ नहीं पाई.’’